Monday, August 25, 2025
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हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य में अंतर

मध्यकालीन हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य का अंतर बहुत स्पष्ट है। इस काल में हिन्दू स्थापत्य को बड़े स्तर पर क्षतिग्रस्त किया गया तथा हिन्दू भवनों को तोड़कर उसी सामग्री से मुस्लिम स्थापत्य का निर्माण किया गया।

बारहवीं शताब्दी ईस्वी में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के साथ ही भारत में मुस्लिम स्थापत्य कला का प्रवेश हुआ। दिल्ली सल्तनत के तुर्क शासक अपने साथ जिस स्थापत्य कला को लेकर आए, उसका विकास ट्रान्स-ऑक्सियाना, ईरान, इराक, मिस्र, अरब, अफगानिस्तान, उत्तरी अफ्रीका तथा दक्षिण पश्चिम यूरोप की शैलियों के मिश्रण से हुआ था। इस मिश्रित स्थापत्य को ही भारत में मुस्लिम स्थापत्य कला कहा गया।

इस शैली की कुछ विशेषताएं इसे भारतीय स्थापत्य शैलियों से अलग करती थीं, जैसे- नोकदार तिपतिया मेहराब, मेहराबी डाटदार छतें, अष्टकोणीय भवन, ऊंचे गोल गुम्बज, पतली मीनारें आदि। इस शैली को सारसैनिक या इस्लामिक कला भी कहा जाता है।

हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य में अंतर

हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य में कई अंतर थे जिनमें से कुछ इस प्रकार से हैं-

(1.) भारतीय स्थापत्य में आदर्शवाद, काल्पनिकता, अलंकरण एवं रहस्य का समावेश था जबकि मुस्लिम स्थापत्य में यथार्थवाद, सादगी एवं वास्तविकता के तत्व अधिक थे।

(2.) भारतीय मंदिर पत्थरों में उत्कीर्ण एक मनोरम संसार का परिदृश्य प्रतीत होते हैं जबकि मुस्लिम स्थापत्य में बनी मस्जिदें सादगी का प्रतिबिम्ब प्रतीत होती हैं और उनका मुख सुदूर मक्का की दिशा में होता है।

(3.) मंदिर की दीवारों एवं शिखरों पर देवी-देवताओं एवं पौराणिक कथाओं का अंकन होता है जबकि मस्जिद की दीवारों पर कुरान की आयतें उत्कीर्ण की जाती हैं।

(4.) मंदिरों में देवी-देवताओं का मानवीय स्वरूप अंकित किया जाता है जबकि मस्जिद की दीवारों पर मानवीय आकृतियों का अंकन निषिद्ध होता है।

(5.) हिन्दू मंदिरों पर शिखर होते थे जबकि मुस्लिम इमारतों पर गोल गुम्बद होते थे।

(6.) हिन्दू मन्दिरों का गर्भगृह प्रकाश एवं वायु से रहित होता था जबकि मस्जिद का भीतरी भाग प्रकाश एवं वायु से युक्त होता था।

(7.) मंदिर का गर्भगृह छोटा होता था जबकि मस्जिद का मुख्यकक्ष विशाल होता था ताकि उसमें अधिक से अधिक लोग नमाज पढ़ सकें।

(8.) हिन्दू स्थापत्य में अलंकृत स्तम्भों एवं सीधे पाटों पर रखी अलंकृत छतों को प्रमुखता दी जाती थी जबकि इस्लामिक स्थापत्य में तिकाने मेहराबों, गोल गुम्बदों और लम्बी मीनारों को अधिक महत्त्व दिया जाता था।

(9.) हिन्दू मंदिरों के शिखरों पर कमल एवं कलश बनाए जाते थे, मंदिर के भीतरी स्तम्भों पर घण्टों, जंजीरों, घटपल्लवों, हथियों, कमल पुष्पों आदि का अंकन किया जाता था तथा खम्भों एवं छतों के जोड़ों पर कीचकों का अंकन किया जाता था किंतु मुस्लिम स्थापत्य में इस तरह के अलंकरणों का कोई प्रावधान नहीं था।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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