Sunday, December 8, 2024
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सोशियल मीडिया कमेण्ट्स से बदलता है हमारा भाग्य !

इस बात को बहुत कम लोग अनुभव कर पाते होंगे कि सोशियल मीडिया कमेण्ट्स करने से हमारा भाग्य बदलता है।

बहुत से लोग सोशियल मीडिया राइट, कंटेंट क्रिएटर, ब्लॉगर या यूट्यूबर पर कमेंट्स करते हैं। एक ही वीडियो को हजारों लोग लाइक करते हैं तो लगभग 10 प्रतिशत लोग डिस्लाइक करते हैं।

इसी प्रकार लगभग हर वीडियो पर लगभग 90 प्रतिशत लोग पॉजीटिव कमेंटस देते हैं और 10 प्रतिशत लोग नेगेटिव कमेंट्स लिखते हैं।

क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है ? हमारे द्वारा दिए गए पॉजिटिव और नेगेटिव कमेंट्स का हमारी अपनी जिंदगी पर क्या असर पड़ता है ?

निश्चित रूप से हममें से बहुत से लोग इस बात को जानते हैं। फिर भी जो नहीं जानते हैं उनकी सुविधा के लिए तथा इस बात से जुड़े हुए विविध पक्षों पर विस्तार से चर्चा करने के लिए हमने यह आलेख तैयार किया है।

हमारा व्यक्तित्व हमारे भीतर बह रही पॉजिटिव और नेगेटिव एनर्जी का मिला-जुला परिणाम है। हर व्यक्ति के भीतर दोनों प्रकार की एनर्जी होती है। ये दोनों प्रकार की एनर्जी हमारे व्यक्तित्व को बहुत प्रभावित करती हैं।

प्रकृति ने दोनों प्रकार की एनर्जी हमारे भीतर संतुलित करके सजाई हैं किंतु हमने अपने दुर्भाग्य को बढ़ावा देने के लिए जानबूझ कर इनके संतुलन को बिगाड़ दिया है।

दोनों प्रकार की एनर्जी का संतुलन क्या है, इसे हम इस आलेख के अंतिम भाग में जानने का प्रयास करेंगे। आलेख के आरम्भिक भाग में हम भाग्य को बनाने वाली कुछ महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा कर रहे हैं।

आरम्भ से लेकर अंत तक हमारे भाग्य का निर्माण कौन करता है! निश्चित रूप से हमारा व्यक्तित्व। हमारा व्यक्तित्व ही हमसे कर्म करवाता है। उस कर्म से हमारा भाग्य बनता है। हमारा व्यक्तित्व ही दूसरों को प्रसन्न या नाराज करता है।

हमारे व्यक्तित्व के साथ-साथ दूसरे लोगों की प्रसन्नता और नाराजगी भी बहुत गहराई तक हमारे भाग्य को प्रभावित करती है। इसी को लोगों की दुआ लेना अथवा बद्दुआ लेना कहा जाता है।

हमारे भाग्य का निर्माण करने के लिए व्यक्तित्व को सुधारना आवश्यक है और व्यक्तित्व को सुधारने के लिए अपने भीतर की पॉजिटिव और नेगेटिव एनर्जी को संतुलित करना आवश्यक है। भीतर की एनर्जी को संतुलित करने के लिए अपनी सोच को सुधारना आवश्यक है।

सोच को सुधारने के लिए अपने कर्म को सुधारना आवश्यक है और कर्म को सुधारने के लिए अपनी सोच को सुधारना आवश्यक है।

इस प्रकार ये सारी चीजें अर्थात् भाग्य, व्यक्तित्व, सोच, पॉजिटिव एनर्जी, नेगेटिव एनर्जी और हमारा कर्म ये सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। एक के सुधरने पर बाकी की चीजें अपने आप सुधरने लगती हैं तथा एक के बिगड़ने पर बाकी की चीजें स्वतः खराब होने लगती हैं।

जब हम किसी सोशियल प्लेटफॉर्म पर कमेंट करते हैं तो हम अकेले होते हैं। हम सोचते हैं कि हमें कौन देख रहा है। इसलिए सोशियल मीडिया राइटर, कंटेंट क्रिएटर, ब्लॉगर या यूट्यूबर की तुलना में स्वयं को बड़ा दिखाने की नीयत से हम बिना सोचे-समझे कुछ भी कमेंट कर देते हैं।

