हुसैन सुहरावर्दी के गुण्डों को कत्लेआम के लिए कूपन दिए गए!
जिस समय मुस्लिम लीग ने कलकत्ता में हिन्दुओं का खून बहाकर सीधी कार्यवाही करने का निर्णय लिया, उस समय हुसैन सुहरावर्दी बंगाल का मुख्यमंत्री था। उसने अपने गुण्डों को कूपन बांटे ताकि वे हिन्दुओं का खून कर सकें।
सीधी कार्यवाही कार्यक्रम को जान-बूझकर अस्पष्ट रखा गया। जिन्ना का कहना था कि वह नीतियों की चर्चा नहीं करने जा रहे हैं। लियाकत अली ने सीधी कार्यवाही को कानून के खिलाफ कार्यवाही बताया जो हिंसा का आश्रय लेने का व्यापक संकेत था। इस आह्वान का उद्देश्य शांपिूर्ण नहीं था। इसमें प्राणों की आहुति दी जानी थी। पूर्व-सैनिकों को लेकर गठित मुस्लिम लीग नेशनल गार्ड सीधी कार्यवाही में सबसे आगे थी।
5 अगस्त 1946 को मॉर्निंग न्यूज के सम्पादक ने लिखा- ‘मुसलमान अहिंसा की भाषा में विश्वास नहीं रखते।’
इस समाचार पत्र ने 11 अगस्त 1946 को एक मुस्लिम नेता निजामुद्दीन के इस वक्तव्य को उद्धृत किया- ‘हम एक सौ तरीकों से परेशानियां उत्पन्न कर सकते हैं। विशेषकर इसलिए कि हम अहिंसा का सहारा लेने के लिए बाध्य नहीं हैं। बंगाल के मुसमलान सीधी कार्यवाही का अर्थ अच्छी तरह समझते हैं। इसलिए हमें उन्हें कोई रास्ता दिखाने की आवश्यकता नहीं है।’
सीधी कार्यवाही की पूर्व संध्या को सैनिकों की भरती द्वारा मुस्लिम लीग नेशनल गार्डों को पुनः संगठित किया गया। सालार-ए-आला और अन्य प्रांतीय सालारों की नियुक्ति की गई। सीधी कार्यवाही से पहले ब्लूचिस्तान मुस्लिम नेशनल गार्डों के एक मजबूत तथा शक्तिशाली समूह को कई महानों के लिए बिहार में भेजा गया ताकि वे बिहार में मुसलमानों की सुरक्षा कर सकें। वस्तुतः इनकी बिहार में नियुक्ति तो एक दिखावा थी, वास्तव में इनसे कलकत्ता के दंगों में उपद्रव करवाया जाना था।
कलकत्ता के पुलिस कमिश्नर की रिपोर्ट के अनुसार 10 अगस्त 1946 से कलकत्ता से बाहर के गुण्डे लाठी, भालों तथा कटारों से लैस शहर की झुग्गियों में नजर आने लगे थे। …… उस दिन कलकत्ता में बहुत से हिन्दू मारे गए थे….. अगले दिन वहाँ एक दिन पूर्व हुए हिन्दू नरसंहार का व्यापक प्रतिशोध लिया गया। गिद्धों ने शहर साफ कर दिया।
12 अगस्त 1946 को डॉन में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें कहा गया- ‘मुसलमानों का अहिंसा में कोई यकीन नहीं है और न ही वे पाखण्डी हैं कि वैसे तो अहिंसा का उपदेश दें और वास्तव में हिंसा का सहारा लें।’
16 अगस्त 1946 को बंगाल के मुख्यमंत्री हुसैन सुहरावर्दी ने सरकारी कर्मचारियों को तीन दिन की असाधारण छुट्टी पर भेज दिया। कलकत्ता में नियुक्त ब्रिगेडियर जे. पी. सी. मेकिनले ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे उस दिन बैरकों में ही रहें। कलकत्ता में ऑक्टरलोनी के नीडिल स्मारक पर बंगाल के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी और लीग के अन्य नेताओं ने मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित किया।
