Saturday, December 7, 2024
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14. महमूद गजनवी ने चंदेल राजा विद्याधर को औरतें उपहार में भिजवाईं!

महमूद गजनवी ने गंगा-यमुना के दो-आब से आगे बढ़कर मध्य-गंगा के उपजाऊ क्षेत्र में स्थित कन्नौज तथा उसके निकटवर्ती सात दुर्गों पर भीषण आक्रमण करके उन्हें तहस-नहस कर दिया तथा हजारों मनुष्यों को मौत के घाट उतारकर, इन दुर्गों की अपार सम्पत्ति लूटकर एवं हजारों स्त्री-पुरुषों को गुलाम बनाकर अपने साथ गजनी ले गया।  कालिंजर के चंदेल राजा विद्याधर ने कन्नौज एवं उसके निकटवर्ती क्षेत्रों की बरबादी के लिए कन्नौज के प्रतिहार शासक राज्यपाल को जिम्मेदार ठहराया जिसने महमूद का तनिक भी प्रतिरोध नहीं किया। इसलिए चंदेल राजा विद्याधर ने राज्यपाल को दण्डित करने का निश्चय किया तथा अपनी सेना भेजकर राज्यपाल को मरवा दिया।

‘सल्तनत काल में हिन्दू प्रतिरोध’ नामक शोधग्रंथ के लेखक अशोककुमार सिंह ने लिखा है कि प्रतिहार राजा राज्यपाल की हत्या करवाने के बाद राजा विद्याधर ने अपने पुत्र त्रिलोचनसिंह को कन्नौज का शासक बना दिया। होना तो यह चाहिए था कि चंदेल राजा विद्याधर, महमूद द्वारा किए गए आक्रमण में प्रतिहार राजा राज्यपाल की सहायता करता किंतु विद्याधर ने महमूद से लड़ने की बजाय प्रतिहार राजा राज्यपाल को मार डाला। चंदेल राजा विद्याधर के इस कृत्य से तो ऐसा लगता है कि विद्याधर ने महमूद की मार से कमजोर पड़ चुके प्रतिहारों को नष्ट करके उनका राज्य हड़प लिया। जबकि विद्याधर के पिता गण्ड ने ई.1008 में पंजाब के हिन्दूशाही राजा आनंदपाल की सहायता की थी।

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जब महमूद गजनवी को चंदेल राजा विद्याधर द्वारा कन्नौज के राजा राज्यपाल को मार दिए जाने की बात ज्ञात हुई तो ई.1019 में ही महमूद ने चंदेल राज्य पर आक्रमण किया। वह मार्ग में पड़ने वाले दुर्गों को जीतता हुआ और उनमें नरसंहार करवाता हुआ आगे बढ़ता रहा।

जब महमूद गजनवी चंदेल राजा विद्याधर के राज्य पर आक्रमण करने के लिए राहिब नामक नदी पार कर रहा था, तब हिन्दूशाही राजा त्रिलोचनपाल अपनी सेना लेकर आया। त्रिलोचनपाल को ‘पुरु जयपाल’ भी कहा जाता था। वह हिन्दूशाही राजा आनंदपाल का पुत्र था। इस समय तक महमूद गजनवी त्रिलोचनपाल का नंदन राज्य छीन चुका था किंतु त्रिलोचनपाल अभी तक जीवित था। पाठकों को स्मरण होगा कि हिन्दूशाही राजा त्रिलोचनपाल तथा चंदेल राजा विद्याधर ने महमूद के विरुद्ध एक संघ बना रखा था।

महमूद की सेना को आगे बढ़ने से पहले हिन्दूशाही राजा त्रिलोचनपाल उर्फ पुरु जयपाल की सेना से भयानक युद्ध करना पड़ा जिसमें त्रिलोचनपाल हार गया। इस पराजय के बाद जब त्रिलोचनपाल अपने मित्र विद्याधर से मिलने जा रहा था, तभी मार्ग में त्रिलोचनपाल के मंत्रियों ने त्रिलोचनपाल की हत्या कर दी। इस प्रकार महमूद के विरुद्ध चल रही लड़ाई कमजोर पड़ गई।

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हिन्दूशाही राजा त्रिलोचनपाल से निबटकर जब महमूद फिर से कन्नौज की ओर बढ़ा तो चंदेल राजा विद्याधर के पुत्र त्रिलोचनपाल ने महमूद का सामना किया जो इस समय कन्नौज का शासक था किंतु यह त्रिलोचनपाल भी महमूद से परास्त होकर भाग गया। यहाँ से महमूद बारी नामक स्थान पर पहुंचा जहाँ उस काल में अनेक समृद्ध मंदिर स्थित थे। महमूद ने उन मंदिरों को नष्ट कर दिया तथा नगर को भूमिसात कर दिया। इसके बाद महमूद ने विद्याधर को संदेश भिजवाया कि वह महमूद की अधीनता और इस्लाम स्वीकार कर ले किंतु विद्याधर ने महमूद को जवाब भिजवाया कि मैं तुझसे केवल युद्ध चाहता हूँ।

राजा विद्याधर चंदेलों की विशाल सेना लेकर महमूद से लड़ने के लिए आया। चंदेल सेना में ढेढ़ लाख पैदल सवार, 36 हजार घुड़सवार तथा 650 हाथी थे। चंदेलों की सेना के मुकाबले महमूद की सेना बहुत छोटी थी। जब महमूद ने एक पहाड़ी पर चढ़कर चंदेलों की विशाल सेना को देखा तो महमूद भयभीत हो गया।

फारूखी तथा इब्नुल असीर नामक दो तत्कालीन लेखकों ने लिखा है- ‘महमूद को अपनी विजय होने की कोई संभावना नहीं दिख रही थी किंतु जब महमूद ने अल्लाह से प्रार्थना की तो अल्लाह ने राजा विद्याधर की सेना के मन में डर पैदा कर दिया और वह भाग गई।’

महमूद के घुड़सवारों ने भागती हुई चंदेल सेना का पीछा किया तथा हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। चंदेल राज्य से महमूद को अपार धन-सम्पत्ति तथा एक जंगल में छिपे हुए 580 हाथी मिले। इन सबको लेकर महमूद फिर से गजनी लौट गया।

‘सल्तनत काल में हिन्दू प्रतिरोध’ के लेखक अशोक कुमार सिंह ने इन तथ्यों को स्वीकार नहीं किया है। ‘चंदेल विद्याधर, प्रतिहार राज्यपाल एण्ड महमूद ऑफ गजनी’ नामक पुस्तक के लेखक संतलाल कटारे के अनुसार महमूद ने युद्ध के मैदान के पास से बह रही नदी का जल रोक दिया जिससे नदी का पानी युद्ध के मैदान में भर गया। इस कारण राजा विद्याधर रात के समय अपनी सेना को युद्ध के मैदान से हटाकर पीछे ले गया किंतु विद्याधर की सेना का बहुत सा सामान मैदान में ही छूट गया जिसे महमूद की सेना ने लूट लिया। इसके बाद महमूद विद्याधर से युद्ध करने का निश्चय त्यागकर गजनी चला गया।

ई.1020 में महमूद गजनवी ने पंजाब में नए सिरे से मुस्लिम शासन की स्थापना की तथा ई.1022 में ग्वालियर पर आक्रमण किया। इस समय ग्वालियर दुर्ग पर चंदेल राजा विद्याधर के सामंत कीर्तिराज का अधिकार था। उसने महमूद को 35 हाथी समर्पित करके उससे समझौता कर लिया। इसके बाद महमूद चंदेलों की राजधानी कालिंजर की तरफ बढ़ा। राजा विद्याधर इस समय कालिंजर में ही मौजूद था। कालिंजर का दुर्ग इतना ऊंचा था कि महमूद दुर्ग के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं कर सका।

तत्कालीन मुस्लिम लेखकों ने लिखा है कि कई दिन की घेरेबंदी के बाद राजा विद्याधर ने महमूद के पास संदेश भिजवाया कि यदि महमूद कालिंजर से लौट जाए तो मैं महमूद को 300 हाथी देने के लिए तैयार हूँ। महमूद ने विद्याधर का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस पर विद्याधर ने 300 हाथी बिना महावतों के ही दुर्ग से बाहर छुड़वा दिए जिन्हें महमूद के सैनिक पकड़कर ले गए। राजा विद्याधर ने महमूद की प्रशंसा में एक कविता भी लिखकर भिजवाई जिसे पढ़कर महमूद इतना प्रसन्न हुआ कि उसने राजा विद्याधर को स्त्रियाँ, आभूषण, वस्त्र तथा 15 दुर्ग उपहार में दिए।

कहा नहीं जा सकता कि मुस्लिम लेखकों का यह वर्णन कितना सही है क्योंकि तत्कालीन हिन्दू लेखकों ने इस सम्बन्ध में कुछ नहीं लिखा है। फिर भी इस वर्णन के आधार पर कहा जा सकता है कि दोनों के बीच सम्मानजनक संधि हुई जिसमें दोनों ने एक दूसरे को उपहार दिए।

अजमेर के चौहान राजाओं से महमूद की कम से कम दो बार जबर्दस्त भिड़ंतें हुईं। पहली भिड़ंत में अजमेर के शासक गोविंदराज (द्वितीय) ने महमूद गजनवी को परास्त किया। उसके वंशज वीर्यराम के शासन काल में ई.1024 में महमूद गजनवी ने अजमेर पर आक्रमण किया तथा बीठली दुर्ग को घेर लिया। राजा वीर्यराम ने महमूद में कसकर मार लगाई जिससे महमूद घायल होकर अन्हिलवाड़ा की तरफ भाग गया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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