Saturday, November 2, 2024
spot_img

4. रोम का प्राचीन धर्म

भारोपीय (हिन्द-यूरोपीय) धर्म

भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में यूरोप की सभ्यता एवं संस्कृति हजारों साल बाद की है। भारत में ऋग्वेद की रचना का काल यद्यपि पश्चिमी इतिहासकारों ने विवादास्पद बना दिया है तथापि आधुनिक भारतीय विद्वानों द्वारा खोजे गए साक्ष्यों के आधार पर यह माना जाता है कि ऋग्वेद की रचना ईसा से लगभग 4000 से 3000 साल पहले हुई। जबकि यूरोप में धर्म एवं दर्शन की चिंतन परम्परा ईसा से लगभग छः शताब्दियों पहले या उससे कुछ पहले आरम्भ होने के संकेत मिलते हैं।

हालांकि प्राचीन यूनानी एवं रोमन धर्म उत्तर-वैदिक ऋषियों के काल में अस्तित्व में आने लगे थे। इस काल में रोम एवं यूनान सहित लगभग सम्पूर्ण यूरोप का धर्म भारोपीय (हिन्द-यूरोपीय) धर्म था। यह मूर्तिपूजक और बहुदेववादी धर्म था। भारतीयों के धर्म में ‘एक अदृश्य ईश्वर’ की अवधारणा आरम्भ से ही मौजूद थी किंतु यूनानी एवं रोमन भारोपीय धर्म में ‘एक अदृश्य ईश्वर’ की अवधारणा नहीं थी। वे विभिन्न देवी-देवताओं को ही प्रकृति की विभिन्न शक्तियों का स्वामी मानते थे।

यूनानी देवताओं का उद्भव

रोमवासी अत्यंत प्राचीन काल से बहुदेववादी थे। वे मुख्यतः यूनानी देवताओं की पूजा करते थे। यूनानी देवताओं में ‘ज्यूस’ सर्वप्रमुख था। वस्तुतः यह प्राचीन भारतीय आर्यों द्वारा पूजित एवं ऋग्वेद में वर्णित ‘द्यौस’ नामक देवता ही था जिसे सभी देवताओं का राजा माना जाता था। देवराज ज़्यूस की पत्नी हीरा थी। ‘ज्यूस’ बादल, कड़कती बिजली और वज्र के देवता थे। वे इन्द्र की तरह वज्र लिए रहते थे।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

उनके लिए प्राचीन यूनान (ग्रीस) में कई सुंदर मंदिर बनाए गए थे। प्राचीन रोमन धर्म में पहले ज्यूस को ही पूजा जाता था किंतु बाद में ज्यूस के स्थान पर जुपीटर को प्रमुख देवता माना गया। जुपीटर को भारतीय ग्रंथों में ‘द्यौस्पितर’ तथा ‘वृहस्पति’ कहा गया है तथा उन्हें देवताओं का गुरु माना गया है। इस प्रकार प्राचीन रोम वासियों का धर्म भारतीय आर्य-धर्म पर आधारित था। इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि रोम नगर की स्थापना, पूर्व दिशा से आए आर्यों के समूहों ने की थी।

आरम्भ में रोम-वासियों में कुछ निश्चित देवी-देवताओं के प्रति आदर-भाव था। वे मुख्यतः यूनानी देवी-देवताओं की पूजा करते थे तथा उन्हें बलि भी देते थे किंतु जैसे-जैसे समय बदलता गया रोम-वासियों ने नए देवी-देवताओं को इस सूचि में जोड़ना आरम्भ कर दिया। उन्होंने युद्ध के देवता मार्स (मंगल) को भी देवताओं की सूचि में सम्मिलित कर लिया था जिसे वे रोम को बसाने वाले रेमस एवं रोमुलस का पिता मानते थे।

वे जुपीटर (वृहस्पति) को सबसे बड़ा देवता मानते थे जो आकाश से रोम वासियों को देखता था और उनकी रक्षा करता था। रोम नगर में कैपिटोलाइन  नामक पहाड़ी पर उन्होंने जुपीटर का मंदिर बना रखा था जिसमें वे जुपीटर की पत्नी जूनो (जो कि जुपीटर की बहिन भी थी) और जुपीटर की पुत्री मिनर्वा की पूजा करते थे। नेप्च्यून को वे समुद्र के देवता के रूप में तथा प्लूटो को पाताल लोक के देवता के रूप में पूजते थे।

बैक्कस, अपोलो, मरकरी, प्लूटो, सैटर्न, वुल्कन, मिथ्रास भी रोमन देवताओं में सम्मिलित थे। इनमें से अपेालो (सूर्य), सैटर्न (शनि) एवं मिथ्रास (मित्रादि) देवताओं के रूप में प्राचीन भारतीय आर्यों द्वारा भी पूजे जाते थे। सिरीस, फ़्लोरा, फ़ोर्तूना, डायना एवं वीनस भी रोमन देवियों में सम्मिलित थीं।

ये देवियां यूनानी एवं जर्मन धर्म में भी पूजी जाती थीं। कुछ कम महत्त्वपूर्ण एवं छोटे देवता (क्मउपहवके) भी थे जिनमें निमेसिस को प्रतिकार के देवता के रूप में, क्यूपिड को प्रेम की देवी के रूप में, पैक्स को शांति के देवता के रूप में तथा फूरीज को प्रतिशोध की देवी के रूप में पूजा जाता था।

धीरे-धीरे उन्होंने यूनानी देवी-देवताओं तथा अन्य देशों के देवी-देवताओं की पूजा करना बंद कर दी और केवल रोमन देवी-देवताओं अर्थात् मार्स, जुपीटर, जूनो, मिनर्वा, क्यूपिड एवं फूरीज आदि की ही पूजा करने लगे। ईसा के जन्म से पहले वाली शताब्दी में जूलियस सीजर के काल में रोमवासियों ने रोमन-सम्राटों को भी रोमन देवताओं की सूचि में सम्मिलित कर लिया।

रोमन देवी-देवताओं की प्रतिमाएं तथा मंदिर बनाए जाते थे तथा उन्हें पालतू पशुओं की बलि दी जाती थी। इस धर्म के आध्यात्मिक पक्ष के बारे में अब कोई जानकारी नहीं मिलती है किंतु भारतीय एवं यूनानी लोगों की तरह वे भी व्रत एवं उपवास करते थे। वे देवी-देवताओं के चमत्कारों, उनकी कृपाओं एवं उनके द्वारा कुपित होकर दिए जाने वाले कष्टों में भी विश्वास करते थे तथा देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए नरबलि भी देते थे। रोमन सम्राट भी इसी धर्म का पालन करते थे।

यहूदी धर्म से दूरी

ईसा से लगभग 2000 साल पहले बेबीलोन में यहूदी धर्म प्रकट हुआ। बहुदेववादी यूनानी धर्म की मान्यताओं से ठीक उलट, यह एकेश्वरवादी धर्म था जिसमें अवतारों तथा देवी-देवताओं को कोई मान्यता नहीं थी किंतु वे ईश्वर द्वारा भेजे जाने वाले दूतों एवं फरिश्तों में विश्वास करते थे। रोम तथा यूनान ने स्वयं को यहूदी धर्म से पूरी तरह अलग रखा किंतु विशाल रोमन साम्राज्य में समय के साथ लाखों यहूदी दूर-दूर तक फैल गए थे।

उनका मुख्य केन्द्र ‘फिलीस्तीन’ था जिसकी प्रांतीय राजधानी ‘जेरूसलम’ थी। यहूदी धर्मग्रंथ ‘इब्रानी भाषा’ में लिखा गया ‘तनख़’ है, जो वास्तव में ईसाइयों की बाइबिल का पूर्वार्द्ध है। इसे ‘ओल्ड टेस्टामेण्ट’ भी कहते हैं। इसी टेस्टामेंट में लिखा है कि एक दिन धरती पर मसीहा आएगा और यहूदियों का उद्धार करेगा।

हालांकि विशाल रोमन साम्राज्य में लाखों यहूदी रहते थे और यहूदियों की मुख्य भूमि जेरूसलम एवं फिलीस्तीन भी रोमन साम्राज्य के अधीन थे तथापि रोम के लोगों ने यहूदी धर्म को कभी नहीं अपनाया और इस धर्म से अंत तक दूरी बनाए रखी। वे इस धर्म से घृणा करते थे तथा अवसर मिलने पर यहूदियों की हत्या करने से नहीं चूकते थे।

रोम के प्राचीन धर्म के प्रति असंतोष

जिस समय ईसा का जन्म भी नहीं हुआ था, रोम में प्राचीन धर्म के प्रति असंतोष के स्वर उठने लगे थे। इटली के प्रसिद्ध कवि लूक्रेती ने अपनी कविताओं में, मृत्यु के बाद के जीवन को धोखा बताया और धार्मिक रूढ़ियों का उपहास उड़ाया। लूक्रेती रोमन सम्राट ऑक्टेवियन के काल में हुआ था तथा वर्जिल, होरेस और ओविद नामक कवि उसके समकालीन थे।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source