Sunday, December 8, 2024
spot_img

63. रजिया ने रणथंभौर तथा ग्वालियर के दुर्ग हिन्दुओं को सौंप दिए!

रजिया ने अपनी रक्षा के लिए अबीसीनियाई हब्शी गुलाम जमालुद्दीन याकूत को अपनी सेवा में नियुक्त किया जो हर समय रजिया का सुरक्षा कवच बनकर उसके साथ लगा रहता। इस कारण राज्य के अमीरों एवं गवर्नरों में रजिया के विरुद्ध असंतोष बढ़ गया तथा वे याकूत को मार्ग से हटाने का उपाय ढूंढने लगे।

इसके बाद रजिया ने तुर्की अमीरों के प्रभाव को कम करने के लिए तेजी से काम करना आरम्भ किया। पाठकों को स्मरण होगा कि रजिया के सुल्तान बनने पर सल्तनत का मुख्य वजीर कमालुद्दीन जुनैदी पंजाब, सिंध एवं बंगाल के गवर्नरों से जा मिला था जो सैनिक कार्यवाही के माध्यम से रजिया को दिल्ली से अपदस्थ करने का प्रयास कर रहे थे।

जब रजिया ने इन विद्रोही गवर्नरों का दमन कर दिया तो वजीर कमालुद्दीन जुनैदी, मलिक सैफुद्दीन कूची और उसके भाई फखर्रूद्दीन के साथ जंगलों में भाग गया। रजिया ने अपनी एक सेना इन विद्रोहियों के पीछे भेजी। मलिक सैफुद्दीन कूची और उसका भाई फखर्रूद्दीन इस सेना के द्वारा पकड़ लिए गए। रजिया ने उन्हें प्राणदण्ड दिया। कमालुद्दीन जुनैदी रजिया के कोप से बचने के लिये सिरमूर की पहाड़ियों में भाग गया जहाँ उसकी भी मृत्यु हो गई।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

रजिया ने अपने पिता के समय से शासन में अपनाई जा रही नीति में चुपचाप एक गुप्त परिवर्तन किया तथा उसकी सूचना किसी भी मुस्लिम अमीर को नहीं दी। रजिया ने हिन्दू राजाओं के राज्य पूर्णतः नष्ट करने की बजाय उनमें से कुछ राजाओं को फिर से उनके राज्यों में स्थापित होने का अवसर दिया ताकि हिन्दू राजाओं से मित्रता करके तुर्की अमीरों पर नियंत्रण किया जा सके। शीघ्र ही रजिया को दो ऐसे अवसर प्राप्त हो गए।

जब रजिया के पिता सुल्तान इल्तुतमिश की मृत्यु हुई थी तथा रुकनुद्दीन फीरोजशाह को नया सुल्तान बनाया गया था, तब स्वर्गीय चौहान सम्राट पृथ्वीराज के वंशजों ने रणथम्भौर के दुर्ग को घेर लिया जो कि रणथंभौर दुर्ग के पुराने शासक थे। सुल्तान रुकनुद्दीन फीरोजशाह एवं उसकी माता शाहतुर्कान, रणथंभौर दुर्ग में फंसी हुई तुर्की सेना को कोई सहायता नहीं भेज सके। इस कारण दिल्ली की तुर्की सेना रणथंभौर दुर्ग में फंस गई।

जब रजिया सुल्तान बनी तो उसने रणथंभौर दुर्ग पर घेरा डाले बैठी चौहान सेना के विरुद्ध सेना भेजने का विचार किया किंतु अचानक ही रजिया ने अपनी नीति बदल दी तथा उसने रणंभौर जाने वाली सेना को निर्देश दिया कि उसका काम राजपूतों से समझौता करके अपने सैनिकों को रणथंभौर दुर्ग से सुरक्षित बाहर निकालने का है।

To purchase this book, please click on photo.

दिल्ली से गई नई सेना ने सुल्तान के आदेशों का पालन किया तथा उसने राजपूतों से समझौता करके रणथंभौर दुर्ग उन्हें सौंप दिया और दुर्ग में फंसी हुई तुर्की सेना को दुर्ग से बाहर सुरक्षित निकाल लिया। रजिया की इस कार्यवाही को अधिकांश तुर्की अमीरों ने पसंद नहीं किया।

इसी बीच नरवर के शासक यजवपाल ने ग्वालियर पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया। यहाँ भी तुर्क सेना दुर्ग में फंस गई। इस पर रजिया ने और सेना भेजकर तुर्क सैनिकों को ग्वालियर के दुर्ग से निकलवाया और दुर्ग हिन्दुओं को सौंप दिया। तुर्की अमीरों ने रजिया की यह कार्यवाही भी पसंद नहीं की।

जहाँ रजिया हिन्दुओं के प्रति मुलायम नीति अपना रही थी, वहीं मुस्लिम अमीरों के प्रति उसका रवैया बहुत कठोर था। इस कारण नूरुद्दीन नामक एक तुर्क रजिया का घोर विरोधी हो गया। उसने दिल्ली के निकट गंगा-यमुना के दो-आब में निवास करने वाले करमत तथा इस्माइलिया मुसलमानों को सुल्तान के विरुद्ध भड़काया जिससे उन्होंने बगावत का झण्डा बुलंद कर दिया। वे हजारों की संख्या में दिल्ली के निकट इकट्ठे होने लगे। उनका निश्चय रजिया से उसका तख्त छीनकर किसी इस्माइलिया मुसलमान को दिल्ली के तख्त पर बैठाने का था।

मार्च 1237 में इस्माइलिया मुसलमानों ने एक साथ दो दिशाओं से जामा मस्जिद पर आक्रमण किया। उन्हें विश्वास था कि रजिया अवश्य ही इस समय मस्जिद में नमाज पढ़ रही होगी। इन लोगों ने मस्जिद में उपस्थित सुन्नी मुसलमानों को मौत के घाट उतारना आरम्भ कर दिया। रजिया उस समय मस्जिद में नहीं थी किंतु जैसे ही उसे इस हमले की जानकारी हुई, उसने अपने सैनिकों के साथ मस्जिद पहुंचकर करमत तथा इस्माइलिया मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया।

दिल्ली की जनता के लिये एक औरत सुल्तान का इस तेजी से कार्य करना किसी चमत्कार से कम नहीं था। बहुत से लोग फिर से रजिया के प्रशंसक बन गये। बाद में करमत एवं इस्माइलिया मुसलमानों के इलाकों में सेना भेजकर उनके ठिकाने नष्ट करवाये गए।

उन्हीं दिनों रजिया ने एक भारतीय मुसलमान को अपने दरबार में महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया। यह व्यक्ति कुछ दिन पहले ही हिन्दू से मुसलमान बना था। यह नियुक्ति तुर्की अमीरों को पसंद नहीं आई और वे रजिया को गहरी शंका की दृष्टि से देखने लगे किंतु रजिया ने उनकी परवाह नहीं की तथा तुर्की अमीरों को कड़ी आँखों से देखती रही।

रजिया के औरत होने के कारण इस बात का खतरा बहुत अधिक था कि पुरुष-प्रधान मुस्लिम सल्तनत में स्त्री सुल्तान का पद कम महत्त्वपूर्ण हो जाए तथा इल्तुतमिश द्वारा गठित चालीस गुलामों का मण्डल अथवा अन्य तुर्की अमीर सुल्तान एवं सल्तनत पर हावी हो जाएं किंतु रजिया ने सुल्तान के पद को हर हालत में सबसे ऊपर तथा महत्त्वपूर्ण बनाए रखा।

रजिया पहली सुल्तान थी जिसने पूरे आत्मविश्वास के साथ स्वयं को सुल्तान की तरह प्रस्तुत किया। एक बार शुक्रवार की नमाज पढ़ने के बाद रजिया ने कहा था- ‘यदि मैंने पुरुषों से अच्छा कार्य नहीं किया हो तो भी इतना तो है कि मैंने सुल्तान के पद को महत्त्वपूर्ण बनाए रखा।’

इस्लाम के बारे में रजिया का मानना था कि इस्लाम व्यक्तिगत आस्था का विषय है। सुल्तान अथवा सल्तनत के लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह गैर-इस्लामी रियाया को इस्लाम कबूलने के लिये विवश करे अथवा उसे तंग करे।

एक अवसर पर रजिया ने अपने दरबार में उपस्थित अमीरों और वजीरों को निर्देश दिया कि वे हिन्दू रियाया को तंग न करें। रजिया ने कहा कि स्वयं पैगम्बर मुहम्मद का कथन है कि इस्लाम न मानने वाले मनुष्यों पर ज्यादती न की जाये। रजिया की ये बातें तुर्की मुल्ला-मौलवियों को बिल्कुल भी नहीं सुहाती थीं। वे जानते थे कि यदि मुस्लिम प्रजा को रजिया की ये बातें समझ में आ जाएं तो राज्य में मुल्ला-मौलवियों की आवश्यकता ही समाप्त हो जाए।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source