औरंगजेब की धार्मिक नीति इस्लामिक मजहबी कट्टरता पर आधारित थी। वह सुन्नी मुसलमान था और भारत की सम्पूर्ण प्रजा को सुन्नी मुसलमान बनाना चाहता था।
औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था। इस्लाम में उसकी बड़ी अनुरक्ति थी। वह स्वयं को इस्लाम का रक्षक तथा पोषक समझता था। इसलिये राज्य के समस्त साधनों को इस्लाम की सेवा में लगा देना अपना कर्त्तव्य समझता था। इस्लाम के लिए वह अपना राज्य, वैभव, सुख तथा जीवन तक न्यौछावर कर सकता था। अतः उसके जीवन में न तो जहाँगीर की विलासिता के लिए कोई स्थान था और न शाहजहाँ की शान-शौकत के लिए। यही औरंगजेब की धार्मिक नीति थी।
उसने इस्लाम के आदेशों के अनुसार फकीर का जीवन व्यतीत करने का मार्ग चुना। राजकोष को वह प्रजा की सम्पत्ति समझता था और उस धन को अपने ऊपर व्यय करना महापाप समझता था। राज-काज से जब उसे अवकाश मिलता था तब वह कुरान की आयतों की नकल करता था और टोपियाँ सिला करता था जिन्हें उसके दरबारी और अमीर खरीदते थे। इसी धन से वह अपना व्यय चलाता था।
उसका जीवन पैगम्बर मुहम्मद के आदेशों के अनुकूल था। उसकी दृष्टि में राज्य का तात्पर्य मुस्लिम राज्य और प्रजा का तात्पर्य मुस्लिम प्रजा से था। डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है- ‘राज्य की नीति धार्मिक विचारों से रंजित थी और बादशाह ने एक कट्टरपंथी की भाँति शासन करने का प्रयत्न किया। प्रत्येक बात में वह शरीयत का अनुसरण करता था।’
औरंगजेब की धार्मिक नीति
सूफियों से घृणा
औरंगजेब की धार्मिक नीति में सूफियो के लिए कोई स्थान नहीं था। औरंगजेब सूफी धर्म मानने वालों को घृणा की दृष्टि से देखता था और उनका क्रूरता से दमन करता था। अपने भाई दारा को भी वह दारा की धार्मिक सहिष्णुता के कारण घृणा से देखता था।
शियाओं का दमन
औरंगजेब शिया मुसलमानों से अत्यंत घृणा करता था। उसकी धार्मिक नीति में हिन्दुओं और सूफियों की तरह शियाओं के लिए भी कोई स्थान नहीं था। उसने दक्षिण के शिया राज्यों को उन्मूलित कर दिया जिन्हें वह दारूल-हार्श अर्थात् काफिर राज्य कहता था। जो शिया मुसलमान तबर्रा बोलते थे, औरंगजेब उनकी हत्या करवा देता था।
सुलह-कुल की नीति का त्याग
औरंगजेब ने अकबर द्वारा स्थापित सहिष्णुता तथा सुलह-कुल की नीति को छोड़ दिया और हिन्दू प्रजा पर तरह-तरह के अत्याचार किये जिनके माध्यम से उसने हिन्दू धर्म, हिन्दू सभ्यता, हिन्दू संस्कृति तथा हिन्दू जाति को समाप्त करने का प्रयास किया।
औरंगजेब के हिन्दू विरोधी कार्य
औरंगजेब ने निम्नलिखित हिन्दू विरोधी कार्य किये-
(1.) हिन्दू पूजा स्थलों तथा देव मूर्तियों का विध्वंस
बादशाह बनने से पहले ही औरंगजेब ने हिन्दू पूजा स्थलों को गिरवाना तथा देव मूर्तियों को भंग करना आरम्भ कर दिया था। जब वह गुजरात का सूबेदार था तब अहमदाबाद में चिन्तामणि का मन्दिर बनकर तैयार ही हुआ था। औरंगजेब ने उसे ध्वस्त करवाकर उसके स्थान पर एक मस्जिद बनवा दी।
तख्त पर बैठते ही उसने बिहार के अधिकारियों को निर्देश दिये कि कटक तथा मेदिनीपुर के बीच में जितने हिन्दू मन्दिर हैं उन सबको गिरवा दिया जाये। औरंगजेब के आदेश से सोमनाथ का दूसरा मन्दिर भी ध्वस्त करवा दिया गया। बनारस में विश्वनाथ के मन्दिर को गिरवाकर वहाँ विशाल मस्जिद का निर्माण करवाया गया, जो आज भी विद्यमान है। मथुरा में केशवराय मन्दिर की भी यही दशा की गई। मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद रख दिया।
1680 ई. में औरंगजेब की आज्ञा से आम्बेर के समस्त हिन्दू मन्दिरों को गिरवा दिया गया। आम्बेर के राजपूतों ने अकबर के शासन काल से ही मुगलों की बड़ी सेवा की थी। इस कारण आम्बेर के कच्छवाहों को औरंगजेब के इस कुकृत्य से बहुत ठेस लगी। यह औरंगजेब की धार्मिक असहिष्णुता की पराकाष्ठा थी।
औरंगजेब ने आदेश जारी किया कि हिन्दू अपने पुराने मन्दिरों का जीर्णोद्धार नहीं करें तथा नये मंदिर नहीं बनवायें। उसने हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों को तुड़वाकर दिल्ली तथा आगरा में मस्जिदों की सीढ़ियों तथा मार्गों में डलवा दिया जिससे वे मुसलमानों के पैरों से कुचली तथा ठुकराई जायें और उनका घोर अपमान हो। इस प्रकार औरंगजेब ने हर प्र्रकार से हिन्दुओं की भावनाओं को कुचलने का काम किया।
(2.) हिन्दू पाठशालाओं का विध्वंस
औरंगजेब ने हिन्दुओं के धर्म के साथ-साथ उनकी संस्कृति को भी उन्मूलित करने का प्रयत्न किया। उसके आदेश से थट्टा, मुल्तान तथा बनारस में स्थित समस्त हिन्दू शिक्षण संस्थाओं को नष्ट कर दिया गया। मुसलमान विद्यार्थियों को हिन्दू पाठशालाओं में पढ़ने की अनुमति नहीं थी। हिन्दू पाठशालाओं में न तो हिन्दू धर्म की कोई शिक्षा दी जा सकती थी और न इस्लाम विरोधी बात कही जा सकती थी।
(3.) हिन्दुओं पर जजिया कर
अकबर ने हिन्दुओं पर से जजिया समाप्त कर दिया था। औरंगजेब ने फिर से हिन्दुओं पर जजिया कर लगा दिया। इस्लाम का नियम था कि जो लोग इस्लाम को स्वीकार न करें उनके विरुद्ध जेहाद या धर्मयुद्ध किया जाये परन्तु यदि वे जजिया देने को तैयार हों तो उनकी जान बख्श दी जाये। यहूदियों तथा ईसाइयों के साथ भी यही व्यवहार किया जाता था। हिन्दुओं को जजिया से बहुत घृणा थी। इस कर को फिर से लगाकर औरंगजेब ने हिन्दुओं, विशेषकर राजपूतों की भावना को बड़ा आघात पहुँचाया।
(4) हिन्दुओं पर अधिक चुंगी का आरोपण
औरंगजेब के शासन में हिन्दू व्यापारियों को अपने माल पर पाँच प्रतिशत चुंगी देनी पड़ती थी परन्तु मुसलमान व्यापारियों को इसकी आधी चुंगी देनी पड़ती थी। बाद में उसने मुसलमान व्यापारियों पर चुंगी बिल्कुल हटा दी। इस पक्षपात पूर्ण नीति से हिन्दुओं को व्यापार में कम लाभ होता था। इससे एक ओर तो हिन्दुओं की आर्थिक स्थिति गिर गई तथा दूसरी ओर मुसलमानों से चुंगी नहीं लेने से राजकोष को बड़ी क्षति हुई।
(5) सरकारी नौकरियों से हिन्दुओं का निष्कासन
जब से मुसलमानों ने हिन्दुस्तान में अपनी राजसत्ता स्थापित की थी तभी से माल-विभाग के अधिकांश कर्मचारी हिन्दू हुआ करते थे। अकबर ने तो समस्त सरकारी नौकरियों के द्वार हिन्दुओं के लिये खोल दिये थे। 1670 ई. में औरंगजेब ने आदेश जारी किया कि माल-विभाग से समस्त हिन्दुओं को निकाल दिया जाये। हिन्दू इस कार्य में बड़े कुशल थे। उनके रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए मुसलमान कर्मचारी नहीं मिल सके। इसलिये औरंगजेब ने दूसरा आदेश निकाला कि एक हिन्दू के साथ मुसलमान कर्मचारी भी रखा जाये।
(6.) मंदिरों में शंख एवं घण्टों पर रोक
औरंगजेब जिस मार्ग से गुजरता था तथा जहाँ उसका पड़ाव होता था, वहाँ दूर-दूर तक के मंदिरों में शंखध्वनि करने तथा घण्टे बजाने पर रोक होती थी।
(7.) बलात् धर्म परिवर्तन
हिन्दुओं को मुसलमान बनाने के लिए औरंगजेब ने अनेक हथकण्डों का प्रयोग किया। उसने विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर हिन्दुओं को मुसलमान बनने के लिए प्रोत्साहित किया। जो हिन्दू मुसलमान बन जाते थे वे जजिया से मुक्त कर दिये जाते थे। उन्हें राज्य में उच्च पद दिये जाते थे और उन्हें सम्मान सूचक वस्त्रों से पुरस्कृत किया जाता था।
हिन्दू बंदियों द्वारा इस्लाम स्वीकार कर लेने पर उन्हें कारावास से मुक्त कर दिया जाता था। जो हिन्दू इन प्रलोभनों में नहीं पड़ते थे उन्हें बलपूर्वक मुसलमान बनाने का प्रयत्न किया जाता था। मथुरा के गोकुल जाट के समस्त परिवार को इसी प्रकार मुसलमान बनाया गया था। जो हिन्दू, इस्लाम की निन्दा तथा हिन्दू धर्म की प्रशंसा करते थे उन्हें कठोर दण्ड दिये जाते थे। ऊधव बैरागी को हिन्दू धर्म का प्रचार करने के कारण मरवाया गया।
(8.) हिन्दुओं पर सामाजिक प्रतिबन्ध
1665 ई. में औरंगजेब ने आदेश दिया कि राजपूतों के अतिरिक्त अन्य कोई हिन्दू हाथी, घोड़े अथवा पालकी की सवारी नहीं करेगा और न अस्त्र-शस्त्र धारण करेगा। हिन्दुओं को मेले लगाने तथा त्यौहार मनाने की भी स्वतंत्रता नहीं थी। 1668 ई. में आदेश निकाला गया कि हिन्दू अपने तीर्थ स्थानों के निकट मेले न लगायें। होली तथा दीपावली जैसे प्रमुख हिन्दू त्यौहारों को भी हिन्दू, बाजार के बाहर और कुछ प्रतिबन्धों के साथ मना सकते थे।
औरंगजेब की धार्मिक नीति के परिणाम
औरंगजेब ने देश की बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा पर भयानक अत्याचार किये। इस कारण देश के विभिन्न भागों में औरंगजेब के विरुद्ध कड़ी प्रतिक्रिया हुई और देश के विभिन्न भागों में विद्रोह की चिन्गारी भड़क उठी। औरंगजेब को अपने जीवन का बहुत बड़ा समय इन विद्रोहों से निबटने में लगाना पड़ा। औरंगजेब के काल में हुए मुख्य विद्रोह इस प्रकार से हैं-
(1.) जाटों का विद्रोह
सबसे पहले आगरा के निकट निवास करने वाले जाटों ने गोकुल की अध्यक्षता में विद्रोह का झण्डा खड़ा किया। इस विद्रोह का प्रधान कारण औरंगजेब द्वारा केशवराय मन्दिर को तुड़वाना था। जाट इस अपमान को सहन नहीं कर सके और उन्होंने मुगल सूबेदार अब्दुल नबी की हत्या कर दी।
औरंगजेब अपनी नाक के नीचे जाटों द्वारा की गई इतनी बड़ी कार्यवाही से तिलमिला गया। उसने बड़ी क्रूरता से इस विद्रोह का दमन किया। गोकुल तथा उसके परिवार के लोग कैद कर लिये गये। गोकुल के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये और उसके परिवार को जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया।
गोकुल की हत्या से जाटों का विद्रोह और भी भयानक हो गया। 1686 ई. में राजाराम के नेतृत्व में फिर विद्रोह का झण्डा खड़ा किया गया। इस बार फिर जाट परास्त हो गये और उनका नेता राजाराम मारा गया परन्तु जाटों का आंदोलन शान्त नहीं हुआ। राजाराम का भतीजा चूड़ामणि औरंगजेब के अन्त तक मुगलों से लड़ता रहा और मुगलों को क्षति पहुँचाता रहा।
(2.) सतनामियों का विद्रोह
सतनामी, दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम में स्थित नारनौल में निवास करते थे। सतनाम इनका धार्मिक उद्घोष था। ये लोग कृषि तथा व्यापार में संलग्न थे और सरल जीवन जीते थे। एक दिन एक मुगल सैनिक ने एक निरपराध सतनामी की हत्या कर दी। इससे क्षुब्ध होकर, शान्ति-प्रिय सतनामियों ने विद्रोह कर दिया। उन्होंने भी मुसलमानों की हत्या करना तथा मस्जिदों का विध्वंस करना आरम्भ कर दिया।
सतनामियों ने नारनौल के हाकिम का वध कर दिया और लूटमार करने लगे। औरंगजेब ने सतनामियों के दमन का कार्य स्वयं अपने हाथ में लिया। पर्याप्त अस्त्र-शस्त्रों के न होते हुए भी सतनामी लोग वीरता तथा साहस के साथ लड़े परन्तु विशाल मुगल सेना के समक्ष अधिक दिनों तक नहीं ठहर सके। हजारों सतनामी मार डाले गये और उनसे नारनोल खाली करा लिया गया। इस प्रकार सतनामियों का आंदोलन क्रूरता के साथ कुचला गया।
(3.) सिक्खों का विद्रोह
सिक्खों तथा मुगलों के संघर्ष का आरम्भ, जहाँगीर समय में हुआ। जहाँगीर ने शहजादा खुसरो की सहायता करने के आरोप में 1606 ई. में गुरु अर्जुनदेव की हत्या कर दी। शाहजहाँ का गुरु हरगोविंद से संघर्ष हुआ। जब गुरु तेगबहादुर सिक्खों के गुरु बने तब औरंगजेब ने हिन्दुओं के मन्दिरों की भाँति सिक्खों के गुरुद्वारों को भी तुड़वाना आरम्भ किया।
गुरु तेगबहादुर ने विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया। तेग बहादुर पकड़कर दिल्ली लाये गये तथा उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए कहा गया। गुरु ने इस्लाम स्वीकार करने से मना कर दिया। इस पर 1675 ई. में उनकी हत्या कर दी गयी। इससे सिक्खों की क्रोधाग्नि और भड़क उठी। गुरु तेग बहादुर के बाद उनके पुत्र गोविन्दसिंह गुरु हुए।
उन्होंने सिक्खों को सैनिक जाति में परिवर्तित कर दिया। गुरु गोविन्दसिंह ने मुगलों का सामना किया और उन्हें कई बार परास्त किया। अन्त में औरंगजेब ने एक विशाल सेना गुरु के विरुद्ध भेजी। गुरु परास्त हो गये। उनके दो पुत्र बंदी बना लिये गये। उन बालकों से इस्लाम स्वीकार करने के लिये कहा गया परन्तु उन बालकों ने भी अपने दादा की भांति, इस घृणित प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
इस पर उन्हें जीवित ही दीवार में चुनवा दिया गया। औरंगजेब के इन अत्याचारों से सिक्खों का विद्रोह और भड़क गया जिससे विवश होकर औरंगजेब ने गुरु से सन्धि करने का निश्चय किया और उन्हें दिल्ली बुला भेजा। गुरु गोविंदसिंह के दिल्ली पहुँचने से पहले ही औरंगजेब का निधन हो गया।
(4.) राजपूतों का विरोध
औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीति के कारण राजपूत जाति भी उससे नाराज हो गई। राजपूतों के विरोध का वर्णन इस पुस्तक में औरंगजेब की राजपूत नीति का वर्णन करते समय किया गया है।
मुख्य आलेख – औरंगजेब
औरंगजेब की धार्मिक नीति