Saturday, July 27, 2024
spot_img

96. उलूग खाँ कर्ण बघेला की रानी को उठा लाया!

ई.1299 में अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना ने गुजरात-अभियान पर जाने के लिए थार मरुस्थल में स्थित जालोर राज्य से होकर जाने की अनुमति मांगी किंतु जालोर के राजा कान्हड़देव चौहान ने अल्लाउद्दीन की सेना को अपने राज्य से होकर निकलने से मना कर दिया। इसका कारण यह था कि पहले भी महमूद गजनवी ने सोमनाथ पहुंचकर देवविग्रह को नष्ट किया था अतः कान्हड़देव को भय था कि इस बार भी दिल्ली के सुल्तान की सेना सोमनाथ को भंग करेगी।

राजा कान्हड़देव अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति का राजा था। वह अपने पूर्ववर्ती राजाओं उयसिंह चौहान, चाचिग देव चौहान तथा सामन्तसिंह की अपेक्षा अधिक प्रबल था। उसकी प्रजा उससे इतना अधिक प्रेम करती थी कि उसे भगवान श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता था। जब जालोर के प्रबल राज्य ने अल्लाउद्दीन की सेना को रास्ता नहीं दिया तो अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना सिंध के रास्ते जैसलमेर के भाटी राज्य में घुसी। यह वही रास्ता था जिस पर चलकर महमूद गजनवी गुजरात पहुंचा था।

भाटियों ने अल्लाउद्दीन की सेना का मार्ग रोका किंतु भाटी अधिक समय तक प्रतिरोध नहीं कर सके। अल्लाउद्दीन की कुछ सैनिक टुकड़ियां मेवाड़ होकर तथा कुछ टुकड़ियां जालोर राज्य के भीतर होकर भी गुजरीं थीं क्योंकि कुछ ग्रंथों में आए उल्लेखों के अनुसार मेवाड़ तथा जालोर दोनों ही राज्यों की सेनाओं ने अल्लाउद्दीन की सेना से युद्ध करके उन्हें भारी हानि पहुंचाई थी।

अल्लाउद्दीन के अमीर उलूग खाँ तथा नुसरत खाँ ने गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ा को घेर लिया। ‘तारीखे मुबारकशाही’ के अनुसार गुजरात के शासक कर्ण बघेला के पास उस समय 30,000 घुड़सवार, 80,000 पैदल सेना तथा 30 हाथी थे किंतु राजा कर्ण बघेला ने स्वयं को तुर्क सेना से मुकाबला करने में असमर्थ जानकर अपनी राजधानी अन्हिलवाड़ा छोड़ दी तथा अपनी पुत्री देवल देवी के साथ देवगिरी के राजा रामचन्द्र की शरण में भाग गया।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

कुछ अन्य स्रोतों के अनुसार राजा कर्ण बघेला की रानी कमलावती ने अन्हिलवाड़ा छोड़ने से मना कर दिया तथा वह कुछ साहसी सैनिकों के साथ शत्रु-सेना का सामना करने को तैयार हो गई। कहा जाता है कि राजकुमारी देवलदेवी भी अपनी माँ के साथ रहकर शत्रु-सेना से युद्ध करना चाहती थी किंतु राजा कर्ण उसकी सुरक्षा के लिए इतना अधिक चिंतित था कि वह अपनी पुत्री का हाथ पकड़कर उसे घसीटता हुआ महल से बाहर ले गया तथा देवगिरि के लिए रवाना हो गया।

यहाँ इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि 30 हजार घुड़सवार तथा 80 हजार पैदल सेना के होते हुए भी राजा कर्ण अपनी राजधानी छोड़कर भाग क्यों गया जबकि अन्हिलवाड़ा के राजा अपने शत्रुओं से युद्ध करने के भलीभांति अभ्यस्त थे। पाठकों को स्मरण होगा कि अन्हिलवाड़ा के चौलुक्यों ने ई.1178 में मुहम्मद गौरी को परास्त किया था। यहाँ तक कि अन्हिलवाड़ा के चौलुक्यों ने मालवा के परमारों एवं चित्तौड़ के गुहिलों को भी एक से अधिक बार परास्त किया था।

To purchase this book, please click on photo.

बघेल राजा भी कम पराक्रमी नहीं थे। फिर भी यदि बघेल राजा कर्ण को इस तरह भाग जाना पड़ा तो इसके दो मुख्य कारण थे। पहला यह कि राजा कर्ण का अपने ही मंत्रियों से झगड़ा चल रहा था और मंत्रीगण कर्ण को सबक सिखाना चाहते थे।

दूसरा यह कि अन्हिलवाड़ा का दुर्ग एक स्थल दुर्ग था जिसमें रहकर शत्रु का सामना नहीं किया जा सकता था। यही कारण था कि जब ई.1025 में महमूद गजनवी ने अन्हिलवाड़ा पर आक्रमण किया था तो राजा भीम सोलंकी भी अन्हिलवाड़ा को छोड़कर कंठकोट के दुर्ग में चला गया था और उसने सोमनाथ के मंदिर में महमूद से युद्ध किया था।

तीसरा यह कि मुस्लिम लेखकों ने बघेल राजा की सेना में घुड़सवारों एवं पैदल सैनिकों की संख्या बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताई है। बघेल राजा के पास इतने सैनिक रहे होते तो वह अवश्य ही मरने-मारने को तैयार हो जाता।

अल्लाउद्दीन के भाई उलूग खाँ तथा अल्लाउद्दीन के भांजे अमीर नुसरत खाँ ने अन्हिलवाड़ा नगर में प्रवेश करते ही कत्लेआम मचा दिया। देखते ही देखते हजारों मनुष्यों के शव धरती पर बिछ गए। जब अलाउद्दीन की सेना ने राजा कर्ण बघेला के महल में प्रवेश किया तो उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि रानी कमलावती ने मुट्ठी भर सिपाहियों के साथ मोर्चा संभाल रखा था।

राजा कर्ण बघेला की रानी कमलावती अप्रतिम सौंदर्य की स्वामिनी थी। उलूग खाँ ने अपने सनिकों से कहा कि वे रानी पर वार नहीं करें अपितु उसे जीवित ही पकड़ लें। खिलजी सैनिकों के थोड़े से परिश्रम से रानी पकड़ ली गई। तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने रानी कमलावती द्वारा किए गए प्रतिरोध का उल्लेख नहीं करके केवल इतना ही लिखा है कि राजा कर्ण इतनी शीघ्रता से भागा कि रानी कमलावती वहीं छूट गई और मुसलमानों के हाथ लग गई किंतु यह तर्क गले नहीं उतर सकता। यदि रानी उस समय छूट गई थी तो बाद में भी जा सकती थी। अतः वास्तविकता यही लगती है कि रानी छूटी नहीं थी अपितु उसने पलायन करने से इन्कार किया था और वह शत्रु सेना से युद्ध करना चाहती थी।

उलूग खाँ ने अन्हिलवाड़ा को जमकर लूटा तथा उसके बाद सोमनाथ के लिए रवाना हुआ। उलूग खाँ ने सोमनाथ के उस मंदिर को भी लूटा और तोड़ा जिसे गुजरात के हिन्दुओं ने महमूद गजनवी द्वारा किए गए विध्वंस के बाद फिर से बना लिया था। सोमनाथ शिवलिंग के कुछ टुकड़े एक हाथी के पैर में बांध दिए गए ताकि उसे घसीटते हुए दिल्ली ले जाया जा सके।

सोमनाथ को लूटने के बाद उलूग खाँ खम्भात गया। यहाँ एक आदमी उलूग खाँ के पास कुछ गुलामों को पकड़कर बेचने के लिए लाया। उलूग खाँ ने एक सुदंर गुलाम लड़के को एक हजार दीनार में खरीदा।

उलूग खाँ की सेना गुजरात से मिली लूट की अपार सम्पत्ति एवं बहुमूल्य देवप्रतिमाएं ऊंटों, खच्चरों एवं बैलगाड़ियों में लादकर दिल्ली ले गई। जब उलूग खाँ दिल्ली पहुंचा तो उसने सुल्तान के सामने सोने-चांदी तथा हीरे-मोतियों के ढेर लगा दिए और रानी कमलावती एवं एक हजार दीनार में खरीदे गए गुलाम को सुल्तान के सामने प्रस्तुत किया।

अल्लाउद्दीन ने कमलावती को अपने हरम में शामिल कर लिया तथा गुलाम को अपना अंगरक्षक बना लिया। हजार दीनार में खरीदे जाने के कारण इस गुलाम को हजार दीनारी कहा जाता था। कुछ समय बाद अल्लाउद्दीन ने इस गुलाम को मलिक बना दिया तथा उसका नाम काफूर रखा। इस प्रकार वह मलिक काफूर कहलाने लगा।

कुछ इतिहासकारों ने मलिक काफूर को हिंजड़ा बताया है जबकि इब्नबतूता ने लिखा है कि मलिक काफूर गुजरात के खंभात में रहने वाले धनी हिंजड़े ख्वाजा का हिन्दू गुलाम था जिसे इस्लाम में परिवर्तित करके अल्लाउद्दीन खिलजी को प्रस्तुत किया गया था। उस काल में ख्वाजाओं को खोजा भी कहा जाता था। इब्नबतूता के अनुसार इस गुलाम को 1000 दीनार में खरीदा गया था।

आचार्य चतुरसेन ने लिखा है कि मलिक काफूर सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी की पुरुष-रखैल था। वह कुछ ही दिनों में सुल्तान के इतने निकट पहुंचा गया कि मलिक काफूर उलूग खाँ की आँख की किरकिरी बन गया किंतु मलिक काफूर सल्तनत का प्रधानमंत्री बन गया और सुल्तान का भाई उलूग खाँ कुछ भी नहीं कर सका। जब उलूग खाँ और नुसरत खाँ गुजरात को लूटकर वापस दिल्ली चले गए तब राजा कर्ण बघेला ने देवगिरि के राजा रामचंद्र की सहायता से गुजरात के कुछ क्षेत्रों पर फिर से अधिकार कर लिया। वह ई.1304 तक पर शासन करता रहा।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source