Sunday, November 9, 2025
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अकबर का व्यक्तित्व

अकबर का व्यक्तित्व मध्यकालीन मुसलमान शासकों की तुलना में अधिक उदार एवं बड़ा था। वह बड़ी सल्तनत का शासक था और उसके व्यक्तित्व में बड़ी सल्तनत पर शासन करने के समस्त आवश्यक गुण विद्यमान थे।

 अकबर की गणना भारत के महान् शासकों में की जाती है। उसके व्यक्तित्व के सम्बन्ध में विद्वानों ने इतना अधिक लिख दिया है कि वास्तविकता का पता लगाना कठिन हो गया है।

अबुल फजल जैसे प्रशंसकों ने उसके व्यक्तित्व को अत्यन्त अतिरंजित करके उसे एक आदर्श शासक बताया है परन्तु बदायूनी जैसे आलोचकों ने उसे इस्लाम का शत्रु घोषित करके उसके व्यक्तित्व को अश्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास किया है। उपलब्ध साक्ष्यों का अध्ययन करने पर अनुमान होता है कि उसका व्यक्तित्व अपने युग के मुस्लिम बादशाहों से कहीं

अधिक श्रेष्ठ था। उसमें ऐसे अनेक गुणों का समावेश था जिनके बल पर वह अपने राज्य का अभूतपूर्व विस्तार कर सका, उसे स्थायित्व दे पाया तथा अपने वंशजों के लिये मार्ग दर्शक सिद्धांतों का निर्माण करने में सफल रहा।

अकबर का व्यक्तित्व

(1.) शारीरिक गठन

अकबर का कद मझोला और शरीर गठीला था। उसकी भुजायें लम्बी तथा आँखें चमकीली थीं। उसका रंग गेहुँआ और आवाज बुलन्द थी। वह परिश्रमशील तथा जिज्ञासु प्रकृति का व्यक्ति था।

(2.)  स्वभाव

अकबर का स्वभाव कोमल था। अहंकार तथा दम्भ से उसे घोर घृणा थी, क्रोध आने पर वह भयंकर रूप धारण कर लेता था किन्तु उसके क्रोध को शान्त होने में अधिक समय नहीं लगता था।

(3.) व्यवहार

अकबर व्यवहार कुशल शासक था। मधुर वाणी तथा सद्व्यवहार से वह अपने सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति को वशीभूत कर लेता था। वह प्रजा में लोकप्रिय शासक था। जेसुइट पादरी जेवियर के कथनानुसार उसका व्यवहार महान् के साथ महान् और तुच्छ के साथ तुच्छ था। वह सदैव न्याय का पक्ष लेता था।

अपने कुटुम्बियों तथा सम्बन्धियों के साथ उसका व्यवहार प्रेम-पूर्ण था। अपने भाई हकीम द्वारा विद्रोह किये जाने पर भी अकबर ने उसके साथ उदारता का व्यवहार किया और उसे क्षमा कर दिया। अपने पुत्र सलीम के द्वारा अनेक बार आज्ञा का उल्लंघन करने तथा विद्रोह करने पर भी अकबर ने उसके साथ जीवन भर स्नेह-सिक्त व्यवहार किया तथा उसे अपना उत्तराधिकारी स्व्ीकार कर लिया।

(4.) बुद्धिमत्ता

यद्यपि अकबर पढ़ा-लिखा नहीं था परन्तु वह कुशाग्र बुद्धि का धनी था। उसकी स्मरण-शक्ति बहुत अच्छी थी। उसकी कल्पना शक्ति बड़ी उच्च-कोटि की थी। उसे कल्पनाओं का शाहजादा कहा गया है किंतु वह कोरा काल्पनिक नहीं था। उसमें व्यावहारिकता तथा प्रयोगात्मक बुद्धि भी थी।

(5.) रुचि

अकबर को आखेट खेलने का शौक था। उसे जंगली पशुओं का पीछा करने में बड़ा मजा आता था। आसव पीकर मस्त हुए हाथियों के युद्ध देखने का भी उसे बड़ा चाव था। पोलो खेलने में उसकी विशेष रुचि थी। वह कभी-कभी रात्रि में भी प्रकाश करवा कर पोलो खेलता था।

(6.) घुड़सवारी

अकबर अपने समय का अच्छा घुड़सवार था। एक बार उसने अजमेर से आगरा तक की 240 मील की दूरी घोड़े पर बैठकर केवल 24 घण्टे में तय की। इसी प्रकार वह सीकरी से अहमदाबाद जो 450 मील दूर है, घोड़े पर सवार होकर ग्यारह दिन में पहुँच गया था।

(7.) निशोनेबाजी

अकबर अच्छा निशानेबाज था। चित्तौड़ दुर्ग के घेरे में उसने बन्दूकचियों के प्रधान इस्माइल खाँ तथा राठौड़ सरदार जयमल पर दूर से ही बंदूक से निशाना साधकर घायल कर दिया जिससे इस्माइल खाँ की मृत्यु हो गई तथा राठौड़ सरदार जयमल बुरी तरह घायल हो गया।

(8.) धार्मिक प्रवृत्ति

अकबर बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था। ईश्वर की सत्ता तथा महानता में उसकी पूर्ण आस्था थी। वह मानव के भ्रातृत्व में विश्वास रखता था तथा धर्म को सत्य की खोज का साधन समझता था। उसने इबादत खाना की स्थापना करके विभिन्न धर्मों के आचार्यों एवं उपदेशकों के प्रवचन और शास्त्रार्थ करवाकर सत्य की खोज करने का प्रयास किया।

अकबर में धर्मान्धता अथवा धार्मिक कट्टरता न होकर उच्चकोटि की धार्मिक सहिष्णुता थी। सुलह-कुल की नीति में उसका पूर्ण विश्वास था। वह समस्त धर्म वालों के साथ दया तथा सहानुभूति का व्यवहार करता था।

(9.) चिश्ती सम्प्रदाय में विश्वास

धार्मिक प्रवृत्ति का होने के कारण अकबर साधु-सन्तों तथा फकीरों का बड़ा आदर करता था। चिश्ती सम्प्रदाय के सूफियों, विशेषतः शेख सलीम चिश्ती में उसका बड़ा विश्वास था। किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य को करने से पहले वह उनका आशीर्वाद प्राप्त करता था।

(10.) सत्य से प्रेम

यद्यपि अकबर पढ़ा-लिखा नहीं था परन्तु उसकी निरक्षरता उसके ज्ञानार्जन में किसी प्रकार बाधक सिद्ध नहीं हुई। अपनी विलक्षण प्रतिभा तथा स्मरणशक्ति के बल पर उसने अपार ज्ञान अर्जित कर लिया था। इस कारण उसे सत्य से बहुत प्रेम था। वह किसी भी धर्म की मान्यताओं को ज्यों की त्यों स्वीकार करने की बजाय उसे सत्य की कसौटी पर कसना चाहता था। प्रत्येक धर्म की अच्छी बात को स्वीकार करने में उसे किंचित् भी परहेज नहीं था।

(11.) साहित्य तथा कला से अनुराग

यद्यपि अकबर पढ़ा-लिखा नहीं था परन्तु उसे साहित्य तथा कला से बड़ा अनुराग था। वह साहित्यकारांे तथा कलाकारों का आश्रयदाता था। उन्हें हर प्रकार की सहायता तथा प्रोत्साहन देता था। उसका दरबार बड़े-बड़े विद्वानों से सुशोभित था।

अब्दुर्रहीम खानखाना, अबुल फजल, फैजी, तानसेन, मानसिंह, टोडरमल, बीरबल, मुल्ला तथा हकीम हुमाम उसकी सभा के नौ-रत्न थे। अकबर बड़ा ही जिज्ञासु था और उसे ज्ञानार्जन का चाव था। वह विद्वानों का सत्संग अपने ज्ञान-कोष की वृद्धि के लिए करता था।

(12.) श्रेष्ठ योद्धा तथा महान सेनानायक

अकबर में एक जुझारू सैनिक तथा योग्य सेनापति के गुण विद्यमान थे। भयानक संकट आ जाने पर भी उसका धैर्य भंग नहीं होता था। रणक्षेत्र में वह निर्भय होकर अपने प्राणों की बाजी लगा देता था। वर्षा-ऋतु में वह उमड़ी हुई नदियों में अपना घोड़ा डाल देता था और पार कर जाता था। युद्ध में उसने स्वयं को अजेय सिद्ध कर दिया था।

(13.) महान् साम्राज्य निर्माता

अकबर एक महान् साम्राज्य निर्माता था। मुगल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक वही था। उसने अपने पिता के मृतप्राय साम्राज्य को न केवल फिर से जीवित कर दिया था अपितु उसे विशाल तथा संगठित साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया। जिस समय हुमायूँ का निधन हुआ उस समय अकबर के पास न तख्त था और न साम्राज्य।

इन दोनों ही के लिए उसे भीषण संघर्ष करना पड़ा। अपने बाहु-बल से उसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। उसका राज्य पूर्व में अफगानिस्तान के हेरात तथा कंदहार से लेकर पूर्व में चिटगांव तक एवं उत्तर में कश्मीर से लेकर दौलताबाद तथा नांदेड़ तक विस्तृत हो गया।

(14.) महान् शासक

एक शासक के रूप में अकबर की सफलताएं श्लाघनीय थीं। वह उदार, सहृदय तथा धर्म सहिष्णु शासक था। उसने अपने राज्य में शान्ति की स्थापना की तथा भूमि का समुचित प्रबन्ध करके अपनी प्रजा को संतुष्ट करने का प्रयास किया। उसने अपनी हिन्दू-प्रजा से वे समस्त कर हटा लिये जो मुसलमान प्रजा पर नहीं लगते थे।

उसने हिन्दुओं के लिये भी सरकारी नौकरियों के द्वार खोल दिये। अकबर ने उस युग में सुलह-कुल की नीति का अनुसरण करके अपने शासन को समन्वयकारी बनाया। उसने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया।

धार्मिक सहिष्णुता की नीति का अनुसरण कर दीन-इलाही चलाने का प्रयास किया। उसमें भी किसी के साथ जोर जबरदस्ती नहीं की उसने अनेक फारसी ग्रन्थों का संस्कृत में और संस्कृत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद कराकर सांस्कृतिक समन्वय स्थापित करने का प्रयत्न किया।

निष्कर्ष

उपरोक्त तथ्यों के आलोक में हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि अकबर का व्यक्तित्व विभिन्न गुणों से सम्पन्न था। वह प्रतिभावान, धर्म-सहिष्णु, साहित्य एवं कलाप्रेमी शासक था। वह एक अच्छा योद्धा, साम्राज्य निर्माता तथा अच्छा शासक था। उसमें प्रजा के कल्याण की भावना थी। उसके ये गुण उसे मध्य-युग के इतिहास में अन्य मुस्लिम शासकों से अलग स्थान प्रदान करते हैं।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मूल आलेख – मुगल सल्तनत की पुनर्स्थापनाजलालुद्दीन मुहम्मद अकबर

अकबर का प्रारम्भिक जीवन

पानीपत का दूसरा युद्ध

बैरम खाँ का विद्रोह

अकबर के शासन सम्बन्धी उद्देश्य

अकबर का साम्राज्य विस्तार

अकबर की राजपूत नीति

अकबर की राजपूतों पर विजय

अकबर की शासन व्यवस्था

अकबर का सैन्य प्रबन्धन

अकबर का भूमि प्रबन्धन

अकबर की शासन व्यवस्था

अकबर के सामाजिक सुधार

अकबर की धार्मिक नीति

दीन-ए-इलाही

अकबर के शासन की विशेषताएँ

अकबर का व्यक्तित्व

इतिहासकारों की दृष्टि में अकबर

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