ऐतिहासिक दृष्टि से पानीपत का दूसरा युद्ध मुगल बादशाह अकबर तथा दिल्ली के शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य के बीच हुआ किंतु वस्तुतः यह युद्ध बैरम खाँ तथा हेमचंद्र विक्रमादित्य के बीच लड़ा गया।
पानीपत का दूसरा युद्ध
हेमू का उत्कर्ष
हेमू का असली नाम हेमराज था। वह धूसर जाति का बनिया था। कुछ इतिहासकार उसे गौड़ ब्राह्मणों की एक शाखा से मानते हैं। उनके अनुसार हेमू रेवाड़ी में शोरे का व्यापार करता था। इसलिये कुछ इतिहासकारों ने उसे बनिया कहा है। हेमू प्रतिभावान् व्यक्ति था। उसने सुल्तान इस्लामशाह का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया।
इस्लामशाह ने उसे दिल्ली के बाजारों का निरीक्षक नियुक्त किया। हेमू उन्नति करता हुआ शाही रसोई का निरीक्षक बन गया। वह सैनिकों को भी रसद देता था। कुछ दिनों बाद वह लगान का कनिष्ठ अधिकारी बन गया। बाद में अफगान सेना में उसे कनिष्ठ पद मिल गया।
इस्लामशाह की मृत्यु के उपरान्त हेमू ने सुल्तान आदिल शाह को प्रसनन कर लिया और वह उसका प्रधानमन्त्री तथा प्रधान सेनापति बन गया। हिन्दू होते हुए भी वह सुल्तान आदिल शाह का इतना विश्वासपात्र बन गया। अफगान सरदार उसे आदर की दृष्टि से देखते थे और प्राण-पण से उसकी अध्यक्षता में लड़ने के लिए तैयार रहते थे।
हेमू का आक्रमण
जब हेमू ने सुना कि हुमायूँ मर गया तो वह विशाल सेना लेकर तेजी से दिल्ली की ओर बढ़ा। इस कारण दिल्ली का गवर्नर तार्दी बेग अत्यंत भयभीत हो गया। बैरमखाँ ने अपने सर्वाधिक योग्य सेनापति पीर मुहम्मद शर्वानी को कुछ अन्य लोगों के साथ तार्दी बेग को ढाढ़स देने के लिए दिल्ली भेजा।
इस बीच तार्दी बेग ने आगरा के प्रान्तीय गवर्नर को भी दिल्ली बुला लिया। हेमू भी अपनी सेना के साथ दिल्ली के समीप आ डटा। मुगल तथा अफगान सेनाओं में भीषण संग्राम युद्ध हुआ। प्रारंभ में मुगलों को अच्छी सफलता मिली परन्तु बाद में वे हारने लगे। पीर मुहम्मद लड़ाई के मैदान से भाग खड़ा हुआ। हेमू ने दिल्ली, आगरा तथा संभल पर अधिकार कर लिया।
बैरम खाँ द्वारा तार्दी बेग की हत्या
बैरम खाँ ने तार्दी बेग को उसकी कायरता का दण्ड देने के लिये अपने खेमे में बुलवाया और उसका वध कर दिया। वृद्ध तुर्की अमीर की हत्या से तुर्की अमीरों में सनसनी फैल गई और वे बैरमखाँ को संदेह की दृष्टि से देखने लगे परन्तु इस संकट काल में समस्त अमीर संगठित रहे और यह निश्चित किया गया कि किसी योग्य व्यक्ति को सिकन्दरशाह पर कड़ी निगाह रखने के लिए छोड़ दिया जाय और शाही सेना दिल्ली के लिए प्रस्थान करे।
अली कुली खाँ द्वारा हेमू के तोपखाने पर अधिकार
शाही सेना तेजी से दिल्ली की ओर बढ़ी। अनुभवी तथा दक्ष सेनापति अली कुली खाँ को दस हजार अश्वारोहियों के साथ आगे भेजा गया। संयोगवश अली कुली खाँ हेमू के तोपखाने के पास पहॅुंच गया और उसने हेमू के तोपखाने पर अधिकार कर लिया। यह हेमू की बहुत बड़ी गलती थी कि उसने अपने तोपखाने की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था किये बिना ही आगे भेज दिया था परन्तु इस दुर्घटना से हेमू का साहस भंग नहीं हुआ। वह अपनी सेना के साथ पानीपत के मैदान में आ डटा।
बैरम खाँ द्वारा हेमू की हत्या
5 नवम्बर 1556 को हेमू की सेना का मुगल सेना के साथ भीषण संग्राम आरम्भ हुआ। हेमू की सेना में बड़ा उत्साह था और वह बड़ी वीरता से लड़ रही थी। धीरे-धीरे हेमू की सेना को सफलता मिलने लगी और मुगलों के पैर उखड़ने लगे। युद्ध का निर्णय हेमू के पक्ष में जाता हुआ दिखाई देने लगा किंतु दुर्भाग्यवश हेमू की आँख में एक तीर लगा और वह बेहोश होकर हाथी के हौदे में गिर पड़ा।
