मुगल शासनव्यवस्था का मूल्यांकन करते समय हमें मध्ययुगीन परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिये। उस युग में धार्मिक कट्टरता की प्रधानता थी और कोई भी संस्था उससे अप्रभावित नहीं रह पाई थी।
उस युग में यातायात, आवागमन तथा संचार के साधनों का पर्याप्त विकास नहीं हो पाया था। केन्द्रीय सरकार के लिए शासन की प्रांतीय एवं जिला इकाइयों से निरन्तर सम्पर्क बनाये रखना सम्भव नहीं था। अनेक इतिहासकारों ने मुगल शासन व्यवस्था को मध्ययुग की श्रेष्ठ शासन व्यवस्था माना है।
दिल्ली सुल्तानों के समय में केन्द्रीय तथा प्रान्तीय स्तर पर शासन के मूलभूत सिद्धान्त व्यवस्थित नहीं हो पाये थे। उन्होंने इस देश में अब्बासिद संस्थाओं को लागू करने का प्रयास किया था परन्तु खलजी और तुगलक शासकों के अलावा अन्य सुल्तानों के समय में इस दिशा में विशेष प्रगति नहीं हो पाई। लोदी शासनकाल में अमीरों में कबीलाई भावना की प्रधानता तथा सुल्तान के साथ उनके समानता के दावे के कारण शासन व्यवस्था शिथिल पड़ गई थी और मुगल बादशाहों को केन्द्रीय शासन को नये सिरे से मजबूत बनाने के लिये नई व्यवस्थाएँ करनी पड़ीं।
मुगल शासनव्यवस्था का मूल्यांकन
बाबर एवं हुमायूँ की शासन व्यवस्था
बाबर और हुमायूँ को केन्द्रीय एवं प्रांतीय शासन व्यवस्था को संगठित करने का समय नहीं मिल सका। वे राज्य के विजेता तो थे किंतु उन दोनों की शासकीय प्रतिभा संदिग्ध है।
अकबर की शासन व्यवस्था
मुगल सल्तनत में शासन व्यवस्था स्थापित करने का श्रेय अकबर को जाता है। अकबर ने सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था विकसित करने के लिये निम्नलिखित नवाचार किये-
(1.) अधिकारियों के कार्यों एवं अधिकारों का विभाजन
अकबर ने प्रशासन की विभिन्न इकाइयों के कार्यों तथा अधिकारों का स्पष्ट विभाजन करके उनके उत्तरदायित्व को स्पष्ट कर दिया।
(2.) अधिकारियों पर दृष्टि रखने की व्यवस्था
अकबर ने विभागीय कार्यों के लिए विभिन्न अधिकारियों को नियुक्त किया तथा प्रत्येक अधिकारी पर दूसरे अधिकारी द्वारा दृष्टि रखने की व्यवस्था लागू की। प्रान्तीय शासन व्यवस्था इसका सबसे अच्छा उदारहण है। इस प्रकार की व्यवस्था से कोई भी पदाधिकारी अपनी गतिविधियों को केन्द्रीय सरकार से अधिक दिनों तक गुप्त नहीं रख सकता था तथा सामान्यतः विद्रोह करने के सम्बन्ध में भी नहीं सोच सकता था।
(3.) मनसबदारी प्रथा
अलाउद्दीन खलजी के समय से घोड़ों को दागने, सैनिकों का हुलिया नोट करने, दशमलव पद्धति के आधार पर सैनिकों का विभाजन करने आदि प्रथाएँ चली आ रही थीं। अकबर ने उन प्रथाओं को विकसित रूप देकर मनसबदारी प्रथा प्रारम्भ की।
(4.) दहसाला बंदोबस्त
शेरशाह के समय में भी राजा टोडरमल ने भू एवं राजस्व सम्बन्धी सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अकबर के सौभाग्य से उसे भी राजा टोडरमल की सेवाएं प्राप्त हो गईं। राजा टोडरमल ने मालगुजारी के क्षेत्र में पर्याप्त सुधार करके दहसाला बंदोबस्त को लागू किया।
जहाँगीर की शासन व्यवस्था
अकबर द्वारा स्थापित शासन व्यवस्था को उसके उत्तराधिकारियों ने थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ लागू रखा। जहाँगीर ने शासन व्यवस्था में किसी प्रकार का विशेष सुधार नहीं किया। उसके शासनकाल में अकबर की शासन व्यवस्था अपने मूलरूप में कायम रही।
शाहजहाँ की शासन व्यवस्था
शाहजहाँ के समय में भी अकबर कालीन शासन व्यवस्था चलती रही। शाहजहाँ ने शासन व्यवस्था में परिस्थ्तििवश मामूली सुधार किये।
औरंगजेब की शासन व्यवस्था
औरंगजेब इस्लाम का कट्टर अनुयायी था। अतः उसने इस्लामिक सिद्धान्तों को आधार बनाकर शासन व्यवस्था में कई बदलाव किये। शासन से उदारता लुप्त हो गई। हिन्दुओं को प्रजा का दर्जा नहीं दिया गया। उन पर जजिया एवं तीर्थ कर पुनः आरोपित कर दिये गये। हिन्दुओं के तीर्थस्थलों, देवालयों एवं देवमूर्तियों को भंग करना शासन का कर्त्तव्य हो गया।
मुगल शासनव्यवस्था का मूल्यांकन
औरंगजेब की मृत्यु के बाद परवर्ती अयोग्य एवं विलासी मुगल शासकों के समय शासन व्यवस्था में धीरे-धीरे इतने दोष उत्पन्न हो गये कि अन्त में मुगल साम्राज्य और मुगलवंश का ही पतन हो गया। फिर भी, मध्ययुग में लम्बे समय तक मुगल शासन व्यवस्था ने भारत को सुरक्षा तथा शान्ति प्रदान की। बाद में अंग्रेजों ने भी उस शासन व्यवस्था की उपादेयता को ध्यान में रखकर उसकी बहुत सी बातों को अपनाया।
मुख्य आलेख- मुगल शासन व्यवस्था एवं संस्थाएँ
मुगल शासनव्यवस्था का मूल्यांकन



