सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के अति महत्त्वाकांक्षी पुत्र जूना खाँ ने ई.1325 में अपने पिता की हत्या करके उसका शव तुगलकाबाद के मकबरे में दफना दिया। इस कारण गयासुद्दीन तुगलक केवल 5 साल ही शासन कर सका था।
उस काल की दिल्ली अपने सुल्तानों को इसी प्रकार मरते हुए देखने के लिए अभिशप्त थी। इस प्रकार दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों की बेरहम हत्याओं का जो सिलसिला ई.1210 में आम्भ हुआ, वह ई.1325 में भी इसी प्रकार जारी रहा।
सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के चार पुत्र थे जिनमें से जूना खाँ सबसे बड़ा था। उसका पूरा नाम फखरुद्दीन मुहम्मद जूना खाँ था। जूना खाँ अपने भाइयों में सर्वाधिक महत्त्वाकांक्षी एवं सर्वाधिक प्रतिभावान था। उसका पालन-पोषण एक सैनिक की भांति हुआ था। पिता गाजी तुगलक ने उसकी शिक्षा का अच्छा प्रबन्ध किया। सुल्तान खुसरोशाह ने उसे कुछ घोड़ों का अध्यक्ष नियुक्त किया।
सुल्तान खुसरोशाह के विरुद्ध सर्वप्रथम जूना खाँ ने ही षड़यंत्र रचना आरम्भ किया था जिसमें उसका पिता गाजी तुगलक भी शामिल हो गया था। जब यह षड़यंत्र सफल हो गया तो गाजी खाँ सुल्तान बन गया तथा जूना खाँ को उसका उत्तराधिकारी घोषित किया गया। कुछ दिन बाद सुल्तान ने जूना खाँ को उलूग खाँ की उपाधि दी। जूना खाँ ने अपने पिता के अधीन काम करते हुए वारांगल तथा जाजनगर पर विजय प्राप्त करके ख्याति अर्जित कर ली।
जूना खाँ प्रारम्भ से ही महत्त्वाकांक्षी था। खुसरोशाह के विरुद्ध किये गए विद्रोह के सफल रहने के बाद वह ‘वली ए अहद’ (युवराज) पद से संतुष्ट नहीं था। उसकी दृष्टि सुल्तान के तख्त पर थी। इसलिए ई.1321 में जब वह वारांगल के मोर्चे पर था, पिता गयासुद्दीन की मृत्यु होने का संदेह होते ही वारांगल से घेरा उठाकर दिल्ली लौट आया था किंतु पिता को जीवित देखकर वह बड़ा निराश हुआ। ई.1325 में जब सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक बंगाल विजय के लिए गया तब जूना खाँ ने उसके विरुद्ध षड़यंत्र रचना आरम्भ किया तथा सुल्तान के दिल्ली में प्रवेश करने से पहले ही उसकी हत्या करवा दी।
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सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के तीन दिन बाद ही जूना खाँ, मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली के तख्त पर बैठ गया तथा चालीस दिन तक काले वस्त्र पहनकर अफगानपुरी में शोक मनाता रहा। जब गयासुद्दीन के समस्त अन्तिम संस्कार सम्पन्न हो गए तब उसने दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। दिल्ली पहुँचने के बाद फरवरी अथवा मार्च 1325 में भव्य समारोह के साथ मुहम्मद बिन तुगलक का राज्याभिषेक हुआ।
मुहम्मद बिन तुगलक को अपने पिता से अत्यन्त सुसंगठित तथा सुव्यवस्थित विशाल साम्राज्य प्राप्त हुआ था। मेहदी हुसैन के अनुसार इतना विशाल साम्राज्य आज तक किसी तुर्क सुल्तान को अपने पिता से नहीं मिला था। उसके पिता का राजकोष भी धन तथा रत्नों से परिपूर्ण था। इब्नबतूता ने लिखा है- ‘सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद में एक भव्य महल बनवाया जिसकी ईंटें सोने से मंढ़ी गईं।’
सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने इस महल के भीतर बहुमूल्य वस्तुओं का संग्रहण किया और एक तालाब बनवाया जिसमें सोना पिघलाकर भरा गया था। अतः मुहम्मद बिन तुगलक को सुल्तान बनते समय किसी भी प्रकार से धन की कमी नहीं थी। तख्त पर बैठते समय उसके दो भाई जीवित थे किंतु किसी ने भी मुहम्मद बिन तुगलक का विरोध नहीं किया। सल्तनत की आर्थिक स्थिति की तरह इस काल में सल्तनत की सीमाएं भी सुरक्षित थीं। सुल्तान को न बाहरी आक्रमणों का भय था और न आन्तरिक विद्रोह का।