तत्काल ही यह सूचना चारों ओर फैल गई कि हेमू मर गया। फलतः उसकी सेना में भगदड़ मच गई। हेमू के हाथी के महावत ने हेमू को रणक्षेत्र से दूर ले जाने का प्रयास किया किंतु शाहकुली खाँ नामक एक सिपाही ने उसे पकड़ लिया। बेहोश हेमू को अकबर के सामने ले जाया गया।
बैरमखाँ ने बादशाह से कहा कि वह अपनी तलवार से हेमू का सिर उड़ा दे। अकबर ने बेहोश आदमी पर तलवार उठाना उचित नहीं समझा। इसलिये उसने अपनी तलवार से हेमू का गला स्पर्श किया। उसी समय बैरमखाँ ने अपनी तलवार से हेमू का सिर धड़ से अलग कर दिया।
हेमू की पराजय के कारण
हेमू एक अनुभवी सेनापति था। उसने अपने स्वामी के लिए चुनार से दिल्ली तक बाईस युद्ध किये थे। वह किसी में भी युद्ध में परास्त नहीं हुआ था परन्तु पानीपत की दूसरी लड़ाई में भाग्यलक्ष्मी ने उसका साथ नहीं दिया जिससे वह परास्त हो गया।
उसकी पराजय के दो बड़े कारण कारण थे। पहला कारण अनायास ही उसके तोपखाने का हाथ से निकल जाना और दूसरा कारण उसकी आँख में अचानक तीर लग जाना था। इस प्रकार दुर्याेगवश हेमू को पराजय और संयोगवश अकबर को विजय प्राप्त हुई।
डॉ. आर. पी. त्रिपाठी ने लिखा है- ‘हेमू की पराजय एक दुर्घटना थी और अकबर की विजय दैवीय संयोग था।’
पानीपत की दूसरी लड़ाई के परिणाम
पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू की पराजय का भारतीय इतिहास पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। इस युद्ध के बाद मुगलों की सत्ता दिल्ली तथा आगरा पर दृढ़तापूर्वक स्थापित हो गई और शेष भारत की विजय का मार्ग साफ हो गया।
दिल्ली एवं आगरा पर अधिकार
6 नवम्बर 1556 को अकबर ने विजयी सेना के साथ दिल्ली में प्रवेश किया। इसके बाद अकबर की सेना ने आगरा पर भी अधिकार कर लिया।
आदिलशाह की हत्या
हेमू की पराजय के बाद बंगाल के शासक खिज्र खाँ ने आदिलशाह पर आक्रमण करके उसकी हत्या कर दी। आदिलशाह की मृत्यु से मुगल सेना का रास्ता साफ हो गया, जो अली कुली की अध्यक्षता में आगे बढ़ी।
सिकन्दर सूरी के साथ संघर्ष
दिल्ली तथा आगरा पर दृढ़तापूर्वक अधिकार स्थापित कर लेने के बाद बैरमखाँ ने सिकन्दर सूरी का सामना करने के लिए पंजाब की ओर प्रस्थान किया। सिकन्दर सूरी बैरमखाँ को पानीपत की दूसरी लड़ाई में व्यस्त जानकर शिवालिक की पहाड़ियों से निकलकर पंजाब में लगान वसूल कर रहा था।
जब उसे शाही सेना के आने की सूचना मिली तब वह मानकोट के दुर्ग में बन्द होकर बैठ गया। मुगलों ने मानकोट दुर्ग का घेरा डाल दिया जो छः महीने तक चलता रहा। अन्त में सिकन्दर सूरी निराश होकर सन्धि के लिये तैयार हो गया। उसने बैरमखाँ के समक्ष प्रस्ताव रखा कि यदि बिहार में उसे कोई जागीर दे दी जाये तो सिकन्दर सूरी आत्म समर्पण कर देगा।
सिकंदर सूरी की यह शर्त स्वीकार कर ली गई। इसके बाद सिकंदर सूरी ने 24 मई 1557 को मानकोट दुर्ग मुगलों को समर्पित कर दिया और स्वयं बिहार चला गया, जहाँ कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई।
इब्राहीम सूर की मृत्यु
खान-ए-जमान ने इब्राहीम सूर पर आक्रमण करके उसे जौनपुर से बाहर निकाल दिया। वह उड़ीसा की ओर भाग गया। वहीं पर उसकी मृत्यु हो गई। इसके साथ ही 1559 ई. तक दिल्ली के तख्त पर दावा करने वाले सूर वंश का पूरी तरह सफाया हो गया।
मूल आलेख – मुगल सल्तनत की पुनर्स्थापना – जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर
पानीपत का दूसरा युद्ध