जिस वीडियो को हजारों-लाखों लोगों ने लाइक किया है, उसके लिए अच्छी-अच्छी बातें लिखी हैं, उसे भी हम डिसलाइक करते हैं तथा उसके बारे में भद्दे कमेंट लिखते हैं ताकि यूट्यूबर या कंटेंट राइटर का मनोबल तोड़ा जा सके।

कुछ लोगों ने तो नेगेटिव कमेंट्स करने का अभियान सा चला रखा है और कुछ लोग गंदी-गंदी गालियां तक लिखते हैं, इनकी सोच यही होती है कि जिसे हम गालियां लिख रहे हैं, वह न तो हमें गालियां दे सकता है और हमारे घर आकर हमारा गला पकड़ सकता है।

निश्चित रूप से नकारात्मक टिप्पणी, गालियों और डिस्लाइक जैसी प्रतिक्रियाओं का प्रभाव सोशियल मीडिया राइटर, कंटेंट क्रिएटर, ब्लॉगर या यूट्यूबर पर बुरा होता है किंतु क्या हम जानते हैं कि उसका परिणाम और प्रभाव हमारे अपने लिए भी बुरा होता है ?

जब हम किसी के खिलाफ कोई नकारात्मक टिप्पणी करते हैं या गालियां लिखते हैं तो हमारे भीतर नकारात्मक एनर्जी का प्रवाह बहुत तेजी से होता है जिसके कारण हमारे भीतर वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ जाता है।

वात, पित्त और कफ का असंतुलन वस्तुतः हमारे भीतर की पॉजिटिव और नेगेटिव एनर्जी के बीच हुए असंतुलन का परिणाम है। इनके बिगड़ने से न केवल हमारा शरीर बीमार पड़ता है अपितु हमारे व्यक्तित्व में सकारात्मक सोच की क्षमता भी कम होती चली जाती है और हम बुरी एनर्जी से घिर जाते हैं जिसका परिणाम बुरे व्यक्तित्व एवं बुरे भाग्य के रूप में हमारे सामने आता है।

जैसा हम सोचते हैं, वैसी ही हमारी शक्ल भी बन जाती है। हमारी आंखें देखकर ही सामने वाले को पता चल जाता है कि हम अच्छे और पॉजिटिव पर्सनैलिटी वाले आदमी हैं या बुरे और नेगेटिव पर्सनैलिटी वाले।

जब सामने वाला व्यक्ति हमें देखकर ही हमारे व्यक्तित्व से नाराज हो जाता है तो निश्चित रूप से हमारा भाग्य सुरक्षित कैसे रह सकता है!

अपने भीतर की पॉजिटिव और नेगेटिव एनर्जी का संतुलन करने के लिए हमें थोड़ा अभ्यास करना होता है।

हम अपनी तरफ से सदैव दूसरों के प्रति नकारात्मक टिप्पणी न करें। यदि कोई हमें नकारात्मक बात कह रहा है तो भी उसे अपनी सहनशक्ति की सीमा तक क्षमा करें। दूसरों को सहने की अपनी शक्ति को बढ़ाएं।

भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की सौ गलतियां माफ करने की सीमा निर्धारित कीं। उसी प्रकार हम भी अपनी सहन सीमा को काफी आगे तक ले जाएं और यदि सामने वाला व्यक्ति तब भी असभ्य व्यवहार करे तो अपनी शक्ति के अनुरूप उसका उपचार भी करें। आपके अंतिम उपचार भी नकारात्मक नहीं हों तो अच्छा है।

अपने अच्छे व्यक्त्वि से ही सामने वाले को अपने अनुकूल करने का प्रयास करें।

जिस प्रकार अच्छे को अच्छा कहना आवश्यक है, उसी प्रकार बुरे को बुरा कहना भी आवश्यक है। ऐसा करने से हमारे भीतर की नेगेटिव एनर्जी का विस्तार नहीं होता अपितु विश्व भर में व्याप्त पॉजिटिव एनर्जी को ताकत मिलती है। इसी को दोनों प्रकार की एनर्जी का संतुलन कहते हैं।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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