Saturday, April 20, 2024
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पाकिस्तान को बोलने दो!

सीधी कार्यवाही दिवस में आशातीत सफलता मिलने के बाद मुस्लिम लीग द्वारा एक इश्तहार का प्रकाशन करवाया गया जिसका शीर्षक था- ‘पाकिस्तान को बोलने दो!’ इस इश्तहार में मुस्लिम लीग के नेता एस. एम. उस्मान ने कहा- ‘रमजान के महीने में इस्लाम तथा ‘काफिरों’ के बीच पहला खुला युद्ध शुरू हुआ और मुसलमानों को जेहाद में संलग्न होने की अनुमति मिली। इस्लाम को शानदार विजय प्राप्त हुई। खुदा की इच्छा के अनुसार ऑल इण्डिया मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान प्राप्त करने के उद्देश्य से जेहाद शुरू करने के लिए इस पवित्र माह को चुना। हम मुसलमानों के पास ताज रहा है और हमने शासन किया है। हिम्मत मत हारो, तैयार हो जाओ और तलवार निकाल लो। ओ काफिर तुम्हारा अंत दूर नहीं है, तुम्हारा संहार जरूर होगा।’

सुहरावर्दी का व्यवहार

बंगाल के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी ने इन दंगों का नेतृत्व करते हुए नारा दिया- ‘लड़ कर लेंगे पाकिस्तान।’ उसने 16 अगस्त को सरकारी दफ्तरों में अवकाश घोषित कर दिया ताकि मुस्लिम लीग के कार्यकर्ता खुलकर हत्याएं कर सकें। बंगाल का गवर्नर सर फ्रेडरिक बरोज इन दंगों को रोकने के लिये कुछ नहीं कर पाया। बंगाल और बिहार हिन्दुओं के खून में नहा उठे।

बंगाल के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर जनरल एस. जी. टेलर ने अपने ‘एस. जी. टेलर पेपर्स’ में लिखा है- ‘मुस्लिम लीग के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी ने उस समय कैसा व्यवहार किया था? सुहरावर्दी का व्यवहार निंदनीय था। उपद्रवों के चरम पर आर्मी एरिया कमाण्डर और मुख्यमंत्री ने कलकत्ता का दौरा किया। सेना के कमाण्डर ने कहा यह असामान्य है, सेना में हिन्दू और मुसलमान खुशी-खुशी एक साथ रहते और काम करते हैं। सुहरावर्दी ने अपनी भावनाओं को छिपाए बिना कहा, हम जल्द ही वह सब खत्म कर देंगे।’

इस प्रकार सीधी कार्यवाही में कलकत्ता में लगभग दस हजार जानें लीं।

मुस्लिम लीग के अन्य नेताओं का व्यवहार

पंजाब के प्रमुख मुस्लिम लीगी नेता ममदौत ने लीग कर्मियों से एक उत्तेजित देश के सभी तरीकों का प्रयोग करने को कहा- ‘हम अपने सभी बंधन तोड़ चुके हैं। अब हम भारत में इस्लाम की स्वतंत्रता के लिए दृढ़-प्रतिज्ञ हैं।’

सिंध के कानून व्यवस्था मंत्री गुलाम अली खाँ ने कहा- ‘पाकिस्तान के सम्बन्ध में मुसलमानों का विरोध करने वाले हर किसी को नष्ट तथा तहस-नहस कर दिया जाएगा।’

कलकत्ता के सटेट्समैन ने सीधी कार्यवाही के कार्यक्रमों को बहुत सूक्ष्मता से परखा। उसने लिखा है- ‘बम्बई में फिरोज खाँ नून ने पाकिस्तान के निर्माण के लिए एक ध्वजोत्तोलन समारोह में भाग लिया और डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को उनके सभी समर्थकों के साथ इस्लाम ग्रहण करने का न्यौता दिया। दिल्ली में 16 अगस्त को जामा मस्जिद में मुसलमानों की एक सभा को सम्बोधित करते हुए काजी मुहम्मद ईसा ने मुसलमानों को खुद को पाकिस्तान का सैनिक मानने और अंतिम संघर्ष हेतु तैयार रहने के लिए कहा। ये सभी उदाहरण बताते हैं कि मुस्लिम लीग किस प्रकार पूरे उत्तरी भारत में हिन्दू-मुस्लिम दंगों को बढ़ावा देकर साम्प्रदायिक विभाजन उत्पन्न करने के लिए डटी हुई थी।’

नोआखाली में हिंसा

अगस्त 1946 में जो कुछ कलकत्ता में हुआ, वह वहीं तक सीमित नहीं रहा। बंगाल के दूसरे बड़े शहर ढाका में हत्या, आगजनी और लूटपाट की वारदातें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थीं। पर सबसे भीषण स्थिति अक्टूबर 1946 में मुस्लिम-बहुल पूर्वी-बंगाल के दो जिलों नोआखाली ओर तिप्परा में थी। संगठित गुंडे वहाँ व्यापक स्तर पर आर्थिक बहिष्कार, लूटपाट, आगजनी, बलात्कार तथा हत्या के जरिए असहाय हिन्दू पड़ौसियों को अपनी बर्बरता का शिकार बना रहे थे।

