घाघरा का युद्ध बाबर एवं अफगानों के बीच लड़ा गया था। जब बाबर ने इब्राहीम लोदी को मारकर अफगानों से दिल्ली एवं आगरा सहित अन्य क्षेत्र छीन लिए तो अफगानों ने महमूद लोदी के नेतृत्व में संगठित होकर बाबर से अंतिम युद्ध लड़ने का निर्णय लिया।
बाबर अब तक पंजाब, दिल्ली, खनवा तथा चन्देरी के युद्ध जीत चुका था। अब वह रायसेन, भिलसा, सारंगपुर तथा चित्तौड़ पर आक्रमण करना चाहता था परन्तु इसी समय उसे अफगानों के उपद्रव की सूचना मिली। इसलिये वह अपनी योजना बदल कर अफगानों के दमन के लिए चल पड़ा।
अफगान लोग भयभीत होकर बिहार तथा बंगाल की ओर भाग गये और महमूद लोदी की अध्यक्षता में संगठित होने लगे। महमूद लोदी, सुल्तान सिकन्दर लोदी का पुत्र और इब्राहीम लोदी का भाई था। पानीपत के युद्ध के उपरान्त हसन खाँ मेवाती तथा राणा सांगा ने उसे इब्राहीम लोदी का उत्तराधिकारी स्वीकार कर लिया था।
खानवा की लड़ाई में वह बाबर के विरुद्ध लड़ा भी था और परास्त होकर कुछ दिनों के लिये मेवाड़ चला गया जहाँ से वह बिहार पहुँचा और अफगानों को मुगलों के विरुद्ध संगठित करने लगा। अफगानों को दण्डित करने के लिये बाबर ने 20 जनवरी 1529 को आगरा से बिहार के लिये कूच किया।
महमूद लोदी भी अपनी सेना के साथ गंगा नदी के किनारे-किनारे चुनार की ओर बढ़ा। 31 मार्च 1529 को बाबर चुनार पहुँच गया। बहुत से अफगान डरकर बाबर की शरण में आ गये और बहुत से अफगान बंगाल की ओर भाग गये। बाबर निरंतर आगे बढ़ता हुआ गंगा तथा कर्मनाशा नदी के संगम पर पहुँच गया।
घाघरा का युद्ध
बाबर ने अफगानों से अन्तिम संघर्ष करने का निश्चय कर लिया। एक मई 1529 को उसने गंगा नदी को पार कर लिया। तीन दिन बाद उसकी सेना ने घाघरा नदी को पार करने का प्रयत्न किया। अफगानों ने उसे रोकने का भरसक प्रयास किया परन्तु बाबर की सेना नदी पार करने में सफल हो गई।
6 मई को घाघरा के तट पर अफगानों तथा मुगलों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में अफगान परास्त हो गये। बहुत से अफगान भयभीत होकर मैदान से भाग खड़े हुए। बाबर ने नसरतशाह को संधि करने के लिये विवश किया। नसरतशाह ने बाबर की अधीनता स्वीकार कर ली तथा भविष्य में विद्रोह नहीं करने का वचन दिया। यह बाबर की भारत में चौथी तथा अन्तिम विजय थी जिसके द्वारा बाबर सम्पूर्ण उत्तरी भारत का स्वामी बन गया।
घाघरा का युद्ध भले ही बाबर एवं अफगानों के बीच लड़ा गया अंतिम निर्णायक युद्ध था किंतु इससे अफगानों की कमर पूरी तरह नहीं टूट सकी। अफगान योद्धा अब भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित क्षेत्रों के स्वामी बने रहे। उनमें से बहुत से अफगानों ने हिन्दू राजाओं के यहाँ शरण लेकर अपनी शक्ति के पुनरुद्धार का प्रयास किया और अंत में वे शेरशाह सूरी के नेतृत्व में संगठित होने लगे।
बाबर के युद्धों एवं उपलब्धियों का निष्कर्ष
भारत में बाबर की उपलब्धियाँ तीन भागों में विभक्त की जा सकती हैं- सामरिक उपलब्धियाँ, राजनीतिक उपलब्धियाँ तथा सांस्कृतिक उपलब्धियाँ। बाबर ने पंजाब पर कम से कम पांच बार आक्रमण करके उसे अपने नियंत्रण में किया। उसने पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी को परास्त किया।
खानवा की लड़ाई में सांगा को परास्त किया। चंदेरी के युद्ध में मेदिनी राय को परास्त किया। घाघरा के युद्ध में अफगानों को परास्त किया। ये बाबर की शानदार सामरिक उपलब्धियाँ थीं। बाबर की राजनीतिक उपलब्धियाँ भी अत्यंत महत्वपूर्ण थीं। उसने दिल्ली सल्तनत को सदा के लिये समाप्त कर दिया।
उसने भारत में मंगोलों के राज्य की स्थापना की जो अगले 200 वर्षों तक भारत पर शासन करते रहे। उसने हिन्दुओं को सदा के लिये राजनीतिक शक्ति बनने से वंचित कर दिया। उसने अफगानों को नष्ट प्रायः कर दिया किंतु वे पूरी तरह नष्ट नहीं हुए। उनमें अफगान राज्य के पुनरुत्थान की आशा अब भी जीवित बची थी।
बाबर की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ रचनात्मक नहीं थीं किंतु विध्वंसात्मक अवश्य थीं। इस्लाम के सिपाही के रूप में उसने भारत में काफिर हिन्दुओं का बड़े पैमाने पर विनाश किया। उसने शियाओं का भी दमन किया। उसने भारत के कई महत्वपूर्ण मंदिरों को तोड़कर भारत को शानदार भवनों एवं स्थापत्य के नमूनों से वंचित कर दिया।
जिस कार्य को 125 वर्ष पहले तैमूर लंग ने आरम्भ किया था, उस कार्य को बाबर ने पूरा किया। भारत में विशाल मुगल साम्राज्य के संस्थापक के रूप में वह विश्व इतिहास में अमर हो गया।
मुख्य आलेख – मुगलों का राज्य विस्तार
घाघरा का युद्ध