Thursday, April 18, 2024
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57. सरदार को कराची सम्मेलन की अध्यक्षता का कांटों भरा ताज मिला

जब गांधीजी और अन्य कांग्रेसी नेता कराची सम्मेलन में भाग लेने कराची पहुंचे तो हजारों युवकों ने उनके विरोध में नारे लगाये। इस विकट स्थिति का सामना करना सरल नहीं था। संकट की इस घड़ी में गांधीजी ने पटेल को कांटों का ताज पहनाते हुए सम्मेलन की अध्यक्षता का दायित्व सौंपा। सरदार ने अपने पहले ही भाषण में उन हजारों युवकों का गुस्सा ठण्डा कर दिया जो नेताओं को सुनने को तैयार नहीं थे।

पटेल ने कहा कि जब आपने एक साधारण किसान को इस सम्मेलन का अध्यक्ष चुन ही लिया है तो मेरी आपसे प्रार्थना है कि गुजरात ने अब तक स्वतंत्रता आंदोलन में जो कुछ किया है, आप भी उससे प्रेरणा लेकर देश को आजाद करवाने के काम में लग जायें। सशस्त्र क्रांति में विश्वास रखने वाले युवकों की तरफ संकेत करते हुए सरदार ने कहा कि मैं उनके काम करने के तरीकों के बारे में यहाँ कुछ नहीं कहूंगा किंतु उनकी देशभक्ति, साहस और बलिदान के आगे मैं अपना शीश नवाता हूँ।

सरदार ने कहा कि हमें गांधी-इरविन पैक्ट के कुछ अच्छे परिणाम निकलने की आशा है किंतु यदि ऐसा नहीं हुआ तो आंदोलन पुनः आरम्भ किया जायेगा। इस बात पर बहुत से युवक खड़े होकर कहने लगे कि आंदोलन स्थगित करने से आजादी लेने में विलम्ब होगा।

इस पर सरदार ने कहा कि इस समय गांधीजी की आयु 63 वर्ष और मेरी आयु 56 वर्ष है। हम लोग अपने जीवन में ही देश को स्वतंत्र देखना चाहते हैं, इसलिये आपसे अधिक व्यग्र हम हैं। सरदार के इन शब्दों से युवकों का गुस्सा ठण्डा हुआ। वे बैठ गये और सम्मेलन की कार्यवाही सुचारू रूप से चल पड़ी।

गांधी ने देश की आवाज को अनसुना करके और बहुत कुछ खोकर, इरविन से समझौता किया था किंतु साम्राज्यवादी अंग्रेजों ने कांग्रेसियों को जेल से निकालकर इसलिये वार्त्ता की थी ताकि लंदन में चल रहे गोलमेज सम्मेलन में भारत संघ के निर्माण का प्रस्ताव पारित कराकर भारतीयों पर एक नया संविधान लादा जा सके जिसके माध्यम से गोरी सरकार को सम्पूर्ण भारत का संवैधानिक तरीके से शोषण करने का लाइसेंस मिल जाये।

इस सम्मेलन में गांधीजी कांग्रेस के अकेले प्रतिनिधि थे। सम्मेलन में डॉ. अम्बेडकर द्वारा प्रस्तावित संघीय संसद में दलित वर्गों के लिए तथा जिन्ना द्वारा मुसलमानों के लिये सीटें आरक्षित करने की मांगों पर अड़ जाने के कारण 1 दिसम्बर 1931 को यह सम्मेलन, बिना किसी समाधान के समाप्त हो गया।

देशी रियासतों के शासक भी अब भारत संघ का निर्माण नहीं चाहते थे क्योंकि इससे उनके राज्यों के समाप्त हो जाने का भय था। इस गोलमेज सम्मेलन की विशेषता यह रही कि इसमें भावी भारत संघ के लिये संविधान बनाने का निर्णय लिया गया। जब कांग्रेस ने गोलमेज सम्मेलन में सरकार के पक्ष का समर्थन नहीं किया तो भारत में दमन चक्र फिर से आरम्भ हो गया।

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