पर्यटकों का स्वर्ग बाली
वर्तमान समय में बाली द्वीप की कुल जनसंख्या में से 90 प्रतिशत हिन्दू है। शेष 10 प्रतिशत जनसंख्या में बौद्ध, मुस्लिम एवं ईसाई हैं। यह विश्व विख्यात पर्यटन स्थान है जिसकी कला, संगीत, नृत्य और मन्दिर मनमोहक हैं। यहाँ की राजधानी देनपासार नगर है। मध्य बाली में स्थित उबुद नामक नगर भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। यह बाली द्वीप में कला और संस्कृति का प्रधान स्थान है। दक्षिण बाली में स्थित ”कुता” एक प्रमुख नगर है। जिम्बरन बाली में मछुओं का ग्राम और प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। द्वीप के उत्तरी तट पर सिंहराज नगर स्थित है। आगूंग पर्वत और ज्वालामुखी बतुर पर्वत दो ऊंची चोटियां हैं।
हँसते-मुस्कुराते चेहरों वाले लोग
बाली के लोग सरल, हंसमुख एवं श्रमजीवी किन्तु निर्धन, फटेहाल और अभावग्रस्त हैं। स्त्री और पुरुष दोनों ही, दिन भर हाड़-तोड़ परिश्रम करके अपने परिवार का पेट पालते हैं। पुरुष अपेक्षाकृत अधिक परिश्रम के कामों अर्थात् वाहन चालन, कृषि एवं निर्माण कार्यों में संलग्न हैं, वहीं महिलाएं प्रायः किसी न किसी प्रकार की छोटी-मोटी दुकान चलाती हैं। या सड़कों के किनारे नारियल, केले और विभिन्न प्रकार के फूल बेचती हुई दिखाई देती हैं।
भारत और भारतीयों से है करते हैं प्यार
कई अर्थों में बाली द्वीप, भारत का एक संस्करण दिखाई देता है तो कई अर्थों में यह भारत से बिल्कुल अलग है। बाली के स्थानीय व्यक्ति भारतीयों को देखकर प्रसन्न होते हैं और पहली ही भेंट में यह बताना नहीं भूलते कि हम भी हिन्दू हैं। वे ये भी बताते हैं कि हमारे परिवार में कौन-कौन शाकाहारी है और कौन व्यक्ति भारत जाकर गंगा स्नान कर आया है। यह देखना और जानना किसी सुखद अश्चर्य से कम नहीं होता कि भारतीय हिन्दुओं के प्रति इनके मन में अपार आदर और स्नेह है।
जैसे ही आप इनकी दुकान पर पहुंचते हैं, या मार्ग में मिलते हैं, बाली के अधिकांश लोग ”स्वस्तिम् अस्तु” कहकर दोनों हाथ जोड़ते हैं और मुस्कुराकर आपका स्वागत करते हैं। इनकी आंखें बताती हैं कि उन्हें यह ज्ञात है कि भारत बहुत धनी और सभ्य देश है तथा बाली के लोगों की जड़ें भारत में हैं।
साफ-सुथरा द्वीप
बाली एक साफ-सुथरा द्वीप है, सड़कों पर गंदगी, भीड़-भड़क्का एवं शोरगुल नहीं है। सड़कें अपेक्षाकृत संकरी किंतु मजबूत हैं। कहीं भी टूटी-फूटी या उधड़ी हुई सड़कें देखने को नहीं मिलती हैं, इससे अनुमान होता है कि यहाँ भ्रष्टाचार या तो है ही नहीं और यदि है तो बहुत ही कम है।
ठेकेदारों और इंजीनियरों ने सड़क निर्माण में पूरी सामग्री का उपयोग किया है। सड़क के दोनों ओर पैदल यात्रियों के लिए पटरियां बनी हुई हैं, साइन बोर्ड भी भली भांति लगे हुए हैं। सड़कों के किनारे लगे सूचना पट्ट एवं दुकानों के बाहर लगे नामपट्ट बाली की स्थानीय भाषा ”बहासा इण्डोनेशियन” में लिखे हुए हैं, जो कि मलय भाषा से बनी है।
यह देखकर आश्चर्य होता है कि ये सभी पट्ट रोमन लिपि में लिखे हुए हैं जो देखने में तो अंग्रेजी भाषा के लगते हैं किंतु विदेशी पर्यटकों को पढ़ने में नहीं आते। यह ठीक वैसा ही है जैसे मराठी लोगों ने मराठी भाषा के लिए ”देवनागरी” लिपि अपना ली है।
बाली द्वीप के नगरों में बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर बहुत कम हैं। अधिकांश दुकानें बहुत छोटी हैं तथा उनमें बिक्री के लिए बहुत कुछ उपलब्ध नहीं है। ब्रेड (डबल रोटी), कोल्ड ड्रिंक, अण्डा, डिब्बाबंद चिकन, डिब्बाबंद मछली, पूजा के फूल, नारियल, अगरबत्ती, प्लास्टिक के छोटे-मोटे सामान आदि दैनिक उपयोग की सामग्री अधिक बिकती है। दुकानों के बाहर एक-एक लीटर की मिट्टी के तेल, डीजल और पैट्रोल से भरी बोतलें रखी रहती हैं, क्योंकि यहाँ पैट्रोल पम्प केवल मुख्य नगर की परिधि में ही उपलब्ध हैं, वे भी गिने-चुने।
गाय, गंगा और गेहूँ रहित बाली के हिन्दू
भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार गाय, भारतीय धर्म का मुख्य आधार गंगा और भारतीय भोजन की थाली का मुख्य आधार गेहूं, बाली द्वीप में देखने को नहीं मिलते। यहाँ दुधारू पशु नहीं पाले जाते। यहाँ घरों में दूध एवं चाय नहीं पिये जाते। किसी विशिष्ट अतिथि के आने पर, मध्यम एवं उच्च वर्गीय परिवारों में बिना दूध की कॉफी बनाई जाती है।
यहाँ के लोगों का पूरा जीवन बीत जाता है किंतु ये न तो गाय, भैंस, बकरी आदि दुधारू पशुओं के दर्शन कर पाते हैं और न ही पशुओं के दूध का स्वाद चख पाते हैं। शैशव अवस्था में शिशु लगभग एक साल तक माँ का दूध पीता है, उसके बाद चिकन खाने लगता है, और फिर सूअर का मांस तथा मछली आदि। ऊंट और घोड़ा भी बाली में नहीं हैं। आश्चर्य की बात है कि यहाँ की सड़कों पर पशु घूमते दिखाई नहीं देते। गांवों में जाएं तो गलियों में केवल इक्का-दुक्का कुत्ते दिखाई देते हैं।
गाय-भैंस के अभाव में सामान्यतः घरों में दूध-दही-छाछ-मक्खन-घी का उपयोग नहीं होता। बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर पर डिब्बाबंद योघर्ट मिलता है, इसका उपयोग केवल पर्यटक करते हैं। यह बहुत महंगा है, सामान्यतः 50 ग्राम योघर्ट के लिए भारतीय मुद्रा में 60 रुपए चुकाने होते हैं। इसका स्वाद दही से काफी अलग होता है तथा यह गोंद की तरह चिपचिपा होने के कारण आम भारतीय के लिए अनुपयोगी है।
फसलों के नाम पर खेतों में प्रायः चावल, मक्का और गन्ना दिखाई देता है। चावल बहुतायत में होता है किंतु बासमाती चावल या खुशबूदार अच्छा चावल भारत से मंगाया जाता है। गेहूं, जौ, चना, बाजरा आदि अनाज और मूंग, मोठ, उड़द, चंवला आदि दालें यहाँ नहीं उगाई जातीं। भिण्डी, आलू और प्याज जैसी सब्जियां भी न्यूजीलैण्ड, नीदरलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, भारत एवं अन्य देशों से आयात की जाती हैं। आयातित सब्जियां आम दुकानों पर नहीं मिलतीं। ये सब्जियां बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर्स में काफी ऊंची दरों पर प्लास्टिक के रैपर में बंद करके बेची जाती हैं एवं बड़े होटलों में विदेशी पर्यटकों के लिए उपलब्ध रहती हैं।
भारतीय देवी-देवताओं में है विश्वास
बाली के लोग रामायण, भगवान राम, देवी सीता एवं रामदूत हनुमान के प्रति श्रद्धा रखते हैं। चारों वेद, गीता, महाभारत, एवं पाण्डु पुत्र भीम तथा वीर अर्जुन की चर्चा करना गौरव का विषय मानते हैं। भगवान राम, इन्द्र, सरस्वती, कृष्ण, शिव, अर्जुन और भीम की विशाल एवं सुंदर प्रतिमाएं चौराहों पर लगी हुई हैं जो पर्यटकों के आकर्षण और कौतूहल का विषय हैं क्योंकि भारत में केवल हनुमानजी अथवा शिवजी की ही इतनी बड़ी प्रतिमाएं देखी जाती हैं। हनुमानजी की प्रतिमाएं विकराल स्वरूप की हैं। सीता को ये देवी सिन्ता कहते हैं तथा उनमें बड़ी श्रद्धा रखते हैं। देवी सिन्ता की अत्यंत सुंदर और विशाल प्रतिमाएं चौराहों पर देखने को मिलती हैं। सरस्वती की बहुत सुन्दर प्रतिमाएं, दर्शकों का मन मोह लेती हैं। मूर्ति निर्माण की यह एक विशिष्ट परम्परा है, इसमें रागात्मकता एवं मनोरम्यता का तत्व अधिक है।
भारत के चौराहों पर मोहनदास गांधी, इंदिरा गांधी, जवाहरलाल नेहरू तथा बहुत से स्थानीय नेताओं आदि की मूर्तियां पाई जाती हैं किंतु भारतीय पर्यटक बाली द्वीप में भगवान श्रीराम, देवी सीता, भगवान श्रीकृष्ण तथा रामभक्त हनुमान की मूर्तियां देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं। भगवान शिव, पार्वती एवं गणेश की प्रतिमाएं भी चौराहों, उद्यानों एवं होटलों आदि में दिखाई देती हैं। अधिकतर मंदिरों के प्रवेश द्वार पर गणेश प्रतिमाएं लगी हैं। ये अपेक्षाकृत छोटे आकार की हैं तथा ठीक वैसी ही हैं जैसी भारत में पाई जाती हैं। द्वारपालों की कुछ मूर्तियां दैत्यों जैसी दिखाई देती हैं। सामान्यतः ये मूर्तियां मंदिरों और नगरों के द्वारों के बाहर लगी रहती हैं।
प्रत्येक घर के अंदर तथा बाहर स्तम्भ मंदिर बने होते हैं। लगभग चार पांच फुट ऊंचे स्तम्भ पर एक छोटा आला होता है जिसे काला (स्तंभ पर स्थित लघु देवालय) कहते हैं। घर के भीतर बने काला को पुंगुनकरन अर्थात् धरती का देवता कहते हैं। घर के भीतर के काला में देवी दुर्गा के भी देवालय होते हैं। घर के बाहर के देव स्थान को इन्द्राब्लॉका कहा जाता है, यह गली-मौहल्ले की रक्षा करता है। ब्रह्मा, विष्णु महेश को कुनिंगन्न (त्रिदेव) कहा जाता है। साल में एक बार यलो डे मनाया जाता है। उस दिन स्त्री-पुरुष पीले वस्त्र धारण करते हैं। यह भारत के बसंत पंचमी का ही रूप है। गलुगन्गन पर्व पर सार्वजनिक अवकाश होता है। पके हुए चावल को नासि तथा कच्चे चावल को सयुर कहा जाता है, जो बाली का मुख्य खाद्य है।
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