Wednesday, September 17, 2025
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नूरजहाँ का चरित्र एवं कार्यों का मूल्यांकन

नूरजहाँ का चरित्र मध्यकालीन इतिहास में किसी पहेली से कम नहीं है। उस युग में इस बात पर विश्वास नहीं किया जाता था कि किसी औरत में शासकीय प्रतिभा हो सकती है किंतु जहाँगीर ने अपने राज्य का पूरा शासन नूरजहाँ पर छोड़ दिया था।

नूरजहाँ का चरित्र

नूरजहाँ के गुणों के कारण जहाँगीर ने 1622 ई. में उसे बादशाह बेगम की उपाधि से अलंकृत किया था और अपनी मुद्राओं पर उसके नाम को अंकित कराकर उसे अभूतपूर्व प्रतिष्ठा प्रदान की थी। नूरजहाँ की सबसे बड़ी सेवा उसकी सांस्कृतिक देन है। वह बड़ी ही प्रतिभावान्, सुशिक्षित तथा व्यावहारिक बुद्धि की महिला थी।

कला में उसकी विशेष अनुरक्ति थी। उसे सौन्दर्य तथा अलंकरण से बड़ा प्रेम था। वह जो काम करती थी उसमें सौन्दर्य उत्पन्न करने का प्रयत्न करती थी। इस कारण उसमें प्रबल सांस्कृतिक प्रभाव डालने की क्षमता उत्पन्न हो गई थी। वह पारसीक सभ्यता तथा संस्कृति की पोषक थी। अतः समस्त क्षेत्रों में पारसीक सभ्यता का प्रभाव डालने का प्रयत्न किया।

उसने नये फैशन चलाये, नये वस्त्रों, नये आभूषणों, नई वेश-भूषाओं, नये प्रलेपों एवं आलंकारिक पदार्थों का आविष्कार तथा प्रचलन किया। उसने दरबार के आचार-व्यवहार में सौन्दर्य तथा सौष्ठव उत्पन्न किया। तत्कालीन वास्तुकला पर उसके व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट है। इस प्रकार उसने अपने समय के सांस्कृतिक जीवन को अत्यधिक प्रभावित किया।

नूरजहाँ का मस्तिष्क उन्नत तथा हृदय विशाल था। वह उदार तथा दयालु महिला थी। उसका बहिरंग यथा अन्तरंग दोनों ही समान रूप से कोमल था। उसके प्रत्येक कार्य में उदारता तथा दया का समावेश रहता था। उसमें उच्च कोटि की दानशीलता थी। वह दीन-दुखियों, असहायों, अनाथों, विधवाओं तथा पीड़ितों की सहायक थी।

परोपकार के कार्यों से उसने जहाँगीर के शासन में उदारता तथा दानशीलता का ऐसा वातावरण उत्पन्न कर दिया जिसका सामाजिक दृष्टि से बहुत महत्त्व है। नूरजहाँ में उच्च-कोटि का पति-प्रेम था। अपने प्रथम पति शेर अफगन के प्रति उसकी अनुपम अनुरक्ति थी। जब जहाँगीर ने उसे अपनी प्रेयसी तथा पत्नी बनाया तब उसने प्रेम और सेवा से जहाँगीर को ऐसा मुग्ध कर लिया कि बादशाह उस पर अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए उद्यत हो गया।

नूरजहाँ के राजनीतिक प्रभाव के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। नूरजहाँ का जहाँगीर पर बहुत प्रभाव था। कुछ विद्वानों की धारणा है कि राजनीतिक क्षेत्र में भी उसका उतना ही बड़ा प्रभाव था। इन विद्वानों के विचार में तत्कालीन राजनीति उसी के द्वारा संचालित होती थी।

इसलिये इतिहासकार दरबारी षड्यन्त्रों तथा कुचक्रों के लिए प्रधानतः उसी को उत्तरदायी मानते हैं और तत्कालीन राजनीति पर उसके दूषित प्रभाव की कटु आलोचना करते हैं। नूरजहाँ का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि अपने काल की राजनीति को प्रभावित करना उसके लिए असम्भव नहीं था, इसयिले उसने ऐसा किया भी।

वह पहले खुर्रम को जहाँगीर का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी किंतु बाद में अपने जामाता शहरियार को बादशाह बनते हुए देखने के लिये कार्य करने लगी। उसने परवेज को भी बादशाह बनने से रोकने के लिये कार्य किया। जब महाबतखाँ ने बादशाह को नजरबंद कर लिया तब उसने स्वयं को भी नजरबंद करवाकर चतुर राजनीतिज्ञ होने का परिचय दिया।

उसने बड़ी चतुराई से जहाँगीर को महाबतखाँ के चंगुल से मुक्त करवाकर शाही परिवार की प्रतिष्ठा तथा मर्यादा की पुनर्स्थापना की। शाहजादा खुर्रम तथा महाबतखाँ के विद्रोह और उत्तराधिकार के लिए जो षड्यन्त्र तथा कुचक्रों को काटने के लिये भी उसने हरसंभव कार्य किया।

नूरजहाँ का अपने भाइयों में और विशेषकर अपने बड़े भाई आसफ खाँ में बहुत विश्वास था। आसफ खाँ बड़ा षड्यंत्रकारी व्यक्ति था और अपने तथा अपने दामाद खुर्रम के स्वार्थ सिद्ध करने के लिए वह नूरजहाँ को अस्त्र बना लेता था। नूरजहाँ उसके षड्यंत्रों को को समझ नहीं पाती थी और उसका अस्त्र बन जाती थी।

वास्तव में नूरजहाँ तत्कालीन कुचक्री राजनीति के योग्य नहीं थी। दुर्भाग्य से शहरियार जैसा अयोग्य शहजादा उसका दामाद बन गया जिसे वह बादशाह बनते हुए देखना चाहती थी। जब खुर्रम बादशाह बन गया तब नूरजहाँ राजनीति से बिल्कुल अलग हो गई और उसने अपने जीवन के शेष दिन एकान्तवास में व्यतीत किये।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मूल आलेख – नूरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर एवं नूरजहाँ

नूरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर

नूरजहाँ का उत्थान

खुर्रम का विद्रोह

महाबत खाँ का विद्रोह

जहाँगीर का चरित्र एवं कर्यों का मूल्यांकन

नूरजहाँ का चरित्र एवं कार्यों का मूल्यांकन

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