Saturday, May 18, 2024
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64. भारत छोड़ो आंदोलन में जनता की प्रतिक्रिया पर सरदार पटेल को गर्व था

जैसे-जैसे द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान का पलड़ा भारी हो रहा था, वैसे-वैसे अंग्रेज, भारतीयों के समक्ष स्वतंत्रता के आश्वासन दोहराते जा रहे थे। गोरी सरकार ने मार्च 1942 में क्रिप्स कमीशन को भारत भेजा। इस कमीशन द्वारा दिये गये प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता तो देश के कई टुकड़े हो जाते, इसलिये कांग्रेस ने क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को मानने से मना कर दिया।

एक तरफ अंग्रेज अपनी चालबाजियों से बाज नहीं आ रहे थे और दूसरी ओर जापान का विजय रथ तेजी से आगे बढ़ रहा था। कांग्रेस की ढुलमुल और गलत नीतियों से दुःखी होकर सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया तथा बर्मा की तरफ से भारत में प्रवेश कर लिया। एक समय ऐसा भी आया जब लगने लगा कि आजाद हिन्द फौज के बमवर्षक दिल्ली तक आ धमकेंगे।

उस स्थिति की कल्पना करके कांग्रेस की हालत खराब हो गई। इसलिये कांग्रेस ने कहा कि अंग्रेज तुरंत भारत छोड़कर चले जायें ताकि सुभाषबाबू, भारत पर आक्रमण करने का नैतिक अधिकार खो दें।

8 अगस्त 1942 की रात्रि में कांग्रेस ने बम्बई में अंग्रेजों भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया। गांधीजी ने इसी सम्मेलन में करो या मरो (डू ऑर डाई), अभी नहीं तो कभी नहीं (नाउ ऑर नेवर) जैसे नारे दिये। आश्चर्य इस बात पर था कि अहिंसावादी नेताओं के मन में जमा हुआ, अहिंसा का हिमालय पूरी तरह पिघल गया प्रतीत होता था।

जब कांग्रेस ने ऐसी हिंसात्मक भाषा का प्रयोग किया तो 9 अगस्त का सूर्योदय होने से पूर्व ही सरकार ने गांधी, नेहरू एवं पटेल सहित लगभग समस्त बड़े नेताओं को बंदी बना लिया तथा कांग्रेस को पुनः असंवैधानिक संस्था घोषित कर दिया। गांधीजी और सरोजिनी नायडू को पूना के आगा खाँ पैलेस में नजरबंद किया गया। पटेल, नेहरू तथा मौलाना आजाद आदि नेता अहमद नगर के दुर्ग में नजरबन्द किये गये।

नेताओं की गिरफ्तारी से जनता भड़ककर विप्लव करने पर उतर आई। कांग्रेस द्वारा 1942 के आन्दोलन की कोई तैयारी नहीं की गई थी और न ही आन्दोलन के संचालन की कोई रूपरेखा तैयार की गई थी। यह एक ऐसा आंदोलन था जिसकी घोषणा करने वाले जेल चले गये थे और जनता अपनी मर्जी से इसका संचालन कर रही थी। जनता ने रेल की पटरियां उखाड़ डालीं, रेलवे स्टेशनों पर तोड़-फोड़ की, पोस्ट ऑफिस तथा सरकारी कार्यालय जला दिये। टेलिफोन एवं टेलिग्राफ लाइनें काट डालीं।

ऐसा लगता था जैसे देश ने अहिंसा का मार्ग छोड़कर हिंसा का मार्ग अपना लिया है। जब पुलिस इन आंदोलनकारियों पर नियंत्रण न पा सकी तो उन पर हवाई जहाज से बम बरसाये गये। इस कारण बड़ी संख्या में आंदोलनकारी मारे गये। जेल जाते समय सरदार पटेल बीमार थे। इसलिये सुचेता कृपलानी उन्हें बाहर से दवायें भेजने लगीं। तीन साल बाद ई.1945 में जेल से बाहर निकलकर सरदार पटेल ने  आंदोलन के सम्बन्ध में कहा- ‘भारत में ब्रिटिश राज के इतिहास में ऐसा विप्लव कभी नहीं हुआ, जैसा पिछले तीन वर्षों में हुआ। लोगों ने जो प्रतिक्रिया की, हमें उस पर गर्व है।’

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