दिल्ली का सुल्तान बनते समय मुहम्मद बिन तुगलक के समक्ष केवल एक समस्या थी कि लोग उसे पिता का हत्यारा एवं राज्य का लुटेरा न समझें। यदि एक बार मुहम्मद बिन तुगलक की ऐसी छवि बन जाती तो सल्तनत में उसके विरुद्ध वातावरण बनता तथा सुल्तान को हटाने के षड़यंत्र आरम्भ हो जाते। इसलिए मुहम्मद बिन तुगलक ने लोकप्रियता अर्जित करने तथा सुल्तान के पद को दृढ़ता प्रदान करने के लिए कुछ उपाय किए।
जियाउद्दीन बरनी ने लिखा है कि मुहम्मद बिन तुगलक के नगर प्रवेश से पूर्व दिल्ली को बहुत सुंदर ढंग से सजाया गया। गुम्बजें निर्मित की गईं तथा मार्गों को सुंदर वस्त्रों से अलंकृत किया गया। सुल्तान बनने के उपलक्ष में राजधानी में ढोल बजाये गए। सुल्तान ने जनता में सोने-चांदी की बिखेर की।
दिल्ली की जनता तथा सल्तनत की सेना को हर बार सुल्तान के बदलने पर सोने-चांदी की इसी बरसात की प्रतीक्षा रहती थी। प्रत्येक सुल्तान धन लुटाकर तख्त हासिल करता था और कुछ ही वर्षों में जनता से इस धन को फिर से छीन लेता था। यदि कोई सुल्तान अपने पूर्ववर्ती सुल्तान की हत्या करके तख्त हासिल करता था, तो जनता पर उतनी ही अधिक धनवर्षा होती थी। इस बार भी जनता पर अत्यधिक धन की वर्षा हुई।
मुहम्मद द्वारा जनता पर की गई इस धनवर्षा ने दिल्ली की जनता को अल्लाद्दीन खिलजी द्वारा की गई धनवर्षा की याद आ गई। मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा किए गए धनवर्षा समारोह का जन-साधारण पर बड़ा प्रभाव पड़ा। सुल्तान ने सड़कों पर सोने, चांदी तथा मोतियों की वर्षा करके जनता को मुग्ध कर लिया और लोग उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। बहुत से लोग तो इतने मालामाल हो गए कि अपना धन लेकर राजधानी दिल्ली से दूर चले गए जहाँ वे अपना धन छिपा सकें तथा सरकार की नजरों से छिपकर शांति से जीवन यापन कर सकें।
सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिए सल्तनत के महत्त्वपूर्ण पदों तथा पदवियों का नये सिरे से वितरण किया। उसने विद्वानों, कवियों तथा दीन-दुखियों को वार्षिक पेन्शनें, जागीरें तथा इनाम दिए। इस प्रकार धन, पद तथा पदवियों का वितरण करके सुल्तान ने ऐसी लोकप्रियता अर्जित की कि लोगों को उसे पिता का हत्यारा अथवा राज्य का लुटेरा कहने का साहस नहीं हुआ।
उन दिनों दिल्ली में शेख निजामुद्दीन औलिया का बड़ा प्रभाव था। मुहम्मद बिन तुगलक ने औलिया को उसी समय अपने पक्ष में कर लिया था जिस समय गयासुद्दीन तुगलक बंगाल के अभियान पर था। औलिया को मुहम्मद बिन तुगलक के पक्ष में आया देखकर जनसामान्य ने भी नये सुल्तान का विरोध नहीं किया।
भारत के प्रारंभिक तुर्की सुल्तान खलीफा से सुल्तान पद की स्वीकृति प्राप्त करके मुस्लिम जगत में अपनी धाक जमाते थे किंतु बाद में दिल्ली के तुर्की सुल्तानों ने इस परम्परा को तोड़ दिया था। मुहम्मद बिन तुगलक इस परम्परा को पुनः आरम्भ किया। मुहम्मद ने मिस्र के अब्बासी खलीफा के पास अपना दूत भेजकर उसे विपुल धन प्रदान किया तथा उससे अनुरोध किया कि वह मुहम्मद बिन तुगलक को भारत का सुल्तान स्वीकार कर ले।
खलीफा ने मुहम्मद बिन तुगलक के इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया तथा सुल्तान के लिए सनद भिजवाई। इस सनद के मिलने पर मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने सिक्कों एवं खुतबों पर खलीफा का नाम अंकित करवाया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता