Saturday, October 12, 2024
spot_img

19. बाबर ने पांच घण्टे में जीत ली दिल्ली सल्तनत!

पानीपत के निकट पहुंच कर बाबर ने अपनी तोपों को गाड़ियों पर चढ़ाकर सेना के आगे तैनात करवा दिया। इधर बाबर तेजी से अपनी सेना को जमा रहा था और उधर दिल्ली का सुल्तान इब्राहीम लोदी एक दिन में दो-तीन कोस चलता हुआ तथा प्रत्येक पड़ाव पर दो-तीन दिन विश्राम करता हुआ आगे बढ़ रहा था।

इब्राहीम लोदी के पास संभवतः इतने सैनिक नहीं थे, जिनके बल पर वह युद्ध लड़ने एवं जीतने की आशा कर सके। कुछ समय पहले ही इब्राहीम लोदी का अपने अमीरों से भयानक संघर्ष हुआ था जिसमें इब्राहीम लोदी के कई हजार सैनिक मारे गए थे। बहुत से अमीर एवं सेनापति विद्रोही होकर अपने-अपने प्रांतों में चले गए थे और स्वतंत्र शासक की तरह व्यवहार कर रहे थे। वे इस युद्ध में इब्राहीम की सहायता करने के लिए नहीं आए थे।

इसलिए इब्राहीम लोदी को न तो इस बात की जल्दी थी कि वह शत्रु को तैयारी करने का अवसर दिए बिना ही उस पर टूट पड़े और न इस बात की चिंता थी कि वह किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंच कर मोर्चा बांधे। जबकि बाबर ने न केवल पानीपत के बाहर एक सुरक्षित स्थान देखकर अपनी तोप गाड़ियों, बंदूकचियों एवं घुड़सवारों को क्रमबद्ध कर लिया अपितु अपने दोनों पार्श्व तथा पीछे की तरफ खाइयां खुदवाकर उनमें पेड़ों की शाखाएं काटकर डलवा दीं ताकि शत्रु सेना बाबर की सेना में नहीं घुस सके।

बाबर ने अपने कुछ घुड़सवारों को सौ-सौ की संख्या में बांट दिया तथा उन्हें इस प्रकार खड़ा किया कि आवश्यकता पड़ने पर वे तुरंत सक्रिय होकर शत्रु सेना पर छापा मार सकें। बाबर ने लिखा है- ‘इतनी तैयारियों के बावजूद मेरी सेना में घबराहट थी क्योंकि उन्हें लगता था कि वे एक ऐसी सेना से युद्ध करने जा रहे हैं जिसके लड़ने के तरीकों के बारे में बाबर की सेना को कुछ भी जानकारी नहीं थी।’

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

बाबर ने अपने संस्मरणों में लिखा है- ‘इब्राहीम लोदी की सेना में एक लाख सैनिक थे तथा उसके पास अपने दादा बहलोल लोदी तथा अपने पिता सिकंदर लोदी द्वारा संचित खजाना था जिसके बल पर वह लाख – दो लाख सैनिक और भरती कर सकता था किंतु इब्राहीम लोदी स्वभाव से कंजूस था इसलिए वह अपने सैनिकों पर खजाना नहीं लुटा सका। वह एक अनुभवहीन नौजवान था। उसने अपनी सेना को किसी प्रकार का अनुभव नहीं करवाया था, न बढ़ने का, न खड़े रहने का और न युद्ध करने का।’

इब्राहीम लोदी पानीपत से कुछ दूर ही ठहर गया। इस पर बाबर ने कुछ घुड़सवार तीरंदाजों को इब्राहीम लोदी की सेना पर हमला करने के लिए भेजा ताकि इब्राहीम लोदी क्रोध में आकर बाबर की सेना पर आक्रमण करे। इब्राहीम लोदी की सेना मुगल तीरंदाजों को मारकर भगा देती थी किंतु अपने स्थान से हिलती नहीं थी। सात-आठ दिन तक ऐसा ही होता रहा। इस पर बाबर ने एक रात लगभग 5 हजार सैनिकों को इब्राहीम के शिविर पर हमला करने भेजा।

बाबर की सेना का हमला होने पर इब्राहीम के सैनिक मशालें जलाकर अपने सुल्तान के खेमे के चारों ओर सिमट गए किंतु उन्होंने शिविर से बाहर आकर युद्ध नहीं किया। इस पर बाबर की सेना प्रातः होने से पहले ही लौट आई। अगले दिन बाबर ने हुमायूँ को सेना देकर इब्राहीम के शिविर की तरफ भेजा। यह सेना भी शक्ति का प्रदर्शन करके लौट आई।

20 अप्रेल 1526 को बाबर को प्रातः कुछ उजाला होते ही सूचना मिली कि शत्रु की सेना पंक्तिबद्ध होकर बाबर के शिविर की तरफ बढ़ रही है। इस पर बाबर की सेना तुरंत तैयार हो गई। बाबर के सैनिकों ने कवच पहन लिए तथा हथियार लेकर घोड़ों पर सवार हो गए। तोपचियों ने भी अपनी तोपों में बारूद भरना शुरु कर दिया। बंदूकची भी कंधों पर बंदूकें रखकर तैनात हो गए।

बाबर ने अपनी सेना में कुछ तूलगमा दस्ते तैनात किए थे। इन्हें अनुभवी सेनानायकों के नेतृत्व में रखा गया। इनका काम यह था कि जब युद्ध अपने चरम पर पहुंच जाए तब ये दस्ते शत्रु सेना के दोनों पार्श्वों पर एवं पीछे पहुंचकर अचानक हमला बोल दे। जब इब्राहीम की सेना बाबर की सेना के निकट पहुंची तो कुछ दूरी पर ही ठिठक कर खड़ी हो गई।

बाबर के अनुसार- ‘ऐसा लगता था मानो इब्राहीम की सेना सोच रही हो कि इन तोपों के सामने जाए या न जाए, यहाँ रुके अथवा न रुके किंतु कुछ देर की असमंजस के बाद इब्राहीम की सेना ने आगे बढ़ना आरम्भ किया।’

बाबर को इसी क्षण की प्रतीक्षा थी। शत्रु मौत के मुँह में स्वयं ही बढ़ा चला आ रहा था। जैसे ही इब्राहीम की सेना तोपों की मार की सीमा में आई, बाबर की तोपों ने आग और बारूद उगलने आरम्भ कर दिए। इब्राहीम के सैनिक बारूदी गोलों की चपेट में आकर हवा में उछलने लगे। उन्होंने आज से पहले कभी तोप नहीं देखी थी। न वे यह जानते थे कि इनमें से क्या निकलेगा और सैनिकों को कैसे मारेगा!

जब इब्राहीम की सेना पीछे की ओर मुड़ने लगी तो उसी समय तूलगमा दस्तों ने दाईं ओर से, बाईं ओर से और पीछे की ओर से हमला बोल दिया। अब तो इब्राहीम की सेना चारों ओर से मुगल सेना से घिर गई। इब्राहीम के सैनिक चारों तरफ भाग खड़े हुए। इस कारण वे आपस में ही उलझ गए। किसी को भागने का रास्ता नहीं मिला।

बाबर ने लिखा है- ‘जब युद्ध आरम्भ हुआ, तब सूर्य एक नेजा बलंद हो चुका था। अर्थात् दिन के 9-10 बजे का समय था। मध्याह्न तक घनघोर युद्ध होता रहा। मध्याह्न समाप्त होने तक युद्ध भी समाप्त हो चुका था। जिस स्थान पर इब्राहीम खड़ा था, उस स्थान पर ही 5-6 हजार आदमी मारे गए थे। अन्य स्थानों पर जो लाशें पड़ी थीं उनकी संख्या अनुमानतः 15-16 हजार रही होगी किंतु आगरा पहुंचने पर हिन्दुस्तानियों की बातों से पता चला कि इस युद्ध में 40-50 हजार आदमी मारे गए होंगे।’

बाबर ने यहाँ भी बड़ी चालाकी से झूठ बोला है कि उसने अपने 12 हजार सैनिकों के बल पर इब्राहीम के 40-50 हजार सैनिक मार दिए। बाबर ने सुल्तान इब्राहीम लोदी के निकट मरे हुए शवों की संख्या 5-6 हजार बताई है, संभवतः यही संख्या सही है। शेष दोनों संख्याएं गलत हैं तथा बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई हैं ताकि बाबर स्वयं को महान् विजेता सिद्ध कर सके।

फ़रिश्ता ने लिखा है- ‘इब्राहीम लोदी मृत्यु-पर्यन्त लड़ा और एक सैनिक की भाँति मारा गया।’

नियामतुल्लाह ने लिखा है- ‘सुल्तान इब्राहीम लोदी के अतिरिक्त भारत का कोई अन्य सुल्तान युद्ध-स्थल में नहीं मारा गया।’

बाबर द्वारा दिए गए विवरण के अनुसार लगभग पांच घण्टे में दिल्ली जीत ली गई। जिस दिल्ली की सम्पन्नता के आश्चर्यजनक किस्से रोम और मिस्र से लेकर बगदाद, कुस्तुंतुनिया, समरकंद, फारस, काबुल तथा कांधार की गलियों में गूंजते थे, उस दिल्ली को जीतने में बाबर को पांच घण्टे ही लगे थे।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source