Saturday, April 20, 2024
spot_img

भारत विभाजन प्रस्ताव को स्वीकृति

कांग्रेस अधिवेशन में भारत विभाजन को स्वीकृति

14 जून 1947 को कांग्रेस महासमिति (एआईसीसी) की बैठक में गोविंदवल्लभ पंत ने देश के विभाजन की माउंटबेटन योजना को स्वीकार करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। कांग्रेस कार्यसमिति में यह प्रस्ताव पहले ही पारित किया जा चुका था। यह प्रस्ताव इस प्रकार था-

‘यह देश की स्वतंत्रता प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है। इससे सुनिश्चित हो जाएगा कि भारतीय संघ का एक शक्तिशाली केन्द्र होगा…… कांग्रेस ने एकता के लिए बड़ा प्रयास किया है और प्रत्येक वस्तु बलिदान कर दी है किंतु एक सीमा है जिसके आगे हम भी नहीं जा सकते। आज हमारे सामने दो ही रास्ते हैं, या तो हम 3 जून के वक्तव्य को स्वीकार कर लें या आत्महत्या कर लें।’

मौलाना आजाद ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि- ‘कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने सही फैसला नहीं लिया है लेकिन कांग्रेस के सामने कोई विकल्प नहीं।……. बंटवारे को स्वीकार करना कांग्रेस की राजनीतिक विफलता है…. राजनीतिक दृष्टि से हम विफल हुए हैं और इसलिए देश का बंटवारा कर रहे हैं। हमें अपनी हार स्वीकार करनी चाहिए…..।’

पटेल और नेहरू ने विभाजन के प्रस्ताव का समर्थन किया किंतु एआईसीसी में इस प्रस्ताव का विरोध इतना अधिक था कि इसका पारित होना कठिन था। इस प्रस्ताव का विरोध करने वाले नेताओं में सिंध कांग्रेस के नेता चौथराम गिडवानी, पख्तून नेता डॉ. अब्दुल गफ्फार खान, पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. किचलू, पुरुषोत्तम दास टण्डन, मौलाना हफीजुर्रहमान आदि प्रमुख थे। जब कांग्रेसी नेता भाषण दे रहे थे तो एआईसीसी के कुछ सदस्य ‘प्राप्तं-प्राप्तं उपासीत’ (जो मिल रहा है, ले लो) के नारे लगा रहे थे।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO.

एन. वी. गाडगिल ने लिखा है- ‘चौथराम गिडवानी का भाषण सर्वाधिक हृदय विदीर्ण करने वाला था। जब वे बोल रहे थे तो हम में से बहुत से, निर्लज्जों की भांति रो रहे थे। उन्होंने चित्र खींचकर वर्णन किया कि कांग्रेस ने कैसे सिन्धी हिन्दुओं की भयानक अवहेलना की है और कैसे उन्हें सामयिक राजनीतिक सुविधा की वेदी पर बलि किया गया है? उन्होंने इस विचार का खण्डन किया कि जो कुछ हुआ है, वह होना ही था, बदला नहीं जा सकता था। इसको स्वीकार करना मानवता से गद्दारी करना है। यह पूरा भाषण बहुत ही भावुकता से भरा पड़ा था। इस पर भी इसमें बुद्धिमत्ता और विचारशीलता की कमी नहीं थी। उन्होंने कहा था कि अन्याय के सामने झुक जाना बुद्धिमत्ता के लक्षण नहीं हैं।’

जिस समय डॉ. चौथराम भाषण कर रहे थे, नेहरू और पटेल को अपने पांव तले से मिट्टी खिसकती हुई दिखाई देने लगी। उस समय गांधीजी अपना साप्ताहिक व्रत रखे हुए हरिजन कॉलोनी में बैठे थे। कांग्रेसी नेताओं को यह समझ में आने लगा था कि यदि डॉ. चौथमल के व्याख्यान के बाद मतगणना की गई तो माउण्टबेटन की योजना को अस्वीकार कर दिया जाएगा।

अतः उन्होंने एक विशेष दूत गांधीजी के पास भेजा कि वे कांग्रेस कमेटी में आकर अपने प्रिय जवाहरलाल की रक्षा करें। गांधीजी अपना व्रत समय से पहले तोड़कर भागे-भागे ‘कांस्टीट्शनल क्लब’ पहुंचे और डॉक्टर साहब के भाषण के उपरांत अपने नेताओं के मान की रक्षा का वास्ता डालकर प्रस्ताव पारित करने के लिए आग्रह करने लगे।

अबुल कलाम आजाद ने इस प्रस्ताव के संस्मरणों के साथ लिखा है- ‘इस बड़े दुखांत नाटक के दौरान कुछ हास्यास्पद बातें भी देखी गईं। कांग्रेस में कुछ ऐसे लोग जो राष्ट्रवादी होने का दिखावा करते रहे हैं लेकिन उनका दृष्टिकोण वास्तव में सोलह आने साम्प्रदायिक रहा है। वे हमेशा तर्क देते रहे हैं कि हिन्दुस्तान की कोई ऐक्यबद्ध संस्कृति नहीं है। उनकी सदैव राय रही है कि कांग्रेस जो कुछ कहे, हिंदुओं और मुसलमानों के सामाजिक जीवन एकदम भिन्न हैं। यह देखकर आश्चर्य हुआ कि ऐसे दृष्टिकोण वाले सदस्य एकाएक भारत की एकता के सबसे बड़े समर्थक बनकर मंच पर प्रकट हुए।’

गांधीजी, नेहरू और पटेल के जबर्दस्त समर्थन के उपरांत भी कांग्रेस वर्किंग कमेटी का यह प्रस्ताव एआईसीसी में सर्वसम्मति से पारित नहीं हो सका। बैठक में 218 सदस्य उपस्थित थे। इनमें से कांग्रेस वर्किंग कमेटी के प्रस्ताव के पक्ष में 157 वोट तथा विपक्ष में 29 वोट पड़े और 32 सदस्य तटस्थ रहे।

कांग्रेस द्वारा भारत विभाजन का प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेश के खुदाई खिदमतगारों ने अब्दुल गफ्फार खां के नेतृत्व में मांग की कि प्रांतों के पास सिर्फ भारतीय संघ या पाकिस्तान में सम्मिलित होने का विकल्प नहीं होना चाहिए अपितु हमें अलग पठानिस्तान या पख्तूनिस्तान की स्थापना के निर्णय का भी अधिकार होना चाहिए और इसके लिए पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेश में जनमत कराया जाना चाहिए।

माउंटबेटन ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया लेकिन जब पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत की जनता ने जबर्दस्त आंदोलन का मार्ग अपनाया तो वहाँ भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित होने के लिए जनमत संग्रहण करवाया गया। मतदान के समय मुस्लिम लीग के गुण्डों ने जमकर उत्पात मचाया तथा असली वोटरों को वोट करने से रोककर जाली वोटिंग करवाई जिसके कारण खुदाई खिदमतगार की हार हो गई तथा पाकिस्तान में शामिल होने के प्रस्ताव को एक तरफा वोट प्राप्त हो गए।

इस प्रकार पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत को पाकिस्तान में सम्मिलित होने के लिए विवश किया गया। सीमांत प्रदेश में उस समय मतदाताओं की संख्या 5,73,000 थी। इनमें से सिर्फ 2,93,000 लोग ही मतदान कर पाए। इनमें से केवल 3000 वोट भारतीय संघ में शामिल होने के पक्ष में पड़े। पूर्वी-बंगाल, पश्चिमी पंजाब, सिंध तथा बलूचिस्तान को पाकिस्तान में शामिल करने का फैसला लिया गया।

पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत की तरह असम के सिलहट जिले में मुसलमानों की संख्या अधिक थी इसलिए वहाँ भी जनमत संग्रह करवाया गया। सिलहट की जनता ने पाकिस्तान में जाने का निर्णय लिया।

प्रांतीय विधान सभाओं ने पाकिस्तान प्रस्ताव पारित किए

20 जून 1947 को बंगाल विधान सभा ने अपने प्रांत के विभाजन का प्रस्ताव भारी बहुमत से पारित कर दिया। तीन दिन बाद पंजाब विधान सभा के सदस्यों ने अपने प्रांत के दो टुकड़े करने का प्रस्ताव पारित किया। सिंध की विधान सभा में पाकिस्तान में जाने या न जाने के प्रस्ताव पर मतदान हुआ। इसमें 33 मत पाकिस्तान में जाने के पक्ष में तथा 20 मत भारत में रहने के पक्ष में पड़े। इस प्रकर सिंध प्रांत में रहने वाले लाखों हिन्दुओं के हाहाकर, चीत्कार और करुण क्रंदन को अनसुना करके समूचे सिंध को पाकिस्तान में धकेलने का निर्णय हुआ।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source