माउण्टबेटन का सुझाव था किजूनागढ़ के मसले को यूनाईटेड नेशन्स में ले जाना चाहिये अन्यथा भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ जायेगा। सरदार पटेल ने माउण्टबेटन का सुझाव मानने से मना कर दिया!
जूनागढ़ नवाब द्वारा पाकिस्तान में मिलने की घोषणा करने से जूनागढ़ की जनता में बेचैनी फैल गई तथा जनता ने नवाब की कार्यवाही का विरोध करते हुए एक स्वतन्त्र अस्थायी सरकार स्थापित कर ली। भारत सरकार ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली को तार भेजकर कहलवाया कि वह जूनागढ़ के सम्मिलन को अस्वीकृत कर दे।
लॉर्ड माउण्टबेटन ने इस तार को चीफ ऑफ द गवर्नर जनरल्स स्टाफ लॉर्ड इस्मे के हाथों कराची भिजवाया। लियाकत अली ने भारत सरकार की इस मांग को यह कहकर मानने से अस्वीकार कर दिया कि जो टेलिग्राम लॉर्ड इस्मे के साथ भेजा गया है, उस पर सम्बन्धित मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। 13 सितम्बर 1947 को पाकिस्तान सरकार ने घोषणा की कि जूनागढ़ नवाब का निर्णय मान लिया गया है तथा अब वह पाकिस्तान का हिस्सा माना जायेगा।
पाकिस्तान से एक छोटी टुकड़ी समुद्र के रास्ते जूनागढ़ को रवाना कर दी गई। पाकिस्तान की यह कार्यवाही कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के मध्य, हुए उस समझौते का उल्लंघन थी जिसमें दोनों पक्षों ने यह मान लिया था कि भारत की सीमाओं से घिरी हुई रियासतों को भारत में ही मिलना होगा।
जूनागढ़ के पाकिस्तान में मिलने की घोषणा को पाकिस्तान द्वारा स्वीकार कर लिये जाने के बाद, नवाब मुहम्मद महाबत खानजी के सैनिकों ने, जूनागढ़ राज्य की हिन्दू जनता का उत्पीड़न करना आरम्भ कर दिया ताकि बहुसंख्यक हिन्दू, जूनागढ़ छोड़कर भाग जायें। जूनागढ़ के चारों तरफ छोटी हिन्दू रियासतों का जमावड़ा था।
नवाब ने अपनी सेनाएं भेजकर इन रियासतों पर अधिकार कर लिया। उन्होंने भारत सरकार से सहायता मांगी। माउण्टबेटन ने सुझाव दिया कि इस मसले को यूनाईटेड नेशन्स में ले जाना चाहिये अन्यथा भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ जायेगा। सरदार पटेल को यह सुझाव पसंद नहीं आया। वे जूनागढ़ को कड़ा सबक सिखाकर हैदराबाद और कश्मीर को भी चुनौती देना चाहते थे।
24 सितम्बर 1947 को भारत सरकार ने काठियावाड़ डिफेंस फोर्स को जूनागढ़ के विरुद्ध कार्यवाही करने को कहा। इस सेना ने जूनागढ़ को चारों तरफ से घेर लिया। कुछ दिन बाद जब जूनागढ़ की सेना के पास रसद की कमी हो गई तब भारतीय सेना आगे बढ़ी। जूनागढ़ की जनता ने इस सेना का स्वागत किया।
24 अक्टूबर 1947 को नवाब अपने विशेष हवाई जहाज में बैठकर पाकिस्तान भाग गया। वह अपनी चार बेगमों एवं सैंकड़ों कुत्तों को हवाई जहाज में ले जाना चाहता था किंतु एक बेगम तथा बहुत से कुत्ते जूनागढ़ में ही छूट गये। नवाब अपने साथ अपने समस्त जवाहरात भी ले गया। नवाब तथा उसका परिवार कराची में बस गये। 9 नवम्बर 1947 को भारतीय सेना ने जूनागढ़ पर अधिकार कर लिया। यदि सरदार पटेल माउण्टबेटन का सुझाव मान लेते तो जूनागढ़ का भारत में विलय समय पर नहीं हो पाता तथा यह भी काश्मीर समस्या की तरह एक नासूर बन जाता।
20 फरवरी 1948 को भारत सरकार द्वारा जूनागढ़ में जनमत-संग्रह करवाया गया जिसमें रियासत की 2 लाख से अधिक जनसंख्या ने भाग लिया तथा 99 प्रतिशत जनसंख्या ने भारत में मिलने की इच्छा व्यक्त की। 17 नवम्बर 1959 को पाकिस्तान में नवाब मुहम्मद महाबत खानजी की मृत्यु हुई। जूनागढ़ का नवाब शाह नवाज भुट्टो भी पाकिस्तान चला गया जहाँ उसे कराची में बहुत बड़ी जमीन दी गई।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता