जैसे ही बाबर को बारूद फैंकने वाली तोपें एवं बंदूकें बनाने वाले मिले, बाबर ने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। उसने अफगानिस्तान एवं मध्य-एशिया में अपने भारत अभियान की मुनादी करवाई तथा नौजवानों को अपनी सेना में भरती होकर भारत चलने का निमंत्रण दिया।
भारत से बड़ी मात्रा में मिलने वाले सोने, चांदी, गुलाम और सुंदर दासियों की लालसा में हजारों नौजवान बाबर की सेना में आ-आकर एकत्रित होने लगे। देखते ही देखते बाबर की सेना में पच्चीस हजार नौजवान एकत्रित हो गये।
ये नौजवान अपने राष्ट्र की रक्षा करने जैसे किसी पवित्र उद्देश्य के लिए एकत्रित नहीं हुए थे। अपितु अपने पड़ौस में स्थित भारत नामक एक सुखी और सम्पन्न राष्ट्र के सुख एवं सम्पत्ति को लूटकर अपना भविष्य संवारने के लालच में एकत्रित हुए थे!
बाबर की सेना में भरती होने वाले ये नौजवान कहने को तो मनुष्य ही थे किंतु वास्तव में वे दो हाथों एवं दो पैरों वाले धन-पिपासु एवं रक्त-पिपासु हिंसक जन्तु थे। मानवता के मूल्यों से विहीन, प्राणीमात्र के प्रति संवेदना से रहित, करुणा और प्रेम के सुख से अंजान, शांति के मूल्य से अपरिचित ये दुर्दांत लुटेरे शीघ्रातिशीघ्र शस्य-श्यामलाम् एवं सुजलाम्-सुफलाम भारत-भूमि को रौंदने, लूटने एवं नौंचने को लालायित थे।
ये नौजवान भारत को लूटकर अपना भविष्य बनाना चाहते थे, अपने कबीले का गौरव बनना चाहते थे, अपनी आने वाली पीढ़ियों को सुनाए जा सकने लायक इतिहास के नायक बनना चाहते थे किंतु वे नहीं जानते थे कि कुछ ही दिनों में उनमें से बहुतों के शव युद्ध के मैदानों में गिरकर नष्ट हो जाएंगे! जो लोग जीवित बचेंगे, वे भी सदा के लिए भारत में रह जाएंगे। वे नहीं जानते थे कि उनमें से एक भी नौजवान अपने कबीले और अपने कुटुम्ब के पास कभी भी लौट कर नहीं आएगा! वे रक्त के सौदागर थे जो अपना रक्त बहाने की कीमत पर भारत के निरीह एवं निर्दोष लोगों का रक्त बहाकर उनका सोना-चांदी और स्त्रियां छीनना चाहते थे।
उन नौजवानों को ज्ञात नहीं था कि काबुल से दिल्ली तक का मार्ग कितना कठिन है! वे नहीं जानते थे कि उन्हें खाने को भी प्रतिदिन मिलेगा या नहीं! उन्हें सोने को ठिकाना मिलेगा या नहीं! चलने को सवारी मिलेगी या नहीं! उनके हाथ-पैर भी सलामत बचेंगे या नहीं! वे जीवित भी बचेंगे या नहीं! वे बस इतना जानते थे कि भारत से उन्हें सोने-चांदी की मोहरें तथा सुंदर औरतें मिलेंगी, ढेरों गुलाम मिलेंगे जिन्हें मध्य-एशिया के बाजारों में बेचकर वे इतना धन कमा लेंगे कि उनका शेष जीवन ऐशो-आराम से कट जाएगा!
