मध्यकाल में मनोरजंन के अनेक साधन उपलब्ध थे। अमीरों एवं गरीबों के खेल एवं मनोरंजन के साधन अलग-अलग थे। इसी प्रकार नगरों एवं गांवों के मनोरंजन के साधन अलग-अलग थे। गरीब लोग प्रायः कबड्डी, कुश्ती, गिल्ली डण्डा, गेंद आदि खेल खेलते थे।
मध्यकाल में मनोरजंन के लिए शाही परिवारों के सदस्य, धनी लोग एवं मध्यमवर्गीय लोग चौपड़, गंजीफा एवं ताश और शतरंज खेलना अधिक पंसद करते थे। भारत में मुसलमानों द्वारा नाई का खेल आरम्भ किया गया था। पच्चीसी का खेल एक प्राचीन भारतीय खेल था जिसे अकबर ने बढ़ावा दिया।
मध्यकाल में मनोरजंन के साधन
चौपड़
चौपड़ मध्यकाल में मनोरजंन के के प्रमुख साधन के रूप में उपलब्ध था। यह एक प्राचीन भारतीय खेल था जो अब भी पच्चीसी, चौसर और चौपड़ आदि नामों से जाना जाता है। आज की तरह मध्य-काल में भी यह 16 गोटियों द्वारा खेला जाता था जो विभिन्न रंगों के 4 हिस्सों में होती थीं। साधारणतः यह खेल चार खिलाड़ियों द्वारा खेला जाता था, जो दो-दो सदस्यों के दो दलों में विभक्त होते थे। प्रत्येक खिलाड़ी के हिस्से में चार गोटियां आती थीं।
प्रत्येक खिलाड़ी पासे चलता था और पासे पर आए अंकों के अनुसार अपनी गोटियां चौपड़ के खानों पर आगे बढ़ाता था। चौपड़ का खेल महाभारत से लेकर मुगल बादशाहों के काल तक राजपरिवारों में अत्यधिक लोकप्रिय रहा।
अकबर ने चौपड़ के नियमों में कुछ परिवर्तन करके ‘चन्दर-मण्डल’ का खेल बनाया। इसमें खिलाड़ियों की संख्या 16 होती थी तथा उनमें बराबर बांटने के लिए गोटियों की संख्या 64 कर दी गई थी। औरंगजेब की पुत्री जेबुन्निसा अपना अधिकांश समय अपनी सहेलियों के साथ चौपड़ खेलने में व्यतीत करती थी।
ताश
ताश प्राचीन भारतीय खेल था तथा मध्यकाल में मनोरजंन के प्रमुख साधन के रूप में उपलब्ध था। मध्य-कालीन ताश के खेल में ताश के 144 पत्ते होते थे। 12-12 पत्तों के 12 समूह हुआ करते थे, जिनमें बादशाह और उसके वजीर आदि सहयोगी होते थे। अकबर के समय तक इन समूहों के नाम संस्कृत भाषा में थे। अकबर ने इनमें से अन्तिम सात के नए नाम बदल दिए और पांचवें को ‘धनपति’ समूह नाम दिया।
मुगलों में यह खेल बहुत लोकप्रिय था। ताश के समस्त पत्तों पर एक ही चित्र होता था। एक ताश पर शकटासुर का वध करते हुए कृष्ण का चित्र अंकित था। राजस्थान में गोलाकार ताश के पत्तों का प्रचलन था। ताश के खेल की तरह गंजीफे का खेल भी खेला जाता था।
शतरंज
शतरंज भी भारत का पुराना खेल है, जो उस समय राजपरिवारों से लेकर जन-साधारण में समान रूप से लोकप्रिय था। इसमें एक चौकोर चौकी पर एक वर्गाकार आकृति बनाई जाती थी जिसमें आठ पंक्तियों में 8-8 वर्ग अर्थात् कुल 64 वर्ग बने हाते थे, ये वर्ग काले-सफेद रंगों से पुते होते थे।
इस वर्ग की दो तरफ एक-एक खिलाड़ी बैठता था जिनमें से एक के पास सफेद रंग के तथा दूसरे खिलाड़ी के पास काले रंग के 16-16 मोहरे होते थे। ये मोहरे एक सेना का प्रनिनिधित्व करते थे जिसमें हाथी, घोड़े, ऊंट एवं पैदल अर्थात् चतुरंगिणी सेना होती थी।
प्रत्येक सेना के केन्द्र में बादशाह एवं वजीर होता था। अकबर इस खेल को बहुत पसन्द करता था। शतरंज के अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबले भी होते थे। जहाँगीर के एक दरबारी ‘खानखाना’ का पर्सिया के शाह सफी से मुकाबला हुआ, जिसमें तीन दिन के खेल के बाद ‘खानखाना’ पराजित हुआ था।
पच्चीसी का खेल
पच्चीसी एक प्राचीन हिन्दू खेल था जिसे अकबर विशेष रूप से पसन्द करता था। इसे बड़े आकार की चौपड़ कहा जा सकता है। आगरा तथा फतेहपुर सीकरी के शाही-महलों में संगमरमर के पत्थरों पर इस खेल के चतुर्भुजाकार खाने आज भी बने हुए हैं। गोटियों का खेल दो गोटी, तीन गोटी और बारह गोटी शहरी और देहाती दोनों क्षेत्रों में प्रचलित था।
दो गोटी के खेल में चौखाने में आमने-सामने दो गोटियां रखी जाती थीं और एक-दूसरे की गोटियां मारने के लिए चालें चली जाती थीं। इसी प्रकार तीन गोटी का खेल तीन गोटी से तथा नौ गोटी का नौ गोटियों से खेला जाता था।
गोटियों के अन्य खेल
मध्यकाल में मनोरजंन के साधन के रूप में गोटियों के अन्य खेल उपलब्ध थे। इन खेलों में मुगल.पठान, लाम.तुर्क, भाग.चल, भाग.चक्कर, छब्बीस गोटी तथा भेड़-बकरी के खेल अधिक प्रचलित थे।
घर के बाहर के खेल
मध्यकाल में मनोरजंन के साधन के रूप में घर के बाहर खेले जाने वाले अनेक खेल उपलब्ध थे। गोटियों के अन्य खेल उपलब्ध थे। घर के बाहर मैदानों में खेले जाने वाले खेलों में अमीर लोग चौगान, पशुओं का शिकार, जानवरों की लड़ाई आदि खेल खेलते थे। शाही परिवारों का प्रिय खेल चौगान था जिसे वर्तमान में पोलो कहते हैं। भारत में सम्भवतः मुसलमानों ने ही इस खेल को प्रचलित किया था। राजपूत भी इस खेल को बड़े चाव से खेलते थे। इस खेल में पांच-पांच सदस्यों के दो दल होते थे। अकबर के काल में दो चौगान-खिलाड़ी मीर शरीफ और मीर गियासुद्दीय अधिक प्रसिद्ध थे। मुगल अभिलेखों में ‘घोफरी’ खेल का भी उल्लेख मिलता है जो हॉकी के खेल से मिलता-जुलता था। यह ग्रामीण क्षेत्रों में गेंद और छड़ी से खेला जाता था। मुगलकाल में कुश्ती तथा मुक्केबाजी भी मनोरंजन के प्रमुख साधन थे। अकबर अपने दरबार में फारसी और तूरानी मुक्केबाज रखता था। उच्चवर्गीय रईसों में घुड़सवारी भी मनोरंजन का साधन था। इसके लिए विशेष प्रकार के अरबी घोडे़ यमन, ओमन आदि से मंगाये जाते थे। घुड़सवारी में राजपूत और गुजराती मुख्य प्रतियोगी हुआ करते थे। तीरंदाजी, तलवारबाजी, गोला फेंकना, भाला फेंकना आदि में भी जन-सामान्य की रुचि थी और इसके लिए प्रतियोगिताएं होती थीं। साधारण लोग कुश्ती और मुक्केबाजी, पशु-दौड़ आदि खेल खेलते थे।
शिकार खेलना
बादशाहों, राजाओं एवं अमीरों में शिकार खेलना मध्यकाल में मनोरजंन के प्रमुख साधन के रूप में उपलब्ध था। इसे मनोरंजन का उत्तम साधन समझा जाता था जिसमें राजा और अमीरों के साथ-साथ साधारण लोग भी भाग लेते थे। शेर का शिकार केवल बादशाह, शहजादे एवं राजा किया करते थे। हाथियों का शिकार बादशाह या राजा की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता था। राजपूत योद्धा प्रायः शेर, बाघ एवं जंगली सूअर का शिकार करते थे।
अकबर ने भारत में शिकार खेलने का तुर्की तरीका प्रचलित किया जिसे ‘कमारघा शिकार’ कहते थे। इसमें ढोल-नगाड़े एवं मनुष्यों की चिल्लाहट का हाका लगाकर जंगली जानवरों को एक घेरे में ले लिया जाता था और फिर बादशाह एवं बेगम उन पशुओं का शिकार करते थे। पक्षियों का शिकार अमीर और गरीब दोनों का मनपसन्द खेल था। मध्य-काल में मछली पकड़ना भी मनोरंजन का प्रमुख साधन था। मछली पकड़ने के लिए विशेष प्रकार के जाल का प्रयोग किया जाता था जिसे सफरा या भँवर जाल कहते थे।
मेढ़ों, सांडों एवं भैंसों आदि की लड़ाई भी उस काल के खेलों में प्रमुख स्थान रखती थीं। निर्धन लोग छोटे जानवरों की लड़ाई से मनोरंजन करते थे। बुलबुल, बटेर एवं मुर्गे भी लड़ाए जाते थे। कबूतर उड़ाना भी व्यापक स्तर पर प्रचलित मनोरंजन था।
मध्य-कालीन समाज में बाजीगरी, जादूगरी, नटविद्या, कठपुतली के खेल, मुशायरा, नृत्य-संगीत के आयोजन, कलाबाजी और नाटक-तमाशे भी मनोरंजन के लोकप्रिय साधन थे। हिन्दू जनता रामायण के विभिन्न प्रसंगों का मंचन करती थी। राजस्थान में ‘पार्श्वनाथ चरित्र’ तथा ‘राजा हरिश्चन्द्र चरित्र’ के मंचन के भी प्रमाण मिलते हैं। गुजरात के कलाकार देश के विभिन्न भागों में नाटक तथा खेल-तमाशे किया करते थे।
मुख्य लेख : मध्यकालीन भारतीय समाज
मध्यकालीन सामाजिक व्यवहार एवं शिष्टाचार
मध्यकाल में मनोरंजन के साधन