Friday, October 4, 2024
spot_img

पूना पैक्ट

पूना पैक्ट – साम्प्रदायिकता का संवैधानिक विकास (4)

जब अंग्रेजों ने भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए नया संविधान बनाना आरम्भ किया तो भारत के विभिन्न विभाजनकारी तत्व अपने लिए अधिक अधिकारों की मांग करने लगे। यह मांग विभिन्न संस्थाओं में पदों के आरक्षण तक सीमित थी। डॉ. अम्बेडकर ने दलित कही जाने वाली जातियों के लिए अलग प्रावधानों की मांग की तो उनका कांग्रेस से विवाद हो गया। इस पर गांधी और अम्बेडकर के बीच पूना में एक समझौता हुआ जिसे पूना पैक्ट कहते हैं।

गांधी और अम्बेडकर में पूना पैक्ट

कैसे बना था पाकिस्तान - bharatkaitihas.com
To Purchase This Book Please Click On Image.

गांधीजी ने साम्प्रदायिक पंचाट का, विशेषकर दलितों को हिन्दुओं से पृथक् करने वाले प्रावधानों का जोरदार विरोध किया तथा 20 सितम्बर 1932 को आमरण अनशन पर बैठ गये। डॉ. अम्बेडकर ने इस व्रत को ‘राजनैतिक धूर्त्तता’ बताया। कुछ लोगों ने इसे अपनी मांग मनवाने का तरीका बतलाया। जब गांधीजी का स्वास्थ्य अधिक बिगड़ने लगा तब कांग्रेसी नेताओं ने 26 सितम्बर 1932 को डॉ. अम्बेडकर और गांधीजी के बीच एक समझौता करवाया। यह समझौता पूना पैक्ट के नाम से प्रसिद्ध है।

पूना पैक्ट के द्वारा साम्प्रदायिक पंचाट के आपत्तिजनक भाग को हटाया गया तथा डॉ.अम्बेडकर दलितों के लिए दुगने स्थान सुरक्षित करवाने में सफल रहे। भारत की समस्या के हल को लेकर डॉ. अम्बेडकर का गांधीजी और मुहम्मद अली जिन्ना दोनों से विवाद रहता था। इसलिए अम्बेडकर ने गांधी और जिन्ना की तुलना करते हुए कहा कि– ‘इन दोनों ही नेताओं को भारतीय राजनीति से अलग हो जाना चाहिए।’

भारत सरकार अधिनियम 1935 में अल्पसंख्यकों का हिन्दुओं पर वर्चस्व

लंदन के तीन गोलमेज सम्मेलनों एवं साम्प्रदायिक पंचाट की घोषणा के बाद भारत में नया संविधान लागू किया गया। इसे भारत सरकार अधिनियम 1935 कहते हैं। इस संविधान ने भारत सरकार अधिनियम 1919 का स्थान लिया। नए कानून के मुख्य प्रावधान इस प्रकार थे-

(1) बर्मा को भारत से पृथक् कर दिया जाएगा।

(2) उड़ीसा एवं सिंध नामक नवीन प्रांतों का गठन किया जाएगा।

(3) एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना की जायेगी जिसमें ब्रिटिश-भारत के प्रान्त एवं देशी राज्य सम्मिलित होंगे।

(4) प्रांतों को स्वशासन का अधिकार दिया जायेगा।

(5) शासन के विषय तीन भागों में विभक्त किए जायेंगे- (i) संघीय विषय, जो केन्द्र के अधीन होंगे। (ii) प्रांतीय विषय, जो पूर्णतः प्रांतों के अधीन होंगे तथा (iii) समवर्ती विषय, जो केन्द्र और प्रांत के अधीन रहेंगे। विरोध होने पर केन्द्र का कानून मान्य होगा।

(6) संघीय संविधान के अधीन दो सदन होंगे।

(7) हाउस ऑफ एसेम्बली अर्थात् निम्न सदन में 375 सीटें होंगी जिनमें से ब्रिटिश-भारत के प्रतिनिधियों की संख्या 250 एवं देशी राज्यों के प्रतिनिधियों की संख्या 125 होगी।

(8) निम्न-सदन में ब्रिटिश-भारत के 250 प्रतिनिधियों का चुनाव सामान्य अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली द्वारा होगा। इनमें से 105 सीटें सामान्य थीं जबकि 19 सीटें पिछड़े वर्ग के लिए, 82 सीटें मुसलमानों के लिए, 6 सीटें सिक्खों के लिए, 4 एंग्लो-इण्डियन के लिए 8 सीटें यूरोपियन्स के लिए, 8 सीटें भारतीय ईसाइयों के लिए, 11 सीटें उद्योगपतियों के लिए, 7 सीटें जमींदारों के लिए, 10 सीटें श्रमिक प्रतिनिधियों के लिए, 9 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई थीं।

(9) कौंसिल ऑफ स्टेट अर्थात् उच्च सदन में कुल 260 सीटें होंगी जिनमें से ब्रिटिश-भारत के सदस्यों की संख्या 156 तथा देशी राज्यों के प्रतिनिधियों की संख्या 104 होगी। ब्रिटिश-भारत के 156 सदस्यों में से 75 सीटें जनरल के लिए, 6 सीटें पिछड़े वर्ग के लिए, 4 सिक्खों के लिए, 49 मुसलमानों के लिए, 6 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गईं।

इस प्रकार अंग्रेजों द्वारा आरम्भ किए गए संवैधानिक सुधारों का परिणाम भारत की अखण्डता के लिए अत्यंत खतरनाक सिद्ध हुआ। 1932 के साम्प्रदायिक पंचाट के माध्यम से मुसलमानों को तथा पूना पैक्ट के माध्यम से दलितों को अलग अधिकार दे दिये गये।

इन प्रावधानों से भारत की आत्मा पर गहरा प्रहार हुआ। देश की बहुसंख्यक जातियां मुसलमानों एवं दलितों से पिछड़ जाने के लिए मजबूर कर दी गईं। जो अंग्रेज अपने देश में योग्यता को प्राथमिकता देते थे, भारत में योग्यता का गला घोंटने वाले बन गय। इसमें केवल अंग्रेजों का दोष नहीं था, भारत के विभाजनकारी तत्वों की गहरी साजिशें भी शमिल थीं।

(अध्याय पूर्ण)

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source