Saturday, July 27, 2024
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91.मुल्लाओं ने बादशाह से कहा कि वह कामरान को मार दे!

सिंधु और झेलम नदी के बीच में बड़ी संख्या में गक्खर लोग रहा करते थे जो अत्यंत युद्धप्रिय थे। कुछ इतिहासकारों ने इन्हें खोखर कहा है। उन्हीं के नाम पर यह क्षेत्र गक्खड़ प्रदेश, घक्कर प्रदेश अथवा खोखर प्रदेश कहलाता था। किसी समय ये लोग हिन्दू थे किंतु ई.712 से लेकर ई.1555 तक की दीर्घ अवधि में बेरहम समय के थपेड़े खाकर इनमें से बहुत से लोग इस्लाम स्वीकार करने का विवश हुए। इन्हें महमूद गजनवी, मुहम्मद गौरी तथा तैमूर लंग जैसे प्रबल आक्रांताओं से युद्ध करना पड़ा था। आज भी भारत में गक्खर एवं खोखर उपजातियां रहती हैं जो स्वयं को जाट बताती हैं। गक्खर एवं खोखर उपजाति के कुछ लोग स्वयं को राजपूत बताते हैं तो इन उपजातियों के लोग मुसलमान भी हैं।

काश्मीर के सुल्तान जैनुल ओबेदीन के समय गक्खर का यह विशाल प्रदेश काश्मीर राज्य के अधीन था किंतु जैनुल की मृत्यु के बाद गजनी के गवर्नर मलिक किद ने गक्खर के काफी बड़े हिस्से पर अधिकार कर लिया था। चूंकि उस समय गजनी काबुल के अधीन था इसलिए तब से गक्खर प्रदेश भी काबुल राज्य के अंतर्गत माना जाता था। मलिक किद ने अपने पुत्र पीर खाँ को गक्खर प्रदेश का शासक नियुक्त किया था। पीर खाँ के मरने पर पीर खाँ का पुत्र तातार खाँ गक्खर का शासक हुआ।

गजनी का गवर्नर मलिक किद बाबर के किसी पूर्वज का निकट सम्बन्धी था। इस नाते मलिक किद के वंशज बाबर तथा उसके पुत्रों के प्रति अत्यंत निष्ठा रखते थे। जब बाबर भारत पर आक्रमण करने आया तो गक्खर के शासक तातार खाँ ने पानीपत तथा खानवा के युद्धों में बाबर का साथ दिया था।

जब ई.1540 में मिर्जा हुमायूँ को आगरा एवं दिल्ली छोड़कर सिंध की तरफ भागना पड़ा था तब शेरशाह सूरी ने तातार खाँ के राज्य पर आक्रमण करके गक्खर प्रदेश को छीनने का प्रयास किया था किंतु वह तातार खाँ को परास्त नहीं कर सका था।

शेरशाह सूरी के बाद जब शेरशाह का पुत्र इस्लामशाह सूरी सुल्तान हुआ तब इस्लामशाह ने भी तातार खाँ पर आक्रमण किया किंतु इस्लामशाह को भी सफलता नहीं मिली थी।

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जब मिर्जा मिर्जा कामरान मानकोट से भागकर गक्खरों के प्रदेश में पहुंचा तो तातार खाँ का पुत्र सुल्तान आदम गक्खर प्रदेश का शासक था। वह भी हुमायूँ को अपना बादशाह मानता था। अतः सुल्तान आदम ने कामरान को पकड़कर हुमायूँ के सुपुर्द करने की योजना बनाई। जब कामरान ने सुल्तान आदम से सम्पर्क किया तो सुल्तान आदम ने उसकी बड़ी आवभगत की तथा उसे अपने पास रख लिया ताकि आसानी से हाथ आया हुआ कामरान इधर-उधर न भाग जाए।

सुल्तान आदम ने अपने कुछ आदमियों को कामरान की सेवा में रख दिया। देखने में तो वे सेवक लगते थे किंतु वास्तव में वे सुल्तान आदम के सैनिक थे जो इस बात को सुनिश्चित करते थे कि कामरान यहाँ से भाग न जाए। सुल्तान आदम ने बादशाह हुमायूँ के पास प्रार्थना-पत्र भिजवाया कि मिर्जा कामरान हमारे पहरे में है, अतः आप यहाँ आकर कामरान का उपचार करें।