साम्प्रदायिक उन्माद से सर्वाधिक पीड़ित नोआखाली जिले के सबडिवीजन फेनी में जब 9 अक्टूबर 1946 को सशस्त्र सैनिक टुकड़ियां पहुंचीं तो इससे कहीं अधिक बर्बरता से साम्प्रदायिक ताण्डव नोआखाली जिले के रामगंज थाने में शुरु हो गया। वहाँ लूटपाट, आगजनी, बलात्कार और हत्या के अलावा हिन्दुओं को जबर्दस्ती इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया जाने लगा। इस सुनियोजित बर्बरता का नेतृत्व मुस्लिम लीग नहीं अपितु ई.1946 के चुनाव में पराजित भूतपूर्व विधायक गुलाब सरवर कर रहा था।

पूर्वी बंगाल के नोआखाली और त्रिपुरा जिलों में लगभग 5000 हिन्दू मारे गए। नोआखाली में बड़ी संख्या में हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का प्रयास किया गया तथा स्त्रियों के साथ बलात्कार किए गए। नोआखाली में 7.5 लाख हिन्दुओं को कई महीनों तक शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ा। इन दंगों की प्रतिक्रिया में बिहार में हिन्दुओं ने मुसलमानों पर आक्रमण कर दिया। सरकारी सूत्रों के अनुसार बिहार में लगभग 4,300 मुसलमान मारे गए।

संयुक्त प्रान्त में 250 मुसलमान मारे गए। पूर्वी भारत की तरह पश्चिमी भारत में भी सीधी कार्यवाही में हिन्दुओं एवं सिक्खों के विरुद्ध भयानक हिंसा हुई। पंजाब में मरने वाले सिक्खों तथा हिन्दुओं की संख्या 3,000 तक पहुंच गई। दंगों के दौरान सिक्खों तथा हिन्दुओं की करोड़ों रुपये मूल्य की सम्पत्ति लूट ली गई अथवा तोड़-फोड़ एवं आगजनी में नष्ट कर दी गई।

कांलिन्स एवं लैपियर ने लिखा है– ‘नोआखाली धू-धू कर जल उठा। जहाँ गांधीजी अपनी प्रायश्चित यात्रा पर निकले। बिहार में कौमी दंगों का नंगा नाच हुआ। पश्चिमी तट पर बम्बई भी आग के शहर में बदल गया।

……. इन घटनाओं ने देश के इतिहास को अत्यधिक प्रभावित किया। मुसलमानों ने वास्तव में साबित कर दिया कि यदि उन्हें उनका पाकिस्तान नहीं मिला तो सारे देश को खून से सान देने की जो धमकी वे बरसों से देते आ रहे थे, उसे एक डरावनी सच्चाई में बदल देने का दम-खम उनमें पूरी तरह था। जिस वीभत्स से दृश्य की कल्पना से ही गांधीजी के रोम सिहरते रहे थे, वह दृश्य अचानक मात्र गीदड़ भभकी न रहकर एक नंगी सच्चाई बना गया- गृह युद्ध!’

बंगाल के अन्य शहरों एवं बिहार में हिंसा

सिलहट एवं ढाका में भी लोग हताहत हुए। प्रतिशोध बहुत उग्र था और मूल उपद्रव की तुलना में वह कहीं अधिक भयानक था। एक के बदले तीन की नीति से नोआखाली और त्रिपुरा में जनता उत्तेजित हो उठी। इन दोनों जिलों में मुसलमान बहुसंख्यक और हिन्दू अल्पसंख्यक थे। नोआखाली में उनका अनुपात 18 लाख और 4 लाख का था। पूर्वी बंगाल के इन दोनों जिलों में अपराध जितनी भयानकता के साथ हुए थे उसे देखते हुए हताहतों की संख्या अधिक नहीं थी।

नारी निर्यातन, बलपूर्वक विवाह, जबरन धर्म परिवर्तन, घरों में आग लगा देने, उन पर सामूहिक हमले और प्रसिद्ध परिवारों के इन हमलों में शिकार होने से पूर्वी बंगाल में अविश्वास फैल गया था कि वह तीन वर्ष पूर्व अकाल में हुई सामूहिक मृत्युओं से भी कहीं अधिक भीषण था। पूर्वी बंगाल से कितने ही हिन्दू भागकर बिहार आए और वहाँ अत्याचारों की कहानियां फैल गईं। इससे बिहारी जनता प्रतिशोध के लिए पागल हो उठी।

अक्टूबर 1946 के अंत में साम्प्रदायिक विनाश की बर्बर विनाशलीला बिहार में शुरु हुई। बिहार पहले से ही बारूद के ढेर पर बैठा था। कलकत्ता, ढाका और नोआखाली की खबरों ने पलीते का काम किया। बिहार में साम्प्रदायिक हिंसा का का शिकार मुख्यतः वहाँ के मुसलमान अल्पसंख्यक हुए। लीग ने जब अंतरिम सरकार में शामिल होने का निर्णय लिया तो वस्तुतः साम्प्रदायिक उन्माद में बह रहे रक्त से ही उसका राजतिलक हुआ।

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