मुहम्मद बिन तुगलक ने दो-आब के क्षेत्र में खेती पर लगने वाले कर में अतिशय वृद्धि कर दी जिसके कारण किसान अपने घरों एवं खेतों को छोड़कर जंगलों में भाग गए। इस पर शाही सैनिकों ने किसानों को जंगलों से पकड़कर मार डाला तथा उनके घरों में आग लगाकर उनकी औरतों के साथ बलात्कार किए।
जब सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक को इन अत्याचारों के बारे में ज्ञात हुआ तो उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे किसानों का दमन न करें किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बड़ी संख्या में किसान बर्बाद हो चुके थे। इसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी को दिल्ली से हटाकर दक्षिण भारत में स्थित देवगिरि में ले जाने का निश्चय किया और उसका नाम दौलताबाद रखा। सुल्तान द्वारा राजधानी परिवर्तन का निर्णय लेने के पीछे कई कारण बताये जाते हैं।
इस समय तक दिल्ली सल्तनत का अत्यधिक विस्तार हो चुका था। पुरानी राजधानी दिल्ली मुहम्मद बिन तुगलक की सल्तनत के उत्तरी भाग में स्थित थी जबकि नई राजधानी देवगिरि दिल्ली सल्तनत के केन्द्र में स्थित थी जहाँ से सल्तनत के विभिन्न भागों पर मजबूती से नियन्त्रण रखा जा सकता था। राजधानी बदलने के पीछे यह कारण भी कार्य कर रहा था कि दिल्ली के सुल्तान दक्षिण भारत पर अपनी सत्ता को स्थायी रूप से बनाए नहीं रख पा रहे थे। इसलिए मुहम्मद बिन तुगलक दक्षिण में अपनी राजधानी बनाकर वहाँ भी अपनी सत्ता को सुदृढ़ बना सकता था।
याहया नामक एक लेखक का कहना है कि दो-आब में कर-वृद्धि तथा अकाल के कारण दिल्ली में बड़ा असन्तोष एवं अशान्ति फैल गई। इसलिए यहाँ की हिन्दू जनता को दण्ड देने के लिए सुल्तान ने समस्त दिल्लीवासियों को देवगिरि जाने की आज्ञा दी।
इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-
इब्नबतूता के अनुसार कुछ लोग सुल्तान की नीति से असन्तुष्ट थे। ये लोग पत्रों में गालियाँ लिख कर और उन्हें तीरों में बाँध कर रात्रि के समय सुल्तान के महल में फेंका करते थे। चंूकि तीर फेंकने वालों का पता लगाना कठिन था इसलिए सम्पूर्ण दिल्ली निवासियों को उन्मूलित करने के लिए सुल्तान ने राजधानी के परिवर्तन करने की योजना बनाई। जियाउद्दीन बरनी के अनुसार सुल्तान ने मध्यम श्रेणी तथा उच्च-वर्ग के लोगों का विनाश करने के लिए राजधानी परिवर्तन की योजना तैयार की थी। कुछ विद्वानों की धारणा है कि मंगोल आक्रमणों से राजधानी को सुरक्षित रखने के लिए सुल्तान ने देवगिरि को राजधानी बनाने की योजना बनाई।
विभिन्न इतिहासकारों द्वारा बताये गए उपरोक्त कारणों में से याहया, इब्नबतूता तथा बरनी द्वारा बताये गए मत निराधार हैं। मंगोलों के आक्रमणों से राजधानी को सुरक्षित बनाने के लिए उसे दूर ले जाने का तर्क भी अमान्य है क्योंकि राजधानी दिल्ली में रहते हुए ही अल्लाउद्दीन खिलजी तथा बलबन अपनी सीमा की सुरक्षा तथा समुचित व्यवस्था करने में सफल सिद्ध हुए थे। अतः निश्चित रूप से केवल इतना ही कहा जा सकता है कि शासन की सुविधा तथा दक्षिण भारत में अपनी सत्ता सुदृढ़ करने के लिए सुल्तान ने राजधानी परिवर्तन की योजना बनाई थी।
इतिहासकारों का अनुमान है कि साम्राज्य की सुव्यवस्था के लिए सुल्तान ने दो राजधानियाँ रखने का निश्चय किया। उत्तरी साम्राज्य की राजधानी दिल्ली और दक्षिण की देवगिरि होनी थी। देवगिरि के महत्त्व को बढ़ाने के लिए सुल्तान ने राज परिवार के सदस्यों, तुर्की अमीरों, विद्वानों, फकीरों एवं दरवेशों को वहाँ पर बसाने का निश्चय किया। इन लोगों के बसने पर ही देवगिरि मुस्लिम सभ्यता के प्रसार का केन्द्र बन सकती थी।
दक्षिण में मुस्लिम जनसंख्या के बढ़ जाने पर ही दक्षिण भारत पर पूर्ण सत्ता स्थापित रह सकती थी। अतः सुल्तान ने सबसे पहले अपनी माता मखदूम-जहाँ को देवगिरि भेज दिया। उसके साथ दरबार के अमीरों, विद्वानों, घोड़ों, हाथियों, राजकीय भण्डारों आदि को भी भेजा। इन लोगों की सुविधा के लिए सुल्तान ने अनेक प्रकार के प्रबन्ध किए।
दिल्ली से दौलताबाद जाने वाली सड़क की मरम्मत कराई गई और उसके किनारे आवश्यक वस्तुओं के विक्रय की व्यवस्था की गई। लोगों के लिए सवारियों का भी प्रबन्ध किया गया। यात्रियों को कई प्रकार की सुविधायें दी गईं। दौलताबाद में भव्य भवनों का निर्माण कराया गया और समस्त प्रकार की सुविधाओं को देने का प्रयत्न किया गया।
राजधानी परिवर्तन एक ऐसी योजना थी जिसके बारे में इससे पहले किसी भी सुल्तान ने कल्पना तक नहीं की थी। दिल्ली के तुर्की अमीर, राजपरिवार के सदस्य, सेठ-साहूकार एवं अन्य प्रभावी लोग भी इस बात को सोचकर सिहर उठते थे कि एक दिन उन्हें दिल्ली छोड़कर जाना पड़ेगा। इस कारण इस योजना के आरम्भ होने से पहले ही इसका विरोध होने लगा और इस योजना के दुष्परिणाम सामने आने लगे।
जब कुछ लोगों ने सुल्तान से कहा कि देवगिरि में उनका मन नहीं लगेगा तथा उन्हें दिल्ली की बहुत याद आएगी तो सुल्तान ने दिल्ली के भिखारियों एवं कुत्ते-बिल्लियों को भी पकड़कर देवगिरि भेज दिया। बहुत से बीमारों, विकलांगों एवं वृद्धों की मार्ग में ही मृत्यु हो गई। जिन हजारों लोगों को जबर्दस्ती पकड़कर दिल्ली से देवगिरि के लिए रवाना किया गया, वे लोग कभी भी इस परिवर्तन से सन्तुष्ट नहीं हुए। उन्हें दिल्ली की स्मृतियाँ वेदना पहुँचाया करती थीं। उन्हें यह स्थानान्तरण दण्ड के समान प्रतीत हुआ। इसलिए वे सुल्तान की निंदा करने लगे।
जब सुल्तान को लोगों के असन्तोष की जानकारी हुई तब उसने असन्तुष्ट लोगों को फिर से दिल्ली लौटने की अनुमति दे दी। जियाउद्दीन बरनी के अनुसार दौलताबाद जाने वाले लोगों में से बहुत कम लोग वापस दिल्ली जीवित लौट सके। इस योजना को कार्यान्वित करने में सुल्तान को बड़ा धन व्यय करना पड़ा जिससे राजकोष को हानि हुई। प्रजा में असन्तोष फैलने से सुल्तान की लोकप्रियता को बहुत बड़ा धक्का लगा और उसे पुराना गौरव नहीं मिल सका।
यद्यपि दौलताबाद के सुदृढ़ दुर्ग तथा वहाँ के राजकोष के परिपूर्ण हो जाने से आरम्भ में दक्षिण के विद्रोहियों का दमन करने में बड़ी सुविधा हुई परन्तु अन्त में जब दक्षिण में विद्रोहों का विस्फोट हुआ तब दुर्ग तथा कोष का यही बल साम्राज्य के लिए बड़ा घातक सिद्ध हुआ क्योंकि इसका प्रयोग सुल्तान के विरुद्ध होने लगा।
मुहम्मद बिन तुगलक की इस योजना की विद्वानोें ने तीव्र आलोचना की है और सुल्तान को क्रूर, अदूरदर्शी तथा प्रजापीड़क बताया है। कुछ इतिहासकारों ने उसे पागल तक कहा है परन्तु वास्तव में राजधानी का परिवर्तन कोई पागलपन भरी योजना नहीं थी। इसके पहले भी हिन्दू राजाओं ने अपनी राजधानियों का परिवर्तन किया था। आधुनिक काल में भी राजधानियों का परिवर्तन होता रहता है। सुल्तान की यह आलोचना तर्क तथा उपयोगिता पर आधारित थी। फिर भी अमीरों एवं जनता के असहयोग के कारण वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सका।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता