महाराजा अजीतसिंह ने जोधपुर दुर्ग को गंगाजल से धुलवाया!
ईस्वी 1678 में महाराजा जसवंतसिंह का निधन हो जाने के बाद औरंगजेब ने मारवाड़ राज्य खालसा कर लिया था तथा शिशु महाराजा अजीतसिंह की सुन्नत करके उसे मुसलमान बनाने का षड़यंत्र रचा था किंतु वह षड़यंत्र विफल हो गया था। जब ईस्वी 1707 में महाराजा अजीतसिंह ने फिर से जोधपुर दुर्ग पर अधिकार किया तो दुर्ग को गंगाजल से धुलवाकर पवित्र करवाया।
औरंगजेब ने शिशु राजकुमार अजीतसिंह को मुसलमान बनाने के लिए बहुत षड़यंत्र रचे थे किंतु राजपूत सरदार अपने स्वामी को औरंगजेब की दाढ़ में से निकाल लाए थे। राजपूतों ने राजकुमार अजीतसिंह को कुछ दिनों तक सिरोही राज्य के कालंद्री गांव में छिपाकर रखा किंतु बाद में महाराणा राजसिंह के संरक्षण में मेवाड़ में ले जाकर रखा।
शिशु अजीतसिंह के दिल्ली से निकल जाने पर पर औरंगजेब ने एक बालक को पकड़कर उसे अजीतसिंह घोषित किया तथा उसका खतना करके उसे अपने हरम के साथ पालने-पोसने की व्यवस्था की। उस बालक का नाम मुहम्मदी राज रखा गया। जब ई.1682 में औरंगजेब दक्खिन के मोर्चे पर गया तो वह मुहम्मदी राज को भी अपने साथ दक्षिण के मोर्चे पर ले गया किंतु वहाँ प्लेग फैल जाने के कारण बालक मुहम्मदीराज की मृत्यु हो गई।
इधर शिशु अजीतसिंह महाराणा राजसिंह के संरक्षण में पलकर बड़ा हो गया। ई.1687 में जब अजीतसिंह आठ साल का हुआ तो वीर मुकुंद दास खींची ने मारवाड़ के सरदारों के आग्रह पर बालक अजीतसिंह को मारवाड़ के समस्त सरदारों के समक्ष प्रकट कर दिया। उस समय वीर दुर्गादास दक्षिण के मोर्चे पर था।
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सबसे पहले बूंदी के राजा दुर्जनसिंह हाड़ा को अवसर दिया गया कि वह महाराजा अजीतसिंह से मिलकर उन्हें उपहार भेंट करे। उसी अवसर पर अजीतसिंह का राज्यतिलक करके उसे मारवाड़ का राजा घोषित कर दिया गया।
अधर जब शहजादा अकबर दक्खिन भारत छोड़कर ईरान चला गया तो वीर दुर्गादास भी दक्षिण का मोर्चा छोड़कर महाराजा अजीतसिंह के पास आ आया। कुछ समय पश्चात् वीर दुर्गादास तथा दुर्जनशाल हाड़ा ने मिलकर मुगल राज्य पर चढ़ाई की तथा रोहन, रोहतक एवं रेवाड़ी को लूट लिया। राजपूतों के चढ़ आने का समाचार सुनकर दिल्ली में हड़कम्प मच गया तथा चालीस हजार सैनिक इनका मार्ग रोकने के लिए भेजे गए। इस पर दुर्गादास और दुर्जनशाल अपनी सेना को लेकर वापस मारवाड़ आ गए।
जब औरंगजेब को यह ज्ञात हुआ कि राजकुमार अजीतसिंह प्रकट हो गया है तो उसने जोधपुर एवं अजमेर के सूबेदारों को आज्ञा दी कि वे अजीतसिंह को पकड़ लें किंतु मुगल अधिकारियों को इस कार्य में कभी भी सफलता नहीं मिल सकी।
इसके बाद वीर दुर्गादास तथा उसके साथी औरंगजेब की सेनाओं से संघर्ष करते रहे और औरंगजेब से मांग करते रहे कि वह बालक अजीतसिंह को मारवाड़ का राजा स्वीकार कर ले किंतु औरंगजेब यही जवाब देता रहा कि जिसे राजपूत अजीतसिंह बता रहे हैं, वह अजीतसिंह नहीं है क्योंकि उसकी तो मृत्यु हो गई है। अंत में जब ई.1686 में शहजादा अकबर अपने परिवार को वीर दुर्गादास के संरक्षण में छोड़कर ईरान भाग गया तो ई.1695 में औरंगजेब को राजपूतों से संधि करनी पड़ी।
औरंगजेब ने दुर्गादास को तीन हजारी जात और एक हजार सवारों का मनसब दिया जबकि महाराजा अजीतसिंह को डेढ़ हजारी जात तथा पांच सौ सवार का मनसब दिया। इसके साथ ही दुर्गादास तथा अजीतसिंह को मारवाड़ राज्य के कुछ परगनों की जागीरी भी दी गई। हालांकि यह प्रस्ताव राजकुमार अजीतसिंह के लिए अपमानजनक था किंतु दुर्गादास तथा अजीतसिंह दोनों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया क्योंकि इस प्रस्ताव के माध्यम से औरंगजेब ने पहली बार अजीतसिंह को उसके पैतृक राज्य के कुछ हिस्से लौटाना स्वीकार कर लिया था।
अजीतसिंह पूरे मारवाड़ राज्य का स्वामी था किंतु औरंगजेब ने उसे अपने ही राज्य में एक छोटा सा जागीरदार बनाने की साजिश की थी। इसलिए अजीतसिंह ने मनसब और जागीर तो स्वीकार कर ली किंतु उसने मारवाड़ में स्थित शाही थानों को लूटना जारी रखा।
जदुनाथ सरकार ने हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब में लिखा है कि औरंगजेब ने महाराजा अजीतसिंह को कई बार संदेश भिजवाए कि वह बादशाह के दरबार में उपस्थित होकर अपना राज्य प्राप्त कर ले, यहाँ तक कि औरंगजेब ने महाराजा अजीतसिंह को सात हजारी मनसब देने का भी आश्वासन दिया तथा इस फरमान पर अपने पंजे का निशान भी लगाया किंतु अजीतसिंह जानता था कि औरंगजेब पर विश्वास नहीं किया जा सकता इसलिए वह कभी भी औरंगजेब के दरबार में उपस्थित नहीं हुआ।
औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 को हुई थी। यह सुनते ही 12 मार्च 1707 को महाराजा अजीतसिंह ने जोधपुर पर आक्रमण किया। उस समय जफरकुली जोधपुर के दुर्ग का किलेदार था। उसने महाराजा अजीतसिंह से युद्ध किया किंतु अंत में दुर्ग खाली करके भाग गया।
अजितोदय नामक ग्रंथ में महाराजा अजीतसिंह का विश्वसनीय इतिहास लिखा गया है। इसके अनुसार महाराजा ने अपने पूर्वजों की राजधानी पर अधिकार कर लिया तथा अपने पूर्वज राव जोधा द्वारा बनवाए गए मेहरानगढ़ दुर्ग को गंगाजल एवं तुलसीदल से पवित्र करवाया गया। उसने स्वयं को स्वतंत्र रूप से जोधपुर का राजा घोषित कर दिया।
मारवाड़ राज्य का इतिहास लिखने वाले पण्डित विश्वेश्वर नाथ रेउ ने लिखा है कि विगत 28 वर्षों से जोधपुर पर मुसलमानों का अधिकार था, उन्होंने जोधपुर नगर में स्थित सैंकड़ों प्राचीन मंदिरों को तुड़वाकर उनके स्थान पर मस्जिदें बनवा दी थीं। जब महाराजा अजीतसिंह ने जोधपुर में प्रवेश किया, तब पूरे शहर में मस्जिदों से आने वाली अजान की आवाजें सुनाई देती थीं। महाराजा अजीतसिंह ने इन मस्जिदों को तुड़वा कर फिर से मंदिर बनवा दिए और शहर में घण्टे एवं शंखनाद सुनाई पड़ने लगे।
अजितोदय एवं अन्य ख्यातों में लिखा है कि अजीतसिंह द्वारा शहर में रह रहे काजियों एवं अन्य मुसलमानों के विरुद्ध भी कार्यवाही की गई जिससे बहुत से मुसलमान शहर छोड़कर भाग गए और बहुत से मुसलमानों ने दाढ़ी कटवाकर अपना वेश बदल लिया!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता