30 अप्रेल 1236 को सुल्तान इल्तुमिश की मृत्यु हो गई। उसने शहजादी रजिया फीरोजशाह को अपनी उत्तराधिकारी घोषित किया किंतु तुर्की अमीरों ने रजिया के निकम्मे एवं अयोग्य भाई रुकुनुद्दीन फीरोजशाह को सुल्तान बनाने का निश्चय किया।
शहजादी रजिया के पिता इल्तुतमिश के द्वारा की गई व्यवस्था के अनुसार शहजादी रजिया को सुल्तान बनना था किंतु इतिहास को यह निर्णय इतनी आसानी से स्वीकार्य नहीं था। तुर्क शासकों में उत्तराधिकार के नियम निश्चित नहीं थे। सुल्तान के मरते ही सल्तनत के ताकतवर अमीरों में संघर्ष आरम्भ हो जाता था और विजयी अमीर सल्तनत पर अधिकार कर लेता था। यहाँ तक कि सुल्तान के प्रतिभाशाली पुत्र भी प्रायः राज्याधिकार से वंचित रह जाते थे।
इल्तुतमिश का योग्य एवं बड़ा पुत्र नासिरुद्दीन महमूद, इल्तुतमिश के जीवनकाल में ही मर गया था। उसका दूसरा पुत्र रुकुनुद्दीन निकम्मा और अयोग्य था तथा अन्य सभी पुत्र अवयस्क थे। इन सब बातों को सोच कर ही इल्तुमिश ने रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।
तुर्की अमीरों द्वारा शहजादी रजिया का विरोध
जब इल्तुतमिश की मृत्यु हुई तो तुर्की अमीर, एक औरत को सुल्तान के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए। भारत में मुस्लिम सुल्तान, अरब के खलीफा के प्रतिनिधि के रूप में शासन करते थे। अरब वालों के रिवाजों के अनुसार औरत, मर्दों के द्वारा भोगे जाने के लिये बनाई गई थी न कि शासन करने के लिये।
इस कारण मर्द अमीरों के लिए, औरत सुल्तान का अनुशासन मानना बड़े शर्म की बात थी। इल्तुतमिश के अमीरे हाजिब (प्रधानमंत्री) मुहम्मद जुनैदी ने रजिया का विरोध किया।
रुकुनुद्दीन फीरोजशाह की ताजपोशी
30 अप्रेल 1236 को इल्तुतमिश के सबसे बड़े जीवित पुत्र रुकुनुद्दीन फीरोजशाह को तख्त पर बैठा दिया। अमीरों के फैसले के आगे रजिया हाथ मलती रह गई और तख्त रुकुनुद्दीन फीरोजशाह के हाथ लग गया।
तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार रुकुनुद्दीन रूपवान, दयालु तथा दानी सुल्तान था परन्तु उसमें दूरदृष्टि नहीं थी। वह प्रायः मद्यपान करके दरबार में बैठकर रक्कासाओं के नाच देखा करता था और प्रायः हाथी पर चढ़कर दिल्ली की सड़कों पर चमकदार स्वर्ण-मुद्राएँ बाँटा करता था। वह अपने पिता इल्तुतमिश के जीवन काल में बदायूँ तथा लाहौर का गवर्नर रह चुका था परन्तु उसने सुल्तान बनने के बाद मिले अवसर से कोई लाभ नही उठाया और दिन रात मद्यपान तथा भोग-विलास में डूबा रहा।
मद्यपान में धुत्त रहने के कारण रुकुनुद्दीन राज्य कार्यों की उपेक्षा करता था। इस कारण उसकी माँ शाह तुर्कान ने शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली। शाह तुर्कान का जन्म अभिजात्य तुर्कों में न होकर निम्न समझे जाने वाले मुसलमानों में हुआ था। वह अपने दैहिक सौन्दर्य के बल पर इल्तुतमिश जैसे प्रबल सुल्तान की बेगम बनी थी और अब रुकुनुद्दीन जैसे निकम्मे सुल्तान की राजमाता बन गई थी। इसलिये तुर्कान के विरुद्ध भी षड़यंत्र आरम्भ हो जाने निश्चित ही थे।