Tuesday, May 21, 2024
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66. सरदार ने भारतीय सैनिकों और गोरी सरकार के बीच समझौता करवाया

अंग्रेज जाति में एक मुहावरा प्रचलित था कि गोरी जाति केवल जीतने और शासन करने के लिये बनी है। जीत हासिल करने के लिये वे किसी प्रकार की नैतिकता का पालन नहीं करते थे। इसलिये द्वितीय विश्वयुद्ध में जब जर्मनी द्वारा घुटने टेक दिये जाने पर भी जापान का विजय रथ निरंतर आगे बढ़ता गया तो अमरीका ने 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर तथा 9 अगस्त 1945 को नागासाकी पर एटोमिक बम डाले।

इन बमों से जापान में लाखों लोग एक साथ मर गये। मानवाता पर यह बड़ा संकट था। जापान के सम्राट ने गोरे दैत्यों से, जापान की निरीह जनता के प्राणों की रक्षा करने के लिये 15 अगस्त 1945 को हार स्वीकार कर ली। इसके तीन दिन बाद 18 अगस्त 1945 को एक हवाई दुर्घटना में नेताजी सुभाषचंद्र बोस का निधन हो गया। इस प्रकार भारत सरकार, जापानी सेनाओं तथा आजाद हिन्द फौज दोनों की ओर से निश्चिंत हो गई।

जापान के घुटने टेक देने और नेताजी की आकस्मिक मृत्यु हो जाने के बाद आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों की बड़ी दुर्दशा हुई। भारत सरकार की सेनाएं जंगलों में शिविर लगाकर बैठे आजाद हिन्द फौज के बहुत से सिपाहियों को पकड़कर दिल्ली ले आईं। उन्हें युद्ध बंदियों की तरह रखा गया तथा उन पर लाल किले में मुकदमे चलाये गये। उन्हें फांसी की सजा दी गई। इस पर भारत की जनता ने उनकी रिहाई के लिए आन्दोलन चलाया। कांग्रेस ने इन सिपाहियों को हिंसा में विश्वास रखने वाला बताकर उनका साथ देने से मना कर दिया।

इस पर 20 जनवरी 1946 को कराची में वायुसेना के सैनिकों ने आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों के समर्थन में हड़ताल कर दी जो बम्बई, लाहौर और दिल्ली स्थित वायुसेना मुख्यालयों पर भी फैल गई। 19 फरवरी 1946 को भारतीय नौ-सैनिकों ने भी हड़ताल कर दी। 21 फरवरी 1946 को यह हड़ताल क्रांति के रूप में बदलने लगी तथा बम्बई के साथ-साथ कलकत्ता, कराची और मद्रास में भी फैल गई।

अँग्रेज अधिकारियों ने इस क्रांति का दमन करने के लिए गोलियां चलाईं। क्रांतिकारी सैनिकों ने गोलियों का जवाब गोलियों से दिया और कुछ अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला। इससे ब्रिटिश सरकार घबरा गई। बड़ी कठिनाई से सरदार पटेल ने गोरी सरकार और नौ-सैनिकों के बीच समझौता करवाया।

जब कांग्रेस को लगने लगा कि भारत में आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों के साथ बहुत बड़ी संख्या में लोगों की सहानुभूति है तब कांग्रेस ने इन सिपाहियों के लिये दिल्ली में राहत शिविर लगाये। इस विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार को अनुमान हो गया कि अब उनके लिये भारत पर शासन करना संभव नहीं रह गया है।

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