Saturday, July 27, 2024
spot_img

25. घोषित अतिथि

रानी मृगमंदा का घोषित अतिथि बन जाने के बाद प्रतनु को नागों के पुर में विशेष अधिकार प्राप्त हो गये। अब वह कहीं भी बिना रोक-टोक जा सकता था। प्रतनु ने अनुभव किया कि न केवल रानी मृगमंदा और उसकी सखियाँ अपितु समस्त नाग अनुचर, सैनिक एवं प्रहरी भी प्रतनु को विशेष सम्मान देते हैं। नागों के इस पुर में रहते हुए प्रतनु ने देखा कि नाग प्रजा ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सैंधवों से कहीं अधिक उन्नति की है। किसी प्रजा का व्यक्तिगत एवं सामूहिक जीवन इतना सुसंगठित हो सकता है, इसकी तो सैंधवों ने अभी कल्पना भी नहीं की है। प्रतनु ने सूक्ष्मता से नागों की जीवन शैली का अवलोकन किया। नागों के पास सैंधवों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ बीज, काष्ठ हल एवं अश्व उपलब्ध हैं। सैंधव तो खेत में स्वयं हल को खींचते हैं किंतु नाग अपने हलों को वृषभ तथा अश्वों की सहायता से खींचते हैं। प्रतनु ने अपने पिता से सुना था कि आर्यों के पास अश्व नामक  दृढ़ पशु है जिसपर बैठकर उन्होंने कालीबंगा को ध्वस्त किया था। उसी अश्व को नागों के पास देखकर वह आश्चर्य चकित था।

प्रतनु ने अनुभव किया कि सैंधवों की अपेक्षा नागों ने शिल्प, स्थापत्य, संगीत, नृत्य एवं ललित आदि कलाओं में अधिक कौशल अर्जित किया ही है, नागों की सामाजिक एवं शासकीय व्यवस्था भी श्रेष्ठ है। अपनी प्रजा को शत्रुओं से बचाने के लिये नागों ने युद्ध कला में जो कौशल अर्जित किया है, वह नागों का सर्वाधिक विलक्षण गुण है।

प्रतनु को ज्ञात हुआ कि जिस विवर को उसने अब तक देखा है वह तो नागों का एक लघु दुर्ग मात्र है जिसे नागों के राजा की सुरक्षा के लिये इस तरह बनाया गया है कि किसी शत्रु की दृष्टि उस पर न पड़ सके। पहले नागों का राजा  इस दुर्ग में न रहकर नाग प्रजा के साथ प्राचीन पुर में स्थित अपने प्रासाद में रहता था किंतु पिछले राजा ‘नागराज कर्कोटक’ के समय गरुड़ों ने छल से प्रासाद में प्रवेश करके नागराजा की हत्या कर दी थी। उसके बाद इस विवर में गुप्त दुर्ग का निर्माण किया गया। इस विवर तक पहुँचने के मार्ग इतने दुर्गम हैं कि सहसा तो कोई शत्रु यहाँ तक पहुँच ही नहीं सकता। यदि कोई शत्रु विवर के बाहरी प्रवेश द्वार तक पहुँच ही जाये तो भी प्रवेश द्वार से राजप्रासाद तक पहुँचने तक के मार्ग में इस तरह के गुप्त यंत्र लगाये गये हैं कि शत्रु के प्रवेश की सूचना दुर्ग के प्रत्येक रक्षक को स्वतः हो जाती है और शत्रु बंदी बना लिया जाता है।

विवर दुर्ग में स्थित राजप्रासाद से नागों के पुर तक पहुँचने के लिये भी गोपनीय मार्ग बना हुआ है। इस मार्ग पर भी गोपनीय यंत्र लगे हुए हैं जो अवांछित व्यक्ति के प्रवेश की सूचना राजप्रासाद के रक्षकों तक पहुँचा देते हैं। नागों की रक्षण व्यवस्था देखकर प्रतनु को आश्चर्य हुआ। नागों ने अपने शत्रु से छिपने के लिये ही नहीं अपितु शत्रु का प्रतिरोध करने के भी विशेष प्रबंध कर रखे हैं। अश्वारूढ़ नाग सैनिकों को तलवार चलाते हुए देखकर तो आश्चर्य से दांतो में अंगुली दबा ली प्रतनु ने।

