Saturday, July 27, 2024
spot_img

23. रानी कैकेयी ने देवासुर संग्राम में राजा दशरथ के प्राणों की रक्षा की!

राजा दशरथ ईक्ष्वाकु वंशी राजा अज के पुत्र थे एवं त्रेता युग में कौशल राज्य के राजा थे जिसकी राजधानी अयोध्या थी। राजा दशरथ का उल्लेख विभिन्न पुराणों, महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण एवं भगवान वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में हुआ है। दशरथ का शाब्दिक अर्थ होता है दस रथ अथवा दस रथों का स्वामी। वाल्मीकि रामायण के 5वें सर्ग में अयोध्या पुरी का वर्णन किंचित् विस्तार से किया गया है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर की स्थापना राजा विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु द्वारा की गई थी।

दर्शकों को स्मरण होगा कि वैवस्वत मनु ही वर्तमान मनवन्तर के मनु हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि अयोध्या नगरी वर्तमान मानव सभ्यता में धरती पर बसने वाली सबसे प्राचीन नगरी है। तब से लेकर अयोध्या में मनु के वंशज ही राजा होते आए थे जिन्हें इक्ष्वाकु राजा, सूर्यवंशी राजा एवं रघुवंशी राजाओं के नाम से सम्बोधित किया जाता था। ईक्ष्वाकु वंश की परम्परा के अनुसार राजा दशरथ परम प्रतापी एवं वीर थे।

रघुवंशी राजा दशरथ की तीन रानियां थीं- कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। महारानी कौशल्या वर्तमान छत्तीसगढ़ प्रांत के कौशल प्रदेश के राजा भानुमान की राजकुमारी थीं। वाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस तथा अनेकानेक प्राचीन संस्कृत नाटकों में कौशल्या का उल्लेख राजा दशरथ की सर्वप्रमुख रानी एवं राजकुमार रामचंद्र की माता के रूप में मिलता है किंतु आनन्द-रामायण में दशरथ एवं कौशल्या के विवाह का वर्णन विस्तार से हुआ है।

विभिन्न पुराणों में दशरथ और कौशल्या को कश्यप और अदिति का अवतार बताया गया है। रामचरित मानस सहित कुछ ग्रंथों में दशरथ और कौशल्या को स्वायंभू-मनु एवं शतरूपा का अवतार बताया गया है। जैन साहित्य में कौशल्या का वर्णन अलग ढंग से मिलता है। मुनि गुणभद्र कृत उत्तर-पुराण में कौशल्या की माता का नाम सुबाला तथा पुष्पदत्त के ‘पउम चरिउ’ में कौशल्या का दूसरा नाम अपराजिता बताया गया है।

पूरे आलेख के लिए देखिए यह वी-ब्लॉग-

लगभग समस्त पौराणिक ग्रंथों एवं रामायण में महारानी कौसल्या को अपने पति की आज्ञाकारिणी बताया गया है जो पति के प्रत्येक निर्णय को चुपचाप स्वीकार करती है किंतु महर्षि वेदव्यास रचित अध्यात्मरामायण में कौसल्या को अपने अधिकारों के प्रति सचेष्ट तथा राम को वन जाने से रोकते हुए चित्रित किया गया है।

महाराज दशरथ की दूसरी रानी सुमित्रा थीं। वे मगध नरेश की पुत्री थीं जो अयोध्या का अधीनस्थ सामंत था। सामंत पुत्री होने के कारण रानी सुमित्रा का स्तर महारानी कौसल्या की अपेक्षा नीचा था।

महाराज दशरथ की तीसरी रानी कैकेई केकय नरेश की कन्या थी। महाराज दशरथ ने केकय नरेश को परास्त करने के पश्चात् संधि की शर्त के रूप में कैकेई से विवाह किया था। इस विवाह के समय राजा दशरथ की उम्र कैकेई की अपेक्षा काफी अधिक थी। इसलिए कैकेई ने वृद्ध नरेश के साथ विवाह करने से पहले एक शर्त रखी कि कैकेई के गर्भ से जो पुत्र उत्पन्न होगा, वही अयोध्या राज्य का उत्तराधिकारी होगा।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

इस प्रकार ये तीनों रानियां आर्य राजाओं की पुत्रियां होते हुए भी अलग-अलग स्तर के राजाओं की पुत्रियां थीं तथा राजमहल में उनके सम्मान भी उन्हीं के अनुरूप थे। महारानी कौसल्या एक स्वतंत्र राजा की पुत्री थीं, इसलिए उनका सम्मान सर्वोच्च था। रानी सुमित्रा एक अधीनस्थ सामंत की पुत्री थीं इसलिए उनका सम्मान तीनों रानियों में सबसे कम था। रानी कैकेई एक पराजित राजा की पुत्री थीं किंतु उनका सम्मान सुमित्रा की अपेक्षा इसलिए अधिक था क्योंकि वह राजा की सबसे प्रिय और सबसे चहेती रानी थी।

यद्यपि सार्वजनिक रूप से जब राजा के साथ रानी को भी विराजमान होता था तो महारानी कौसल्या ही पटरानी होने के कारण महाराज के साथ विराजमान होती थीं तथापि यदि महाराज कभी अपने राज्य से बाहर जाते तो रानी कैकेई उनके साथ जाती थी। सुमित्रा की अधिकार सीमा केवल महल के भीतर तक थी।

अधिकारों का यह अंतर पुत्र-कामेष्ठि यज्ञ के समय स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इक्ष्वाकुवंशी राजाओं की कथाओं को पढ़ने से अनुमान होता है कि इस वंश के राजाओं को पुत्र की प्राप्ति सहज रूप से नहीं होती थी जिसके कारण इक्ष्वाकुवंशी राजाओं को तपस्या एवं यज्ञ आदि करके पुत्र प्राप्ति हेतु प्रयास करना पड़ता था। ठीक यही स्थिति महाराज दशरथ के साथ भी थी। उनकी तीन रानियां थीं, आयु भी पर्याप्त हो चुकी थी किंतु उनके कोई पुत्र नहीं था।

इसलिए कुलगुरु वसिष्ठ के परामर्श पर महाराज दशरथ ने श्ृंगी ऋषि को बुलवाकर पुत्र-कामेष्ठि यज्ञ करवाया। यज्ञ के पूर्ण होने पर स्वयं अग्निदेव अपने हाथों में खीर का पात्र लेकर प्रकट हुए। उन्होंने खीर का वह पात्र राजा दशरथ को दिया और कहा कि वे इस खीर को अपनी रानियों को खिला दें।

इस पर राजा दशरथ ने खीर का आधा भाग पटरानी कौसल्या को दे दिया। शेष आधे भाग के दो भाग किए। उनमें से एक भाग रानी कैकेई को दिया। इस प्रकार खीर का जो चौथाई भाग बचा, उसके दो भाग करके एक-एक भाग पुनः कौसल्या एवं कैकेई के हाथों पर रख दिए। कौसल्या एवं कैकेई की स्वीकृति लेकर राजा दशरथ ने वे दोनों छोटे भाग रानी सुमित्रा को दे दिए।

अग्निदेव की कृपा से महारानी कौसल्या के गर्भ से स्वयं श्री हरि विष्णु का अवतार हुआ जिन्हें ‘राम’ कहा गया। वे त्रेता युग में भगवान श्री हरि विष्णु के तीसरे अवतार थे। त्रेता में पहला अवतार वामन के रूप में हुआ था जिन्होंने धरती एवं स्वर्ग को राक्षसों से मुक्त करवाकर उनके राजा बलि को पाताल लोक में रहने के लिए भेजा था। दूसरा अवतार भगवान परशुराम के रूप में हुआ था जिन्होंने हैहय क्षत्रियों का विनाश करके धरती को उनके अत्याचारों से मुक्त करवाया था। तीसरा अवतार भगवान श्रीराम के रूप में हुआ जिन्होंने रावण तथा उसके पुत्रों का वध करके ऋषि-मुनियों को अभय प्रदान किया।

रानी कैकेई के गर्भ से राजकुमार भरत का जन्म हुआ। उनके लिए कहा जाता था कि साक्षात धर्म  ही मानव-देह में उपस्थित हुआ है। उन्हें भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का अवतार माना जाता था। रानी सुमित्रा के दो पुत्र हुए- लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न। लक्ष्मण को शेषनाग का एवं शत्रुघ्नजी को भगवान के हाथ में धारण किए जाने वाले शंख का अवतार माना जाता है।

वाल्मीकि रामायण में अयोध्या काण्ड के अन्तर्गत अध्याय 7 से 42 तक कैकेयी से सम्बन्धित कथा का विस्तार से वर्णन हुआ है। इसके अनुसार देवासुर एक बार देवराज इन्द्र तथा दण्डकारण्य में रहने वाले असुर शंबर के बीच भीषण युद्ध हुआ। देवताओं ने अयोध्या नरेश दशरथ को अपनी सहायता करने के लिए बुलाया। इससे पहले भी इक्ष्वाकु वंशी राजा देवासुर संग्रामों में देवों की सहायता करने के लिए जाते रहे थे।

राजा दशरथ अपनी रानी कैकेई को अपने साथ लेकर युद्ध क्षेत्र में गए। रानी कैकेई शस्त्र एवं रथ संचालन में निपुण थी। उसने महाराज के रथ पर रहकर महाराज के शरीर की रक्षा की तथा जब महाराज के रथ का धुरा टूट गया तब कैकेई ने अपना हाथ उस धुरे में फंसा दिया ताकि महाराज रथ पर टिके रहकर युद्ध कर सकें। जब असुरों ने महाराज को शस्त्रों के प्रहार से घायल कर दिया तब कैकेई राजा दशरथ के रथ को युद्ध क्षेत्र से बाहर निकाल लाई तथा महाराज को सुरक्षित रूप से अयोध्या ले आई। युद्ध समाप्त होने पर जब महाराज दशरथ को कैकेयी के इस कौशल का पता लगा, तो उन्होंने प्रसन्न होकर कैकेयी को दो वर माँगने के लिए कहा। कैकेयी ने उन वरों को यथासमय माँगने के लिये रख छोड़ा।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source