उज्बेक योद्धा शैबानी खाँ द्वारा मध्य-एशिया में तैमूरी बादशाहों के राज्य छीन लिए जाने के कारण बहुत से बादशाह अपने राज्यों से वंचित होकर जंगलों में भटकने लगे। इनमें से समरकंद तथा फरगना का शासक बाबर और कुंदूज का शासक खुसरोशाह भी थे जिनके पास कभी बड़ी-बड़ी सल्तनतें हुआ करती थीं।
बाबर ने अपने संस्मरणों में लिखा है- ‘अल्लाह ही सल्तनतों का स्वामी है। वह जिसे चाहता है, सल्तनत देता है तथा जिसे नहीं चाहता है, उससे सल्तनत वापस ले लेता है क्योंकि तू सर्वशक्तिमान है।’
कुंदूज के बादशाह खुसरोशाह की सेना में लगभग 20-30 हजार सिपाही थे जो खुसरोशाह का राज्य छिन जाने के बाद पहाड़ों में भटक रहे थे। मध्य-एशिया में शैबानी खाँ का राज्य हो चुका था जो कि एक उज्बेक था। इस कारण ऐसा एक भी बादशाह नहीं बचा था जो खुसरोशाह के तुर्को-मंगोल सिपाहियों को अपनी सेना में नौकरी दे सके। इसलिए लगभग चार हजार सैनिक बाबर के पास चले आए। एक दिन खुसरोशाह भी बाबर से मिलने आया जिसका विवरण हम पिछली कड़ी में बता चुके हैं।
जब खुसरोशाह बाबर से मिलकर वापस चला गया तब बाबर के साथियों ने बाबर को सलाह दी कि वह खुसरोशाह को मारकर उसकी सम्पत्ति छीन ले क्योंकि खुसरोशाह ने बाबर के खानदान के कई शहजादों को मारा था किंतु बाबर ने खुसरोशाह के प्राण नहीं लेने तथा उसकी सम्पत्ति नहीं लूटने का वचन दिया था। इसलिए बाबर ने खुसरोशाह को अपने सैनिकों की सुरक्षा में ईलाक-यीलाक की घाटी से बाहर निकलवा दिया ताकि वह काहमर्द की तरफ जा सके।
जब खुसरोशाह उस घाटी से चला गया तब बाबर के सैनिकों ने खुसरोशाह के खाली डेरे पर छापा मारा। बाबर के सैनिकों को यहाँ से बड़ी मात्रा में हथियार प्राप्त हुए जिन्हें बाबर ने अपने उन सैनिकों में बांट दिया जिनके पास हथियारों के नाम पर केवल डण्डे थे। बाबर ने भाग्य से हाथ आयी सेना तथा हथियारों का उपयोग करने का निश्चय किया और तत्काल ही काबुल के लिए रवाना हो गया। मार्ग में खुसरोशाह की सेना को छोड़कर भागे हुए कुछ और सैनिक दस्ते बाबर से आ मिले। इससे बाबर की सेना तो बड़ी हो गई किंतु बाबर के सामने एक और समस्या आ खड़ी हुई। बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि खुसरोशाह के सैनिक उद्दण्ड तथा अत्याचारी थे। इसलिए उन्हें अनुशासन में रखना कठिन था।
एक बार खुसरोशाह के एक सैनिक ने किसी अन्य सैनिक से तेल से भरा हुआ घड़ा छीन लिया। इस पर बाबर ने उस उद्दण्ड सैनिक को इतना पिटवाया कि वह सैनिक मर गया। इसके बाद खुसरोशाह के सैनिक सहम गए और अनुशासन में रहने लगे।
जब खुसरोशाह काहमर्द की तरफ पहुंचा तो उसे ज्ञात हुआ कि बाबर का परिवार इन दिनों काहमर्द में रह रहा है जिनमें बाबर की माता भी थी। खुसरोशाह ने बाबर के परिवार को मारने का निश्चय किया क्योंकि वह बाबर द्वारा किए गए व्यवहार से प्रसन्न नहीं था किंतु बाबर के परिवार के रक्षक सैनिकों ने खुसरोशाह का सामना किया जिसके बाद खुसरोशाह भयभीत होकर खुरासान की तरफ भाग गया।
जब बाबर काबुल के मार्ग में था, तब बाबर का परिवार बाबर से आ मिला। बाबर ने काबुल के दुर्ग पर घेरा डाल दिया। इस दुर्ग का निर्माण काबुल शाह नामक एक हिन्दू राजा ने करवाया था। इस कारण काबुल के किले को ‘काबुल शाह का किला’ कहा जाता था।
