Monday, December 29, 2025
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नगरकोट से चांदी का महल तोड़कर गजनी ले गया महमूद गजनवी (9)

नगरकोट की लूट (Nagarkot Ki Loot) दुनिया की सबसे बड़ी लूट मानी जाती है। महमूद गजनवी को जितना धन सोमनाथ के मंदिर से मिला था, अल्लाउद्दीन खिलजी को जितना धन देवगिरि से मिला था और अहमदशाह अब्दाली को जितना धन दिल्ली के लाल किले से मिला था, उन सब से कहीं अधिक धन महमूद गजनवी को नगरकोट से मिला था।

ई.1002 में पंजाब के हिन्दूशाही राजा जयपाल (Raja Jayapal) ने महमूद गजनवी (Mahmud of Ghazni) से पराजित होने के बाद जीवित ही अग्नि में प्रवेश किया तथा उसका पुत्र आनंदपाल (Raja Anandpal) पंजाब का राजा बना। राजा जयपाल ने अपने पौत्र सुखपाल को मूलस्थान का प्रांतपति बना रखा था। जब राजा जयपाल अपने पुत्र-पौत्रों सहित युद्ध के मैदान में ही पकड़ लिया गया था तब मूलस्थान का शासक सुखपाल भी उनमें सम्मिलित था। महमूद उसे रस्सियों में बांधकर अपने साथ गजनी ले गया और उसे बलपूर्वक मुसलमान बना लिया। सुखपाल का नाम नौशाशाह रखा गया।

जब सुखपाल मुसलमान बन गया तब महमूद गजनवी (Mahmud of Ghazni) ने उसे फिर से मूलस्थान का प्रांतपति नियुक्त कर दिया ताकि भारत में महमूद का शासन बना रह सके। नौशाशाह अर्थात् सुखपाल ने मूलस्थान लौटकर स्वयं को फिर से हिन्दू घोषित कर दिया तथा महमूद के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

महमूद ने इसे अपना अपमान समझा और वह एक बार फिर से अपनी तलवार निकालकर भारत पर झपट पड़ा। महमूद ने सुखपाल (Sukhpal) को फिर से युद्ध में बंदी बना लिया और उसे फिर से गजनी ले गया। इस दौरान महमूद ने झेलम के तट पर स्थित भेरा राज्य पर भी आक्रमण किया। भेरा के हिन्दू शासक (Hinu Ruler Of Bhera) बाजीराव ने सम्मुख युद्ध में पराजित होकर आत्मघात कर लिया। इस प्रकार मूलस्थान तथा भेरा पर महमूद का अधिकार हो गया।

इस बार महमूद गजनवी (Mahmud of Ghazni) ने दाउद करमाथी नामक एक अफगान सरदार को मूलस्थान का प्रांतपति नियुक्त किया किंतु ई.1005 में दाउद ने भी बगावत कर दी तथा स्वयं को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया। इस पर महमूद ने मुल्तान पर पुनः आक्रमण किया। दाऊद ने महमूद का सामना किया किंतु दाउद बुरी तरह पराजित हो गया।

दाउद ने महमूद को अपार धन देकर अपनी जान बचाई। उसने महमूद को वार्षिक कर देना भी स्वीकार किया किंतु महमूद ने दाऊद को हटाकर, पंजाब के राजा आनंदपाल के पुत्र सेवकपाल को मूलस्थान का शासक नियुक्त किया जिसे अब मुल्तान कहा जाने लगा था।

सेवकपाल ने भी महमूद गजनवी (Mahmud of Ghazni) को वार्षिक कर देना स्वीकार किया किंतु ई.1007 में सेवकपाल ने भी स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया। अतः महमूद ने सेवकपाल को दण्डित करने के लिए पुनः मुल्तान पर आक्रमण किया। सेवकपाल परास्त होकर बंदी हुआ। उसने महमूद को 4 लाख दिरहम भेंट किए।

महमूद ने उसे मुल्तान से खदेड़ कर दाऊद को पुनः मुल्तान का शासक नियुक्त कर दिया। जब महमूद गजनवी ने पंजाब के हिन्दूशाही राजा आनंदपाल (Raja Anandpal) के पुत्र सेवकपाल से मुल्तान छीन लिया तो आनंदपाल मुल्तान के मुस्लिम प्रांतपति दाउद करमाथी पर हमले करने लगा। इस पर ई.1008 में महमूद ने राजा आनंदपाल पर आक्रमण किया।

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राजा आनंदपाल (Raja Anandpal) ने अफगानिस्तान के दुर्दान्त तुर्कों से लोहा लेने के लिए उत्तर-भारत के राजपूत राजाओं का एक संघ बनाया। उसने उज्जैन, ग्वालियर, कन्नौज, कालिंजर, दिल्ली तथा अजमेर के राजाओं की सहायता से एक विशाल सेना एकत्रित कर ली। राजा आनंदपाल की सहायता के लिए हिन्दू औरतों ने अपने आभूषण गलाकर बेच दिए तथा उससे प्राप्त धन इस संघ की सहायता के लिए भेजा।

मुल्तान के खोखरों ने भी आनंदपाल की सहायता की। झेलम नदी के किनारे उन्द नामक स्थान पर दोनों पक्षों में भयानक युद्ध हुआ। डॉ. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव ने लिखा है कि ई.1009 में पेशावर के पास वैहन्द के सामने के मैदान में दोनों पक्षों में घमासान युद्ध हुआ।

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इस युद्ध में राजा आनंदपाल (Raja Anandpal) का पलड़ा भारी पड़ा किंतु अचानक आनंदपाल (Raja Anandpal) का हाथी बिगड़ गया जिससे हिन्दू सेना में खलबली मच गई। तभी महमूद ने तीव्र गति से आक्रमण किया जिससे युद्ध की दिशा बदल गई। भारतीय सेना क्षत-विक्षत होकर भाग खड़ी हुई। महमूद गजनवी (Mahmud of Ghazni) की सेना ने दूर तक उसे खदेड़ा तथा कांगड़ा के पास स्थित नगरकोट के किले को घेर लिया। नगरकोट के शासक ने तीन दिन तक महमूद की सेना का सामना किया किंतु अंत में कांगड़ा दुर्ग का पतन हो गया। इस विजय के बाद महमूद ने तीन दिन तक नगरकोट के प्रसिद्ध मंदिर को लूटा और उजाड़ा। यह मंदिर कांगड़ा दुर्ग से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे नगरकोट मंदिर तथा ब्रजेश्वरी देवी मंदिर कहते हैं। उत्तर भारत के लाखों लोग विगत हजारों साल से इस मंदिर की यात्रा करते हैं तथा प्रचुर चढ़ावा चढ़ाते हैं। इस कारण यह मंदिर सोने-चांदी, हीरे-मोती एवं अन्य बहुमूल्य सामग्री से भरा हुआ था। महमूद के दरबारी अरबी लेखक उतबी (Al Utbi) ने लिखा है कि नगरकोट की लूट(Nagarkot Ki Loot) में महमूद को इतना अधिक धन मिला कि महमूद को जितने भी ऊंट मिल सके, उन पर उस सोने को लाद दिया गया। केवल सिक्कों का मूल्य ही 70 हजार दिरहम था। 7 लाख दिरहम मूल्य के सोने-चांदी के आभूषण थे जिसका वजन 400 मन था।

इसके अतिरिक्त मोती और सुंदर वस्त्र भी अत्यधिक मात्रा में प्राप्त हुए। ऐसे सुंदर, कोमल एवं जड़ाऊ वस्त्र महमूद गजनवी (Mahmud of Ghazni) ने अपने जीवन में कभी नहीं देखे थे। लूट में चांदी का बना हुआ एक सफेद घर भी मिला जिसकी बनावट धनी पुरुषों के घर जैसी थी और जो तीन गज लम्बा और 15 गज चौड़ा था। उसके विभिन्न भागों को अलग करके पुनः जोड़ा जा सकता था। एक रोमी कपड़े का शामियाना था जिसकी लम्बाई 40 गज और चौड़ाई 20 गज थी। वह ढले हुए दो सोने और दो चांदी के खम्भों पर सधा हुआ था। महमूद गजनी ने लूट का माल अपने ऊंटों, खच्चरों, घोड़ों एवं हाथियों पर लदवा लिया।

लेनपूल ने लिखा है- ‘नगरकोट की लूट (Nagarkot Ki Loot) में महमूद को इतना धन मिला कि सारी दुनिया भारत की अपार धनराशि को देखने के लिए चल पड़ी।’

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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