बाबर ने इन नौजवानों को बड़े-बड़े सपने दिखाए, उन्हें हथियार और बख्तरबंद दिए। घोड़े पर जीन कसना और उस पर सवारी करना सिखाया, घोड़े की पीठ पर बैठकर बंदूक और तलवार चलाना सिखाया। कुछ ही समय में बाबर की सेना सज गई।
काबुल के निकट डीहे याकूब में इस सेना को एकत्रित किया गया। गोला-बारूद, बंदूकों और तोपखाने से सुसज्जित पच्चीस हजार सैनिकों को देखकर बाबर की छाती घमण्ड से फूल गयी। वह जानता था कि इन पच्चीस हजार सैनिकों की ताकत उसके पूर्वज तैमूर लंग के बरानवे हजार अश्वारोही सैनिकों से कहीं अधिक है क्योंकि तैमूर के सैनिक केवल तीर, तलवार और भाले चलाना जानते थे जबकि बाबर के सैनिकों के पास मौत उगलने वाले बंदूकें और तोपें थीं जिनका मुकाबला भारत वाले किसी भी प्रकार से नहीं कर सकते थे।
बाबर ने अपनी सात सौ तोपों को घोड़ों की पीठ पर रखवाया। उस्ताद अली को सेना के दाहिनी ओर तथा मुस्तफा को सेना के बायीं ओर तैनात करके बाबर स्वयं सेना के केन्द्र में जा खड़ा हुआ। इसके बाद उसने सेना को हिन्दुस्तान की ओर कूच करने का आदेश दिया।
प्रयाण का आदेश मिलते ही बाबर की सेना में डफलियां और चंग बजने लगे, जोशीले गीत गाए जाने लगे तथा इन गीतों के माध्यम से नौजवान सिपाहियों को सोने-चांदी, भारत की सुंदर औरतों और युद्ध में काम आने पर जन्नत में मिलने वाली हूरों के हसीन सपने दिखाए जाते थे। अफगानिस्तान की बर्फीली और निर्जीव घाटियां तुमुल युद्ध-घोष से गूंजने लगीं।
बारूद और तोपों से लदे हुए घोड़ों एवं सैनिकों को हिन्दुस्तान की ओर बढ़ता हुआ देखकर बाबर की खूनी ताकत हिलोरें लेने लगी। आज उसमें इतनी शक्ति थी कि वह दुनिया की किसी भी सामरिक शक्ति से सीधा लोहा ले सकता था। देवभूमि भारत को रौंदने का बरसों पहले देखा गया बाबर का सपना शीघ्र ही पूरा होने वाला था।
इस समय बाबर की कुछ सेना बदख्शां में हुमायूँ के पास, कुछ सेना कांधार में कामरान के पास तथा कुछ सेना गजनी में ख्वाजा कलां के पास मौजूद थी। बाबर ने अपनी सेना का एक हिस्सा काबुल की रक्षा के लिए छोड़ा तथा शेष सेना को हिन्दुस्तान ले जाने का निश्चय किया।
बाबर का बड़ा पुत्र हुमायूँ इस समय 17 वर्ष का हो चुका था, बाबर ने उसे भी भारत अभियान पर ले जाने का निश्चय किया। अतः बाबर जब बागेवफा नामक स्थान पर पहुंचा तो वहीं ठहर गया तथा हुमायूँ को तुंरत सेना लेकर आने का आदेश भिजवाया। हुमायूँ काबुल होता हुआ 3 दिसम्बर 1525 को बागेवफा पहुंचा तथा अपने पिता बाबर की सेवा में उपस्थित हुआ।
बाबर ने अपने पुत्र हुमायूँ को पूरे पांच साल बाद देखा था किंतु बाबर ने उसे देखते ही फटकार लगाई कि वह एक मास विलम्ब से क्यों आया है! हुमायूँ को दो कारणों से विलम्ब हुआ था। एक कारण तो यह था कि बदख्शां की सेना ने प्रस्थान की तैयारी करने में काफी समय लगा दिया और दूसरा कारण यह था कि हुमायूँ की माता माहम बेगम ने हुमायूँ को कुछ दिनों के लिए काबुल में रोक लिया था।
इस अभियान में बाबर ने सेना द्वारा मदिरा-सेवन और माजून-सेवन के दिन निश्चित कर दिए ताकि उसकी सेना प्रतिदिन नशा करने की अभ्यस्त न हो जाए। अफगानिस्तान में अफीम को माजून कहते हैं। यद्यपि बाबर के शिक्षकों ने उसे कठोर चेतावनी दी थी कि यदि जीवन में उन्नति करनी है तो नशे का सेवन कभी नहीं करे किंतु संभवतः ई.1519 से बाबर ने शराब पीना तथा अफीम खाना शुरु कर दिया था।
वह कई तरह के नशे करता था जिनमें शराब, अरक, बूजा तथा माजून सम्मिलित थे। बाबर ने लिखा है कि कई बार पूरी रात तथा कई बार दिन भर शराब और माजून का सेवन होता था।
जब बाबर ‘बारीक आब’ नामक स्थान पर ठहरा हुआ था, तब लाहौर के शासक ख्वाजा हुसैन का आदमी 20 हजार शाहरुखी लेकर बाबर की सेवा में उपस्थित हुआ। बाबर ने इस राशि के लिए मालगुजारी शब्द का प्रयोग किया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि लाहौर के शासक ने बाबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी और बाबर को मालगुजारी देना स्वीकार कर लिया था।
बाबर ने यह राशि बल्ख शहर में रहने वाले सम्मानित लोगों को भिजवा दी। बीसवीं सदी के आरम्भ में भारत में नियुक्त रहे अंग्रेज अधिकारी अर्सकिन ने बाबर द्वारा दिए गए विवरण के आधार पर 20 हजार शाहरुखी का मूल्य बाबर के समय में एक हजार ब्रिटिश पौण्ड बताया है।
बाबर ने गजनी के गवर्नर ख्वाजा कलां को भी अपनी सेना लेकर आने के आदेश भिजवाए। वह भी एक बड़ी सेना लेकर बागेवफा में बाबर से आ मिला।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता