Saturday, July 27, 2024
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10. महमूद गजनवी ने सरस्वती नदी पर लगी चक्रस्वामी की प्रतिमा गजनी के चौक पर डाल दी!

पंजाब का हिन्दूशाही राजा आनंदपाल नहीं चाहता था कि मूलस्थान पर मुसलमानों का शासन हो इसलिए जब भी गजनी के मुसलमान मूलस्थान पर अधिकार करते थे, आनंदपाल मूलस्थान पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लेता था। इसलिए पेशावर के निकट वैहन्द नामक स्थान पर महमूद गजनवी तथा राजा आनंदपाल के बीच भयानक युद्ध हुआ। पेशावर का प्राचीन नाम पुरुषपुर था। इसे कनिष्क ने बसाया था और इसमें अनेक बौद्ध स्मारकों का निर्माण करवाया था। तीसरी बौद्ध संगीति इसी पुरुषपुर में हुई थी।

मुस्लिम आक्रांताओं ने पुरुषपुर के बौद्ध स्मारकों को नष्ट कर दिया तथा इसका नाम पेशावर रख दिया। जब राजा आनंदपाल की सेनाएं पेशावर में पराजित होकर कांगड़ा घाटी की तरफ भागीं तो महमूद की सेनाओं ने उनका पीछा करके उन्हें नगरकोट के दुर्ग में घेर लिया। तीन दिन के युद्ध के बाद राजा आनंदपाल नमक की पहाड़ियों में चला गया। महमूद गजनवी ने नगरकोट का दुर्ग एवं नगरकोट में स्थित बज्रेश्वरी देवी के मंदिर लूट लिए तथा वहाँ की अपार सम्पत्ति को ऊंटों, खच्चरों एवं हाथियों पर लदवाकर गजनी लौट गया।

वैहन्द तथा नगरकोट की पराजय के बाद भी राजा आनंदपाल हतोत्साहित नहीं हुआ। वह नमक की पहाड़ियों के छोर पर स्थित नंदन में अपनी राजधानी बनाकर रहने लगा। इसी वर्ष महमूद ने नारायणपुर नामक स्थान पर आक्रमण किया तथा वहाँ के मंदिरांे को लूटकर तोड़ डाला। ई.1013 में महमूद गजनवी फिर लौट कर आया तथा उसने नंदन को घेर लिया। इस समय तक राजा आनंदपाल की मृत्यु हो चुकी थी तथा उसका पुत्र त्रिलोचनपाल नंदन पर शासन करता था। इस युद्ध में त्रिलोचनपाल के पुत्र भीमपाल ने अतुल शौर्य का प्रदर्शन किया किंतु नंदन पर महमूद का अधिकार हो गया तथा राजा त्रिलोचनपाल भाग कर काश्मीर चला गया।

महमूद ने नंदन में एक मुस्लिम गवर्नर नियुक्त कर दिया तथा स्वयं त्रिलोचनापाल के पीछे-पीछे काश्मीर जा पहुंचा। उन दिनों काश्मीर पर तुंग नामक एक शासक राज्य करता था। त्रिलोचनपाल तथा तुंग की सम्मिलित सेनाओं ने महमूद का सामना किया किंतु भारतीय सेना परास्त हो गई। महमूद गजनवी यहाँ से गजनी चला गया और राजा त्रिलोचनपाल काश्मीर से निकलकर फिर से पूर्वी पंजाब में आ गया ताकि अपने पूर्वजों के खोए हुए राज्य को फिर से स्वतंत्र करवा सके। कुछ प्रयासों के बाद राजा त्रिलोचनपाल ने शिवालिक की पहाड़ियों में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली।

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ई.1014 में महमूद ने हर्षवर्द्धन की पुरानी राजधानी थानेश्वर पर आक्रमण किया। सरस्वती नदी के तट पर भीषण संघर्ष के बाद थानेश्वर का पतन हुआ। इसके बाद महमूद की सेनाओं ने थानेश्वर को लूटा और नष्ट किया। थानेश्वर की प्रसिद्ध चक्रस्वामी की प्रतिमा गजनी ले जाई गई जहाँ उसे मुसलमानों के पैरों तले रौंदे जाने के लिए सार्वजनिक चौक में डाल दिया गया।

त्रिलोचनपाल ने बुंदेलखण्ड के चंदेल राजा विद्याधर को अपना मित्र बना लिया। इस काल में राजा विद्याधर उत्तर भारत के शक्तिशाली राजाओं में गिना जाता था। जब महमूद को त्रिलोचनपाल की गतिविधियों की जानकारी मिली तो महमूद फिर से लौट आया। रामगंगा नदी के किनारे पर हुए युद्ध में महमूद ने त्रिलोचनपाल को एक बार पुनः पराजित कर दिया। त्रिलोचन को पहाड़ियों में भाग जाना पड़ा। अब वह नाममात्र का राजा रह गया था। उसके दो पूर्वजों ने महमूद के विरुद्ध लड़ते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था जिनमें त्रिलोचनपाल का बाबा जयपाल तथा पिता आनंदपाल सम्मिलित थे।

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भारत के दुर्भाग्य से राजा त्रिलोचनपाल के कुछ स्वार्थी सेनापति त्रिलोचनपाल के प्राण लेने पर उतारू हो गए। वे चाहते थे कि राजा त्रिलोचनपाल महमूद गजनवरी की अधीनता स्वीकार करके दोनों पक्षों में शांति स्थापित करे किंतु स्वाभिमानी त्रिलोचनपाल इसके लिए तैयार नहीं था। इसलिए ई.1021-22 में त्रिलोचनपाल के कुछ सेनापतियों ने राजा त्रिलोचनपाल को धोखे से विष दे दिया।

हिन्दूशाही राजा चाहते थे कि भारत की हिन्दू शक्तियां मिलकर गजनी के मुसलमान आक्रांताओं को भारत से दूर रखें, इसके लिए उन्होंने बार-बार प्रयास भी किए किंतु दुर्भाग्य से बहुत कम हिन्दू राजाओं ने हिन्दूशाही राजाओं के मंतव्य को समझा और उन्होंने हिन्दूशाही राजाओं को बहुत ही सीमित सहयोग उपलब्ध कराया। यहाँ तक कि उसके अपने सेनापतियों ने राजा त्रिलोचनपाल को जहर दे दिया।

हिन्दूशाही राज्य के नष्ट हो जाने के कारण हिन्दुकुश पर्वत की उपत्यकाओं के द्वार आक्रांताओं के लिए पूरी तरह खुल गए तथा भारत की पश्चिमी सीमा पूरी तरह असुरक्षित हो गई। अब अफगानिस्तान के मुस्लिम आक्रांता जब चाहें, निर्भय होकर भारत में प्रवेश कर सकते थे। भारत की पश्चिमी सीमा की इस कमजोरी का नुक्सान एक न एक दिन सम्पूर्ण भारत को उठाना ही था। हुआ भी यही। अब महमूद गजनवी को खलीफा के समक्ष दी गई उस शपथ को पूरा करना आसान हो गया जिसके अनुसार उसे प्रतिवर्ष भारत पर हमला करके कुफ्र को समाप्त करना था।

महमूद ने भटिण्डा के किले पर आक्रमण किया जो उत्तर-पश्चिम से गंगा की घाटी के मार्ग में स्थित था। राजा विजयराज ने वीरता से किले की रक्षा की किंतु वह महमूद की शक्ति के सामने नहीं टिक सका। किले पर अधिकार करने के बाद महमूद ने भटिण्डा के लोगों से कहा कि वे इस्लाम स्वीकार कर लें किंतु बहुत से लोगों ने महमूद की बात स्वीकार नहीं की। इस पर महमूद ने उन्हें मौत के घाट पर उतार दिया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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