जब कामरान को ज्ञात हुआ कि सुल्तान आदम ने कामरान के साथ छल किया है, तब कामरान ने भी एक योजना बनाई। उसने हुमायूँ के पास पत्र भेजकर निवेदन किया कि मैं बादशाह की सेवा में आ रहा था किंतु मुझे गक्खरों ने पकड़ लिया है। इसलिए आप यहाँ आकर मुझे इनकी कैद से मुक्त करवाएं। कामरान को लगता था कि अपने भाई की पीड़ा के बारे में जानकर हुमायूँ अवश्य ही कामरान को गक्खरों से छुड़ाएगा तथा गक्खरों को दण्डित करेगा।

सुल्तान आदम का पत्र पाकर हुमायूँ ने गक्खर प्रदेश पर अभियान करने का निश्चय किया। ई.1541 में हुमायूँ भारत भूमि को छोड़कर अफगानिस्तान आया था। इस घटना को अब 12 साल का समय हो चुका था। तब से ही हुमायूँ की बड़ी इच्छा थी कि वह एक फिर से भारत पर अभियान करे। चूंकि गक्खरों का यह प्रदेश भारत की भूमि पर स्थित था इसलिए हुमायूँ ने स्वयं ही इस अभियान पर जाना निश्चित किया।

उसने काबुल का शासन ख्वाजा जलालुद्दीन महमूद नामक एक अमीर को सौंपा तथा स्वयं अकबर को अपने साथ लेकर सिंधु नदी की तरफ चला। सिंधु नदी पर पहुंचकर हुमायूँ ने गक्खर प्रदेश के शासक सुल्तान आदम को पत्र भिजवाया कि हम सिंधु नदी तक आ गए हैं, तुम तुरंत हमारी सेवा में आओ।

सुल्तान आदम बादशाह की सेवा में उपस्थित हुआ। हुमायूँ ने कामरान को भी वहीं बुलवा लिया। जब कामरान बादशाह की सेवा में उपस्थित हुआ तो हुमायूँ बड़ा प्रसन्न हुआ। पहले की ही तरह हुमायूँ ने अपने भाई को गले लगा लिया। कामरान से मिलने की प्रसन्नता में हुमायूँ के शिविर में रात भर जश्न मनाया गया।

हुमायूँ के दरबारियों ने हुमायूँ के ऐसे रंग-ढंग देखे तो उन्हें बड़ा क्षोभ हुआ। जिस कामरान के कारण बादशाह तथा उसके अमीरों एवं उनके परिवार के लोगों के प्राण कई बार संकट में पड़ चुके थे, बादशाह उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही करने को तैयार नहीं था। इस पर दरबारियों ने एकत्रित होकर बादशाह से निवेदन किया कि न्याय की दृष्टि से ऐसे दुष्ट व्यक्ति को मार देना ही उचित है। यह आपका भाई नहीं है, शत्रु है। आपके इस काम से अल्लाह को प्रसन्नता होगी।

हुमायूँ ने अपने दरबारियों की यह बात मानने से अस्वीकार कर दिया तथा उनसे कहा कि मरहूम बादशाह बाबर ने इस संसार को छोड़ते समय मुझे आदेश दिया था कि मैं अपने भाइयों को क्षमा करूं चाहे वे मेरे विरुद्ध कितना भी अपराध क्यों न करें। मैं कुछ भी कर सकता हूँ किंतु अपने मरहूम पिता के आदेशों की अवहेलना नहीं कर सकता।

इस पर समस्त दरबारियों ने एकराय होकर मुल्लाओं से सम्पर्क किया तथा उनसे एक कागज लिखवाया जिसमें कहा गया था कि इस्लाम के कानून के अनुसार ऐसे व्यक्ति का वध करना ही उचित है। इस कागज पर बहुत बड़ी संख्या में मुल्लाओं से हस्ताक्षर करवाए गए। जब यह कागज हुमायूँ के समक्ष प्रस्तुत किया गया तो हुमायूँ ने उन्हें बुलाकर उनसे विचार-विमर्श किया तथा मुल्लाओं को इस बात पर सहमत कर लिया कि कामरान की आंखें फोड़ कर उसके प्राण बख्श दिए जाएं।

जब कामरान को बादशाह के इस निर्णय की जानकारी मिली तो उसने बादशाह से कहलवाया कि जिन लोगों ने आपको यह सलाह दी है, उन्हीं लोगों ने मेरी यह हालत की है किंतु बादशाह ने कामरान को कोई जवाब नहीं दिया।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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