यद्यपि नाग इसे लघु दुर्ग कहते हैं किंतु प्रतनु को यह अत्यंत विशाल प्रतीत होता था। प्रतनु ने अनुमान किया कि यदि यह लघु दुर्ग है तो नागों का मुख्य पुर कितना विशाल होगा! इस विशाल दुर्ग में प्रतनु के पथ प्रदर्शन के लिये हिन्तालिका अथवा निर्ऋति सदैव उसकी सेवा में उपस्थित रहती थीं। उन्होंने ही प्रतनु को बताया था कि नागराज कर्कोटक के कोई पुत्र नहीं था इसलिय नागराज की हत्या हो जाने के बाद नागों ने नागराज की पुत्री राजकुमारी मृगमंदा को अपनी रानी चुन लिया है। हिन्तालिका और निर्ऋति रानी मृगमंदा की ही लघु भगिनियां हैं किंतु रानी की सेवा में सखि और अनुचरी की भांति रहती हैं ताकि रानी के साथ किसी तरह का छल न हो सके। रानी मृगमंदा युवती हो जाने पर भी अब तक अविवाहित है।

हिन्तालिका और निर्ऋति ने प्रतनु को बताया कि रानी मृगमंदा ने प्रण किया है कि वह अपने से अधिक बुद्धिमान और योग्य पुरुष से विवाह करेगी और वही पुरुष नागों का अगला राजा होगा। नाग प्रजा के नियम के अनुसार नाग युवतियाँ शत्रु प्रजा को छोड़कर किसी भी प्रजा के युवक से विवाह कर सकती है किंतु रानी होने के कारण रानी मृगमंदा को किसी नाग युवक से ही विवाह करना होगा क्योंकि नागों के नियम के अनुसार नागों का राजा नाग ही हो सकता है, अन्य प्रजा से आया हुआ व्यक्ति नहीं।

  – ‘यदि रानी मृगमंदा किसी नागेतर [1] युवक से विवाह कर ले तो ?’ हिन्तालिका की बात सुनकर प्रतनु ने प्रश्न किया।

  – ‘क्या सैंधव पथिक ने रानी मृगमंदा को वरण [2] करने का निश्चय कर लिया है ?’ हिन्तालिका ने मुस्कुराते हुए पूछा।

प्रतनु पहले से ही जानता था कि उसके प्रश्न के उत्तर के रूप में एक नया प्रश्न उसके सामने आयेगा किंतु अब वह पहले की भांति हिन्तालिका और निर्ऋति के प्रश्नों से घबराता नहीं है। अतः बोला- ‘ ऐसा ही समझ लो।’

  – ‘तो मृगमंदा नागों की रानी नहीं रह सकेगी। उसके स्थान पर किसी अन्य को नागों का राजा बनाया जायेगा तथा रानी मृगमंदा को या तो उस युवक के साथ नागों का पुर त्याग कर जाना होगा या फिर सामान्य प्रजा के रूप में रहना होगा।’

  – ‘तो ठीक है, रानी मृगमंदा को मेरे साथ सप्तसैंधव प्रदेश चलने के लिये तैयार रहना चाहिये।’ प्रतनु ने मुस्कुराकर कहा।

  – ‘क्या सचमुच ऐसा भयानक विचार आपके मस्तिष्क में है पथिक!’ हिन्तालिका ने प्रतनु के हास्य का उत्तर हास्य से ही दिया।

  – ‘इसमें भयानक होने की क्या बात है ? क्या मैं रानी मृगमंदा के योग्य नहीं ?’

प्रतनु केवल परिहास कर रहा था किंतु हिन्तालिका उसका प्रश्न सुनकर गंभीर हो गयी। उसका पूरा चेहरा प्रश्नवाचक मुद्रा में तन गया प्रतीत होता था।

  – ‘क्या रानी मृगमंदा ने आपसे ऐसा कोई प्रस्ताव किया है ?’

  – ‘नहीं तो, क्यों ?’ इस बार चैंकने की बारी प्रतनु की थी।

  – ‘आपको संभवतः ज्ञात नहीं कि हम तीनों बहिनों ने प्रतिज्ञा कर रखी है कि हम तीनों एक ही पुरूष से विवाह करेंगी और उस पुरुष का चुनाव बड़ी बहिन होने के नाते रानी मृगमंदा करेंगी। यदि रानी मृगमंदा ने आपको चुन लिया है तो आपको मुझसे और हिन्तालिका से भी विवाह करना होगा।

  – ‘यदि ऐसी बात है तो मुझे रानी मृगमंदा से विवाह करने का निश्चय त्यागना होगा।’ मंद हास्य के साथ प्रतनु ने अपनी बात कही। वह पुनः परिहास पर उतर आया था।

  – ‘क्यों ? क्या मैं और निर्ऋति आपको अच्छी नहीं लगतीं ?’

प्रतनु ने अनुभव किया कि यह चर्चा हास्य की परिधि से बाहर निकलकर गंभीर होती जा रही है। अतः विनोद त्याग कर बोला- ‘तुम और निर्ऋति भी मुझे उतनी ही अच्छी लगती हो जितनी कि रानी मृगमंदा किंतु मैं तो यह सब तुमसे परिहास में कह रहा था। मेरा कोई विचार नहीं है कि मैं रानी मृगमंदा से विवाह करूँ। न ही रानी मृगमंदा ने इस विषय में मुझसे कुछ कहा है।’

  – ‘यदि रानी मृगमंदा आपके साथ विवाह का प्रस्ताव रखें तो भी आप मना कर देंगे?’

  – ‘हाँ! मैं उनसे विवाह के लिये मना कर दूंगा ?’

  – ‘क्यों ?’

  – ‘क्योंकि मैं प्रतिज्ञाबद्ध हूँ।’

  – ‘कैसी प्रतिज्ञा ?’

  – ‘प्रतिशोध की प्रतिज्ञा।’

  – ‘प्रतिशोध! कैसा प्रतिशोध ?’

प्रतनु नहीं चाहता था कि मोहेन-जो-दड़ो में उपस्थित हो गये अप्रिय प्रसंग को वह हिन्तालिका अथवा किसी अन्य से कहे किंतु जब एक बार प्रसंग छिड़ ही गया तो उसने मोहेन-जो-दड़ो के वार्षिकोत्वस से लेकर नृत्यांगना रोमा की प्रतिमा बनाने, पशुपति महालय के पुजारी द्वारा सैंधव राजधानी से निष्कासित किये जाने तथा रोमा के अभिसार और प्रणय निवेदन करने व प्रतनु द्वारा देवी रोमा को किलात के चंगुल से मुक्त करवाने का प्रण करने तक की सारी घटनायें कह डालीं।

प्रतनु का प्रत्युत्तर सुनकर हिन्तालिका आश्चर्य से मौन हो गयी। उसे इस बात पर विश्वास करना काफी कठिन हो गया कि इस क्षीण काया में सिमटा शिल्पी एक सम्पूर्ण सत्ता से टकराने और उससे प्रतिशोध लेने का संकल्प कर सकता है। उसने प्रतनु के विवरण पर कोई टिप्पणी नहीं की। एक बात वह अनुभव करती थी कि अत्यंत सामान्य दिखाई देने वाला यह युवक अत्यंत प्रतिभावान है। इसका सबसे बड़ा कमजोर पक्ष यह है कि यह युद्धकला से अनभिज्ञ है। फिर भी कौन जाने यह सचमुच ही एक दिन अपने संकल्प पूरे कर ले! काफी देर तक वह प्रतनु को नागों का दुर्गम विवर दुर्ग दिखाती रही।


[1] नाग के अतिरिक्त।

[2] विवाह हेतु चुनना

Previous article
Next article

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source