Tuesday, September 9, 2025
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औरंगजेब के अंतिम दिन

औरंगजेब के अंतिम दिन कष्ट से भरे हुए थे। वह भारत की समस्त प्रजा को सुन्नी मुसलमान बनाना चाहता था किंतु लाखों हिन्दुओं का रक्त बहाकर भी वह इस लक्ष्य को अर्जित नहीं कर पाया। उसके सामने ही चारों ओर विद्रोहों की ज्वालाएँ फूट पड़ी थीं।

1682 ई. से औरंगजेब (आलमगीर) दक्षिण में लड़ रहा था। बीजापुर, गोलकुण्डा तथा मराठों से लड़ते हुए उसे 24 साल हो गये। इस बीच वह 88 वर्ष का बूढ़ा और अशक्त हो गया। उसके अंतिम दिन कष्ट से भरे हुए थे।

परिवार के सदस्यों की मृत्यु

1702 ई. में उसकी पुत्री जेबुन्निसा की मृत्यु हो गई। 1704 ई. में उसके निष्कासित पुत्र अकबर की फारस में मृत्यु हो गई। 1705 ई. में उसकी पुत्र-वधू जहाँजेब की मृत्यु हो गई। 1706 ई. में उसकी अकेली जीवित बहन गौहनआरा की मृत्यु हो गई। उसी वर्ष उसकी पुत्री मेहरुन्निसा और उसके पति इजिदबक्स की भी मृत्यु हो गई।

उसकी मृत्यु के एक माह बौद औरंगजेब के पौत्र (शहजादा अकबर के पुत्र) बुलन्द बख्तर की मृत्यु हो गई। 1707 ई. के आरंभ में औरंगजेब की मृत्यु से कुछ दिन पहले औरंगजेब के दो नातियों की मृत्यु हो गई।

इस प्रकार उसकी आंखों के सामने उसका लगभग पूरा परिवार मर गया। केवल तीन शहजादे आजम, मुअज्जम और कामबक्श जीवित बचे थे जो औरंगजेब के तख्त पर कब्जा करने के लिये एक दूसरे के रक्त के प्यासे थे।

औरंगजेब की मृत्यु

जनवरी 1706 में औरंगजेब बीमार पड़ गया। उसने उत्तर भारत जाने के लिये अहमदनगर के लिये प्रस्थान किया। मराठे उसके पीछे लग गये और लगातार उसके डेरांे को लूटने लगे। 31 जनवरी 1706 को औरंगजेब अहमदनगर पहुँच गया। मराठों ने उसे चारों ओर से घेर लिया। चार माह की भयानक लड़ाई के बाद मई 1706 में उन्हें खदेड़ा जा सका।

औरंगजेब जीवित ही उत्तर भारत पहुंचना चाहता था किंतु मराठों के कारण वह दक्षिण से बाहर नहीं निकल सका। मार्च 1707 के आरंभ में वह दौलताबाद पहुंच गया। 3 मार्च 1707 को वहीं उसका निधन हो गया। दौलताबाद से चार मील पश्चिम में शेख जेन-उल-हक के माजर के निकट उसके शरीर को दफना दिया गया।

औरंगजेब के शहजादे

जिस समय औरंगजेब की मृत्यु हुई उस समय उसके तीन पुत्र जीवित थे। शहजादा मुअज्जम (जिसे शाहआलम की उपाधि दी गई थी) जमरूद में, शहजादा आजम अहमदनगर के निकट तथा कामबख्श बीजापुर में था। मराठे खानदेश, गुजरात तथा मालवा को लूट रहे थे। जाट, सिक्ख, सतनामी, बुंदेले, रुहेले तथा राजपूत, मुगलों के शत्रु होकर उन्हें बर्बाद करने पर तुले थे।

ऐसी विकट परिस्थितियों में एकजुट होकर शत्रुओं का सामना करने के स्थान पर आजम, मुअज्जम तथा कामबख्श, मुगलिया सल्तनत पर अधिकार करने के लिये एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे। शहजादों को अपने बाप से कोई लगाव नहीं था। औरंगजेब ने अपने समस्त भाइयों को धोखा देकर मारा था तथा अपने पिता को बंदी बनाकर उसका तख्त हड़प लिया था।

उसने अपने तीनों पुत्रों एवं एक पुत्री को यातना देने के लिये जेल में डाल दिया था जिनमें से एक पुत्र तथा एक पुत्री की जेल में ही मौत हुई। शहजादे मुअज्जम को अपने बाप की जेल में आठ साल बिताने पड़े थे। शहजादा अकबर औरंगजेब से भयभीत होकर भारत छोड़कर फारस जा बसा था।

ऐसे बाप से भला कौन बेटा प्यार कर सकता था! संसार में कोई भी स्त्री और कोई भी पुरुष ऐसा न था जिससे वह प्रेम करता हो। वह 24 घण्टे में कठिनाई से 3 से 4 घण्टे सो पाता था। शेष समय भारत को दार-उल हर्ब (काफिरों का देश) से दार-उल-इस्लाम (इस्लाम का देश) बनाने में लगाता था। लगभग पचास वर्षों के अपने शासन में औरंगजेब ने देश को शमशान भूमि में नहीं तो बंदीगृह में अवश्य बदल दिया। ऐसे आदमी के मरने पर किसी को दुःख नहीं हुआ।

मुगल सल्तनत की स्थिति

औरंगजेब की मृत्यु के समय मुगल सल्तनत में 21 सूबे थे। इनमें से 14 उत्तर भारत में, 6 दक्षिण भारत में तथा एक सूबा भारत के बाहर अफगानिस्तान में था। इन सूबों के नाम इस प्रकार थे- (1.) आगरा, (2.) अजमेर, (3.) इलाहाबाद, (4.) अवध, (5.) बंगाल, (6.) बिहार, (7.) दिल्ली, (8.) गुजरात, (9.) काश्मीर, (10.) लाहौर, (11.) मालवा, (12.) मुल्तान, (13.) उड़ीसा, (14.) थट्टा (सिन्ध), (15.) काबुल, (16.) औरंगाबाद, (17.) बरार, (18.) बीदर (तेलंग), (19.) बीजापुर, (20.) हैदराबाद और (21.) खानदेश।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मुख्य आलेख – औरंगजेब (आलमगीर)

औरंगजेब (आलमगीर)

औरंगजेब की धार्मिक नीति

औरंगजेब की राजपूत नीति

औरंगजेब की साम्राज्यवादी नीति

औरंगजेब के अंतिम दिन

औरंगजेब के उत्तराधिकारी

मुगल सल्तनत का विघटन

मुगल सल्तनत का अंत

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