इस सभा में हावड़ा की जूट मिलों में काम करने वाले श्रमिक बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए। हुसैन सुहरावर्दी ने अपने भाषण में कहा- ‘कैबीनेट मिशन एक धोखा था और अब वे देखेंगे कि अंग्रेज मिस्टर नेहरू से बंगाल पर कैसे हुकूमत करवा पाते हैं। मुक्ति हासिल करने के लिए सीधी कार्यवाही दिवस मुसलमानों के संघर्ष का पहला कदम साबित होगा। …… आप लोग जल्दी घर लौटें ….. हमने सभी बंदोबस्त कर लिए हैं ताकि पुलिस और मिलिट्री आपके रास्ते में अड़चन न डाले।’
इस सभा के समाप्त होते ही शहर में दंगे भड़क गए। बंगाल के गवर्नर बरो ने लॉर्ड वैवेल को एक तार भेजकर इन दंगों की जानकारी दी- ‘छः बजे तक हालत यह है कि चारों तरफ बहुत सी जगहों पर साम्प्रदायिक झड़पें चल रही हैं।…. साथ में दुकानों की लूट और आगजनी भी जारी है। ज्यादातर पथराव ही किया जा रहा है, पर कुछ जगहों पर दोनों समुदायों के लोगों द्वारा बंदूकों का इस्तेमाल भी किया गया है और चाकूबाजी की कुछ घटनाओं की जानकारी भी मिली है।
….. दिन की शुरुआत से ही खासकर उत्तर-कलकत्ता के हिन्दू व्यापारियों के बीच घबराहट देखी जा सकती है जिसके कारण घटनाओं का ब्यौरा असलियत के मुकाबले बढ़ा-चढ़ाकर भी दिया जा रहा है। …… यह अशांति अभी तक निश्चित रूप से साम्प्रदायिक ही है और इसे किसी भी तरह से ब्रिटिश विरोधी नहीं कहा जा सकता।’
दंगों से पहले मुख्यमंत्री हुसैन सुहरावर्दी के हस्ताक्षरों वाले कूपन मस्लिम लीग की लॉरियों में वितरित किए गए। कलकत्ता के दैनिक ‘द स्टेट्समैन’ ने लिखा- ‘लॉरियों में गुण्डों के समूह थे जो कही-कहीं रुककर आक्रमण कर रहे थे।’
शाम को छः बजे दंगा प्रभावित इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया, लेकिन जब एरिया कमाण्डर ने उत्तरी बैरकों से सेवंथ बूस्टर्स और ग्रीन हावर्ड्स के सैनिकों को तैनाती का आदेश दिया तो उन्होंने रात आठ बजे देखा कि कॉलेज स्ट्रीट मार्केट धू-धू करके जल रहा है।
भीड़ द्वारा की गई लूटमार के बीच एमहर्स्ट स्ट्रीट पर कुछ बिना जले मकान और दुकान पूरी तरह लूट लिए गए हैं। अजर सर्कूलर रोड पर सुलगता हुआ मलबा दिखाई दे रहा है। हैरिसन रोड पर डरे हुए निवासियों और घायलों की कराहें सुनी जा सकती हैं। कई लाशें देख कर लगता है कि उनकी मृत्यु अभी-अभी हुई है। मेजर लिवरमोर के अनुसार कलकत्ता युद्ध के मैदान में बदल चुका था।
एक तरफ भीड़ की हुकूमत थी तथा दूसरी तरफ सभ्यता और भद्रता। उस हिंसाग्रस्त इलाके में अधिकतर गरीबों, नीची जाति के निरक्षरों की जानें गई थीं या वे लोग मारे गए थे जो लुटेरों और चील-कौवों की तरह टूट पड़ने वाली भीड़ से जान-माल की हिफाजत करने के मामले में कमजोर साबित हुए थे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
Thank you for your sharing. I am worried that I lack creative ideas. It is your article that makes me full of hope. Thank you. But, I have a question, can you help me?