वैदिक सभ्यता संसार की सबसे पुरानी सभ्यता है। यह देखकर आश्चर्य होता कि आज से 10 हजार साल पहले के युग में भी मानव ने इतनी उत्कृष्ट सभ्यता का विकास किया।
वैदिक सभ्यता एवं साहित्य की सत्य के प्रति ललक को ऋग्वेद के नासदीय सूक्त की इस ऋचा से समझा जा सकता है- न मुझे दाहिने का ज्ञान है और न बाएं, न मैं पूर्व दिशा को जानता हूँ और न पश्चिम को। मेरी बुद्धि परिपक्व नहीं है, मैं हताश तथा व्याकुल हूँ। यदि आप मेरा पथ प्रदर्शन करें तो मुझे इस प्रसिद्ध अभय ज्योति का ज्ञान हो जाएगा।
प्राचीन आर्यों की बस्तियां यूरोप से लेकर मध्य एशिया एवं भारत में सप्त-सिंधु प्रदेश तथा सरस्वती के तट तक पाई गई हैं किंतु आर्यों की सभ्यता का इतिहास निश्चत रूप से इन बस्तियों से भी पुराना है। आर्यों का प्राचीनतम साहित्य ई.पू. 2500 से मिलना आरम्भ हो जाता है किंतु संभव है कि भारत में आर्य इस अवधि से भी पहले से रह रहे हों।
प्राचीन आर्य संस्कृति के बारे में जानने के दो तरह के स्रोत उपलब्ध हैं-
(1.) पुरातत्त्व सामग्री: मृदभाण्ड, मुद्राएं, अस्त्र-शस्त्र, भवनावशेष आदि।
(2.) वैदिक साहित्य: वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, उपनिषद, सूत्र।
वैदिक-काल
वैदिक-काल, उस काल को कहते हैं जिसमें आर्यों ने वैदिक ग्रन्थों की रचना की। ये ग्रन्थ एक दूसरे से सम्बद्ध हैं और इनका क्रमिक विकास हुआ है। सबसे पहले ऋग्वेद तथा उसके बाद अन्य वेदों की रचना हुई। वेदों की रचना के बाद उनकी व्याख्या करने के लिए ब्राह्मण-ग्रन्थ रचे गए। वेदों तथा ब्राह्मण-ग्रन्थों की संख्या और उनका स्वरूप जब इतना विशाल हो गया कि उन्हें कंठस्थ करना कठिन हो गया तो उन्हें संक्षिप्त स्वरूप देने के लिए सूत्रों की रचना हुई।
इस सम्पूर्ण वैदिक साहित्य की रचना में सहस्रों वर्ष लगे। विद्वानों की मान्यता है कि वैदिक साहित्य की रचना ई.पू.4,000 से ई.पू.600 के बीच हुई। इसलिए इस काल को वैदिक-काल कहा जाता है तथा इस काल की आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहा जाता है।
वैदिक सभ्यता का काल विभाजन
वैदिक-काल को दो भागों में विभक्त किया गया है-
(1) ऋग्वैदिक-सभ्यता ( ई.पू.4,000 से ई.पू.1000 )
चारों वेदों में ऋग्वेद सर्वाधिक प्राचीन है। इसलिए ऋग्वेद काल की सभ्यता सर्वाधिक पुरानी है। ऋग्वेद के रचनाकाल के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं। पी. वी. काणे आदि कुछ विद्वान इस ग्रंथ को ई.पू.4000 से ई.पू.2500 के बीच रचा गया मानते हैं तो मैक्समूलर आदि विद्वान इसका रचना काल ई.पू.2500 से ई.पू.1000 के बीच मानते हैं। ऋग्वेद काल में आर्य लोग सप्त-सिन्धु क्षेत्र (सिन्धु, सरस्वती, परुष्णी, वितस्ता, शतुद्रि, अस्किनी, विपाशा नदियों का क्षेत्र) में निवास करते थे। इस काल की सभ्यता को ऋग्वैदिक सभ्यता कहते हैं।
(2) उत्तर-वैदिक सभ्यता (ई.पू.1000 से ई.पू.600)
उत्तर-वैदिक काल में यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् रचे गए। इनमें से अथर्ववेद की रचना ई.पू.1000 के आसपास हुई जबकि ब्राह्मण-ग्रंथ एवं आरण्यक ई.पू.600 तक रचे जाते रहे। उपनिषदों की रचना ई.पू. से ई.पू. के बीच हुई। इस काल में आर्य सभ्यता सरस्वती, दृशद्वती तथा गंगा नदियों के मध्य की भूमि में पहुँच गई थी और आर्यों ने छोटे-छोटे राज्य स्थापित कर लिए थे। इस प्रदेश का नाम कुरुक्षेत्र था। उत्तर-वैदिक-काल के आर्यों की सभ्यता का यहीं विकास हुआ। यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद की रचना इसी क्षेत्र में हुई। उत्तर-वैदिक-काल में ऋग्वैदिक सभ्यता का क्रमशः विकास होता गया और इसमें अनेक परिवर्तन होते चले गए।
(3) सूत्रकाल
वैदिक सभ्यता एवं साहित्य में तीसरा युग सूत्रकाल के नाम से अभिहित किया जा सकता है। उत्तर-वैदिक ग्रंथों की रचना सूत्र-ग्रंथों की रचना के आरम्भ होने के साथ समाप्त होती है। सूत्रों की रचना ई.पू.600 से ई.पू.200 तक हुई। इस अवधि को सूत्रकाल कहा जाता है।
मूल लेख – वैदिक सभ्यता एवं साहित्य
वैदिक सभ्यता