काबुल का शासक अब्दुर्रज्जाक भी एक तैमूरी बादशाह था एवं बाबर का चचेरा भाई था किंतु अब्दुर्रज्जाक को उसके सेनापति मुकीम आरगो ने काबुल से निकाल कर उसके किले एवं राज्य पर अधिकार कर लिया था। बाबर ने मुकीम आरगो को काबुल से मार भगाया तथा काबुल के किले एवं राज्य पर अधिकार कर लिया।
बाबर ने अपने चचेरे भाई अब्दुर्रज्जाक को एक छोटी सी जागीर दे दी। इस प्रकार बाबर ने काबुल में अपने लिए एक नवीन राज्य की नींव रखी। काबुल पर अधिकार करने के बाद बाबर ने गजनी और उससे लगते हुए बहुत सारे क्षेत्र अपने अधीन कर लिए।
कुछ समय बाद शैबानी खाँ ने ट्रांस आक्सियाना क्षेत्र में स्थित कई अन्य तैमूरी राज्यों को भी समाप्त कर दिया। इस कारण उन तैमूरी राज्यों के सैनिक भाग-भाग कर बाबर के पास आने लगे और उसकी सेना में भरती होने लगे। इससे बाबर के पास काफी बड़ी सेना एकत्रित हो गई।
दिखकाट की बुढ़िया के शब्द बाबर को बार-बार याद आते थे कि तुझे तैमूरी बादशाह की सेना में भरती होकर हिन्दुस्तान जाना चाहिए क्योंकि वहाँ इतना सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात हैं कि तेरी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी। इस समय बाबर के पास काफी बड़ी सेना हो गई थी जिसे वेतन देने के लिए धन की आवश्यकता थी। इसलिए काबुल तथा गजनी पर अधिकार हो जाने के बाद बाबर ने भारत पर आक्रमण करने का निश्चय किया।
बाबर ने लिखा है- ‘काबुल की ओर से हिन्दुस्तान जाने के चार रास्ते हैं। एक रास्ता खैबर पर्वत से होकर, दूसरा मार्ग बंगश की ओर से, तीसरा मार्ग नग्र अथवा नग्ज की ओर से और चौथा मार्ग फरमूल की ओर से जाता है। ये चारों रास्ते बहुत नीचे दर्रों से होकर गुजरते हैं। सिन्द अर्थात् हारू नदी के तीन घाटों से होते हुए उन चारों रास्तों तक पहुंचा जाता है। काबुल से भारत आने के लिए सिन्द, काबुल तथा अटक आदि नदियां पार करनी होती हैं। यह सिंद नदी भारत की सिंधु नदी से अलग है।’
जनवरी 1505 में बाबर अपने सैनिकों के साथ बादाम चश्मा तथा जगदाली के मार्ग से अदीनापुर होता हुआ नीनगनहार नामक स्थान पर पहुंचा। यह एक गर्म-स्थान था। बाबर ने लिखा है- ‘मैंने इससे पहले कभी गर्म-प्रदेश नहीं देखा था। यहाँ इतनी सुंदर वनस्पति एवं पशु-पक्षी थे जो मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखे थे। यहाँ की घास भी बहुत सुंदर थी तथा लोगों के रीति-रिवाज भी भिन्न प्रकार के थे। इसके बाद हम खैबर दर्रा पार करके जाम पहुंच गए।’
बाबर यहाँ से गूरखत्तरी (गोरक्ष-उत्तरी) नामक स्थान पर जाना चाहता था जो हिन्दू योगियों का बड़ा तीर्थस्थल था। यहाँ हजारों योगी एवं हिन्दू सिर तथा दाढ़ी मुंडवाने आते थे। किंतु गूरखत्तरी तक पहुंचने का मार्ग बहुत कठिन था इसलिए बाबर जाम से कोहाट के लिए रवाना हुआ जहाँ अनेक धनी अफगानी कबीले रहते थे।
कोहाट से बाबर को बहुत बड़ी संख्या में भेड़-बकरियां तथा भैंसे प्राप्त हुईं। बाबर के भूखे-नंगे सैनिकों को सोने-चांदी की मोहरों से भी अधिक मूल्यवान ये पशु लगते थे जिन्हें वे बिना कोई मूल्य चुकाए मारकर खा सकते थे। बाबर ने लिखा है- ‘कोहाट वालों के घरों से हमें बहुत बड़ी मात्रा में अनाज तथा सफेद कपड़े प्राप्त हुए।’
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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