अरावली की उपत्यकाओं से निकलने वाली गंभीरी नदी की विपुल जल राशि आज भले ही काल के गाल में समा चुकी है किंतु उन दिनों अपने नाम के अनुरूप सचमुच ही वह गहन गंभीर नदी थी। इस नदी के पुनीत जल में सहस्रों प्रकार के मत्स्य और कश्यप दिन रात अठखेलियाँ किया करते थे।
गंभीरी के तट पर खानुआ का विस्तृत मैदान स्थित था। अब तो इस मैदान का अधिकांश भाग खेतों में विलीन हो गया है किंतु उन दिनों यह सम्पूर्ण क्षेत्र निर्जन तथा रिक्त प्रायः था। इस मैदान में परस्पर डेढ़ मील की दूरी पर मध्यम ऊँचाई की दो पहाड़ियाँ हैं। महाराणा ने इनमें से एक पहाड़ी की टेकरी पर अपने अस्सी हजार सैनिकों के साथ डेरा जमाया और बाबर की प्रतीक्षा करने लगा।
जब बाबर की सेना बयाना के पास पहुँची तो राणा ने उसके अर्धसभ्य[1] सैनिकों में जमकर मार लगायी। इस जबर्दस्त मार से बाबर के सैनिक भाग छूटे। उसके कई सैनिक मर गये। इससे बाबर की सेना में सांगा का आतंक छा गया। अब वे शौच जाने के लिये भी इक्के दुक्के न निकलते। सिपाहियों के इस खौफ को देखकर बाबर ने जौनपुर से हुमायूँ को भी बुला लिया।
भारत में बहुत से मुसलमानों के बाबर की सेना में भर्ती हो जाने पर भी बाबर के अधिकृत सैनिकों की संख्या पच्चीस हजार से बढ़कर चालीस हजार ही हो पायी थी किंतु बहुत से बर्बर लुटेरे एवं डाकू भी भेष बदल कर बाबर के लश्कर में जा मिले थे ताकि जब लड़ाई हो तो वे भी लूटमार में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले सकें।
जब बाबर धौलपुर पहुँचा तो उसने धौलपुर के कमलबाग में बने हुए विशाल सरोवर को देखकर अपने सिपाहियों से कहा- ‘यदि तुम राणा को परास्त कर दोगे तो मैं इस सरोवर को शराब से भरवा दूंगा।’
यह घोषणा भी उसके सैनिकों में उत्साह न भर सकी। ज्यों-ज्यों बाबर अपने सैनिकों के मन से राणा का भय भुलाने का प्रयास करता था, त्यों-त्यों बाबर के सैनिकों के मन में सांगा का आतंक गहराता जाता था। सांगा की बहादुरी के अनेक किस्से बाबर की सेना में फैल गये और उन्होंने राणा की सेना से लड़ने से इंकार कर दिया। वे वापिस अपने घर जाने की मांग करने लगे। सेना द्वारा हथियार डाल देने पर भी बाबर की खूनी ताकत ने हार नहीं मानी।
उसने एक योजना बनाई और अपने विश्वस्त आदमियों से कहा कि किसी तरह कुछ हिन्दू सिपाहियों के सिर काट लायें। जब बाबर के सैनिक कुछ हिन्दू सैनिकों को एकांत में पाकर धोखे से उनका सिर काट लाये तो बाबर ने अपनी सेना को एक विशाल मैदान में इकट्टा किया और स्वयं एक ऊँचे स्थान पर खड़ा हो गया।
उसने हिन्दू सैनिकों के कटे हुए सिरों को ठोकरें मारते हुए बड़ा जोशीला भाषण दिया- ‘जिन काफिरों को हमारे बाप-दादे और हम स्वयं पैरों से ठोकरें मारते आये हैं उनसे भय कैसा? हिन्दुस्थान में अब तक हमने जीत ही जीत हासिल की है और हर जगह बेशुमार दौलत और गुलाम हासिल किये हैं। यह आखिरी लड़ाई है। इसके बाद हिन्दुस्थान में हमारा मुकाबला करने वाला कोई नहीं होगा। यदि हम जीत गये तो हमें हिन्दुस्थान का राज्य मिलेगा और यदि मारे गये तो जन्नत में हूरें मिलेंगी। इस लड़ाई के बाद जो सिपाही घर जाना चाहेगा, उसे जाने दिया जायेगा।’
अपने भाषण के दौरान उसने अपने कीमती शराब के प्याले तथा कुरान मंगवायी। शराब के प्यालों को उसने अपने पैरों से कुचल कर तोड़ डाला और कुरान पर हाथ रखकर कसम खाई- ‘जब तक मैं काफिरों पर जीत हासिल नहीं कर लूंगा तब तक शराब और स्त्री को हाथ नहीं लगाऊंगा तथा अब जीवन में कभी भी दाढ़ी नहीं बनाऊंगा।’
इस नाटक का सिपाहियों पर जादू जैसा असर पड़ा। उन्होंने भी कुरान पर हाथ रखकर अपनी-अपनी पत्नी के परित्याग की घोषणा की। उन्होंने अंत तक बाबर का साथ देने का वचन दिया और वे खानुआ चलने को तैयार हो गये।
जिस दिन बाबर का मुख्य सेनापति अपने प्रथम सैनिक दस्ते के साथ खानुआ पहुँचा उसी दिन राणा सांगा ने बाबर पर आक्रमण किया। बाबर के कई नामी गिरामी सेनापति उस युद्ध में मारे गये। कुछ को सांगा ने कैद कर लिया। बाबर की सेना मैदान छोड़कर भाग खड़ी हुई सांगा के सैनिकों ने उसका पीछा किया और उन्हें दो मील दूर तक खदेड़ दिया। बाबर ने अतिरिक्त सेना भेजी किंतु वह भी कुछ नहीं कर सकी।
सैनिकों में एक बार फिर सांगा का आतंक फैल गया और शपथ का जोश तिरोहित हो गया। वे फिर से अपने देश लौटने की मांग करने लगे। इतना होने पर भी बाबर की खूनी ताकत हार मानने को तैयार नहीं थी। उसने अपने पूरे लश्कर को एक साथ खानुआ कूच करने का आदेश दिया। गंभीरी नदी के तट पर स्थित दूसरी पहाड़ी पर बाबर ने अपना पड़ाव डाला। राणा की पहाड़ी यहाँ से मात्र दो मील की दूरी पर थी।
राणा के विशाल लश्कर को देखकर इस बार स्वयं बाबर के भी छक्के छूट गये। उसे लगा कि शत्रु को भुजबल से नहीं जीता जा सकता है, इसके लिये बुद्धि बल का सहारा लेना होगा। उसने राणा के पास संधि का प्रस्ताव भिजवाया। राणा को पूरी उम्मीद थी कि बाबर की ओर से यह शैतानी भरा प्रस्ताव अवश्य आयेगा। राणा जानता था कि मुहम्मद गौरी ने भी इसी तरह छल करके महाराज पृथ्वीराज चौहान को परास्त किया था। अतः राणा ने बाबर का यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। बाबर के समक्ष युद्ध के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं बचा।
पूरे पन्द्रह दिन तक बाबर गंभीरी के तट पर बैठा सिर धुनता रहा और केवल एक ही बात पर विचार करता रहा कि किस तरह इस मैदान से वह सम्मान पूर्वक लौट जाये। बाबर के अमीरों ने एक योजना बनाई जिसके अनुसार उन लोगों को तलाशा गया जो राणा का साथ छोड़कर बाबर की ओर आ सकते थे। सांगा की ओर से दो मुस्लिम सेनापति- अलवर का सुल्तान हसनखाँ मेवाती तथा अलहदी भी मैदान में मौजूद थे। बाबर के आदमियों ने उन दोनों से सम्पर्क किया। वीर हसनखाँ मेवाती ने गद्दारी करने से मना कर दिया लेकिन अलहदी लालच में फंस गया। उसे बाबर के अमीरों ने बड़े सब्ज बाग दिखाये। अलहदी ने बाबर से कहा कि आप निर्भय होकर राणा पर आक्रमण करें, मैं ऐन वक्त पर आपसे आ मिलूंगा। अलहदी ने अपने आप को राणा के हरावल[2] में रखा ताकि उसे भागने में सुविधा रहे।
17 मार्च 1527 को प्रातः साढ़े नौ बजे मारवाड़ के राव गांगा ने बाबर की सेना पर पहला गोला दागा। वह अपने सात हजार सैनिकों को लेकर सांगा की सेवा में उपस्थित हुआ था। किसी तरह हिम्मत जुटा कर बाबर की सेना युद्ध के मैदान में कूद पड़ी। युद्ध आरंभ होते ही अलहदी अपनी सेना के साथ बाबर से जा मिला। अलहदी की इस गद्दारी से हिन्दुओं का सारा गणित गड़बड़ा गया। फिर भी हिन्दुओं ने बाबर की तोपों की परवाह न करके बाबर को उसके मध्यभाग में जा घेरा जिससे युद्ध का पलड़ा शुरू से ही हिन्दुओं के पक्ष में हो गया।
ऐसा भयानक युद्ध भारत के इतिहास में अब तक नहीं हुआ था। युद्ध लगातार बीस घण्टे तक चलता रहा। बाबर निराश हो गया। उसने युद्ध के मैदान में ही अपने प्रमुख सेनापतियों को बुलाया और उन्हें कुरान शरीफ का हवाला देकर अपने प्राण झौंक देने के लिये कहा। उस्ताद अली और मुस्तफा ने सिर पर कफन बांधा और अपने तोप खाने से मौत उगलने लगे।
जैसे समुद्र में लहर पर लहर चली आती है, उसी प्रकार हिन्दू सैनिक बाबर पर चढ़ दौड़े किंतु तीन दिशाओं से होने वाली बारूद वर्षा ने हिन्दू वीरों के परखचे उड़ा दिये। डूंगरपुर का रावल उदयसिंह अपने दो राजकुमारों सहित मारा गया। सलूम्बर का राव रतनसिंह अपने तीन सौ चूण्डावतों सहित खेत रहा। मारवाड़ का राठौड़ राजकुमार रायमल और मीरांबाई के पिता रतनसिंह अपने मेड़तिया सरदारों सहित वीरगति को प्राप्त हुए। सोनगरा सरदार रामदास, झाला सरदार ओझा, परमार गोकुलदास, चौहान मानक चंद्र तथा चौहान चन्द्रभान सहित सैंकड़ों सेनानायक अपने आदमियों सहित युद्धभूमि में तिल-तिल कर कट मरे। वीर हसनखाँ मेवाती ने तलवार के वो जौहर दिखाये कि बाबर को दिन में तारे दिखाई देने लगे। वह अपने दस हजार आदमियों सहित युद्ध क्षेत्र में कट मरा। इब्राहीम लोदी का बेटा महमूद लोदी भी युद्ध भूमि में ही मारा गया। इस युद्ध में वह अपनी पुरानी शत्रुता भुला कर सांगा की ओर से लड़ा था।
इसी बीच राणा सांगा सिर में तीर लग जाने से बुरी तरह जख्मी हो गया। झाला अज्जा ने राणा के प्राण बचाने के लिये राणा के राजकीय चिह्न उठाकर अपने सिर पर धर लिये। बाबर की सेना झाला अज्जा को ही राणा समझकर सरमरांगण में उसकी ओर चढ़ दौड़ी। वीर झाला स्वामी के प्राणों की रक्षा के लिये रणभूमि में ही टुकड़े-टुकड़े होकर गिर गया। भारत का इतिहास स्वामी के प्राणों की रक्षा के लिये अपना जीवन न्यौछावर कर देने वाले वीर झाला जैसे सेवकों की गाथाओं से भरा पड़ा है।
मूर्च्छित राणा को उसके सरदार युद्ध के मैदान से उठा कर ले गये और बसुआ[3] के पास की पहाड़ियों में जाकर छिप गये। जब राणा को होश आया तो उसने अपने आदमियों को फटकारा- ‘जब तक फरगाना से आया शत्रु जीवित है तब तक चित्तौड़ लौट जाने में तुमको लाज नहीं आती? क्यों तुम मेरे और अपने प्राण लेकर युद्धभूमि से भाग आये? चलो फिर वहीं चलो। शत्रु को मारो या फिर स्वयं मर मिटो। यदि हम इस तरह चित्तौड़ लौटे तो हमारी स्त्रियां हमारा उपहास उड़ायेंगी। हमें कायर और भगोड़ा कहेंगी। सरदारों ने राणा को बताया कि युद्ध समाप्त हो चुका है और बाबर के सैनिक ढूंढ-ढूंढ कर हिन्दू सैनिकों को मार रहे हैं। ऐसी स्थिति में मुट्ठी भर सैनिकों को साथ लेकर बाबर के सामने जाना ठीक नहीं है। जब सेना फिर से इकट्ठी हो जायेगी तब बाबर से निबट लिया जायेगा।
राणा ने सरदारों की बात नहीं मानी। वह फिर से रणभूमि में जाने की जिद्द करने लगा। राणा का प्रण देखकर कुछ धोखेबाज सरदारों ने उसे मार्ग में जहर दे दिया जिससे राणा की मृत्यु हो गयी और हिन्दुस्थान पर बाबर का अधिकार हो गया।
खानुआ का मैदान मार लेने के बाद बाबर ने अपने सिपाहियों से कहा कि जो सिपाही काफिरों के जितने सिर काट कर लायेगा, उसे सोने की उतनी ही अशर्फियां दी जायेंगी। मुगल सिपाही भागती हुई हिन्दू सेना के पीछे लग गये। अशर्फियों के लालच में हर सिपाही ज्यादा से ज्यादा सिर काटना चाहता था। कुछ ही दिनों में भारत की सड़कों पर विचित्र नजारा देखने को मिला। हजारों मंगोल और अफगान सिपाही अपने घोड़ों पर हिन्दुओं के कटे हुए सिरों को ऐसे बांधकर ले जाते हुए दिखाई दिये मानो तरबूज अथवा मटकियां बेचने के लिये ले जाये जा रहे हों।
लोग इन दृश्यों को देखकर कांप उठे। वे अपने घरों को छोड़कर जंगलों में जा छिपे। मंगोलों और अफगानों ने वहाँ भी उनका पीछा नहीं छोड़ा। बाबर ने उसी पहाड़ी पर इन कटे हुए सिरों की मीनारें बनवाईं जिस पर कुछ दिन पहले तक राणा की सेना पड़ाव डाले हुए थी। हर मीनार को ठोकरों से गिरा कर बाबर ने प्रपितामह तैमूर की आत्मा की शांति के लिये दुआएं मांगीं।
इस भयानक नर संहार को देखकर गुरुनानक देव की आत्मा हा-हा कार कर उठी उन्होंने लिखा-
”खुरासान खसमाना किया, हिंदुस्तान डराया
आप दोष न दईं करना जम कर मुगल चढ़ाया
ऐनी मार पई करलाणे, तैं की दरद न आया?”[4]
लाखों हिन्दुओं के सिरों को अपनी ठोकर से गिराकर बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की।[5] उसने सचमुच हिन्दुओं पर गाज गिराई। पूरे 331 वर्ष तक बाबर के वंशज यह उपाधि धारण करते रहे।
[1] कर्नल टाड ने बाबर के सैनिकों को अर्धसभ्य लिखा है।
[2] सेना का अग्र भाग।
[3] यह स्थान जयपुर जिले में है।
[4] अर्थात् हे परमात्मन्! तू ने खरासान अर्थात् बाबर के देश को तो सुरक्षित रखा और हिन्दुस्थान को भयाक्रांत कर दिया। यहाँ इतना अत्याचार हुआ कि सारी मानवता त्राहिमाम कर उठी, किंतु हे कृपा करने वाले! तेरा मन नहीं पसीजा?
[5] गाजी का अर्थ होता है बिजली गिराने वाला। जब 1857 में अंग्रेजों ने बहादुरशाह जफर को दिल्ली के लाल किले से बेदखल करके रंगून भेज दिया, तब बाबर के वंशजों ने इस उपाधि को धारण करना बंद किया।