Friday, July 4, 2025
spot_img

पूर्वी रोमनसाम्राज्य का अंत (29)

ई.1453 में उस्मानिया तुर्कों अर्थात् ओट्टोमन तुर्कों ने पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी कुस्तुन्तुनिया को घेर लिया और कुस्तुंतुनिया के शासक कॉन्स्टेन्टीन ग्यारहवें को मार दिया। इस प्रकार पूर्वी रोमनसाम्राज्य का अंत हुआ।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

हमें पूर्वी रोमन साम्राज्य का इतिहास बीच में ही छोड़ना पड़ा था किंतु यहाँ उसकी चर्चा फिर से करनी होगी। पूर्वी रोमन साम्राज्य ई.395 से चल रहा था तथा ई.480 तक वह पश्चिमी रोमन साम्राज्य के राजाओं की नियुक्ति करता रहा था। ई.480 से ई.565 तक रोम के फ्रैंक राजा, पूर्वी रोम साम्राज्य के शासकों को अपना स्वामी मानते रहे किंतु यह सैद्धांतिक रूप से किया गया प्रदर्शन मात्र था, व्यावहारिक रूप से इस अवधि में रोम के शासक कुस्तुंतुनिया से पूरी तरह स्वतंत्र थे। इस सैद्धांतिक प्रदर्शन का कारण यह था कि ई.480 से 565 तक रोम के शासक फ्रैंक नामक विदेशी कबीले से थे। उन्हें रोम में विदेशी नहीं माना जाए इसलिए वे कुस्तुंतुनिया के राजाओं को अपने स्वामी होने की मान्यता देते थे। पूर्वी रोमन साम्राज्य के शक्तिशाली होने के उपरांत भी कुस्तुंतुनिया की तुलना में रोम का अधिक महत्त्व बना रहा तो इसका श्रेय रोम के कैथोलिक चर्च तथा पोप को जाता है। ईसाई जगत्, विशेषकर कैथोलिक ईसाई जगत् के लिए पूर्वी रोमन साम्राज्य की बजाय रोम तथा पोप अधिक आदरणीय एवं महत्त्वपूर्ण थे। फिर भी समस्त अच्छाइयों एवं बुराइयों, मजबूतियों एवं कमजोरियों को समेटे हुए पूर्वी रोमन साम्राज्य ई.1453 तक चलता रहा किंतु ई.1453 में विनाश के काले बादल कुस्तुंतुनिया पर मण्डराने लगे।

पोप के ताज से रसूल की पगड़ी अच्छी है

ई.1453 में उस्मानिया तुर्कों (ओट्टोमन तुर्कों) ने पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी कुस्तुन्तुनिया को घेर लिया। उस समय कुस्तुंतुनिया के लोग पोप से इतने नाराज चल रहे थे कि जब कुस्तुंतुनिया को मुसलमानों ने घेर लिया तो कुस्तुंतुनिया के कुछ सामंतों ने रोम के पोप से सहायता प्राप्त करने का सुझाव दिया। इस पर एक प्रभावशाली बेजंटाइन ईसाई सामंत ने सार्वजनिक रूप से यह वक्तव्य दिया कि ‘पोप के ताज से रसूल की पगड़ी अच्छी है।’

इस मानसिकता के चलते कुस्तुंतुनिया ने मुसलमानों का विशेष विरोध नहीं किया तथा स्वयं को उनके हाथों में सौंप दिया। कॉन्स्टेन्टीन (ग्यारहवां) इस साम्राज्य का अंतिम शासक था। 29 मई 1453 को उसे ऑटोमन सल्तनत के मुस्लिम सुल्तान द्वारा मार डाला गया। इस प्रकार पूर्वी रोमनसाम्राज्य का अंत हो गया।

ई.326 से ई.1453 तक सम्पूर्ण-प्रभुत्व-सम्पन्न 194 सम्राटों तथा 6 साम्राज्ञियों ने पूर्वी रोमन साम्राज्य अथवा बैजंटाइन एम्पायर पर शासन किया। इस सूचि में सह-सम्राट एवं कनिष्ठ सह-सम्राटों की गिनती शामिल नहीं है।

मुस्लिम सुल्तानों द्वारा सीजर की उपाधि छीनी गई

ऑटोमन तुर्कों ने कुस्तुन्तुनिया को इस्ताम्बूल कहकर पुकारा। उन्होंने सम्राट जस्टीनियन द्वारा छठी सदी में निर्मित ‘सांक्टा सोफिया’ के सुंदर गिरिजाघर को ‘आया सूफिया’ नामक मस्जिद में बदल दिया तथा चर्च की सम्पूर्ण सम्पदा लूट ली।

सुल्तान मोहम्मद (द्वितीय) ने स्वयं को ईसाई-संघ का सर-परस्त घोषित कर दिया तथा उसके बाद के एक सुल्तान ने जो ‘शानदार सुलेमान’ के नाम से विख्यात है, स्वयं को सीजर घोषित कर दिया। मुसलमान शासकों द्वारा सीजर की उपाधि धारण किए जाने के बाद यूरोपीय जाति के अजेय होने का दंभ चूर-चूर होकर बिखर गया।

मिस्ट्रास एवं ट्रेबिजोंड का पतन

कुस्तुंतुनिया पर तुर्कों का अधिकार हो जाने के बाद भी पूर्वी रोमन साम्राज्य के कुछ हिस्सों में ग्रीकों (यूनानी गर्वनरों) के राज्य कुछ और सालों तक चलते रहे। अंत में मिस्ट्रास नामक राज्य ई.1460 में और ट्रेबिजोंड नामक राज्य ई.1461 में समाप्त हो गए।

रोम पर खतरे के बादल

पूर्वी रोमनसाम्राज्य का अंत होने के बाद उस्मानिया तुर्कों के मन में नई आशाएं जन्म लेने लगीं। यहाँ से यूरोप के लिए रास्ता खुल जाता था। उस्मानिया तुर्क इसी रास्ते से यूरोप की तरफ बढ़ने लगे। उन्होंने जर्मनी और हंगरी को जीत लिया तथा अब वे रोम और वियेना की तरफ ललचाई दृष्टि से देखने लगे।

हंगरी की जीत के बाद इटली की सीमाओं तथा वियेना के दीवारों तक उनकी पहुँच सरल हो गई किंतु वियेना उन दिनों अपनी शक्ति के चरम पर था। इसलिए वियेना ने रोम के लिए ढाल का काम किया। फिर भी जब तक तुर्क यूरोप में थे, रोम के आकाश से खतरे के बादल टल नहीं सकते थे।

जांनिसार मुसलमान

तुर्कों ने कुस्तुंतुनिया के लोगों के इस्लामीकरण का एक विचित्र तरीका निकाला। वे ईसाइयों से कर नहीं लेकर उसके बदले में उनके छोटे-छोटे लड़कों को ले लेते थे। इन लड़कों को सैनिक-रईस की तरह पाला जाता था तथा इस्लामी शिक्षा दी जाती थी। इन लड़कों को जांनिसार कहा जाता था। कुछ ही वर्षों में कुस्तुंतुनिया क्षेत्र में ‘जांनिसार’ सेना बन गई।

इस प्रकार यूरोपीय मूल के मुसलमानों का एक समूह अस्तित्व में आया। इनका रक्त रोमन था किंतु शिक्षा इस्लामी थी। रहन-सहन रईसाना था किंतु काम युद्ध करना था। इनका जन्म ईसाई माता की कोख से हुआ था किंतु इनका लक्ष्य ईसाई धर्म का सफाया करना था।

इन जांनिसार मुसलमानों ने इस्लाम की बड़ी सेवा की तथा कुस्तुंतुनिया से ईसाइयत का नाम तक मिटा दिया। यूरोप के बहुत से देशों ने अपनी ताकत तुर्कों के विरुद्ध झौंक दी किन्तु फिर भी वे अगले 455 सालों तक कुस्तुंतुनिया पर अधिकार नहीं कर सके।

कुस्तुंतुनिया के गौरव का अंत

प्रथम विश्व युद्ध (ई.1914-19) के बाद ही तुर्कों को यूरोप से बाहर धकेला जा सका। यहाँ तक कि कुस्तुन्तुनिया भी यूरोप द्वारा फिर से हासिल कर लिया गया। उसके बाद कुस्तुन्तुनिया का मुस्लिम सुल्तान अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली बन गया किंतु यह स्थिति अधिक दिनों तक नहीं रही।

कुछ ही वर्षों बाद तुर्की नेता कमाल पाशा ने अंग्रेजों को कुस्तुन्तुनिया से मार भगाया। उसने तुर्की में एक गणराज्य की स्थापना की और इस प्रकार पूर्वी रोमन साम्राज्य की सैंकड़ों साल पुरानी राजधानी एक नवीन मुस्लिम गणराज्य की राजधानी बन गया।

तुर्की के शासक शीघ्र ही अपनी राजधानी अंगोरा अथवा अंकारा में ले गए और कुस्तुन्तुनिया एक उपेक्षित एवं सामान्य नगर बन कर रह गया। वह महान् पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी होने का गौरव तो खो ही चुका था, अब किसी छोटे से राज्य की राजधानी भी नहीं रहा था।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source