Friday, April 19, 2024
spot_img

17. बाबर ने पंजाब के शासक दौलत खाँ को घुटनों पर गिराकर सलाम करवाया!

17 नवम्बर 1525 को बाबर 25 हजार नौजवानों की एक सेना लेकर काबुल से भारत के लिए चल पड़ा। उसने बदख्शां से अपने बड़े पुत्र हुमायूँ को भी उसकी सेना के साथ बुलवा लिया ताकि वह भी इस अभियान पर चले। जब बाबर की सेना बीगराम पहुंची तो उसे लाहौर के शासक ख्वाजा हुसैन ने सूचना भिजवाई कि पंजाब का शासक दौलत खाँ तथा उसका पुत्र गाजी खाँ लगभग 30 हजार सैनिकों के साथ आ रहे हैं। उन्होंने कालानूर पर अधिकार कर लिया है तथा लाहौर के लिए बढ़ रहे हैं। इस कारण बाबर ने अपनी गति बढ़ा दी तथा 14 दिसम्बर 1525 को सिंधु नदी, 16 दिसम्बर को कचाकोट नदी और 24 दिसम्बर 1525 को झेलम नदीे पार करके पंजाब पहुंच गया।

बाबर ने इस मार्ग में स्थित जूद पर्वत का भी उल्लेख किया है जिसका प्राचीन नाम नमक की पहाड़ी था। बाबर ने इस क्षेत्र में रहने वाले बुगियालों का भी उल्लेख किया है जहाँ बरगोवह कबीला रहता था। बाद के इतिहासकारों ने इन्हें गक्खर कहा है। कुछ लोग इन्हें खोखर जाट मानते हैं।

25 दिसम्बर को बाबर ने लाहौर के लिए संदेशवाहक रवाना किए तथा वहाँ के गवर्नर को कहलवाया कि वह दौलत खाँ की सेना से युद्ध न करे तथा सियालकोट आकर मुझसे भेंट करे। बाबर के जासूसों ने बाबर को सूचना दी कि पंजाब के शासक दौलत खाँ ने वृद्धावस्था के बावजूद अपनी कमर में दो तलवारें बांध ली हैं तथा उसके पुत्र गाजी खाँ ने 30-40 हजार सैनिक एकत्रित कर लिए हैं। 27 दिसम्बर 1525 को बाबर चिनाब नदी के किनारे पहुंच गया।

29 दिसम्बर 1525 को बाबर तथा उसकी सेना ने सियालकोट पहुंचकर डेरा लगाया। बाबर ने लिखा है- ‘इस इलाके में जाट तथा गूजर बड़ी संख्या में रहते हैं जो रात में सैनिक शिविरों में घुसकर बैलों तथा भैंसों की लूटमार करते हैं। वे बड़े ही अभागे तथा निष्ठुर होते हैं। हमारा उनसे अभी तक पाला नहीं पड़ा था किंतु उस रात वे हमारे शिविर में घुस गए और लूटपाट करके भाग छूटे। मैंने उनकी खोज करवाई तथा जो भी पकड़े गए, उनके टुकड़े-टुकड़े करवा दिए।’

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

सैयद अतहर अब्बास रिजवी ने लिखा है- ‘बाबर ने इन्हें जाट तथा जट लिखा है, ये लोग पंजाब, सिंधु नदी के तट और सिविस्तान के मुसलमान किसान थे तथा यमुना के पश्चिम एवं आगरा तथा आसपास के जाटों से इनका कोई सम्बन्ध नहीं था।’

1 जनवरी 1526 को बाबर ने पंजाब के कालानूर नामक स्थान पर अधिकार कर लिया। 5 जनवरी को बाबर तथा उसकी सेना ने मिलवट का किला घेर लिया। पंजाब का शासक दौलत खाँ तथा उसका पुत्र गाजी खाँ इसी किले में मौजूद थे।

जब दौलत खाँ को लगा कि बाबर से पार पाना कठिन है तो दौलत खाँ ने बाबर के पास प्रस्ताव भिजवाया कि- ‘मेरा पुत्र गाजी खाँ बाबर के भय से जंगलों में भाग गया है। यदि मुझे क्षमा कर दिया जाए तो मैं मिलवट का किला आपको समर्पित करने तथा आपकी सेवा में उपस्थित होने को तैयार हूँ।’ इस पर बाबर ने दौलत खाँ को अभयदान देते हुए अपने पास बुलवाया।

जब दौलत खाँ बाबर के समक्ष उपस्थित हुआ तो बाबर ने उससे कहा कि वह घुटनों के बल झुककर सलाम करे। दौलत खाँ ने वैसा ही किया। इसके बाद बाबर ने एक दुभाषिये की सहायता से दौलत खाँ को फटकारा कि- ‘मैंने तुझे अपना पिता कहा, मैंने तेरी अभिलाषा से अधिक तुझे सम्मान दिया, मैंने तुझे तथा तेरे पुत्रों को बिलोचियों के दरवाजों की ठोकरें खाने से बचाया। तेरे परिवार तथा हरम को इब्राहीम लोदी की कैद से मुक्त करवाया। तातार खाँ की विलायत में तीन करोड़ तुझे प्रदान किया। मैंने तेरे साथ कौनसी बुराई की थी जो तूने इस प्रकार अपनी कमर में दोनों ओर तलवारें लटका कर मेरे राज्य पर आक्रमण किया?’

बाबर के इस कथन से ऐसा प्रतीत होता है कि जब दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी ने दौलत खाँ से नाराज होकर उसके परिवार को कैद कर लिया था तथा दौलत खाँ बलोचों से सहायता की याचना कर रहा था। तब बाबर ने दौलत खाँ की सहायता की थी तथा दौलत खाँ को न केवल दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी के कोप से बचाया था अपितु दौलत खाँ के पिता तातार खाँ के राज्य में से हिस्सा भी दिलवाया था।

बाबर द्वारा लिखे गए विवरण से यह भी ज्ञात होता है कि दौलत खाँ का बड़ा पुत्र गाजी खाँ तो अपने पिता के पक्ष में था किंतु दौलत खाँ का एक अन्य पुत्र दिलावर खाँ बाबर के पक्ष में था। इस कारण दौलत खाँ ने दिलावर खाँ को काफी समय तक जेल में भी रखा था। संभवतः ई.1519 में जब बाबर सिंधु नदी को पार करके पंजाब तक आया था, संभवतः उसी समय ये घटनाएं घटी होंगी।

7 जनवरी 1526 को बाबर ने मिलवट के दुर्ग के भीतर जाकर निरीक्षण किया। वहाँ बाबर ने एक विशाल पुस्तकालय देखा। यह पुस्तकालय दौलत खाँ के पुत्र गाजी खाँ का था। बाबर ने उस पुस्तकालय की कुछ श्रेष्ठ पुस्तकें अपने पुत्र हुमायूँ को दे दीं तथा कुछ श्रेष्ठ पुस्तकें कांधार दुर्ग की रक्षा कर रहे अपने दूसरे पुत्र कामरान को भिजवा दीं।

बाबर को संदेह था कि गाजी खाँ जंगल में नहीं भागा है अपितु इसी दुर्ग में कहीं पर छिपा हुआ है। गाजी खाँ तो इस दुर्ग में नहीं मिला किंतु उसकी बेगमें तथा बच्चे दुर्ग में ही मौजूद थे। बाबर ने दौलत खाँ तथा उसके कुछ अमीरों को भेरा के किले में ले जाकर बंद करने के आदेश दिए। जब बाबर का अमीर कित्ता खाँ बेग इन लोगों को लेकर जा रहा था, तब मार्ग में सुल्तानपुर नामक स्थान पर दौलत खाँ की मृत्यु हो गई।

बाबर ने मिलवट के दुर्ग से मिली सम्पत्ति बाकी नामक एक कर्मचारी को दी तथा उसे आदेश दिए कि- ‘वह यह सम्पत्ति लेकर बल्ख जाए तथा इसे वहाँ के सम्मानित लोगों और मेरे रिश्तेदारों को सौंप दे। साथ ही वहाँ से एक सेना लेकर तुरंत दिल्ली आ जाए।’

दौलत खाँ पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में, 10 जनवरी 1526 को बाबर की सेना ने जमकर शराब पी। बाबर ने लिखा है- ‘गजनी का गवर्नर ख्वाजा कलां कई ऊंटों पर शराब लदवाकर लाया था। उस रात ज्यादातर लोगों ने वही शराब पी, कुछ लोगों ने अरक भी पिया।’

अगले दिन बाबर ने अपनी सेना का एक टुकड़ा गाजी खाँ को ढूंढने के लिए आसपास के जंगलों में भिजवाया तथा स्वयं शेष सेना के साथ दिल्ली के लिए रवाना हो गया। इसी दौरान दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी का भाई अल्लाउद्दीन लोदी अपनी सेना के साथ बाबर की शरण में आया। इसे आलम खाँ भी कहा जाता था। बाबर ने लिखा है कि- ‘वह अपने भाई इब्राहीम लोदी से हारने के बाद पैदल तथा नंगा-बुच्चा मेरे पास पहुंचा। मैंने अपने कुछ अमीरों तथा सम्बन्धियों को उसके स्वागतार्थ घोड़ा देकर भेजा।’

अल्लाउद्दीन खाँ ने बाबर के समक्ष उपस्थित होकर उसकी अधीनता स्वीकार की। बाबर ने उसे भी अपने साथ ले लिया। जब बाबर जसवान घाटी में पहुंचा तो दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी के कई अमीरों ने बाबर को पत्र भिजवाकर भारत विजय के लिए शुभकमानाएं प्रेषित कीं। जसवान घाटी में कई छोटे-छोटे किले थे। हुमायूँ को इन किलों पर अधिकार करने भेजा गया। हुमायूँ ने न केवल इन किलों पर अधिकार कर लिया अपितु इन किलों से बड़ी राशि प्राप्त करके बाबर को समर्पित की।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source