भारत के विभाजन के समय, सरदार पटेल पर हिन्दुओं का पक्ष लेने तथा साम्प्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया गया। मौलाना आजाद ने अपनी पुस्तक में पटेल की बहुत आलोचना की है।
हिन्दू राष्ट्रवादी शक्तियां भी उन्हें भारत का विभाजन स्वीकारने में जल्दबाजी करने का आरोप लगाती रही हैं। सुभाषचंद्र बोस के पक्षधर सरदार पटेल पर यह आरोप लगाते हैं कि उन्होंने जीवन भर गांधी का पक्ष लिया तथा गांधी के विरोधियों को कमजोर करने का काम किया। समाजवादी नेता जयप्रकाश तथा अशोक मेहता ने सरदार पटेल पर आरोप लगाया है कि वे भारतीय उद्योपतियों विशेषकर बिड़ला परिवार तथा साराभाई परिवार का व्यक्तिशः पक्ष लेते थे। कुछ इतिहासकारों ने उन पर आरोप लगाया है कि उन्होंने देशी राज्यों का एकीकरण करने के लिये, देशी राज्यों को स्व-विवेक एवं स्व-इच्छा से काम नहीं लेने दिया। इतिहास गवाह है कि पटेल पर लगाये गये समस्त आरोप निराधार हैं।
भारत के एकीकरण एवं देशी राज्यों के एकीकरण के लिये यह देश पटेल का उतना ही ऋणी है जितना कि विष्णुगुप्त चाणक्य, चंद्रगुप्त मौर्य तथा समुद्रगुप्त का। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा जे.आर.डी. टाटा का मानना था कि नेहरू की बजाय पटेल अच्छे प्रधानमंत्री सिद्ध होते। वे भारत के सफलतम गृहमंत्री थे। जनवरी 1947 के अंक में टाइम मैगजीन ने उनका चित्र अपने कवर पेज पर मुद्रित किया।
उनकी मृत्यु पर मैनचैस्टर गार्जियन ने लिखा था कि एक ही व्यक्ति विद्रोही और राजनेता के रूप में कभी-कभी ही सफल होता है परन्तु पटेल इस सम्बन्ध में अपवाद थे। पटेल की मृत्यु के बाद वर्षों तक सरकार ने पटेल के बारे में न तो कोई साहित्य प्रकाशित किया न उनकी स्मृति में कोई आयोजन किये। 1980 में अहमदाबाद में सरदार पटेल राष्ट्रीय स्मारक की स्थापना की गई। 1991 में उन्हें भारत रत्न दिया गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता