Monday, November 11, 2024
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सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी – 6: महात्मा बुद्ध के सामाजिक विचार

1. प्रश्न: बौद्ध धर्म का एक प्रमुख तत्त्व करुणा है। करुणा के कितने भेद कहे गए हैं?

उत्तर: करुणा के तीन भेद हैं-

(1.) स्वार्थमूलक करुणा: इस करुणा में स्वार्थ होता है। उदाहरणार्थ माता-पिता की अपनी संतान के प्रति करुणा स्वार्थमूलक करुणा है।

(2.) सहेतुकी करुणा: किसी भी प्राणी को कष्ट में देखकर हृदय का द्रवित हो जाना सहेतुकी करुणा है।

(3.) अहेतुकी या महाकरुणा: इसमें न तो मनुष्य का स्वार्थ होता है और न वह पवित्रता का ही विचार करता है। वह समस्त प्राणियों पर समान रूप से अपनी करुणा बिखेरता है।

2. प्रश्न: महात्मा बुद्ध ने मनुष्य का भाग्यविधाता किसे माना है?

उत्तर: महात्मा बुद्ध ने मनुष्य को स्वयं अपना भाग्यविधाता माना है। उनका मानना था कि मनुष्य अपने ही प्रयत्नों से दुःखों से छुटकारा प्राप्त कर सकता है। इसके लिए ईश्वरीय कृपा की आवश्यकता नहीं है।

3. प्रश्न: पाटिच्च समुप्पाद अथवा प्रतीत्य समुत्पाद किसे कहते हैं?

उत्तर: प्रतीत्यसमुत्पाद का अर्थ है- एक वस्तु के प्राप्त होने पर दूसरी वस्तु की उत्पत्ति अथवा एक कारण के आधार पर एक कार्य की उत्पत्ति। उसका सूत्र है- ‘यह होने पर यह होता है।’ दूसरे शब्दों में, इसे ‘कार्य-कारण नियम’ भी कह सकते हैं।

4. प्रतीत्य समुत्पाद को अन्य किन नामों से जाना जाता है?

उत्तर: (1) द्वादश निदान, (2) कार्य-कारण नियम।

5. प्रश्न: पाटिच्च समुप्पाद अथवा प्रतीत्य समुत्पाद का उल्लेख किस स्थान पर हुआ है?

उत्तर: बुद्ध के द्वितीय आर्य सत्य में द्वादश निदान का उल्लेख हुआ है। यह द्वादशनिदान का सिद्धांत ही प्रतीत्यसमुत्पाद कहलाता है।

इस प्रनोत्तरी का वीडियो देखें-

6. प्रश्न: प्रतीत्य समुत्पाद पर कौनसे सिद्धांत आधारित हैं?

उत्तर: कर्म का सिद्धांत, क्षणिकवाद, नैरात्म्यवाद, संघातवाद और अर्थक्रियाकारित्व आदि शेष समस्त सिद्धांत प्रतीत्यसमुत्पाद पर आधारित हैं।

7. प्रश्न: बुद्ध ने धम्म किसे कहा है?

उत्तर: प्रतीत्य समुत्पाद को अर्थात् कार्य-कारण सिद्धांत को।

8. प्रश्न: बुद्ध के अनुसार मनुष्य का जन्म बार-बार क्यों होता है?

उत्तर: बुद्ध के अनुसार किसी भी घटना के लिए कोई कारण अवश्य होता है। बिना कारण के कुछ भी नहीं घटित होता। इस सिद्धांत से इस सत्य की स्थापना हुई कि संसार में बारम्बार जन्म और उससे होने वाले दुःखों का सम्बन्ध किसी सृष्टिकर्ता से नहीं है, प्रत्युत उनके कुछ निश्चित कारण एवं प्रत्यय होते हैं।

9. प्रश्न: बुद्ध को अनीश्वरवादी क्यों कहा जाता है?

उत्तर: क्योंकि महात्मा बुद्ध ने ईश्वर को सृष्टि का निर्माणकर्ता नहीं माना है।

10. प्रश्न: बुद्ध के अनुसार मनुष्य के दुःखों का मूल कारण क्या है?

उत्तर: बुद्ध के अनुसार प्रतीत्य समुत्पाद को भूल जाना ही दुखों का मूल कारण है। प्रतीत्य समुत्पाद सापेक्ष भी है और निरपेक्ष भी। सापेक्ष दृष्टि से वह संसार है और निरपेक्ष दृष्टि से निर्वाण। जो प्रतीत्य समुत्पाद देखता है, वह धर्म देखता है और जो धर्म देखता है वह प्रतीत्य समुत्पाद देखता है। प्रतीत्य समुत्पाद के ज्ञान से मनुष्य के दुःखों का अंत हो जाता है।

11. बुद्ध का क्षणिकवाद क्या है?

उत्तर: प्रतीत्य समुत्पाद के सिद्धान्त से ही क्षणिकवाद अथवा परिवर्तनवाद का जन्म हुआ। बौद्ध दर्शन के अनुसार संसार और जीवन दोनों में से कोई नित्य नहीं है। उनकी स्वतंत्र सत्ता नहीं है। दोनों परिवर्तनशील हैं, इसलिए नाशवान हैं। महात्मा बुद्ध का कहना था कि जगत की प्रत्येक वस्तु प्रति क्षण बदलती रहती है, यहाँ तक कि आत्मा व जगत भी निरन्तर बदलता रहता है परन्तु संसार का यह परिवर्तन साधारण मनुष्य को दिखाई नहीं पड़ता। ठीक वैसे ही जैसे नदी का प्रवाह प्रति क्षण बदलते रहने पर भी पूर्ववत् ही प्रतीत होता है।

12. प्रश्न: महात्मा बुद्ध के अनुसार व्यक्ति का मूल्यांकन किस आधार पर होना चाहिए?

उत्तर: महात्मा बुद्ध ब्राह्मणवादी जाति-व्यवस्था के विरोधी थे। वे जन्म के आधार पर किसी को छोटा या बड़ा नहीं मानकर कर्म के आधार पर व्यक्ति का मूल्यांकन करने के पक्षधर थे।

13. प्रश्न: दास प्रथा एवं बेकारी के सम्बन्ध में महात्मा बुद्ध के क्या विचार थे?

उत्तर: महात्मा बुद्ध दास-प्रथा के विरोधी थे। उनकी मान्यता थी कि बेकारी एक अभिशाप है और राज्य का कर्त्तव्य है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी काम में लगाए रखे।

14. प्रश्न: राजतन्त्र के सम्बन्ध में महात्मा बुद्ध के क्या विचार थे?

उत्तर: बुद्ध राजतन्त्र के पक्ष में थे तथा राजा को समस्त भूमि का स्वामी मानते थे। उनके अनुसार आदर्श राजा वह है जो शस्त्रबल तथा दण्ड के बिना केवल नीति और धर्म के माध्यम से अच्छा शासन चला सके।

15. प्रश्न: महात्मा बुद्ध ने सामाजिक उन्नति के लिए कई बातों पर बल दिया?

उत्तर: महात्मा बुद्ध ने सामाजिक उन्नति के लिए हिंसा, निर्दयता, स्त्रियों पर अत्याचार, दुराचारण, चुगलखोरी, कटु भाषा तथा प्रलाप नहीं करने पर बल दिया।

16. प्रश्न: महात्मा बुद्ध कि दृष्टि में गृहस्थ के क्या कर्त्तव्य हैं?

उत्तर: बुद्ध की मान्यता थी कि प्रत्येक गृहस्थ को अपने माता-पिता, अचार्य, पत्नी, मित्र, सेवक और साधु-सन्यासियों की सेवा करनी चाहिए।

17. प्रश्न: महात्मा बुद्ध ने क्रोध को जीतने के क्या उपाय बताए?

उत्तर: महात्मा बुद्ध के अनुसार बैर से बैर नहीं मिट सकता अतः प्र्रेम का सहारा लेना चाहिए। अक्रोध से क्रोध को जीतना चाहिए। दूसरे के दोषों को देखने की आदत नहीं रखनी चाहिए।

18. प्रश्न: महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य को अपना जीवनयापन किस प्रकार करना चाहिए?

उत्तर: महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य को अपने मन, वचन एवं कर्म को संतुलित रखकर जीवनयापन करना चाहिए।

19. प्रश्न: महात्मा बुद्ध ने अहिंसा परमोधर्मः का विचार कहाँ से लिया?

उत्तर: उपनिषदों से।

20. प्रश्न: महात्मा बुद्ध ने अपने अनुयाइयों को कितनी श्रेणियों में विभाजित किया?

उत्तर: दो श्रेणियों में – (1) भिक्षु तथा (2) उपासक।

21. प्रश्न: महात्मा बुद्ध ने अपने अनुयाइयों को दो श्रेणियों में विभक्त क्यों किया?

उत्तर: क्योंकि महात्मा बुद्ध जानते थे कि सब मनुष्य एक जैसे कठोर नियमों का पालन नहीं कर सकते। इसलिए उन्होंने अपने अनुयाइयों को ‘भिक्षु’ तथा ‘उपासक’ नामक दो श्रेणियों में विभाजित कर दिया।

22. प्रश्न: भिक्षु किन्हें कहते थे?

उत्तर: भिक्षु उन्हें कहते थे जो गृहस्थ जीवन छोड़कर बुद्ध के समस्त उपदेशों का पूर्ण पालन करते हुए बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में जीवन व्यतीत करते थे।

23. प्रश्न: बौद्ध धर्म में स्त्री भिक्षुओं को क्या कहते हैं?

उत्तर: भिक्खुणी अथवा भिक्षुणी। बुद्ध ने स्त्रियों को भी भिक्षुणी बनने का अधिकार दिया। उन्हें भी पुरुष-भिक्षुओं की भाँति कठोर नियमों का पालन करना पड़ता था।

24. गृहस्थ स्त्री-पुरुषों को क्या कहा जाता था?

उत्तर: गृहस्थ स्त्री-पुरुषों को उपासक एवं उपासिका कहा जाता था। वे गृहस्थ जीवन में रहकर, बुद्ध द्वारा बताए गए नियमों का पालन करते थे।

25. भगवान बुद्ध ने बौद्ध संघ की स्थापना क्यों की?

उत्तर: भिक्षु-वर्ग को संगठित एवं संयमी बनाए रखने के लिए बुद्ध ने बौद्ध-संघ की स्थापना की। संघ में भिक्षुओं को निर्धारित दिनचर्या और कार्यक्रम के अनुसार जीवन बिताना पड़ता था। संघ में जाति-पाँति का भेद नहीं था और न ही इसका कोई अधिपति होता था। संघ का मुख्य काम बौद्ध धर्म का प्रचार करना था।

26. संघ में भिक्षु एवं भिक्षुणियों के रहने की क्या व्यवस्था थी?

उत्तर: संघ में रहने वाले भिक्षु-भिक्षुणियों के लिए अलग-अलग मठ बने होते थे जहाँ वे त्यागमय एवं सादा जीवन बिताते थे।

27. प्रश्न: बौद्ध भिक्षुओं को वर्ष में कितने माह मठ में रहने की अनुमति होती थी?

उत्तर: भिक्षु-भिक्षुणियों को वर्ष के आठ माह तक समाज में घूम-घूमकर बौद्ध धर्म का प्रचार करना होता था। वे चार माह तक मठ में रहते हुए आत्मचिन्तन एवं साधना करते थे।

28. प्रश्न: बौद्ध मठों का संगठन किस आधार पर किया गया था?

उत्तर: बौद्ध संघ को गणतन्त्रात्मक प्रणाली के आधार पर संगठित किया गया था। संघ सम्बन्धी कार्यों में प्रत्येक भिक्षु के अधिकार समान थे। संघ की बैठकों में उपस्थित रहना अनिवार्य था। अनुपस्थित भिक्षु किसी दूसरे व्यक्ति के माध्यम से अपना मत प्रकट करवा सकता था।

29. प्रश्न: संघ द्वारा निर्णय लेने की क्या प्रक्रिया थी?

उत्तर: संघ का कोई भी सदस्य संघ की बैठक में प्रस्ताव एवं मत दे सकता था। बहुमत के द्वारा निर्णय लिए जाते थे। प्रत्येक प्रस्ताव को तीन बार प्रस्तुत और स्वीकृत किया जाता था। तभी वह ‘नियम’ बनता था।

30. प्रश्न: आसन-प्रज्ञापक किसे कहते थे?

उत्तर: संघ की सभाओं में सदस्यों के बैठने की व्यवस्था करने वाले को ‘आसन-प्रज्ञापक’ कहते थे।

31. प्रश्न: ज्ञाप्ति एवं नति किसे कहा जाता था?

उत्तर: बैठक में प्रस्ताव रखने वाले को प्रस्ताव की सूचना बैठक से पहले देनी होती थी। इस कार्यवाही को ‘ज्ञाप्ति’ कहा जाता था। प्रस्ताव को ‘नति’ कहा जाता था।

32. प्रश्न: अनुस्सावन अथवा कम्मवाचा किसे कहा जाता था?

उत्तर: प्रस्ताव प्रस्तुत करने को अनुस्सावन अथवा कम्मवाचा कहा जाता था।

33. संघ में मतदान की क्या प्रक्रिया होती थी?

उत्तर: बैठक में प्रत्येक प्रस्ताव पर विचार-विमर्श होता था और उसके बाद प्रस्ताव पर मतदान होता था। कभी-कभी शलाकाओं द्वारा मतदान की व्यवस्था की जाती थी। संघीय-सभा करने के लिए 30 सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक थी। कोरम के अभाव में सभा की कार्यवाही अवैध समझी जाती थी।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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