औरंगजेब ने आगरा के लाल किले में वीर गोकुला जाट के टुकड़े करवाए! औरंगजेब किसी भी कीमत पर भारत से हिन्दू धर्म को मिटाना चाहता था। ब्राह्मण, वैश्य, मराठे, राजपूत, सिक्ख, सतनामी आदि कोई भी ऐसी जाति नहीं थी जिसे कुचलने के लिए औरंगजेब ने कोई न कोई षड़यंत्र न किया हो। वीर गोकुला जाट भी उसी की एक कड़ी थी।
जाट एक अत्यंत प्राचीन भारतीय समुदाय है। यह प्रायः कृषि एवं पशुपालन से जुड़ा हुआ, सम्पन्न, परिश्रमी एवं संघर्षशील विशेषताओं से युक्त है जो उत्तर भारत के उपाजाऊ मैदानों एवं मध्य भारत के उपाजाऊ पठार में बड़ी संख्या में निवास करता आया है। उत्तर भारत के दिल्ली, पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के भरतपुर, धौलपुर, आगरा, मथुरा, मेरठ हिसार, सीकर, चूरू, झुंझुनूं, बीकानेर, नागौर, जोधपुर तथा बाड़मेर आदि जिलों में बड़ी संख्या में जाट निवास करते हैं।
गंगा-यमुना के दो-आब में निवास करने के कारण जाटों को मुसलमान शासकों के हाथों दीर्घकाल तक उत्पीड़न झेलना पड़ा जिसके कारण इनमें संघर्ष करने की प्रवृत्ति विकसित हो गई।
पहले तुर्कों एवं बाद में मुगलों के शासन काल में ब्रज-क्षेत्र के जाट मुस्लिम सैनिकों के अत्याचारों के बावजूद अपनी जमीनों पर अपना नियंत्रण बनाये रखने में सफल रहे। इस कारण उनमें संगठित होकर लड़ने की प्रवृत्ति का निरंतर विकास हुआ। मुस्लिम सेनाओं के विरुद्ध छोटे-छोटे समूहों में संगठित होकर अपनाई गई लड़ाका प्रणाली, जाटों के राजनीतिक उत्थान के लिये वरदायिनी शक्ति सिद्ध हुई।
सत्रहवीं शताब्दी में आगरा, मथुरा, अलीगढ़, मेवात, मेरठ, होडल, पलवल तथा फरीदाबाद से लेकर दक्षिण में चम्बल नदी के तट के पार गोहद तक जाट जाति का खूब प्रसार हो गया था। इस कारण यह विशाल क्षेत्र जटवाड़ा कहलाता था। इस क्षेत्र पर नियंत्रण रख पाना शाहजहाँ के लिये भारी चुनौती का काम हो गया। शाहजहाँ के काल में जाटों को घोड़े की सवारी करने, बन्दूक रखने तथा दुर्ग बनाने पर प्रतिबंध था।
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ई.1636 में शाहजहाँ ने ब्रजमण्डल के जाटों को कुचलने के लिये मुर्शीद कुली खाँ तुर्कमान को कामा, पहाड़ी, मथुरा और महाबन परगनों का फौजदार नियुक्त किया। उसने जाटों के साथ बड़ी नीचता का व्यवहार किया जिससे जाट मुर्शीद कुली खाँ के प्राणों के पीछे हाथ धोकर पड़ गये।
हुआ यह कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को मथुरा के पास यमुना के पार स्थित गोवर्धन में हिन्दुओं का बड़ा भारी मेला लगता था। मुर्शीद कुली खाँ भी हिन्दुओं का छद्म वेश धारण करके सिर पर तिलक लगाकर और धोती बांधकर उस मेले में आ पहुंचा। उसके पीछे-पीछे उसके सिपाही चलने लगे। उस मेले में जितनी सुंदर स्त्रियां थीं, उन्हें छांट-छांटकर उसने अपने सिपाहियों के हवाले कर दिया। उसके सिपाही उन स्त्रियों को पकड़कर नाव में बैठा ले गये। उन स्त्रियों का क्या हुआ, किसी को पता नहीं लगा।
उस समय तो मुर्शीद कुली खाँ से कोई कुछ नहीं कह सका किंतु कुछ दिन बाद में ई.1638 में सम्भल के निकट स्थित जाटवाड़ नामक स्थान पर जाटों ने मुर्शीद कुली खाँ की हत्या कर दी। तब से जाटों और मुगलों में बुरी तरह से ठन गई।
शाहजहाँ ने जाटों को कुचलने के लिये आम्बेर नरेश मिर्जाराजा जयसिंह को नियुक्त किया। मिर्जाराजा जयसिंह ने जाटों, मेवों तथा गूजरों का बड़ी संख्या में सफाया किया तथा अपने विश्वस्त राजपूत परिवार इस क्षेत्र में बसाये।
जब भारत पर औरंगजेब का शासन हुआ तो औरंगजेब ने जाटों पर कड़ाई से नियंत्रण स्थापित करने की चेष्टा की। इस कारण जाट और अधिक भड़क गए। ई.1666 के आसपास ब्रज क्षेत्र के जाट तिलपत गांव के जमींदार गोकुला जाट के नेतृत्व में संगठित हुए।
इस पर औरंगजेब की सेना ने वीर गोकुला जाट को तंग करना शुरु कर दिया। मुगल सेना के अत्याचारों से तंग होकर गोकुला तिलपत छोड़कर महावन आ गया। उसने जाटों, मेवों, मीणों, अहीरों, गूजरों, नरूकों तथा पवारों को अपनी ओर मिला लिया तथा उन्हें इस बात के लिये उकसाया कि वे मुगलों को कर न दें।
कुछ समय बाद औरंगजेब के आदेश से मुगल सेनापति अब्दुल नबी खाँ ने गोकुला पर आक्रमण किया। उस समय गोेकुला सहोर गांव में था। जाटों ने अब्दुल नबी खाँ को मार डाला तथा मुगल सेना को लूट लिया। इसके बाद गोकुला ने सादाबाद गांव को जला दिया और उस क्षेत्र में भारी लूट-पाट की। अंत में औरंगजेब स्वयं मोर्चे पर आया और उसने जाटों को घेर लिया।
मुगल सैनिकों की विशाल संख्या के समक्ष जाटों की छोटी सी सेना का टिक पाना संभव नहीं था इसलिए जाटों की स्त्रियों ने जौहर किया तथा जाट वीर प्राण हथेली पर लेकर मुगलों पर टूट पड़े। इस संघर्ष में हजारों जाट मारे गये। उनके नेता वीर गोकुला जाट को हथकड़ियों में जकड़कर औरंगजेब के समक्ष ले जाया गया। औरंगजेब ने उससे कहा कि वह इस्लाम स्वीकार कर ले। गोकुला ने इस्लाम मानने से मना कर दिया।
इस पर औरंगजेब ने 1 जनवरी 1670 को आगरा के लाल किले में स्थित कोतवाली के समक्ष वीर गोकुला जाट का एक-एक अंग कटवाकर फिंकवा दिया। पराजय, पीड़ा और अपमान का विष पीकर तिल-तिल प्राण गंवाता हुआ गोकुला अपनी स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिये विमल कीर्ति के अमल-धवल अमृत पथ पर चला गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता