Monday, September 8, 2025
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बाबर का चरित्र तथा उसके कार्यों का मूल्यांकन

बाबर का चरित्र इतिहासकारों में विवाद का विषय रहा है। कुछ विद्वानों के अनुसार बाबर महान साम्राज्य निर्माता था जबकि अन्य विद्वानों के अनुसार बाबर असमय प्रौढ़ बालक था जिसके कारण उसका व्यक्तित्व विकृतियों का शिकार हो गया थ और वह क्रूर हत्यारा एवं आक्रांता था।

बाबर में मंगोलों की क्रूरता, तुर्कों का साहस एवं ईरानियों की शिष्टता एक साथ मौजूद थे। इस कारण बाबर में अच्छे और बुरे कई विरोधी गुण एक साथ विद्यमान थे।

बाबर का चरित्र

उसके चरित्र तथा कार्यों का मूल्यांकन इस प्रकार से किया जा सकता है-

(1.) व्यक्ति के रूप में

बाबर अत्यंत महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। वह अपने  माता-पिता का आज्ञाकारी पुत्र था किंतु अपने पिता के छोटे से राज्य से संतुष्ट नहीं था। उसने हुमायूँ के लिये अपने प्राणों की आहुति देकर पिता-पुत्र के प्रेम की मिसाल कायम की किंतु अपने चाचा अहमद मिर्जा से वह ईर्ष्या करता था तथा उसके राज्य को हड़पने के लिये उसने समरकंद पर कई बार आक्रमण किये।

बाबर अपने मित्रों तथा साथियों को खुले हाथों से उपहार देता था किंतु अपने मामा महमूद खाँ से उसकी बिल्कुल नहीं बनती थी। वह दीन-दुखियों पर दया करता था और उन्हें दान देता था किंतु उसने हिन्दुओं पर कतई दया नहीं दिखाई। उसमें उच्चकोटि का पारिवारिक प्रेम था किंतु उसने निरीह हिन्दुओं के सिर कटवाकर उनके कटे हुए सिरों की मीनारें चिनवाईं।

(2.) पिता के रूप में

बाबर के मन में अपनी पत्नी तथा सन्तान के प्रति प्रगाढ़ स्नेह था। उसके चार पुत्र थे- हुमायूँ, कामरान, अस्करी तथा हिन्दाल। तीन पुत्रियां- गुलबदन बेगम, मासूमा बेगम तथा एक अन्य पुत्री भी थी। बाबर अपने समस्त परिवार से प्रेम करता था किंतु बड़े पुत्र हुमायूँ से विशेष प्रेम करता था। उसने हुमायूँ को सलाह दी थी कि संसार उसका है जो परिश्रम करता है। किसी भी आपत्ति का सामना करने से मत चूकना। परिश्रमहीनता तथा आराम बादशाह के लिये हानिकारक है।

(3.) साहित्य प्रेमी के रूप में

बाबर की साहित्य पढ़ने एवं लिखने में बड़ी रुचि थी। वह फारसी, अरबी तथा तुर्की भाषाओं का ज्ञाता था। वह तुर्की तथा फारसी भाषा में सुन्दर शैली में साहित्यिक रचनाएँ कर सकता था। बाबर ने कई पद्य ग्रन्थ लिखे। उसने एक नयी लेखन शैली को जन्म दिया जिसे ‘खते बाबरी’ कहा जाता है।

तुर्की के सबसे बड़े कवि मीर अली शेर बेग के बाद बाबर को ही स्थान दिया जाता है। उसने गद्य शैली में अपनी आत्मकथा लिखी जिसे बाबरनामा अथवा तुजुक-ए-बाबरी कहा जाता है। इस ग्रंथ को विश्व के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है। उसमें मनुष्य को परखने की अद्भुत क्षमता थी।

अपने सैनिक अभियानों के दौरान उसने जिन देशों तथा जातियों को देखा, उनका सुन्दर तथा सजीव वर्णन किया। इस प्रकार फारसी, अरबी तथा तुर्की साहित्य के साथ-साथ विश्व के इतिहास लेखन में भी बाबर ने बहुमूल्य योगदान दिया।

(4.) प्रकृति प्रेमी के रूप में

बाबर कवितायें लिखता था इसलिये उसे प्रकृति से विशेष प्रेम था। उपवनों में अत्यन्त रुचि होने के कारण उसे ‘उपवनों का राजकुमार’ कहा गया है। वह उपवन लगाने की नई-नई योजनाएँ बनाता था तथा स्वयं भी उपवनों में अपने हाथ से काम करता था।

(5.) कला प्रेमी के रूप में

बाबर की काव्य कला के साथ-साथ संगीत कला में भी बड़ी रुचि थी। वह अच्छा कवि था तथा स्वयं भी अच्छी तरह गा सकता था। संगीत सुनने में भी उसकी रुचि थी।

(6.) भवन-निर्माता के रूप में

मस्जिदों तथा उपवनों के निर्माण में बाबर की बड़ी रुचि थी। उसने अयोध्या में रामजन्म भूमि पर बाबरी मस्जिद बनवाई। आगरा के लोदी किले में जामा मस्जिद बनवाई। पानीपत में काबुली बाग मस्जिद बनवाई। कश्मीर में निशात बाग बनवाया। लाहौर में शालीमार बाग बनवाया। पंजाब में पिंजोर बाग बनवाया।

वह राजपूताने की सीमा पर ऐसे भवन बनवाना चाहता था जो ठण्डे हों। उसके आदेश से आगरा, सीकरी, बयाना, धौलपुर, ग्वालियर तथा अन्य नगरों में अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया गया।

(7.) सैनिक तथा सेनापति के रूप में

एक सेनापति के रूप में बाबर की सफलताएं उल्लेखनीय हैं। फरगना का शासक रहते हुए उसने समरकंद जीतने के लिये युद्धों की शुरुआत की। इसके बाद वह जीवन भर लड़ता रहा। अपनी आत्मकथा में उसने लिखा है कि उसने अपने जीवन में रमजान का त्यौहार दो बार एक ही जगह पर नहीं बनवाया।

वह एक दुःसाहसी योद्धा था। वह कुशल तीरन्दाज तथा दक्ष घुड़सवार था। वह पराजय से कभी हतोत्साहित नहीं होता था और अपने लक्ष्य की पूर्ति में निरंतर संलग्न रहता था। उसमें सैन्य संचालन की अद्भुत क्षमता थी। युद्ध क्षेत्र में उसकी व्यूह रचना बड़ी अद्भुत होती थी और शत्रु को अस्त-व्यस्त कर देती थी।

रणक्षेत्र में अपने को परिस्थितियों के अनुकूल बना लेने की उसमें अदभुत क्षमता थी। सैनिकों के हतोत्साहित हो जाने पर अपने ओजपूर्ण वक्तव्य द्वारा उनको उत्साहित करने की उसमें विलक्षण प्रतिभा थी।

(8.) शासक के रूप में

कहा जाता है कि बाबर में सामरिक तथा साहित्य प्रतिभा तो थी परन्तु प्रशासकीय प्रतिभा नहीं थी। उसने अफगानिस्तान अथवा भारत में किसी भी ऐसी शासकीय संस्था का निर्माण नहीं किया जिस पर उसके अपने व्यक्तित्त्व की छाप हो। वह जीवन भर युद्धों में इतना व्यस्त रहा कि वह शासकीय संस्थाओं के निर्माण के लिये समय नहीं निकाल सका।

इतना होने पर भी यह कहना सही नहीं है कि एक शासक के रूप में बाबर असफल रहा। उसने शासकीय संस्थाओं का निर्माण भले ही नहीं किया हो किंतु उसने फरगना, समरकंद, काबुल, कन्दहार, गजनी तथा आगरा आदि जिन राज्यों पर भी शासन किया, दृढ़ता पूर्वक शासन किया।

भारत में बाबर ने केवल चार वर्ष तक शासन किया। ये चार वर्ष निरंतर युद्धों में व्यतीत हुए। फिर भी बाबर ने आगरा से काबुल के बीच की सड़कों को सुरक्षित बनाया और प्रत्येक पन्द्रह मील की दूरी पर सरायों का निर्माण करवाया। इन चौकियों पर छः घुड़सवार नियुक्त किये गये जो यात्रियों की सुरक्षा का प्रबंध करते थे।

बाबर ने डाक वितरण की व्यवस्था सुधारने का भी प्रयत्न किया। बाबर अपने मंत्रियों पर पूरा विश्वास रखता था और उन्हें कार्य करने की स्वतन्त्रता देता था। मंत्रियों को अपना कार्य ईमानदारी तथा जिम्मेदारी से करना पड़ता था।

(9.) इस्लाम के अनुयायी के रूप में

बाबर इस्लाम के सिद्धांतों में पूर्ण विश्वास रखता था। इस कारण उसमें मुस्लिम उलेमाओं तथा लेखकों के प्रति बड़ी श्रद्धा थी परन्तु राजनीतिक मामलों में वह उनके प्रभाव से मुक्त रहा। वह सुन्नी मुसलमान था इसलिये शियाओं को भी हिन्दुओं की तरह काफिर कहता था। हिन्दुओं के प्रति उसका दृष्टिकोण अत्यंत कठोर था।

उसने हिन्दुओं के विरुद्ध अपने युद्धों को ‘जेहाद’ कहकर धार्मिक संकीर्णता एवं कट्टरता का परिचय दिया। उसने राजपूतों के सिर कटवाकर उनकी मीनारें खड़ी कीं और उन्हें अपनी ठोकरों से लुढ़काया। उसने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़कर वहाँ मस्जिद खड़ी करवाई। उसने मुसलमानों को तमगा नामक कर से मुक्त किया।

(10.) साम्राज्य निर्माता के रूप में

साम्राज्य निर्माता के रूप में बाबर का विश्व इतिहास में बड़ा स्थान है। उसने अफगानों तथा राजपूतों की शक्ति को छिन्न-भिन्न करके भारत में विशाल मुगल सल्तनत की स्थापना की जो आगे चलकर अकबर के समय में चरम पर पहुँची। बाबर के द्वारा स्थापित साम्राज्य लगभग 200 साल तक अस्तित्त्व में रहा।

बाबर द्वारा स्थापित साम्राज्य यूरोप के रोमन साम्राज्य की प्रतिस्पर्धा कर सकता था। यद्यपि मुगल साम्राज्य का वास्तविक निर्माता बाबर का पौत्र अकबर था क्योंकि बाबर की मृत्यु के समय उसका राज्य असंगठित, प्रशासन अस्त-व्यस्त और राजकोष रिक्त था। बाबर के खड़े किये हुए राज्य को हुमायूँ ने खो दिया और ईरान के शाह की सहायता से उसे फिर से खड़ा किया।

(11.) कूटनीतिज्ञ के रूप में

बाबर बहुत बड़ा कूटनीतिक था। वह बल का तभी प्रयोग करता था जब कूटनीति से काम नहीं चलता था। भारत के अफगान अमीरों में से अनेक को उसने कूटनीति से अपनी ओर मिला लिया था और उन्हें जागीरें दे दी थीं। अपने अमीरों को भी वह कूटनीति द्वारा अपने नियन्त्रण में रखता था।

यदि बाबर में उच्चकोटि का धैर्य, सहनशीलता और व्यवहारकुशलता न होती तो वह मुगल, चगताई तथा अफगान अमीरों को संतुष्ट नहीं कर सकता था। उसके कूटनीतिज्ञ होने के समर्थन में डैनीसन रीस ने लिखा है- जिस नीति से उसने सुल्तान इब्राहीम के विद्रोही सामन्तों को आपस में एक दूसरे से भिड़ाया, वह मैकियावेली की योग्यता से कम नहीं थी।

बाबर की दुर्बलताएँ

बाबर में अनेक गुणों के साथ-साथ दुर्बलताएँ भी विद्यमान थीं। वह आवश्यकता से अधिक महत्वाकांक्षी था। इस कारण मध्य एशिया से चलता हुआ भारत में आकर शासन करने लगा। उसकी इस महत्वाकांक्षा के चलते लाखों मनुष्यों को मौत के मुँह में समा जाना पड़ा। बाबर आवश्यकता से अधिक मद्यपान करता था।

इस कारण सेना में उसकी विश्वसनीयता के प्रति संदेह बना रहता था। इसलिये उसे सेना के सामने शराब के बर्तनों को तोड़कर तथा कुरान पर हाथ रखकर शराब न पीने की सौगंध खानी पड़ी। युद्ध क्षेत्र में बाबर प्रायः अत्यंत क्रूर होकर शत्रुओं का नाश करता था। बाबर ने अन्य मुसलमान आक्रांताओं की भाँति हिन्दुओं के विरुद्ध जेहाद का नारा बुलंद किया।

अर्सकिन ने बाबर का बचाव करते हुए लिखा है- ‘उसकी क्रूरताएं उस युग की द्योतक थीं न कि व्यक्ति की।’

निष्कर्ष

बाबर की नसों में तैमूरलंग तथा चंगेजखां जैसे क्रूर आक्रांताओं का रक्त बह रहा था। वह अपने युग के बड़े विजेताओं में से था। बाबर जिन्हें पसंद करता था, उनके साथ अच्छा व्यवहार करता था किंतु अपने शत्रुओं का सामूहिक नरसंहार करने में संकोच नहीं करता था।

उसने मध्य एशिया से आकर भारत में अफगानों और राजपूतों को परास्त करके ऐसे साम्राज्य की स्थापना की जिस पर उसके वंशज अगले दो सौ वर्षों तक शासन कर सके। वह दुःसाहसी योद्धा, कुशल घुड़सवार, दक्ष तलवारबाज, प्रतिभावान कवि, प्रकृति से प्रेम करने वाला, अप्रतिम विजेता तथा मुगल साम्राज्य का संस्थापक होने के साथ-साथ क्रूर, अत्याचारी, धर्मांध तथा कट्टर सुन्नी शासक था। हैवेल ने लिखा है कि बाबर इस्लाम के इतिहास का सबसे आकर्षक व्यक्ति था।

बाबर के अन्तिम दिन

बाबर की अस्वस्थता

24 जून 1529 को बाबर घाघरा से आगरा लौट आया। अफगानों के दमन के लिए प्रस्थान करने के पूर्व ही बाबर ने अपने पुत्र हुमायूँ को काबुल तथा बदख्शाँ की देखभाल करने के लिए भेज दिया था। आगरा लौटने पर उसने स्वयं भी काबुल की ओर प्रस्थान किया परन्तु वह केवल लाहौर तक ही जा पाया तथा गंभीर रूप से बीमार पड़ गया।

इतिहासकारों का मानना है कि शराब के अत्यधिक सेवन से बाबर का शरीर दुर्बल एवं बीमार हो गया था। इसलिये वह लाहौर से वापस आगरा लौट आया। इसी समय हुमायूँ को सूचना मिली कि प्रधानमन्त्री ख्वाजा निजामुद्दीन खलीफा, बाबर के बहनोई मीर मुहम्मद मेंहदी ख्वाजा को हुमायूँ के स्थान पर बाबर का उत्तराधिकारी बनाने का षड्यन्त्र रच रहा है।

इसलिये हुमायूँ काबुल से चलकर आगरा आ गया। इस कारण प्रधानमन्त्री ख्वाजा निजामुद्दीन खलीफा का षड्यन्त्र सफल नहीं हुआ। कुछ समय बाद बाबर ने हुमायूँ को संभल का शासक बनाकर भेज दिया।

बाबर की मृत्यु

बाबर की मृत्यु के पीछे मुस्लिम इतिहासकारों ने एक मिथक गढ़ा है जिसके अनुसार 1530 ई. के प्रारम्भ में हुमायूं सम्भल में बीमार पड़ा और उसकी दशा चिंताजनक हो गई। हुमायूँ को आगरा लाया गया परन्तु हकीमों की समस्त औषधियाँ निष्फल सिद्ध हुईं। तब ज्योतिषियों ने बाबर को परामर्श दिया कि ऐसे अवसर पर किसी मूल्यवान वस्तु का त्याग करना चाहिए।

बाबर ने अपने जीवन से अधिक मूल्यवान कोई दूसरी वस्तु नहीं समझी। उसने अपने पुत्र के पलंग की परिक्रमा की और उसके स्वस्थ हो जाने के लिए अल्लाह से दुआ मांगी। उसी दिन से हुमायूं का स्वास्थ्य सुधरने लगा और बाबर का स्वास्थ्य गिरने लगा। 26 दिसम्बर 1530 को आगरा में बाबर की मृत्यु हो गई।

आधुनिक इतिहासकार इस मिथक पर विश्वास नहीं करते। डॉ. एस. आर. शर्मा की खोज ने यह सिद्ध कर दिया है कि हुमायूँ की बीमारी ठीक हो जाने के छः माह बाद बाबर बीमार हुआ। बाबर की बीमारी का हुमायूँ की बीमारी से कोई सम्बन्ध नहीं था। बाबर के शव को पहले आगरा में दफनाया गया किंतु बाद में उसे काबुल ले जाया गया जहाँ उसे बाबर द्वारा पहले से ही नियत स्थान पर दफनाया गया।

हुमायूँ की उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्ति

अपनी आँखें बन्द करने से पहले बाबर ने हुमायूँ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया तथा उसे आदेश दिया कि वह अपने भाइयों के साथ सदैव सद्व्यवहार करे चाहे वे उसके साथ दुर्व्यवहार ही क्यों न करें। हुमायूँ ने अपने पिता की इस आज्ञा का आजन्म पालन किया। यद्यपि इस आज्ञा के कारण उसे बड़े कष्ट उठाने पड़े।

बाबर का भारतीय इतिहास पर प्रभाव

बाबर ने भारतीय इतिहास को कई प्रकार से प्रभावित किया-

(1.) अफगानों एवं राजपूतों की शक्ति का विनाश

बाबर ने अफगानों तथा राजपूतों की शक्ति को छिन्न-भिन्न करके उत्तरी भारत के राजनीतिक शक्ति संतुलन को बदल दिया।

(2.) भारत तथा मध्य एशिया के बीच सम्पर्क की स्थापना

बाबर ने एक बार पुनः भारत तथा पश्चिमी मध्य एशिया के बीच घनिष्ठ सम्पर्क स्थापित कर दिया जिसका राजनीतिक, व्यापारिक तथा सांस्कतिक दृष्टिकोण से बड़ा महत्त्व है।

(3.) भारत में नई रण पद्धतियों का प्रचलन

बाबर ने भारत में नई रण पद्धतियों का प्रचलन आरम्भ किया। उसने तुगलमा पद्धति की प्रभावी भूमिका को रणक्षेत्र में सिद्ध करके दिखा दिया जो आगे चलकर कई शासकों द्वारा अपनाई गई।

(4.) भारत में तोपों तथा तोपखानों का प्रचलन

बाबर ने पानीपत तथा खनवा के युद्धों में बड़ी तोपों का प्रयोग करके तोपखाने की उपयोगिता को सिद्ध किया जिससे भारतीय शासक समझ गये कि तोपखाने तथा अश्वारोहियों के संयुक्त मोर्चे के समक्ष बड़ी से बड़ी सेना का ठहरना कठिन है।

(5.) दुर्गों की अजेयता समाप्त

तोपखाने के प्रयोग ने भारत में दुर्गों की अजेयता को समाप्त कर दिया। तोपखाने के प्रयोग का न केवल सामरिक वरन् सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टिकोण से भी बहुत बड़ा महत्त्व है।

(6.) भारत में मंगालों के शासन की स्थापना

बाबर ने भारत में जिस वंश की स्थापना की, उसके वंशज अगले दो सौ वर्ष तक भारत पर शासन करते रहे।

(7.) हिन्दू राजकन्याओं से बलपूर्वक विवाह करने की परम्परा

बाबर ने चंदेरी के शासक मेदिनी राय की दो पुत्रियों को जबर्दस्ती अपने पुत्रों हुमायूँ तथा कामरान से ब्याह दिया था। बाबर के बाद भी मुगल बादशाहों तथा शहजादों में हिन्दू राजकुमारियों से जबर्दस्ती विवाह करने की परम्परा चलती रही।

(8.) मंगोलों के आक्रमण की समाप्ति

बाबर के भारत पर शासन स्थापित करने से पश्चिम दिशा से होने वाले मंगोलों के आक्रमण समाप्त हो गये।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मुख्य आलेख – मुगलों का राज्य विस्तार

बाबर का भारत आगमन

पानीपत का प्रथम युद्ध

खानवा की लड़ाई

घाघरा का युद्ध

बाबर का चरित्र तथा उसके कार्यों का मूल्यांकन

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