Sunday, August 24, 2025
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वैदिक साहित्य का महत्त्व

(1.) विश्व इतिहास में सर्वोच्च स्थान

वैदिक ग्रन्थों का, विशेषतः ऋग्वेद का विश्व इतिहास में सर्वोच्च स्थान है। वेद विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। इनकी रचना भारत की पवित्र भूमि में हुई। इन ग्रन्थों के कारण विश्व की समस्त संस्कृतियों में भारत का मस्तक सबसे ऊँचा है। ये ग्रन्थ सिद्ध करते हैं कि भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति, विश्व में सर्वाधिक प्राचीन है। पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति से आलोक प्राप्त हुआ।

(2.) उत्कृष्ट जाति के इतिहास की झांकी

वैदिक साहित्य से, उत्कृष्ट आर्य-जाति की झांकी प्राप्त होती है। आर्यों का विश्व की विभिन्न जातियों में ऊँचा स्थान है। यह जाति शारीरिक बल, मानसिक प्रतिभा तथा आध्यात्मिक चिन्तन में अन्य जातियों से कहीं अधिक श्रेष्ठ रही है इसलिए जिन ग्रन्थों में इन आर्यों के जीवन की झांकी मिलती है वे निश्चय ही बड़े महत्त्वपूर्ण हैं।

(3.) प्रारम्भिक आर्यों का इतिहास जानने का एकमात्र साधन

आर्यों के मूल-स्थान तथा उनके प्रारम्भिक जीवन का परिचय प्राप्त करने का एकमात्र साधन वैदिक ग्रन्थ हैं। यदि ये ग्रन्थ उपलब्ध न होते तो भारतीय आर्यों का सम्पूर्ण प्रारम्भिक इतिहास अन्धकारमय होता और उसका कुछ भी ज्ञान हमें प्राप्त नहीं हो सकता था।

(4.) हमारे पूर्वजों के जीवन का प्रतिबिम्ब

वैदिक ग्रन्थ हमारे पूर्वजों के जीवन का प्रतिबिम्ब हैं। इनका अध्ययन करने से हमें अपने पूर्वजों के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक जीवन का परिचय मिलता है। यदि वैदिक ग्रन्थ न होते तो हमें भी किसी बर्बर तथा असभ्य जाति की सन्तान कहा जा सकता था परन्तु इन ग्रन्थों ने हमें अत्यन्त सभ्य तथा सुसंस्कृत जाति की सन्तान होने का गौरव प्रदान किया है।

(5.) वैदिक धर्म के स्रोत

वैदिक साहित्य ही प्राचीन वैदिक आर्य का मूल स्रोत है।

(6.) हमारी सभ्यता का मूलाधार

वैदिक ग्रन्थ ही हमारी सभ्यता तथा संस्कृति के मूलाधार तथा प्रबल स्तम्भ हैं। जिन आदर्शों तथा सिद्धान्तों का इन ग्रन्थों में निरूपण किया गया है वे आदर्श तथा सिद्धांत भारतीयों के जीवन के पथ-प्रदर्शक बन गए। इन ग्रन्थों ने हमारे जीवन को सुंदर सांचे में ढाल दिया। यद्यपि भारत पर अनेक बर्बर जातियों के आक्रमण हुए जिन्होंने इसको बदलने का प्रयत्न किया परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। अनेक शताब्दियों के बीत जाने पर भी हमारे जीवन के आदर्श तथा सिद्धान्त वही हैं जिन्हें वैदिक ऋषियों तथा मुनियों ने निर्धारित किया था।

(7.) हिन्दू-धर्म का प्राण

वैदिक ग्रन्थ हिन्दू-धर्म के प्राण हैं। हिन्दू-धर्म के मूल सिद्धान्तों का दर्शन हमें वैदिक ग्रन्थों में ही होता है। सम्पूर्ण वैदिक साहित्य वास्तव में धर्ममय है। इसका कारण यह है कि ऋषियों ने भौतिक जीवन की अपेक्षा आध्यात्मिक जीवन को अधिक महत्त्व दिया था। वे इस जगत को नाशवान तथा निस्सार समझते थे। इसी से उन्होंने जीवन के प्रत्येक अंग पर धर्म की छाप डाल दी। हमारे ऋषियों ने समाज को धर्म की एक ऐसे लकुटी प्रदान की जिसके सहारे यह समाज आज तक सुरक्षित चला आ रहा है।

(8.) आध्यात्मिक विवेचन के कोष

वैदिक ग्रन्थ आध्यात्मिक विवेचन के विशाल कोष हैं। विश्व की किसी भी जाति के इतिहास में इतने विस्तृत तथा गहन रूप से आघ्यात्मिक विवेचन नहीं हुआ जितना वैदिक ग्रन्थों में हुआ है।

(9.) हिन्दू समाज के स्तम्भ

वैदिक ग्रन्थों को हम हिन्दू समाज का स्तम्भ कह सकते हैं। वैदिक ऋषियों ने हमारे समाज को सुचारू रीति से संचालित करने के लिए दो व्यवस्थाएँ की थीं। इनमें से एक थी वर्ण-व्यवस्था और दूसरी थी वर्णाश्रम धर्म इन्हीं दोनों स्तम्भों पर भारतीय समाज को खड़ा किया गया था और इन्हीं का अनुसरण कर समाज का चूड़ान्त विकास किया जाना था।

(10.) भारतीय भाषाओं की जननी

वैदिक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। संस्कृत से ही भारत की अधिकांश भाषाएँ निकली हैं। भारत की समस्त भाषाओं पर संस्कृत का थोड़ा-बहुत प्रभाव अवश्य पड़ा है। वास्तव में आर्य-परिवार की समस्त भाषाएँ इसकी पुत्रियां हैं तथा संस्कृत उनकी जननी है।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मूल लेख – वैदिक सभ्यता एवं साहित्य

वैदिक सभ्यता

वेद

वेदांग

वैदिक साहित्य का महत्त्व

वैदिक तथा द्रविड़ सभ्यता में अन्तर

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