Saturday, July 27, 2024
spot_img

लाल किले की रंगीनियाँ

शाहजहां के काल में गहरी जड़ें जमा चुकीं लाल किले की रंगीनियाँ औरंगजेब को फूटी आंख नहीं सुहाती थीं। वह इन रंगीनियों को इस्लाम विरोधी समझता था। इसलिए उसने लाल किलों से रंगीनियों को मार भगाया!

भारत में मुगलों का प्रवेश क्रूर आक्रांताओं के रूप में हुआ था जो भारत से हिन्दू धर्म का नाश करके इस्लाम का प्रचार करना चाहते थे किंतु बाबर को इस कार्य का अवसर ही नहीं मिला था और उसका पुत्र हुमायूँ अपने दुर्भाग्य के कारण जीवन भर लड़खड़ाता रहा और आकस्मिक मृत्यु को प्राप्त हुआ।

अकबर ने बाबर और हुमायूँ के जीवन से सबक लेते हुए हिन्दू धर्म के विनाश के तरीके बदल दिए थे। उसने हिन्दुओं के लिए वैवाहिक सम्बन्धों पर आधारित ‘मधु-मण्डित नीति’ अर्थात् ‘शुगर कोटेड पॉलिसी’ तैयार की जिसे वह सुलह कुल की नीति कहता था। उसने उत्तर भारत के बड़े हिन्दू राजाओं की बेटियों से ब्याह करके उनकी निष्ठाओं को सदैव के लिए प्राप्त कर लिया तथा उनके माध्यम से मुगल सल्तनत के विस्तार का काम आरम्भ किया। 

जहांगीर ने भी अपने पिता अकबर की नीति का अनुसरण किया और हिन्दू राजाओं से दोस्ती रखने के नाम पर उन पर उनकी बहिन-बेटियों से विवाह किए और उन्हें मुगलिया सल्तनत के विस्तार कार्य पर लगाए रखा। शाहजहाँ ने भी अकबर और जहांगीर की ‘मधु-मण्डित नीति’ का अनुसरण किया। शाहजहाँ का बड़ा पुत्र दारा शिकोह इस्लाम की बजाय सूफी मत का अनुयायी था किंतु जब औरंगजेब लाल किलों का स्वामी हुआ तो उसने मुगलों की ‘मधु-मण्डित नीति’ का त्याग कर दिया।

इस समय भारत का अंग-प्रत्यंग मुस्लिम शासन के अधीन जकड़ा हुआ था। इसलिए औरंगजेब को लगा कि अब मुगलों के लिए ‘मधु-मण्डित नीति’ की आवश्यकता नहीं है। उसने मुगल शहजादों एवं शहजादियों के विवाह अपने ही मरहूम भाइयों की संतानों से कर दिए और उनके माध्यम से भारत से हिन्दू धर्म, सिक्ख मत, सूफी मत एवं शिया मत को नष्ट करने का काम आरम्भ कर दिया।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

औरंगजेब की दृष्टि में नाचना, गाना, चित्रकारी करना, मूर्ति बनाना, कलात्मक भवन बनाना आदि कार्य कुफ्र के कार्य थे क्योंकि इन सब कलाओं में मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों की आकृतियों का निर्माण किया जाता था जबकि इन आकृतियों के निर्माण का कार्य केवल अल्लाह ही कर सकता था। अतः औरंगजेब ने अकबर, जहांगीर और शाहजहाँ के समय से लाल किलों में रह रहे गवैयों, नचकैयों, संगतराशों और रंगसाजों को मार भगाया।

बहुत से कलाकार तो स्वयं ही लाल किलों को छोड़कर जयपुर, जोधपुर, बूंदी, कोटा, किशनगढ़ एवं उदयपुर के हिन्दू राजाओं के संरक्षण में चले गए। अब लाल किलों में गूंजने वाली तानसेन की मौसीकी और अनारकली के मुजरे, गुजरे जमाने की बातें हो गए थे।

To purchase this book, please click on photo.

अकबर से लेकर जहांगीर और शाहजहाँ तीनों ही शराब पीने के शौकीन थे। इसलिए दिल्ली और आगरा के लाल किलों के आसपास तरह-तरह की शराब बनाने वालों एवं देश-विदेश से शराब मंगवाकर बेचने वालों ने डेरे जमा रखे थे। औरंगजेब ने न केवल शराब बनाने और बेचने वालों को लाल किलों से दूर कर दिया अपितु पियक्कड़ों की जमातों को भी लाल किलों से बाहर निकाल दिया।

भारत भर के राजा, अमीर, धनी व्यापारी, विभिन्न विद्याओं के पारंगत और कलाकार इन लाल किलों के चारों और मण्डराते रहते थे ताकि किसी दिन उनकी किस्मत का ताला खुले और वे भी मुगलिया सल्तनत में ऊंचा ओहदा तथा माल पाने में सफल हो सकें। इन लोगों को लुभाने के लिए दिल्ली और आगरा के लाल किलों के चारों ओर रक्कासाओं, वेश्याओं और भाण्डों का मेला लगा रहता था।

लाल किले की रंगीनियाँ न केवल हिंदुस्तान में अपितु पूरे मध्य एशिया एवं पश्चिम एशिया में भी विख्यात हो गईं।

बहुत से सूबेदार, नवाब, राजा और राजकुमार आगरा और दिल्ली से नृत्यांगनाओं और वेश्याओं को अपने राज्य में ले जाते थे और उन्हें बड़ी शान से अपने महलों में रखते थे। औरंगजेब ने इन रक्कासाओं, वेश्याओं और भाण्डों को दिल्ली और आगरा के लाल किलों से दूर खदेड़ दिया।

अकबर के जमाने से मुगल बादशाह सुबह-सेवेरे उठकर अपनी प्रजा को झरोखा दर्शन दिया करते थे। जहाँगीर तथा शाहजहाँ ने भी इस परम्परा को जारी रखा था किंतु औरंगजेब ने इस प्रथा को बन्द करवा दिया क्योंकि यह प्रथा, हिन्दुओं की देव-दर्शन प्रथा से मिलती थी और इसमें से बुतपरस्ती की गंध आती थी। 

अकबर के समय से आगरा के लाल किले में बादशाह की वर्षगाँठ, नौरोजा, ईद तथा होली-दीवाली के समारोह मनाए जाते थे। मुस्लिम अमीरों, सूबेदारों, हिन्दू राजाओं तथा जनसामान्य को इन समारोहों में सम्मिलित होने और बादशाह को उपहार तथा भेंट देने की अनुमति होती थी। औरंगजेब ने इस प्रथा पर भी रोक लगा दी क्योंकि यह गैर-इस्लामिक जान पड़ती थी।

अकबर के समय से आगरा के लाल किले में नौरोज का त्यौहार बहुत जोर-शोर से मनाया जाता था। इस त्यौहार पर जैसी धूम होती थी, वैसी धूम उस काल में दुनिया के किसी अन्य त्यौहार में नहीं होती थी। औरंगजेब ने इसे भी इस्लाम-विरुद्ध एवं लाल किले की रंगीनियाँ मानकर इस पर रोक लगा दी।

अकबर ने आगरा के लाल किले में मीना बाजार लगाने की परम्परा आरम्भ की थी जिसमें मुस्लिम बेगमों, शहजादियों, हिन्दू रानियों एवं राजकुमारियों को हीरे-मोती, झाड़-फानूस, इत्र, सुगंधित तेल, मलमल, मखमल और रेशम आदि विलासिता की वस्तुओं की दुकानें लगानी होती थीं।

बादशाह, हरम की औरतों, शाही परिवार के सदस्यों, अमीरों एवं उमरावों के साथ इस बाजार में आता था और ऊंचे दामों पर खरीददारी करता था। इस बाजार में प्रायः सुंदर औरतें भी खरीद ली जाती थीं। मुमताजमहल से शाहजहाँ की पहली मुलाकात मीना बाजार में ही हुई थी। औरंगजेब ने मीना बाजार पर भी रोक लग दी।

अकबर के समय से दूर देशों से आने वाले जौहरी एवं व्यापारी कीमती इत्र, सुगंध, हीरे-जवाहरात, कपड़े एवं आभूषण लाकर मुगल शहजादियों एवं बेगमों को बेचते थे। इनके हुजूम भी अब आगरा और दिल्ली के लाल किलों से दूर कर दिए गए।

इन सब कारणों से कुछ ही सालों में न केवल दिल्ली के लाल किले की अपितु आगरा के लाल किले की रंगीनियाँ भी नष्ट हो गईं और वहाँ सरलता, सादगी और सन्नाटों का राज हो गया। अब आगरा और दिल्ली में केवल पांच वक्त की अजान की आवाजें सुनाई देती थीं, इन आवाजों के अलावा और कोई आवाज धरती से उठकर आकाश तक नहीं पहुंच सकती थी।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source