Sunday, August 24, 2025
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भारत की पाषाण सभ्यताएँ एवं संस्कृतियाँ

भारत की पाषाण सभ्यताएँ एवं संस्कृतियाँ कब आरम्भ हुईं, इसके बारे में कोई निश्चित तिथि नहीं दी जा सकती किंतु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि आज से कई लाख साल पहले भी भारत में ऐसा आदमी रहता था जो पत्थरों को हथियारों की तरह उपयोग में लेता था। भारत की पाषाण सभ्यताएँ एवं संस्कृतियाँ उसी आदमी की विकास यात्रा का अगला पड़ाव हैं।

आधुनिक विज्ञान के अनुसार आज से लगभग 454 करोड़ वर्ष पहले, आग के गोले के रूप में धरती का जन्म हुआ जो धीरे-धीरे ठण्डी होती हुई आज से लगभग 380 करोड़ साल पहले इतनी ठण्डी हो गई कि धरती पर एक-कोषीय जीव का पनपना संभव हो गया।

आज से लगभग 2.80 करोड़ वर्ष पहले धरती पर बंदरों का उद्भव हुआ। माना जाता है कि इन्हीं बंदरों में से कुछ बुद्धिमान बंदर अपने मस्तिष्क के आयतन, हाथ-पैरों के आकार, रीढ़ की हड्डी एवं स्वर-रज्जु (वोकल कॉड) की लम्बाई में सुधार करते हुए और विकास की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए, आदि-मानवों में बदल गए। विकास की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए इन्हीं आदि मानवों ने पाषाण सभ्यताओं को जन्म दिया। भारत की पाषाण सभ्यताएँ भी अनेक चरणों से होकर गुजरीं।

पाषाण-कालीन मानव संस्कृति का विकास

आस्ट्रेलोपिथेकस

धरती पर मानव का आगमन हिमयुग अथवा अभिनूतन युग (प्लीस्टोसीन) में हुआ जो एक भूवैज्ञानिक युग है। कहा नहीं जा सकता कि अभिनूतन युग का आरम्भ ठीक किस समय हुआ। पूर्वी अफ्रीका के क्षेत्रों में पत्थर के औजारों के साथ लगभग 35 लाख वर्ष पुराने मानव अवशेष मिले हैं। इस युग के मानव को आस्ट्रेलोपिथेकस कहते हैं। इस आदिम मानव के मस्तिष्क का आकार 400 मिलीलीटर था। यह दो पैरों पर खड़ा होकर चलता था किंतु यह सीधा तन कर खड़ा नहीं हो सकता था और शब्दों का उच्चारण करने में असमर्थ था, इसलिए इसे आदमी एवं बंदर के बीच की प्रजाति कहा जाता है।

यह पहला प्राणी था जिसने धरती पर पत्थर का उपयोग हथियार के रूप में किया। उसके द्वारा उपयोग में लाये गए पत्थरों की पहचान करना संभव नहीं है। क्योंकि उसने प्रकृति में मिलने वाले पत्थर को ज्यों का त्यों उपयोग किया था, उसके आकार या रूप में कोई परिवर्तन नहीं किया था।

होमो इरेक्टस

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होमो इरैक्टस का अर्थ होता है- ‘सीधे खड़े होने में दक्ष।’ इस मानव के 10 लाख वर्ष पुराने जीवाश्म इण्डोनेशिया के ‘जावा’ द्वीप से प्राप्त किए गए हैं। होमो इरैक्टस के मस्तिष्क का आयतन 1,000 मिलीलीटर था। इस आकार के मस्तिष्क वाला प्राणी बोलने में सक्षम होता है। इनके जीवाश्मों के पास बहुत बड़ी संख्या में दुधारी, अश्रु बूंद आकृति की हाथ की कुल्हाड़ियां और तेज धारवाले काटने के औजार तथा कच्चे कोयले के अवशेष मिले हैं। अनुमान है कि यह प्राणी कच्चा मांस खाने के स्थान पर पका हुआ मांस खाता था। उसने पशु-पालन सीख लिया था तथा वह अपने पशुओं के लिए नए चारागाहों की खोज में अधिक दूरी तक यात्राएं करता था। यह मानव लगभग 10 लाख साल पहले अफ्रीका से बाहर निकला। इसके जीवाश्म चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा भारत में नर्मदा नदी की घाटी में भी मिले हैं। वह यूरोप तथा उत्तरी धु्रव में हिम युग होने के कारण उन क्षेत्रों तक नहीं गया। यूरोप में उसने काफी बाद में प्रवेश किया। लगभग 7 लाख साल पहले तक वह 20 या 30 प्रकार के उपकरण बनाता था जो नोकदार, धारदार तथा घुमावदार थे। होमो इरैक्टस प्रजाति से दो उप-पजातियों ने जन्म लिया- (1.) निएण्डरथल और (2.) होमो सेपियन।

निएण्डरथल

आज से लगभग ढाई लाख साल पहले ‘निएण्डरथल’ नामक मानव अस्तित्त्व में आया जो आज से 30 हजार साल पहले तक धरती पर उपस्थित था। ये लम्बी-लम्बी भौंह वाले, ऐसे मंद-बुद्धि पशु थे जिनकी चेष्टाएं पशुओं के जैसी अधिक और मानवों जैसी कम थीं। अर्थात् ये भारी भरकम शरीर वाले ऐसे उपमानव थे जिनमें बुद्धि एवं समझ कम थी। चेहरे-मोहरे से नीएण्डरतल आज के आदमी से अधिक अलग नहीं थे फिर भी वे हमसे काफी तगड़े थे।

उनका मस्तिष्क भी आज के आदमी की तुलना में काफी बड़ा था किंतु उसमें जटिलता कम थी, सलवटें भी कम थीं और उसका मस्तिष्क उसके शरीर के अनुपात में काफी कम था। इस कारण निएण्डरतल अपने बड़े मस्तिष्क का लाभ नहीं उठा पाया। वस्तुतः निएण्डरतल आज की होमोसपियन जाति का ही सदस्य था। इसने भी पत्थरों के औजारों का उपयोग किया। आज से 30 हजार साल पहले यह उप-मानव धरती से पूरी तरह समाप्त हो गया। 

होमो सेपियन

आज से 5 लाख साल पहले ‘होमो इरेक्टस’ काफी-कुछ हमारी तरह दिखाई देने लगा। इसे ‘होमो सेपियन’ अर्थात् ‘हमारी जाति के’ नाम दिया गया। इस मानव के मस्तिष्क का औसत आयतन लगभग 1300 मिलीलीटर था। भारत में मानव का प्रथम निवास, जैसा कि पत्थर के औजारों से ज्ञात होता है, इसी समय आरम्भ हुआ। इस युग में धरती के अत्यंत विस्तृत भाग को हिम-परतों ने ढक लिया था।

होमो सेपियन सेपियन

आज से लगभग 1 लाख 20 हजार साल पहले आधुनिक मानव अस्तित्त्व में आ चुके थे। ये होमो सेपियन जाति का परिष्कृत रूप थे। इन्हें ‘होमो सेपियन सेपियन’ कहा जाता है।

क्रो-मैगनन मैन

आज से लगभग 40 हजार वर्ष पहले ‘होमो सेपियन सेपियन’ जाति के कुछ मनुष्य यूरोप में जा बसे। वे बौद्धिक रूप में अपने समकालीन नीएण्डरतलों से अधिक श्रेष्ठ थे। उनमें नए काम करने की सोच थी। वे अधिक अच्छे हथियार बना सकते थे जिनके फलक अधिक बारीक थे।

वे शरीर को ढकना सीख गए थे। उनके आश्रय स्थल अच्छे थे और उनकी अंगीठियां खाना पकाने में अधिक उपयोगी थीं। वे बोलने की शक्ति रखते थे। इन्हें क्रो-मैगनन मैन कहा जाता है। यह मानव लगभग 10 हजार वर्षों तक नीएण्डरथलों के साथ रहा जब तक कि नीएण्डरथल समाप्त नहीं हो गए। क्रो-मैगनन का शरीर निएण्डरथल के शरीर से बड़ा था। इसके मस्तिष्क का औसत आयतन लगभग 1600 मिलीलीटर था।

आज से 30 हजार साल पहले जब नीएण्डरथल समाप्त हो गए तब पूरी धरती पर केवल क्रो-मैगनन मानव जाति का ही बोलबाला हो गया जो आज तक चल रहा है। वस्तुतः क्रो-मैगनन मानव ही प्रथम वास्तविक मानव है जो आज से लगभग 40 हजार साल पहले अस्तित्त्व में आया। इस समय धरती पर उत्तरवर्ती हिमयुग आरम्भ हो रहा था तथा लगभग पूरा यूरोप हिम की चपेट में था।

पाषाण कालीन सभ्यताएं एवं संस्कृतियाँ

पाषाण-काल मानव सभ्यता की उस अवस्था को कहते हैं जब मनुष्य अपने दिन प्रतिदिन के कामों में पत्थर से बने औजारों एवं हथियारों का प्रयोग करता था तथा धातु का प्रयोग करना नहीं जानता था। मनुष्य ने जब  प्रथम बार पृथ्वी पर आखें खोलीं तो पत्थर को अपना हथियार बनाया। उस काल का मनुष्य, नितांत अविकसित अवस्था में था और जंगली जीवन व्यतीत करता था। जैसे-जैसे उसके मस्तिष्क का विकास होता गया, वह पत्थरों के हथियारों तथा औजारों को विकसित करता चला गया। इसी के साथ वह सभ्य जीवन की ओर बढ़ा। मानव की इस अवस्था के बारे में इतिहासकार डॉ. इश्वरी प्रसाद ने लिखा है- ‘मनुष्य औजार प्रयुक्त करने वाला पशु है।’

निःसंदेह संस्कृति की समस्त उन्नति, जीवन को सुखी एवं आरामदायक बनाने के लिए प्रकृति के साथ चल रहे युद्ध में, औजारों तथा उपकरणों के बढ़ते हुए उपयोग के कारण हुई है। मनुष्य का भौतिक इतिहास, मनुष्य के औजार विहीन अवस्था से निकलकर वर्तमान में पूर्ण मशीनी अवस्था में पहुँचने तक का लेखा-जोखा है। 

अध्ययन की दृष्टि से पाषाण युग को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है-

(1.) पूर्व-पाषाण काल (Palaeolithic Period)

(2.) मध्य-पाषाण काल (Mesolithic Period)

(3.) नव-पाषाण काल (Neolithic Period)

संस्कृति के ये तीनों काल एक के बाद एक करके अस्तित्त्व में आए किंतु ऐसे स्थल बहुत कम मिले हैं जहाँ तीनों अवस्थाओं के अवशेष देखने को मिलते हैं। विंध्य के उत्तरी भागों तथा बेलन घाटी में पूर्व-पाषाण-काल, मध्य-पाषाण-काल और नव-पाषाण-काल की तीनों अवस्थाएं क्रमानुसार देखने को मिलती हैं।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

यह भी देखें-

भारत की पाषाण सभ्यताएँ एवं संस्कृतियाँ

पूर्व-पाषाण कालीन सभ्यताएं (पेलियोलीथिक पीरियड)

मध्यपाषाण कालीन सभ्यताएँ (मीजोलिथिक पीरियड)

नवपाषाण कालीन सभ्यताएँ (निओलिथिक पीरियड)

भारत की आदिम जातियाँ (पाषाण युगीन जातियाँ)

भारत में ताम्राश्म संस्कृतियाँ

महापाषाण संस्कृति

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