नाना साहब पेशवा ने अपने चचेरे भाई रघुनाथ राव भट्ट के साथ मल्हारराव होलकर को भी भेजा था ताकि दिल्ली को अहमदशाह अब्दाली से मुक्त करवाया जा सके। इस अभियान का सेनापति रघुनाथ राव था किंतु मल्हारराव होलकर अपनी स्वतंत्र नीति पर काम करने लगा।
जब मराठा सेनापति रघुनाथराव भट्ट तथा मल्हारराव होलकर की सेनाओं ने दिल्ली में घुसकर लाल किले के चारों अेर तोपें तैनात कर दीं तो रूहेला अमीर नजीब खाँ ने भी लाल किले की दीवारों पर तोपें चढ़वा दीं और मराठों पर गोले बरसाने लगा।
इस समय बादशाह आलमगीर (द्वितीय) की क्या स्थिति थी, इस सम्बन्ध में इतिहासकारों ने अलग-अलग तथ्य लिखे हैं। कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि आलगमीर ने नए मीर-बख्शी नजीब खाँ के विरुद्ध मराठों से सहायता मांगी। यह बात इसलिए उचित नहीं जान पड़ती कि बादशाह आलमगीर ने तो स्वयं ही पुराने मीर बख्शी इमादुलमुल्क के विरुद्ध कार्यवाही आरम्भ की थी और इमादुलमुल्क मराठों को दिल्ली पर चढ़ाकर लाया था। इसलिए यह संभव नहीं लगता कि बादशाह आलमगीर नए मीरबख्शी नजीब खाँ से छुटकारा पाने के लिए पुराने मीरबख्शी इमादुलमुल्क के पक्ष में हो जाता।
यह बात सही है कि रूहेला सरदार नजीब खाँ बादशाह आलमगीर की मर्जी से मीर-बख्शी नहीं बना था, उसे तो अहमदशाह अब्दाली ने अपने प्रतिनिधि के रूप में मुगलिया सल्तनत का मीर-बख्शी नियुक्त किया था। इसलिए यह तो संभव है कि बादशाह इस युद्ध के दौरान दोनों पक्षों से उदासीन रहा हो किंतु यह संभव नहीं है कि वह मराठों को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित करे।
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जब लाल किला चारों ओर से घेर लिया गया तथा नजीब खाँ ने आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया तब मल्हारराव होलकर तथा विट्ठल शिवदेव ने कश्मीरी गेट के उत्तरी तरफ से हमला बोला। अदपस्थ मीर बख्शी इमादुलमुल्क की सेनाएं भी इन लोगों के साथ रहीं। मानाजी पायगुढ़े ने उत्तर-पश्चिम में काबुल गेट की तरफ से लाल किले पर आक्रमण किया।
25 अगस्त 1757 को बहादुर खाँ तथा राजा नागरमल ने लाल किले पर जबर्दस्त धावा बोला और रूहेला सैनिकों को पीछे धकेल दिया। इस पर नजीब खाँ की दूर तक मार करने वाली तोपों ने आग उगलनी आरम्भ कर दी जिससे बहादुर खाँ तथा राजा नागरमल के कई सौ सिपाही मारे गए। लाल किले की दीवारों पर चढ़ी तोपों के गोलों की मार से बचने के लिए मराठा सेनाएं कुछ समय के लिए लाल किले से दूर चली गईं। नजीब खाँ ने एक बार फिर से अपने दूत रघुनाथराव तथा इमादुलमुल्क के पास भेजकर शांति का प्रस्ताव रखा। इस समय नजीब खाँ के पास लाल किले के भीतर केवल 2000 सैनिक ही बचे थे।
रघुनाथ राव ने नजीब खाँ के समक्ष शर्त रखी कि वह मीर बख्शी के पद से त्यागपत्र दे, लाल किला खाली करके अपनी जागीर रूहेलखण्ड को लौट जाए तथा युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में मराठों को 60 लाख रुपया प्रदान करे। उस समय लाल किले में इतना रुपया था ही नहीं। इसलिए नजीब खाँ को लगा कि इन शर्तों को मानने से तो अच्छा है कि मराठों से लड़ते हुए मृत्यु को गले लगा लिया जाए। इसलिए अब वह दुगने जोश से शत्रु का सामना करने को तैयार हो गया। 29 अगस्त 1757 की रात में रघुनाथ राव ने दिल्ली गेट की तरफ से तथा इमादुलमुल्क ने लाहौर गेट की तरफ से लाल किले पर हमला बोला।
मराठों की गोलाबारी से लाल किले के दिल्ली गेट की तरफ वाली दो बुर्जें ध्वस्त हो गईं। 31 अगस्त की रात्रि तक दोनों तरफ से तोपों के गोले छूटते रहे। नजीब खाँ के तोपचियों ने लाहौर गेट तथा तुर्कमानगेट की तरफ लड़ रहे इमादुलमुल्क तथा अहमद खाँ बंगश के सैनिकों को भारी क्षति पहुंचाई। नजीब खाँ द्वारा किए जा रहे जबर्दस्त प्रतिरोध के कारण ऐसा लगने लगा कि मराठों तथा इमादुलमुल्क को आसानी से लाल किले पर जीत हासिल नहीं होगी किंतु कुछ दिनों बाद लाल किले का राशन समाप्त होने लगा और भूख से बचने के लिए कुछ सैनिक गुप्त रास्तों से लाल किला छोड़कर भागने लगे।
इस पर नजीब खाँ ने मल्हारराव होलकर के पास अपने दूत भेजकर शांति की प्रार्थना की। मल्हारराव होलकर ने रघुनाथ राव और इमादुलमुल्क को संधि के लिए तैयार किया। 3 सितम्बर 1757 को कुतुब शाह एवं नजीब खाँ लाल किले से निकलकर मल्हारराव होलकर के शिविर में गए। जिस नजीब खाँ को अब्दाली अपने प्रतिनिधि के रूप में दिल्ली में छोड़ गया था, उसने मल्हारराव होलकर को अपना धर्मपिता कहकर उसके पांव पकड़ लिये तथा उसके समक्ष समर्पण करने को तैयार हो गया। मल्हार राव ने शरण में आए हुए शत्रु को क्षमा कर दिया तथा उसके साथ संधि की शर्तें तय कर लीं।
रघुनाथ राव नहीं चाहता था कि यह संधि हो क्योंकि पेशवा ने रघुनाथ राव को ही इस अभियान का कमाण्डर नियुक्त किया था जबकि शांति वार्ता मल्हारराव कर रहा था। फिर भी मल्हार राव होलकर के दबाव से दोनों पक्षों में संधि हो गई तथा 6 सितम्बर 1757 को नजीब खाँ ने लाल किला खाली कर दिया।
नजीब खाँ अपने रोहिला सैनिकों एवं अपनी निजी सम्पत्ति को लेकर दिल्ली के बाहर स्थित वजीराबाद के किले में चला गया। इस किले का निर्माण ई.1755 में नजीब खाँ ने ही करवाया था तथा इसे पत्थरगढ़ कहते थे। इसी दौरान बादशाह तथा उसका परिवार महाराजा सूरजमल की शरण में भाग गया।
रघुनाथ राव ने अब तक बंदी बनाए गए समस्त रूहेला बंदियों को मुक्त कर दिया तथा निकटवर्ती क्षेत्रों से अनाज मंगवाकर लाल किले में भूखे मर रहे नागरिकों एवं सैनिकों में बंटवाया। रघुनाथ राव ने अहमदशाह अब्दाली तथा मुगल बादशाह के बीच हुई संधि रद्द कर दी।
लाल किले में मराठों का पहरा लग गया। इमादुलमुल्क फिर से मीर बख्शी बन गया और उसने नजीब खाँ द्वारा नियुक्त रूहेला अधिकारियों को हटाकर अपने अधिकारी नियुक्त कर दिए। इस बार अहमद खाँ बंगश को बादशाह का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। मराठों ने इस दौरान दिल्ली तथा उसके आसपास की कुछ मस्जिदों को भी नष्ट किया।
कुछ ही समय बाद महाराजा सूरजमल की सेना ने दिल्ली पर आक्रमण किया। यह सेना अपने साथ बादशाह आलमगीर (द्वितीय) तथा उसके परिवार को लेकर आई थी। जाटों की सेना द्वारा मराठों पर दबाव बनाकर आलगमीर तथा उसके परिवार को फिर से लाल किले में प्रवेश दिलवा दिया गया। इसके बाद जाटों की सेना दिल्ली तथा उसके आसपास के क्षेत्रों को लूटती हुई डीग लौट गई।
रघुनाथ राव ने इस बार का दशहरा लाल किले में ही मनाया तथा उसके बाद 22 अक्टूबर 1757 को लाल किले से निकलकर गढ़-मुक्तेश्वर में गंगा-स्नान के लिए चला गया और मल्हारराव होलकर नजीब खाँ की जागीर को लूटने के लिए सहारनपुर की तरफ चला गया।
गंगा-स्नान के बाद रघुनाथराव ने पंजाब पर चढ़ाई की तथा अप्रेल 1758 में अहमदशाह अब्दाली के पुत्र तैमूरशाह को वहाँ से मार भगाया और अटक तथा पेशावर तक अपने थाने लगा दिए।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता