Sunday, December 8, 2024
spot_img

97. नियति के मोहरे

उधर सुलताना ने और इधर खानखाना ने योजना के अनुसार जल्दी-जल्दी सियासी मोहरे इधर से उधर किये। सुलताना ने अभंगखाँ हबशी को पंद्रह हजार घुड़सवारों सहित किले से बाहर निकाल कर चित्तार की तरफ से दानियाल पर आक्रमण करने भेजा तथा चीतेखाँ हबशी को किले की आंतरिक सुरक्षा के लिये नियुक्त किया।

खानखाना ने दानियाल से अनुमति लेकर चाँद से संधि की बात चलाई। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार खानखाना बहादुर निजामशाह को लेकर बुरहानपुर के लिये रवाना हुआ जहाँ अकबर स्वयं डेरा डाले हुए था और युद्ध की समस्त प्रगति पर निगाह रख रहा था।

इधर खानखाना अपने सियासी मोहरों के घर बदल रहा था और उधर नियति अपने मोहरों के घर तेजी से बदलने में लगी हुई थी। इधर खानखाना बहादुर निजामशाह को लेकर बुरहानपुर के लिये रवाना हुआ और उधर राजू दखनी ओर अम्बरचम्पू हबशी ने शाहअली के बेटे मुर्तिजा निजामशाह को अहमदनगर का स्वामी घोषित करके बादशाही थानों पर धावा बोल दिया।

खानखाना बहादुर निजामशाह को लेकर बादशाह की सेवा में हाजिर हुआ और चाँद सुलताना का संदेश पढ़कर सुनाया कि यदि बादशाह अहमदनगर राज्य की सुरक्षा करे तो चाँद मुगलों की अधीनता स्वीकार कर लेगी।

बादशाह चाँद सुलताना के पत्र और बहादुर निजामशाह को अपनी सेवा में देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने दानियाल का विवाह खानखाना की बेटी जाना बेगम से करने की घोषणा की और पूरी तरह संतुष्ट होकर आगरा लौट गया।

अभंगखाँ हबशी जो स्वयं को चाँद सुलताना का विश्वसनीय आदमी बताते हुए थकता नहीं था, उसने चित्तार पहुँच कर अपना इरादा बदल लिया और अपने डेरों में खुद आग लगाकर जुनेर के किले को भाग गया। चाँद ने यह समाचार सुना तो सिर पीटकर रह गयी लेकिन जब चाँद सुलताना ने मुर्तिजा निजामशाह, राजू दखनी और अम्बरचम्पू को पूरी तरह नालायकी पर उतरा हुआ देखा तो उसने सोचा कि यह ठीक ही हुआ जो अभंगखाँ जुनेर चला गया। चाँद ने अपने किलेदार चीतेखाँ हबशी से विचार विमर्श किया कि इन बदली हुई परिस्थितयों में बेहतर है कि किला दानियाल को सौंप दिया जाये और राजकीय कोष तथा राज्य सामग्री लेकर जुनेर के किले को चला जाये ताकि वहाँ हमारी सुरक्षा अधिक अच्छी तरह से हो सके।

चीतेखाँ हबशी ने यह बात सुनते ही सबको यह कहना आरंभ कर दिया कि चाँद सुलताना तो मुगलों से मिल गयी है और उनको किला सौंपती है। चीतेखाँ ने  किले से बाहर नियुक्त दक्खिनियों से सम्पर्क किया और उनके लिये किले के गुप्त मार्ग खोल दिये। जब दक्खिनी किले में प्रवेश कर गये तो हबशी भी उनसे जा मिले। इन लोगों ने मिलकर उसी दिन चाँद सुलताना की हत्या कर दी।

जब खानखाना बुरहानपुर से बहादुर निजामशाह को लेकर अहमदनगर लौटा तो उसने मार्ग में चाँद की हत्या का समाचार सुना। इस समाचार को सुनकर खानखाना के दुःख का पार न रहा। उसके मुँह से बरबस ही निकला- ‘रहिमन मनहिं लगाहि के, देखि लेहु किन कोय। नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय। ‘[1]


[1]  कोई किसी से भी प्रेम करले, उससे क्या होता है? मनुष्य के वश में क्या है? जो कुछ है नारायण की इच्छा के अधीन है।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source