अंतिम खिलजी सुल्तान मुबारकशाह को मारकर एक भारतीय मुसलमान नासिरुद्दीन खुसरोशाह के नाम से दिल्ली के तख्त पर बैठ गया किंतु कुछ तुर्की अमीरों ने इसे अपने भविष्य के लिए खतरे की घण्टी समझा और वे ‘हिन्दुस्तान में इस्लाम खतरे में है’ का नारा देकर खुसरोशाह के विरुद्ध एकत्रित होने का प्रयास करने लगे।
इस अभियान का नेतृत्व मलिक गाजी नामक एक तुर्की अमीर ने किया जो दिपालपुर का गवर्नर था। वास्तव में इस अभियान की शुरुआत मलिक गाजी के पुत्र जूना खाँ ने की थी। जूना खाँ को फखरूद्दीन जूना भी कहा जाता था। वह शाही सेना के घोड़ों का अधिकारी था तथा अल्लाउद्दीन खिलजी के समय से मलिक काफूर के साथ बड़े अभियानों पर भेजा जाता था। उसने कुछ तुर्की अमीरों के साथ मिलकर सुल्तान को उसके तख्त से हटाने के लिए एक षड़यंत्र रचा तथा इस षड़यंत्र में अपने पिता मलिक गाजी को भी सम्मिलित कर लिया।
मलिक गाजी ने सिबिस्तान, मुल्तान तथा समाना के सूबेदारों से इस कार्य में सहयोग मांगा किंतु उन्होंने गाजी मलिक का समर्थन नहीं किया। इस पर गाजी मलिक ने मालवा के गवर्नर आईन मुल्क मुल्तानी से सहयोग मांगा किंतु उसने भी गाजी मलिक का सहयोग नहीं किया। इन तुर्की अमीरों को भारत में इस्लाम खतरे में नहीं लगता था।
इस पर गाजी मलिक ने सिबिस्तान, मुल्तान तथा समाना के उन तुर्की सेनापतियों से सहयोग मांगा जो एक हिन्दुस्तानी मुसलमान को सुल्तान के रूप में नहीं देखना चाहते थे। इन प्रांतों में नियुक्त तुर्की मूल के बहुत से अधिकारी गाजी मलिक का सहयोग करने को तैयार हो गए। ये लोग अपने प्रांतपतियों का साथ छोड़कर गाजी मलिक के झण्डे के नीचे एकत्रित हो गए तथा उन्होंने एक बड़ी सेना खड़ी कर ली। गाजी मलिक इस सेना को लेकर दिल्ली की ओर बढ़ा।
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जिस समय गुप्त रूप से ये षड़यंत्र चल रहे थे, तब गाजी मलिक का पुत्र जूना खाँ दिल्ली से निकल भागा तथा दिपालपुर पहुंचकर अपने पिता से मिल गया। जब गाजी मलिक की सेना दिल्ली की ओर बढ़ने लगी तब समाना के सूबेदार यकलाकी ने गाजी मलिक का मार्ग रोका। दोनों पक्षों में भीषण युद्ध हुआ जिसमें यकलाकी परास्त हो गया। जब गाजी मलिक की सेनाएं हिसार के निकट पहुंची तो सुल्तान खुसरोशाह के सौतेले भाई हिसामुद्दीन ने गाजी मलिक का मार्ग रोका किंतु हिसामुद्दीन भी पराजित हो गया।
अब गाजी मलिक अपनी सेना के साथ दिल्ली के निकट पहुंच गया। खुसरोशाह भी एक सेना लेकर उससे युद्ध करने के लिए आया। उसे विश्वास था कि वह गाजी खाँ को परास्त कर देगा किंतु आईन-उल-मुल्क सुल्तान खुसरो शाह को धोखा देकर अपनी सेना के साथ मालवा चला गया। इससे खुसरो की सेना छोटी रह गई। 5 सितम्बर 1320 को इन्द्रप्रस्थ के निकट गाजी मलिक तथा खुसरोशाह की सेनाओं में युद्ध हुआ। इस युद्ध में खुसरोशाह बड़ी वीरता से लड़ते हुए मारा गया।
इसके बाद गाजी मलिक की सेनाएं दिल्ली में घुस र्गईं तथा दिल्ली सल्तनत की सफाई का काम आरम्भ हुआ जिसके तहत तुर्की अमीरों ने भारतीय मुस्लिम अमीरों को ढूंढ-ढूंढकर मारा। इस्लाम के नाम पर तुर्की अमीरों ने भारतीय मुस्लिम अमीरों को मार डाला।
तुगलकों के सम्बन्ध में प्रारंभिक जानकारी फरिश्ता तथा इब्नबतूता के विवरणों से मिलती है। उन दोनों के अनुसार तुगलक, तुर्क थे। फरिश्ता के अनुसार तुगलक भारत में बलबन के समय आए थे जबकि इब्नबतूता के अनुसार तुगलक भारत में अल्लाउद्दीन खिलजी के समय सिंध से आए थे। भारत आने से पहले तुगलक, सिन्ध तथा तुर्किस्तान के बीच में निवास करते थे।
‘तारीखे रशीदी’ के रचयिता मिर्जा हैदर के अनुसार तुगलक मंगोल थे परन्तु उसकी बात सही नहीं है क्योंकि भारत में तुगलक वंश की स्थापना करने वाले गाजी मलिक को 29 बार मंगोलों से युद्ध करना पड़ा। यदि वह मंगोल होता तो मंगोलों से इतने युद्ध नहीं करता। यदि तुगलक मंगोल होते तो बलबन और अल्लाउद्दीन खिलजी उन्हें अपनी सेवा में नहीं रखते क्योंकि वे दोनों ही मंगोलों के बड़े शत्रु थे।
गाजी तुगलक का पिता मलिक तुगलक, बलबन का गुलाम था। उस समय तक मंगोल, तुर्कों के गुलाम नहीं होते थे। समकालीन इतिहासकारों ने लिखा है कि तुगलकों की आकृति तुर्कों से मिलती थी न कि मंगोलों से। तुर्की अमीरों के रहते यह संभव नहीं था कि गाजी तुगलक मंगोल होते हुए भी, सुल्तान की हत्या करके स्वयं सुल्तान बन जाता।
इब्नबतूता के अनुसार गाजी तुगलक का पिता मलिक तुगलक, बलबन का गुलाम था और उसकी माता पंजाब की जाट स्त्री थी परन्तु कुछ इतिहासकारों के अनुसार गाजी तुगलक अपने दो भाइयों रजब तुगलक तथा अबूबकर तुगलक के साथ खुरासान से भारत आया था। यदि यह बात सही है तो वह जाट स्त्री का पुत्र नहीं था।
तुगलक भाइयों ने अल्लाउद्दीन खिलजी के यहाँ नौकरी कर ली। गाजी तुगलक युद्धकला में कुशल था। इसलिए वह सुल्तान का कृपापात्र बन गया और दिपालपुर का गवर्नर बना दिया गया। अल्लाउद्दीन खिलजी के अंतिम दिनों में गाजी तुगलक की गिनती दिल्ली के प्रमुख अमीरों में होती थी। जब सुल्तान मुबारक खिलजी की हत्या करके खुसरोशाह दिल्ली के तख्त पर बैठा था तब गाजी तुगलक को खुसरोशाह का यह कार्य अच्छा नहीं लगा था।
गाजी तुगलक नहीं चाहता था कि भारत का कोई मुसलमान उच्च तुर्की अमीरों पर शासन करे। इसलिए गाजी तुगलक ने विद्रोह का झंडा उठाया। दिल्ली के कई तुर्की अमीर उसके साथ हो गए। दिल्ली के निकट इन्द्रप्रस्थ में गाजी तुगलक ने खुसरोशाह को परास्त करके उसकी हत्या कर दी। इसके बाद दिल्ली के अमीरों ने एक स्वर से गाजी तुगलक को अपना सुल्तान निर्वाचित किया।
कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि दिल्ली के तख्त पर बैठने से पहले गाजी तुगलक ने दिल्ली में खिलजी वंश के पुरुषों एवं लड़कों को ढुंढवाया ताकि यदि खिलजी राजकुल का कोई पुरुष या लड़का जीवित हो तो उसे दिल्ली का सुल्तान बना दिया जाए किंतु उसे खिलजी राजपरिवार का एक भी पुरुष अथवा लड़का नहीं मिला। इस पर वह स्वयं दिल्ली का सुल्तान बन गया। कहा नहीं जा सकता कि इस खोज में गाजी तुगलक ने कितनी ईमानदारी बरती थी!
सितम्बर 1320 में गाजी तुगलक दिल्ली के तख्त पर बैठ गया। उसने गयासुद्दीन तुगलक शाह गाजी की उपाधि धारण की। गाजी का अर्थ होता है काफिरों पर बिजली बनकर गिरने वाला। इस प्रकार गाजी तुगलक ने दिल्ली सल्तनत में तुगलक वंश के नाम से एक नये शासक वंश की स्थापना की। जब गाजी तुगलक खिलजी वंश के राजकुमारों की खोज करवा रहा था तो उसे खिलजी राजवंश की कुछ अविवाहित लड़कियां मिलीं। गाजी तुगलक ने उनके गुजर-बसर का प्रबंध किया तथा उनके विवाह करवाए। गाजी ने एक मंजे हुए राजनीतिज्ञ की तरह खुसरोशाह के रिश्तेदारों को उनके पदों पर पूर्ववत् बने रहने दिया। उन्हें न तो मारा गया और न उनके पदों से हटाया गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता