Sunday, December 8, 2024
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89. शहजादे की पगड़ी

किले पर अधिकार करने में असफल रहने के बाद मुराद समझ गया कि खानखाना की शक्ति प्राप्त किये बिना अहमदनगर का किला नहीं लिया जा सकता। उसने हार कर खानखाना को बुलाया। खानखाना अपने आदमियों के साथ शहजादे की सेवा में हाजिर हुआ। मुराद ने अन्य दिनों के विपरीत बड़ी लल्लो-चप्पो के साथ खानखाना का स्वागत किया।

– ‘खानखाना! आप तो ईद के चाँद हो गये।’ शहजादे ने अपनी दुष्ट आवाज में नकली मिठास भर कर कहा।

– ‘चाँद तो आप हैं शहजादे जिसका नूर पूरे आकाश को रौशन करता है। मैं तो छोटा सा सितारा हूँ। या यूँ कहिये छोटा सा दिया हूँ जो मुगलिया सल्तनत की किसी अंधेरी कोठरी में टिमटिमाता हँू।’

– ‘खानखाना! यदि मुगलिया सल्तनत के आकाश में बादशाह सलामत सूरज बनकर चमकते हैं तो उस आकाश के चाँद केवल आप ही हो सकते हैं।’

– ‘यदि शहजादे मेरे बारे में ऐसा विचार रखते हैं तो यह मेरा सौभाग्य है। कहिये क्या आदेश है?’

– ‘आप तो जानते हैं खानखाना कि शहंशाह ने इस मोर्चे पर आपकी भी उतनी ही जिम्मेदारी तय की है, जितनी कि मेरी?’

– ‘मैं अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से पहचानता हूँ और जो भी आदेश मुझे दिये गये हैं, उन्हें मैं पूरा कर रहा हूँ।’ खानखाना ने जवाब दिया।

– ‘आपने मुगलिया सल्तनत के लिये इतने युद्ध लड़े हैं, इससे पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ।’

– ‘कैसा नहीं हुआ शहजादे?’

– ‘यही कि आप मोर्चे पर मौजूद हों और फतह हासिल न हो?’

– ‘शहजादे स्वयं सक्षम हैं, वे बड़ी से बड़ी फतह हासिल कर सकते हैं।’ खानखाना ने उदासीन होकर उत्तर दिया।

– ‘सच तो यह है खानखाना कि आपके या आपके पिता मरहूम खानखाना बैरामखाँ के बिना मुगलिया सल्तनत आज तक कोई भी बड़ी लड़ाई नहीं जीत सकी है।’

– ‘यह आपका बड़प्पन है जो इस नाचीज को इतना मान देते हैं। मैं तो मुगलों का अदना सा सिपाही हूँ।’

– ‘हमसे कोई गुस्ताखी हुई है खानखाना?’

– ‘मालिक गुस्ताखी नहीं करते, गुस्ताखी तो गुलाम करते हैं।’

– ‘हम जानते हैं खानखाना कि आप हमसे नाराज हैं।’

– ‘मेरे दुश्मनों ने आपसे यह बात कही होगी, मैं शहंशाह का गुलाम हूँ।’

– ‘हम जानते हैं कि आपसे बातों में भी नहीं जीत पायेंगे किंतु हम चाहते हैं कि अब अहमदनगर पर फतह हासिल हो।’

– ‘मुगलों को फतह हासिल हो, इससे अच्छी बात और क्या होगी शहजादे?’

– ‘किंतु यह जीत आपके सहयोग के बिना नहीं हो सकती।’

– ‘लेकिन मैं तो पहले से ही आपकी चाकरी में हाजिर हूँ।’

– ‘अच्छा अब आप ही बताईये कि क्या किया जाये?’

– ‘मेरे अकेले के किये कुछ नहीं होगा शहजादे। आप अपने विश्वस्त आदमियों से सलाह करें। जैसी सबकी राय बने, वैसा ही करें।’

खानखाना की उदासीनता से मुराद समझ गया कि खानखाना की नाराजगी आसानी से दूर नहीं होगी। मुराद जैसा कांईयां जमाने भर में न था। उसने भी ठान ली थी कि वह खानखाना के माध्यम से ही अहमदनगर हासिल करेगा। मुराद ने अपने डेरे से सब अमीरों को जाने का संकेत किया और खानखाना को वहीं ठहरने के लिये कहा।

जब डेरा खाली हो गया तो मुराद ने अपनी पगड़ी उतार कर खानखाना के पैरों में रख दी- ‘मेरी लाज आपके हाथ में है खानखाना।’

खानखाना इस अभिनय से पसीज गया। उसने पगड़ी उठा कर फिर से शहजादे के सिर पर रख दी और उसे वचन दिया कि वह पूरे मनोयोग से यत्न करेगा।

खानखाना चाँद बीबी के बारे में काफी कुछ सुन चुका था और उसका प्रशसंक था। वह कतई नहीं चाहता था कि चाँद बीबी की कुछ भी हानि हो। उसने मुराद से कहा- ‘श्रेष्ठ उपाय तो यह होगा कि बिना रक्तपात किये अहमदनगर हमारी अधीनता स्वीकार कर ले। इससे हमारे आदमियों की भी हानि नहीं होगी और इस समय मुगल सेना को जो धान और चारे की कमी है, उससे भी छुटकारा मिल जायेगा।’

मुराद तो यही चाहता था कि किसी भी तरह अहमदनगर अधीनता स्वीकार कर ले। उसे राजधानी से चले तीन साल हो चले थे और अहमदनगर अब भी दूर की कौड़ी बना हुआ था। वह राजधानी से अधिक दिनों तक दूर नहीं रहना चाहता था।

– ‘क्या यह संभव है?’

– ‘हाँ! यह संभव है। प्रयास करने पर सफलता अवश्य मिलेगी।’

– ‘तो फिर देर किस बात की है। आप आज ही अहमदनगर से बात कीजिये।’

– ‘यदि शहजादे की अनुमति हो तो मैं शहंशाह की ओर से दूत बनकर चाँद सुलताना की सेवा में जाऊँ और उसे किसी तरह राजी करूँ।’

कहने की आवश्यकता नहीं कि मुराद ने खानखाना को तुरंत ही स्वीकृति प्रदान कर दी।

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